हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समग्रता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – समग्रता ??

उन आँखों में

बसी है स्त्री देह,

देह नहीं, सिर्फ

कुछ अंग विशेष,

अंग विशेष भी नहीं

केवल मादा चिरायंध,

सोचता हूँ काश,

इन आँखों में कभी

बस सके स्त्री देह..,

केवल देह नहीं

स्त्रीत्व का सौरभ,

केवल सौरभ नहीं

अपितु स्त्रीत्व

अपनी समग्रता के साथ,

फिर सोचता हूँ

समग्रता बसाने के लिए

उन आँखों का व्यास

भी तो बड़ा होना चाहिए..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.24 बजे, 5.12.19

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “तीन व्यंग्य श्रद्धांजलि” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल☆

श्री घनश्याम अग्रवाल

(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य कविता  – “तीन व्यंग्य श्रद्धांजलि”)

🌹 आदरणीय श्री घनश्याम अग्रवाल जी को महामहिम राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी जी द्वारा 27 फ़रवरी 2023 को “वाग्धारा नवरत्न सम्मान 2023” से सम्मानित किया जाएगा। ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं – अभिनन्दन 🌹

☆ कविता  ☆ “तीन व्यंग्य श्रद्धांजलि” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆

[1]

शहीद के परिवार को

कुछ मुआवजा

और शहीद को,

दो मिनट का मौन,ं

बस, ड्यूटी खत्म

फिर इसके बाद

कैसा शहीद ?

शहीद कौन ?

[2]

किसी मृतात्मा की

शांति के लिए

जब रखा गया

” दो मिनट का मौन “

तो सभी जीवात्माएं

यही सोच रही थी

कि कब दो मिनट हो ।

[3]

” श्रद्धांजलि सभा के बाद आज कोई कामकाज नहीं होगा। “

इस घोषणा पर कइयों के

दिल की कली खिल गई,

पूरे मनोयोग से

श्रद्धांजलि दी गई

कि चलो, इसी बहाने

एक छुट्टी और मिल गई ।

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #168 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 168 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – भावना के दोहे… ☆

खड़ी सुंदरी द्वार पर, लिए हाथ में सूप।

बालों मे गजरा बंधा, सुंदर दिखता रूप।।

 

पीड़ा मन की आज तक, बांच सका है कौन।

मनवा है बैचेन तो, हूँ अब तक मैं मौन।।

 

आपस में बातें करें, है जीवन अनमोल ।

तेरी मेरी बात का, बस इतना है मोल।।

 

आंखे तेरी बोलती, उनमें बड़ा सवाल।

तू कहना क्या चाहता, पूछ रहे हो हाल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #154 ☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “प्रेम। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 154 ☆

प्रेम ☆ श्री संतोष नेमा ☆

प्रेम  से  बचकर   कहाँ  जाइएगा

जहां   जाइएगा    वहीं   पाइएगा

सृष्टि के कण-कण में है पिरोहित

कैसे     इसे   अब   ठुकराइयेगा

प्रेम ही मीरा प्रेम  राधा है

जिन्होंने प्रेम को साधा है

प्रेम सूर प्रेम ही तुलसी है

रामायण भी प्रेम गाथा है

जब तक प्रेम की प्यास जिंदा है

तब तक  चहकता हर परिंदा है

प्रेम  से रिक्त है  जिसका  हृदय

संतोष   वही  आज  शर्मिंदा  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १८ (ब्रह्मणस्पति सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १८ (ब्रह्मणस्पति सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १८ (ब्रह्मणस्पति सूक्त)

ऋषी – मेधातिथि कण्व : देवता – आप्री देवतासमूह 

ऋग्वेदातील पहिल्या मंडलातील अठराव्या सूक्तात मेधातिथि कण्व या ऋषींनी ब्रह्मणस्पति, इंद्र, सोम, दक्षिणा व सदसस्पति अशा विविध देवतांना  आवाहन केलेले आहे. तरीही  हे सूक्त ब्रह्मणस्पति सूक्त म्हणून ज्ञात आहे. 

मराठी भावानुवाद : 

सो॒मानं॒ स्वर॑णं कृणु॒हि ब्र॑ह्मणस्पते । क॒क्षीव॑न्तं॒ य औ॑शि॒जः ॥ १ ॥

उशिजसूत कुक्षीवानाने सोम तुला अर्पिला

प्रसन्न होई ब्रह्मणस्पते स्वीकारूनी हवीला

कल्याणास्तव त्यांच्या देई आशीर्वच भक्तां

कुक्षीवानासम त्यांना रे देई तेजस्वीता ||१||

यो रे॒वान्यो अ॑मीव॒हा व॑सु॒वित्पु॑ष्टि॒वर्ध॑नः । सः नः॑ सिषक्तु॒ यस्तु॒रः ॥ २ ॥

स्वामी असशी संपत्तीचा व्याधींचा हर्ता

साऱ्या जगताचा तू असशी समर्थ पालनकर्ता

द्रव्य अमाप तुझिया जवळी भक्तांचा तू त्राता

अमुच्या वरती ब्रह्मणस्पते ठेवी आशिषहस्ता ||२||

मा नः॒ शंसो॒ अर॑रुषो धू॒र्तिः प्रण॒ङ्‍ मर्त्य॑स्य । रक्षा॑ णो ब्रह्मणस्पते ॥ ३ ॥

कुटिलांची किती दुष्कृत्ये अन् क्षोभक दुर्वचने 

बाधा करण्या आम्हाला ती सदैव दुश्वचने

कवच तुझे दे ब्रह्मणस्पते अभेद्य आम्हाला 

तू असशी रे समर्थ अमुचे संरक्षण करण्याला ||३||

स घा॑ वी॒रो न रि॑ष्यति॒ यमिंद्रो॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ । सोमो॑ हि॒नोति॒ मर्त्य॑म् ॥ ४ ॥

ब्रह्मणस्पती, शचीपती अन् सोम श्रेष्ठ असती

समस्त मनुजा राखायाला सदैव सिद्ध असती

ज्यांच्या वरती कृपा तिघांची ते तर भाग्यवंत

अविनाशी ते कधी तयांच्या भाग्या नाही अंत ||४||

त्वं तं ब्र॑ह्मणस्पते॒ सोम॒ इंद्र॑श्च॒ मर्त्य॑म् । दक्षि॑णा पा॒त्वंह॑सः ॥ ५ ॥

रक्ष रक्ष हे ब्रह्मणस्पते इंद्र सोम दक्षिणा

मनुष्य प्राणी मोहांभवती घाली प्रदक्षिणा

कळत असो व नकळत घडती पापे हातूनी 

संरक्षण आम्हासी देउनिया न्यावे तारूनी ||५||

सद॑स॒स्पति॒मद्‍भु॑तं प्रि॒यमिंद्र॑स्य॒ काम्य॑म् । स॒निं मे॒धाम॑यासिषम् ॥ ६ ॥

प्रज्ञारूपी सदसस्पतीची मैत्री इंद्राशी 

अद्भुत आहे शौर्य तयाचे भिववी शत्रूसी

काय वर्णु औदार्य तयाचे प्रसन्न भक्तांशी

भाग्य लाभले सन्निध झालो आहे त्याच्यापाशी ||६||

यस्मा॑दृ॒ते न सिध्य॑ति य॒ज्ञो वि॑प॒श्चित॑श्च॒न । स धी॒नां योग॑मिन्वति ॥ ७ ॥

आम्हा लाभे बुद्धीमत्ता तयाची कृपा ही

आपुलकीने बहु प्रीतीने आम्हा तो पाही

सिद्ध कराया यज्ञायागा ज्ञानिहि समर्थ नाही

असेल त्याचे सहाय्य तर हे सहजी साध्य होई ||७||

आदृ॑ध्नोति ह॒विष्कृ॑तिं॒ प्राञ्चं॑ कृणोत्यध्व॒रम् । होत्रा॑ दे॒वेषु॑ गच्छति ॥ ८ ॥

अर्पण केल्या हविसी देई पूर्ण सफलता तो

यज्ञकार्यीच्या न्यूनालाही सांभाळुनिया घेतो 

अर्पण करुनीया  देवांसी हविर्भाग अमुचा

त्याच्या पायी होत सिद्धता यज्ञाला अमुच्या ||८||

नरा॒शंसं॑ सु॒धृष्ट॑म॒मप॑श्यं स॒प्रथ॑स्तमम् । दि॒वो न सद्म॑मखसम् ॥ ९ ॥

नराशंस हा अती पराक्रमी दिगंत त्याची कीर्ति

द्यूलोकच जणू तेजस्वी किती भव्य तयाची कांती

दर्शन त्याचे मजला घडले धन्य जाहलो मनी

प्रसन्न होउन कृपा करावी हीच प्रार्थना ध्यानी ||९||

(हे सूक्त व्हिडीओ  गीतरुपात युट्युबवर उपलब्ध आहे. या व्हिडीओची लिंक येथे देत आहे. हा व्हिडीओ ऐकावा, लाईक करावा आणि सर्वदूर प्रसारित करावा. कृपया माझ्या या चॅनलला सबस्क्राईब करावे. )

https://youtu.be/TDVCUNhPGKM

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Preview YouTube video Rugved :: Mandal :: 1 :: 18 |||| ऋग्वेद :: मंडल १ :: सुक्त १८

Rugved :: Mandal :: 1 :: 18 |||| ऋग्वेद :: मंडल १ :: सुक्त १८

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – फ्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – फ्रेम ??

हरेक का हर फ्रेम

नाक़ामयाब निकला,

हर बार मेरा किरदार

आउट ऑफ फ्रेम निकला..!

© संजय भारद्वाज 

9:50 रात्रि, 8 फरवरी 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ऐतबार… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने प्रवीन  ‘आफ़ताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण रचना “ऐतबार  

? ऐतबार… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆ ?

हम उन्हें अपना बनाने

      में  ही  मसरूफ रहे,

और वो, हमें गैरों में

      शुमार  करने  लगे…

 

जो थकते नहीं थे कभी,

      नाम  लेते  हमारा

देखकर हमें वो  अब

      रास्ता बदलने लगे हैं

 

ये  जमाने  का  चलन  है

      या फितरत आदमी  की,

जो भरोसेमंद होते थे कभी,

      गिरगिट से बनते जा रहे हैं…

 

ऐतबार किस पर करूं मैं

      और क्यों करूं, तू ही बता,

वो रहमोदिली का बेरहम

      सा अंज़ाम देते जा रहे हैं…!

~ प्रवीन रघुवंशी ‘आफताब’

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 146 ☆ वेदवाणी माँ सरस्वती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’… ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 146 ☆

वेदवाणी माँ सरस्वती… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

वेदवाणी माँ सभी का

आप ही जीवन सँवारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

दूर हो अज्ञान सब ही

आप संशय को मिटा दो।

जगत की करके भलाई

हर तमिस्रा को हटा दो।

 

तेज से परिपूर्ण कर दो

दुर्गणों से आप तारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

आप ही सद्बुद्धि देना

विश्व का कल्याण करना।

मन , हृदय में प्रेम भरकर

नव सुरों की तान भरना।

 

पाप, कष्टों से बचाकर

आप जीवन को सँवारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

 

दुःख सारे दूर कर दो।

कीर्तियों से आप भर दो।

मूर्खता, आलस्य, जड़ता

आदि सब अज्ञान हर दो।

 

आप हो ऐश्वर्यशाली

हर बुराई आप मारो।

ज्ञान का आलोक देकर

तमस से सबको उबारो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – दास्तां ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

 

☆ गीत – दास्तां ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

रहे दास्तां यदि जीवित तो,पाती तब वह मान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

 

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर,

जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी,

दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

 

धन-दौलत मत करो इकट्ठा,

कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा,

तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर,पा लेनी पहचान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

 

शानोशौकत नहीं काम की,

चमक-दमक में क्या रक्खा

वहीं जानता सेवा का फल,

जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ,यही आज अरमान है।

गौरव में जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #168 – तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं तन्मय के दोहे – “अपनी निजता खो रहा…”)

☆  तन्मय साहित्य  #168 ☆

☆ तन्मय के दोहे – अपनी निजता खो रहा… 

चौपालें  चौपट  हुई,   ठंडे  पड़े  अलाव।

लुप्त हुई पगडंडियाँ, बढ़े सड़क के भाव।।

पहनावे  के  संग में,  लगे बदलने  लोग।

खेती-बाड़ी छोड़ कर, जोड़-तोड़ उद्योग।।

खेत खले बिकने लगे, नव फैशन की चाल।

घुसे  शहर के सेठिये,  शातिर चतुर दलाल।।

अब ना कोयल की कुहुक, ना कौवों की काँव।

नहीं  रही  अमराइयाँ, बड़ – पीपल  की  छाँव।।

रोजगार  की खोज  में, चले  शहर की ओर।

चकाचौंध से दिग्भ्रमित,भटके युवक किशोर।।

अपनी निजता खो रहा, ग्राम्य-प्रेम पहचान।

सूख  रहा  रस  प्रीत का, रिश्तों का  उद्यान।।

प्रेमपगा सम्मान सुख, अनुशासित परिवार।

छूट गया वह गाँव-घर,  जहाँ  प्रेम  रसधार।।

हँसी ठिठौली दिल्लगी,  किस्से गल्प तमाम।

राम – राम  भुले सभी,  अभिवादन के नाम।।

काँकरीट सीमेंट सँग, दिल भी हुए कठोर।

मीठे वचनों  की जगह,  तू-तू  मैं-मैं  शोर।।

पनघट अब सूने हुए, बड़-पीपल की छाँव।

मिटे  नीम  जंगल कटे,  बदल गए हैं गाँव।।

बूढ़ा   बरगद   ले  रहा,  अंतिम  साँसें   आज।

फिर होगा नव-अंकुरण, प्रमुदित मन के साज।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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