हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 52 ☆ सो जाएँ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “ सो जाएँ”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 52 ☆

☆  सो जाएँ ☆

 

चलो गहरी रात हो गयी, सो जाएँ

उदासी की गोद में ही सही, सो जाएँ

 

खामोश दीवारें बुला रही हैं प्यार से

उनकी ही आरज़ू पूरी करने, सो जाएँ

 

मकड़ी जाला बुन रही होगी उजाले का

उससे मूंह फेर कर आओ ना, सो जाएँ

 

शब् भर कुछ ख्वाब देख लें जुस्तजू के

ज़रीं उम्मीद दिल में छुपाये, सो जाएँ

 

फिर सुबह आ ही जायेगी नाउम्मीदी लिए

आज रात के दामन में छुपकर, सो जाएँ

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ तो चलूँ….! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ तो चलूँ….!

 

जीवन की वाचालता पर

ताला जड़ गया

मृत्यु भी अवाक-सी

सुनती रह गई

बगैर ना-नुकर के

उसके साथ चलने का

मेरा फैसला…,

जाने क्या असर था

दोनों एक साथ पूछ बैठे-

कुछ अधूरा रहा तो

कुछ देर रुकूँ…?

मैंने कागज़ के माथे पर

कलम से तिलक किया

और कहा-

बस आज के हिस्से का लिख लूँ

तो चलूँ…!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सैन्य जीवन की ओर ☆ कर्नल अखिल साह

कर्नल अखिल साह 

(ई- अभिव्यक्ति से हाल ही में जुड़े  कर्नल अखिल साह जी  एक सम्मानित सेवानिवृत्त थल सेना अधिकारी हैं। आप  1978 में सम्मिलित रक्षा सेवा प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान के साथ चयनित हुए। भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में प्रशिक्षण के पश्चात आपने  इन्फेंट्री की असम रेजीमेंट में जून 1980 में कमिशन प्राप्त किया। सेवा के दौरान कश्मीर, पूर्वोत्तर क्षेत्र, श्रीलंका समेत अनेक स्थानों  में तैनात रहे। 2017 को सेवानिवृत्त हो गये। सैन्य सेवा में रहते हुए विधि में स्नातक व राजनीति शास्त्र में स्नाकोत्तर उपाधि विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त किया । कर्नल साह एक लंबे समय से साहित्य की उच्च स्तरीय सेवा कर रहे हैं। यह हमारे सैन्य सेवाओं में सेवारत वीर सैनिकों के जीवन का दूसरा पहलू है। ऐसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी एवं साहित्यकार से परिचय कराने के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी  में प्रवीण  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी का हार्दिक आभार।  हमारा प्रयास रहेगा कि उनकी रचनाओं और अनुवाद कार्यों को आपसे अनवरत साझा करते रहें। आज प्रस्तुत है कर्नल अखिल साह जी की  एक भावप्रवण कविता ‘सैन्य जीवन की ओर

☆ सैन्य जीवन की ओर

 

अनजानी सी थी वह राह

अनदेखी, अनसुनी थी वह डगर

जिस पर निकल पड़ा था मैं

छोड़ घर-परिवार, गांव-नगर।

 

विचलित सा, सहमा सा था मैं

जब भर्ती होकर गया निकल

त्याग कर हर सुख सुविधा

मित्रों का साथ, माँ का आँचल।

 

पर चंद दिनों के दौर में ही

भूल गया सब कष्ट अपने,

अब श्रम, प्रशिक्षण, अनुशासन

बन गए मेरे जीवन के सपने।

 

उमड़ रहा है मन में मेरे

देश सेवा का अजब जूनून

सैन्य वर्दी में ही अब मुझे

मिल रहा है ग़ज़ब सुकून।

 

© कर्नल अखिल साह

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 65 – निर्मल सांसें मिलेगी तुमको ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  मानवीय संवेदनशील रिश्तों पर आधारित एक अतिसुन्दर एवं  समसामयिक कविता   “निर्मल सांसें मिलेगी तुमको।  आशा पर संसार टिका है। ईश्वर शीघ्र  इस आपदा से सारे विश्व को मुक्ति दिलाएंगे और सबको निर्मल सांसे मिलेगी। इस सार्थक  एवं  भावनात्मक कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 65 ☆

☆ कविता – निर्मल सांसें मिलेगी तुमको ☆

 

ये कैसी लाचारी है

चारों ओर हाहाकारी हैं

 

मानव की विवशता  देखो

प्रकृति भी निठुराई है

श्वासों का सब खेल निराला

ऑंखें  सबकी पथराई है

 

मनुज डरा है मनुज से

सहमा भाई से भाई है

पूछ ना ले कोई कहीं से

स्वयं को सब ने बचाई है

 

यह कैसा है तांडव छाया

घनघोर विपदा है आई

मरे मिले ना कोई चार कांधे

रोने न कोई है माँ जाई

 

आग उगलते लपटों में

वसुंधरा भी कांप रही

बेबस होती जिंदगी में

धन भी काम न आया सही

 

बहता निर्मल स्वच्छ जल

बार बार कहता संदेश यही

अपने लिए जिएं सदा कल

प्रकृति के लिए जियो तो सही

 

निर्मल सांसें मिलेगी तुमको

नहीं बांधना होगा बंधन

मत काटो मेरे अंचल को

मिलेगा तुमको अनमोल धन

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

बालों में है उंगलियां, अधर अधर के पास।

सब कुछ ठहरा है मगर ,मन का चले प्रवास।।

 

पंछी होता मन अगर ,गाता बैठ मुंडेर ।

देख नहीं पाता तुम्हें, कितनी कितनी देर।।

 

एक रसीले हाथ ने, लिखा भूमि पर नाम।

मस्तक को दुविधा हुई, किसको करूं प्रणाम।।

 

एक गुलाबी  गात ने, पहिन गुलाबी चीर।

फूलों के इतिहास को,दे दी एक नजीर।।

 

हल्के नीले रंग का, पहिन लिया परिधान।

जैसे आई चांदनी, कर यमुना में  स्नान।।

 

करता जिसकी अर्चना, उसके विविध स्वरूप।

जो दुर्गा कल्याणिका ,गायत्री का रूप।।

 

शैया शायी सुंदरी, बिखरे बिखरे केश।

अलसाई सी भंगिमा ,आमंत्रण संदेश।।

 

पीत वसन शैया शयन ,कुंतल झरे पराग।

ऊपर से सब शांत है ,भीतर ठंडी आग।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ एकांत ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ एकांत

एकांत का साथी

एकांत ओढ़ता हूँ,

एकांत बिछाता हूँ,

एकांत से बोलता हूँ,

एकांत से बतियाता हूँ,

समर्पण का उत्कर्ष है

एकात्म, परमात्म हो जाता है,

एकांत मेरा संगी हो जाता है,

कुछ भी रहे एकांत पर

एकांत नहीं रह पाता है।

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 17 – सुवासित पनिहारने ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “सुवासित पनिहारने। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 17– ।। अभिनव गीत ।।

☆ सुवासित पनिहारने 

 

इस  कुयें

रहा करती

खुशबुयें

 

सुवासित

पनिहारने

गंध की

परिवारिने

 

देवरानी

जिठानी

बहुयें

 

सगुन वाले

कलश की

या सुनहरे

सुयश की

 

परछाईं

तक ना

छुयें

 

कुछ सुलगती

हुई आँखें

फड़फड़ाती

हुई पोंखें

 

छोड़ती

रहती

धुँयें

 

© राघवेन्द्र तिवारी

24-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 20 ☆ आमंत्रण ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “आमंत्रण”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 20 ☆ 

☆ आमंत्रण ☆

 

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण,

उन्मुक्त प्यार रूपी पंछी को मेरा हसीन निमंत्रण,

अभिव्यक्तियों को दिल से दिल तक पहुँचाने का निमंत्रण,

उम्र के हर पड़ाव में, अपनों के साथ का निमंत्रण,

ख्वाब को रूबरू होने का निमंत्रण,

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण।

 

ज़िन्दगी की भीड़ में कहीं अपने आप को छुड़ाने का निमंत्रण,

ये शरीर बना हड्डी का पिंजर, उसे सहजने का निमंत्रण,

मुसाफिरखाना बने मेरे मन को नए एहसास का निमंत्रण,

अपने अंतर्मन को छूने का निमंत्रण,

खामोशी के साथ पैगाम-ए-दिल को निमंत्रण,

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण।

 

आओ हम सब एक हो जाएँ और दे ख़ुशी को निमंत्रण,

ऊँच-नीच जाति -पाति का भेद मिटाकर, करे एकता का निमंत्रण,

तेरा मेरा छोड़ कर अपनों का निमंत्रण.

 

बिखरे जीवन, लूटते दिल को जोड़ने का निमंत्रण,

अनेकता में एकता में रहने का निमंत्रण,

आमंत्रण शब्द में छुपा मेरा निमंत्रण।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – कत्ले आम ☆ डॉ दिवाकर पोखरियाल

डॉ दिवाकर पोखरियाल 

Diwakar Pokhriyal

(अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) पृष्ठभूमि से संबन्धित एवं ऊर्जा (एनर्जी) में पी. एच डी कर चुके डॉ . दिवाकर पोखरियाल का साहित्य एवं गीत-संगीत में रुझान उनकी सर्वांगीण प्रतिभा का परिचायक है। आपकी विशिष्ट साहित्यिक प्रतिभा के कारण आपका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स – 2014 एवं  2017’ में दर्ज है। हम ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को आपसे रूबरू करने में गौरवान्वित अनुभव करते हैं।प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण ग़ज़ल  ‘ कत्ले आम ’ ।)

☆ ग़ज़ल – कत्ले आम ☆

चहु ओर जो देखूं, बस क़त्ले-आम है,

प्यार के बाशिन्दो को मिलते जाम है,

 

सुर्ख अदाओ से चलाते है वो छुरियाँ,

कभी अल्लाह है जिनका, कभी राम है,

 

फैलाते है हैवानियत का डर वो ख़ास,

इंसानियत का खून ही जिनका काम है,

 

नशा दौलत का सिर चढ़ा है कुछ ऐसा,

बाज़ारो में बिकते से ईमान तमाम है,

 

इस कदर गिरी है अब सोच दुनिया की,

उठाने वाला हर शख्स यहाँ बदनाम है,

ना समझा ये छोटी सी बात वो ‘साथी’,

पीठ में घोपना खंजर, आजकल आम है || ड्व ||

 

© डॉ दिवाकर पोखरियाल

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #10 ☆ लॉकडाउन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक भावप्रवण रचना “लाॅकडाऊन”।  श्री श्याम खापर्डे जी ने  इस कविता के माध्यम से लॉकडाउन की वर्तमान एवं सामाजिक व्याख्या की है जो विचारणीय है।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 10 ☆ 

☆ लाॅकडाऊन ☆ 

हमारा एक रिटायर्ड मित्र

एक दिन मिला

मिलते ही करने लगा

शिकवा और गिला

बोला,’ यार,

ये कैसा लाॅकडाउन है

कैदियों सा जीवन है

सार्वजनिक पार्क बंद

सार्वजनिक ग्रंथालय बंद

देवालय बंद

विद्यालय बंद

बाजार बंद

किराना स्टोर और

सब्जी भाजी बंद

जाएँ तो कहाँ जाएँ

बाहर निकलना भी बंद

किसको अपनी व्यथा सुनाये

कैसे अपना मन बहलाये

जब चाहे तब लाॅकडाऊन

लगाते हैं

हमारे जैसे वृध्द, बीमार

सीनियर सिटीजन को

क्यों तड़पाते हैं?

हमने कहा मित्र-

तुम्हारा वाजिब रोष है

परंतु, ये तो

महामारी का दोष है

खतरें में हम सबका जीवन है

इसलिए जरूरी यह लाॅकडाऊन है

हम लोग कुछ दिनो के लाॅकडाऊन से

कितने दुःखी, परेशान हैं

हर व्यक्ति व्यथित इन्सान है

 

मित्र, जरा सोचो

उन्हें देखों

हाशिए पर खड़े वो वंचित

लुटे हुए,पिटे हुए वो शोषित

सदियों से और आज भी

लाॅकडाऊन में जी रहे हैं

असमानता का ज़हर पी रहे हैं

तिरस्कार, घृणा जिनका

आभूषण है

पशुओं से भी बदतर

नारकीय जीवन है

मित्र,

ये महामारी का लाॅकडाऊन तो

कुछ दिनों में हट जायेगा

लेकिन क्या?

उन पीड़ित इन्सानों का

सामाजिक लाॅकडाऊन

कभी खत्म हो पायेगा ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares