हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीप पर्व विशेष – ।। हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा दीप पर्व पर रचित शुभकामना स्वरुप विशेष रचना ।।हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी।।)

☆ दीप पर्व विशेष – ।। हर रंग से भी रंगीन हो, दीपावली आपकी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

 

।। 1।।

हर कदम पर मिले कीर्ति

हर पग पर सम्मान मिले।

हर पल क्षण आपका हो

बरसों तक पहचान मिले।।

सदैव अमिट रहे हर दिल

में याद आपके नाम की।

यही कामना इस दीवाली

आपको यूँ यशोगान मिले।।

 

।। 2 ।।

आइये सबका खुशियों से

दामन सजाते दीवाली को।

किसी भूखे को भी खाना

खिलाते हैं इस दीवाली को।।

हँसी उन जीवन में भी लायें

जो वंचित हर सुखसाधन से।

दुआ की दौलत से झोली

भराते हैं इस दीवाली को।।

 

।। 3 ।।

इस दीवाली कोई प्रेम का

दिया नया सा जल जाये।

प्यार की धारा बहे कि

नफरत किनारे लग जाये।।

अमन चैन सुख शांति की

बन जाये यह दुनिया।

रोशन महोब्बत का दीया

हर दिल में जग जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

03 11 2021

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दीवाली ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक  कविता दीवाली ! )

 

☆ कविता  ☆ दीवाली ! ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆ 

 

एक दीये ही हैं

जो

रात में जलते हैं,

वरना

जलने वाले तो

दिन – रात जलते हैं ।

*

आप पहली किस्म के हैं

आपको

सलाम करता हूँ,

 दीवाली की अपनी शाम

आपके नाम करता हूँ ।

*

मेरा क्या  ?

मुझे जब भी

रोशनी को जरूरत होती

आपको याद कर

रोशन हो जाता हूँ,

अकेले में

दीवाली मनाता हूँ ।

नोट:- मेरे वेक्सीन के दोनों डोज हो गए। अब तो मैं, भीड़ में भी आपको याद कर, सरे आम दीवाली मना सकता हूँ।

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (66-70) ॥ ☆

कथन को उसके न मानता मन, कुछ इन्दुमति का लिये लगन था –

ज्यों सूर्यदर्शन की लालसा ले, कमल विकसता न शशि किरण पा ॥ 66॥

 

निशीथ गामिनी सी दीप्ति जैसी निकट से जिस नृप के बढ़ गई वह

उसी की मुख श्री भवन सी पथ के, खिली पै फीकी पड़ी क्षणिक रह ॥ 67॥

 

‘‘ मुझे चुनेगी क्या ”, पास आई को लख विकलता थी अज हृदय में

परन्तु शंका मिटाई तत्क्षण फड़क के दांयी भुजा सदय ने ॥ 68॥

 

पा सर्व गुण – रूप से युक्त अज को, बढ़ी न आगे रूकी कुमारी

कभी क्या कुसुमित रसाल तरूतज बढ़ी है आगे भी षट्पदाली ? ॥ 69॥

 

निबद्ध अज में सुप्रीति उसकी, समझ सुनंदा लगी सुनाने

और चंद्र सी इन्दुमती को अज का विसद सविस्तार लगी बताने ॥ 70॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 6 – दीप पर्व विशेष – दीपावली का पर्व यह …☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  दीप पर्व पर विशेष कविता  “दीपावली का पर्व यह …”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 6 – दीप पर्व विशेष – दीपावली का पर्व यह … ☆ 

 

मातु लक्ष्मी कृपा कर, सरस्वती दे ज्ञान ।

गणपति से आशीष ले, सभी बने विद्वान ।।

 

फुलझड़ियां मुस्कान की, जगमग जलते दीप।

खुशियों के बम फूटते, पाकर मोती सीप।।

 

दीपक घर घर में जलें, दूर हटे अज्ञान ।

तमस सभी मन के मिटें, सबका हो कल्यान।।

 

रंग बिरंगी रोशनी, झूम उठेगी शाम।

राम अयोध्या आ गए, सँबरे सबके काम।।

 

दीपावली का पर्व यह, फिर आया इस बार ।

हंसी-खुशी सब साथ में, सुखमय हो संसार।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

 

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (61-65) ॥ ☆

 

विन्ध्याद्रि की उच्चता जिनने रोकी औं जिसने महोदधि को फिर से छोड़ा

उन महामुनि अगस्तय से पाण्ड्य नृप ने कर अश्वमेध स्नेह संबंध जोड़ा ॥ 61॥

 

पुराकाल में तृप्त लंकाधिपति ने, जन स्थान सीमा सुरक्षित बनाने

शिव से विशेषास्त्र पाये इसी पाण्ड्य से संधि की इन्द्र को भी हराने ॥ 62॥

 

पाणिग्रहण कर इसी योग्य नृप का पृथ्वी सा सागर की करधन जो धारे

दक्षिण दिशा को सपत्नी बना जो सुखद रत्नाकर की है रसना सँवारे ॥ 63॥

 

ताम्बूल वल्ली घिरे सुपारी वृक्ष, ऐला विचुम्बित अगरू तरू जहाँ हैं

वहाँ केलि हित बिछाये आस्तरण हैं तमालों की मंजुल मलय वीथिकायें ॥ 64॥

 

ये नील नीरज से श्याम नृप, तुम हो रोचना गौर शरीर वाली

बढ़ाने आपस की रूप श्शोभा, है योग धन – दामिनी का सा आली ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 110 ☆ ‘तू’ ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 110 ☆

☆ ‘तू’ ☆

हासते आहेस तू

लाजते आहेस तू

 

मख्ख माझा चेहरा

वाचते आहेस तू

 

तळ मनाचा खोल पण

गाठते आहेस तू

 

लाज पदराखालती

झाकते आहेस तू

 

सूर्य नाही काजवा

मागते आहेस तू

 

सृजनतेची वेदना

जाणते आहेस तू

 

जीवनाचा अर्थही

सांगते आहेस तू

 

एक भक्तीचा दिवा

लावते आहेस तू

 

सोबतीने आजही

चालते आहेस तू

 

देह आणिक भाकरी

भाजते आहेस तू

 

नाहताना चांदणे

सांडते आहेस तू

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 62 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 62 –  दोहे 

 

रोई ब्रज की गोपिका, रोए थे नंदलाल।

चुप्पी साधे राधिका, आंसू करे सवाल।

 

आंसू का इतिहास है आशु का भूगोल ।

आंसू का विज्ञान अब, रहस्य रहा है खोल।।

 

आंसू है संवेदना आंसू, मन की पीर।

यशोधरा का रूप है ,जसोदा की जंजीर।।

 

जनक दुलारी चल पड़ी ,ओढ़ अश्रु का चीर ।

आंसू डूबी अयोध्या, राम मौन गंभीर ।।

 

घनानंद का अश्रुधन ,अर्पित कृष्ण सुजान।

उसी अश्रु की धार में ,डूबे थे रसखान ।।

 

आंसू डूबी सांस से, रचित ईश्वरी फाग।

रजउ ब्रह्म थी ,जीव थी ,ऐसा था अनुराग।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 62 – खबर तो यह भी जरूरी ….. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “खबर तो यह भी जरूरी ….. । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 62 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || खबर तो यह भी जरूरी ….. || ☆

 

खबर तो यह भी जरूरी

है, नई

फर्श से दीवार आकर

सट गई

 

शून्य पसरा भवन के

सद विचारों में

दिख रहे ध्वंश के बादल

दरारों में

 

ईंट की अपनी व्यथा

सहकर्मियों से

दूसरी एक ईंट आकर

कह गई

 

शुरू झड़ना हुआ

चूना समय का

बचा न अस्तित्व

जैसे विनय का

 

लोक प्रचलित कहावत

सी चेतना

डाक में आये खतों

सी बँट गई

 

अस्तव्यस्तस्थितियाँ

सिंहद्वारों की

भूख में डूबी

बस्ती कहारों की

 

कमर से आ झुकी

नाइन पूछती

जल रही वो आग

कैसे बुझ गई ?

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

24-10-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सापेक्ष ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – सापेक्ष ?

(कल प्रकाशित हुए कवितासंग्रह क्रौंच से)

भारी भीड़ के बीच

कर्णहीन नीरव,

घोर नीरव के बीच

कोलाहल मचाती मूक भीड़,

जाने स्थितियाँ आक्षेप उठाती हैं

या परिभाषाएँ सापेक्ष हो जाती हैं,

कुछ भी हो पर हर बार

मन हो जाता है क्वारंटीन,

क्या कहते हो आइंस्टिन..?

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 108 ☆ जीतने वाले…. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  ‘जीतने वाले….’).   

☆ कविता # 108 ☆ जीतने वाले.... ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

जीत के

अक्षर में

शब्द हंसते हैं,

 

शब्द हमेशा

टटोलते हैं

जीत का मतलब,

 

जीतने वाले

शब्दों से

खेलते नहीं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

मान देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

मधुर बनाते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

हंसी देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

नये अर्थ देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

आत्मसात करते हैं,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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