ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 52 ☆ प्रेरणास्रोत श्रीमती उज्ज्वला केळकर जी के 78 वें जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें ☆

ई-अभिव्यक्ति -संवाद

☆ ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 52 ☆प्रेरणास्रोत श्रीमती उज्ज्वला केळकर जी के 78वें जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें 

प्रिय मित्रो,

सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने काफी हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 सेअधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )। इनके अतिरिक्त हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6, लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में आपकी दो पुस्तकें और प्रकाशित हुई हैं जिनकी जानकारी हम शीघ्र ही आपसे साझा करेंगे।

जीवन के इस पड़ाव में भी आपका सीधा सादा सरल एवं मृदु स्वभाव, सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन तथा साहित्य के प्रति समर्पण हमें सदैव प्रेरणा देता है।

आपने ई-अभिव्यक्ति के मराठी संस्करण के सम्पादन के मेरे आग्रह को स्वीकार किया एवं श्री सुहास रघुनाथ पंडित जी के साथ उसे नवीन स्वरुप देकर मराठी साहित्य के पाठकों तक सकारात्मक साहित्य साझा करने में अभूतपूर्व सहयोग प्रदान किया। इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ।

अक्टूबर का माह हमारे लिए विशेष महत्व रखता है। 5 अक्टूबर को हमने हमारे मराठी सम्पादक मंडल के मित्र श्री सुहास रघुनाथ पंडित जी का जन्मदिवस मनाया और आप सभी के अगाध स्नेह से 15 अक्टूबर को ई-अभिव्यक्ति के दो वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं।  हमें पूर्ण विश्वास है कि हमें इसी प्रकार भविष्य में भी आप सभी का अगाध स्नेह एवं प्रतिसाद मिलता रहेगा।

ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से हम सबकी प्रेरणा स्रोत श्रीमती उज्ज्वला केळकर जी को 78 वें जन्मदिवस की अशेष हार्दिक शुभकामनायें।

हेमन्त बावनकर

9 अक्टूबर 2020

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ई-अभिव्यक्ति का आज का अंक अग्रज एवं वरिष्ठ मराठी साहित्यकार स्व प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी को समर्पित ☆ हेमन्त बावनकर

स्व प्रभाकर महादेवराव धोपटे

?  ?अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि  ?  ?

ई- अभिव्यक्ति का आज का अंक अग्रज एवं वरिष्ठ मराठी साहित्यकार स्व प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी को समर्पित

(विदर्भ क्षेत्र से सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार एवं अग्रज  स्व प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी का कल दिनांक 20 अगस्त 2020 को प्रातः साढ़े सात बजे हृदय विकार के कारण चंद्रपुर में आकस्मिक निधन हो गया। आपका निधन हम सबके लिए एक अपूरणीय क्षति है। हमने एक विनोदी स्वभाव के मिलनसार एवं सेवाभावी अग्रज साहित्यकार को खो दिया। संयोगवश विगत मार्च में लॉक डाउन पूर्व एक पारिवारिक कार्यक्रम में नागपुर में आपसे मिला था, जो मेरे लिए अविस्मरणीय है।  

हमारे सम्माननीय पाठक ई-अभिव्यक्ति केअंतरराष्ट्रीय पटल पर आपके साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को  कभी विस्मृत नहीं कर सकते ।

आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर थे। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी  थे ।  अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती थी । प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त  था।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे  थे । अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ  था। आपके अपने साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक  भी इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित  था।

प्रत्येक साहित्यकार का साहित्य सदैव अमर रहता है। अतः हमने निर्णय लिया है कि आपने  जितनी भी अग्रिम रचनाएँ प्रेषित की हैं उन्हें हम प्रत्येक रविवार को ससम्मान प्रकाशित करते रहेंगे। 

ई-अभिव्यक्ति परिवार स्व प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के परिवार के साथ इस दुखद वेला में व्यक्तिगत रूप से सहभागी है।

?  ?अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि  ?  ?

हेमन्त बावनकर

21 अगस्त 2020

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 51 ☆ ई- अभिव्यक्ति मित्र संपादक मंडल का स्वागत ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–51

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 51 ☆ ई- अभिव्यक्ति का परिवर्तित स्वरुप – मित्र संपादक मंडल का स्वागत

प्रिय मित्रो,

सर्वप्रथम  स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी को विनम्र श्रद्धांजलि। आप से विनम्र अनुरोध है कि कृपया निम्न लिंक पर जाकर श्रद्धांजलि स्वरुप मेरी कविता अवश्य पढ़ें।

☆ गीत नया गाता था, अब गीत नहीं गाऊँगा ☆

इन दो वर्षों  से भी कम समय में प्राप्त आप सबके स्नेह एवं प्रतिसाद से मैं पुनः अभिभूत हूँ और इन पंक्तियों को पुनः लिखना मेरे जीवन के अत्यंत भावुक क्षणों में से एक है। विभिन्न उपलब्धियों ने मुझे असीमित ऊर्जा प्रदान की एवं एक जिम्मेदारी का अहसास भी कि आपको और अधिक स्तरीय सकारात्मक साहित्य दे सकूं। ईश्वर ने ई-अभिव्यक्ति संवाद के माध्यम से मुझे आप सबसे जुड़ने के ऐसे कई अवसर प्रदान किये हैं जिसके लिए मैं उनका सदैव कृतज्ञ हूँ ।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आपकी अपनी वेबसाइट को  2 वर्ष से भी कम समय में 2,53,500+ विजिटर्स मिल सकेंगे इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यह हमारे सम्माननीय लेखक गण का सतत प्रयास है जो हमारे प्रबुद्ध पाठकों को जोड़ने में सफल रहे हैं और  सतत रहेंगे ऐसी ईश्वर से कामना है। मैं आप दोनों के मध्य एक निमित्त मात्र हूँ, जिसके जिम्मेवारी संभवतः ईश्वर ने मुझे दी है ऐसी मेरी कल्पना है। यह प्रयास यह भी सिद्ध करता है कि सकारात्मक और स्तरीय साहित्य की अभी भी आवश्यकता बनी हुई है।

इस महायज्ञ में मैंने अपने-अपने क्षेत्र के सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित साहित्यकारों से सम्पादन में सहयोग का आग्रह किया था जिसे उन्होंने निःस्वार्थ भाव से सहर्ष स्वीकार किया। मैं उन सबका ह्रदय से आभारी हूँ एवं उनकी जानकारी आप सब से साझा कर रहा हूँ । मित्र संपादक मंडल के सदस्यों की विस्तृत जानकारी के लिए आप About us पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

 ☆ मित्र संपादक मंडल का स्वागत

☆ हिन्दी साहित्य 
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, जबलपुर 

संपर्क – बंगला नम्बर ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर ४८२००८

ईमेल –  [email protected]

 

श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर 

सम्पर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

ईमेल – [email protected]

☆ English Literature 

Captain Pravin Raghuvanshi, NM, Pune

ईमेल –  [email protected]

☆ मराठी साहित्य ☆

श्रीमती उज्ज्वला अनंत केळकर, सांगली 

सम्पर्क – १७६/२  `गायत्री ‘ प्लॉट नं १२ , वसंत दादा साखर कामगारभवनजवळ सांगली ४१६४१६  फोन नं – ०२३३ – २३१००२०,   मो. – ९४०३३,१०१७०

ईमेल –  [email protected]

 

श्री सुहास रघुनाथ पंडित, सांगली 

मो –  9421225491

ईमेल – [email protected]

☆ International Literature & Culture ☆

Dr. Radhika Pawar Bawankar, Germany

Email – [email protected]

इस बीच तकनीकी संवर्धन की प्रक्रिया में हमने ई – अभिव्यक्ति की प्रत्येक प्रकाशित रचना के अंत में Please share your Post! के नीचे लिंक्स उपलब्ध किये हैं जिसके द्वारा आप आपकी अथवा मित्र लेखकों की रचनाएँ अपने फेसबुक, ट्विटर, ईमेल, फेसबुक मैसेंजर, शार्ट लिंक एवं व्हाट्सएप्प के माध्यम से साझा कर सकते हैं । 

आज बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

16 अगस्त  2020

 

नोट – रचनाओं की अधिकता एवं आपके whatsapp मेमोरी का ध्यान रखते हुए सामूहिक लिंक प्रेषित करने का निर्णय लिया है। आप शॉर्ट लिंक्स को कॉपी पेस्ट कर शेयर कर सकते हैं अथवा व्हाट्सेप्प ग्रुप www.e-abhivyakti .comअथवा  ई- अभिव्यक्ति का फेसबुक पेज https://www.facebook.com/hemant.bawankar.3  से भी  कॉपी कर सकते हैं। सहयोग की अपेक्षा के साथ ?

 

 

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हिन्दी साहित्य – ई-अभिव्यक्ति संवाद ☆ अतिथि संपादक की कलम से ……. अब तक 365 !….✍️ ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

मैं अत्यंत कृतज्ञ हूँ सम्माननीय श्री संजय भरद्वाज जी का जिन्होंने जाने अनजाने में मेरे ह्रदय में ज्ञान एवं अध्यात्म को ज्योति को प्रज्ज्वलित किया। मैंने सन्देश दिया था कि ई- अभिव्यक्ति के अंक का प्रकाशन अगले 7 दिनों तक व्यक्तिगत एवं तकनीकी कारणों से स्थगित रहेगा किन्तु, श्री संजय भारद्वाज जी की एक आत्मीय पोस्ट ने मेरे अंतर्मन को झकझोर दिया और ईश्वर ने एवं आपके स्नेह ने मुझे इसे गतिशील बनाने रखने हेतु साहस प्रदान किया। मैंने निर्णय लिया कि जब तक सब कुछ व्यवस्थित नहीं हो जाता तब तक निम्न तीन  ब्लॉग पोस्ट सतत जारी रखूंगा

  1. गुरुवर प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित  – श्रीमद्भगवद्गीता पद्यानुवाद  ( जीवन का सार ) 
  2. श्री संजय भारद्वाज जी के अध्यात्म से परिपूर्ण प्रेरक संजय दृष्टि एवं संजय उवाच ( जीवन जीने की  अद्भुत दृष्टि )
  3.  महाभारत के सुविख्यात चरित्र परम आदरणीय भीष्म पितामह के चरित्र पर आधारित धारावाहिक उपन्यास “युगांत” ( जीवन का अद्भुत प्रेरक चरित्र ) 

सम्माननीय श्री संजय भारद्वाज जी की आत्मीय पोस्ट एक  रचना ही नहीं अपितु ऐसी सम्पादकीय ओजस्वी एवं प्रेरक रचना है जिसे संभवतः मेरी लेखनी भी उस ऊंचाई को स्पर्श नहीं कर पाती।  अतः सादर प्रस्तुत है  आदरणीय श्री संजय भारद्वाज जी की लेखनी से अतिथि सम्पादकीय……

-हेमन्त बावनकर

☆ ई-अभिव्यक्ति संवाद -अतिथि संपादक की कलम से ……. अब तक 365 !….✍️  ☆ 

आज 25 जुलाई है। इस दिनांक के साथ मेरे लेखकीय जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग भी जुड़ा हुआ है।

प्रसंग यह है कि गत लगभग दो-अढ़ाई वर्ष से लेखन नियमित-सा रहा है। कविता, लघुकथा, आलेख, संस्मरण, व्यंग्य और ‘उवाच’ के रूप में अभिव्यक्ति जन्म लेती रही। जून 2019 में ‘ई-अभिव्यक्ति’ ने ‘संजय उवाच’ को साप्ताहिक रूप से प्रकाशित करना आरम्भ किया।

फिर सम्पादक आदरणीय बावनकर जी का एक पत्र मिला। पत्र में उन्होंने लिखा था, “आपकी रचनाएँ इतनी हृदयस्पर्शी हैं कि मैं प्रतिदिन उदधृत करना चाहूँगा। जीवन के महाभारत में ‘संजय उवाच’ साप्ताहिक कैसे हो सकता है?”

‘संजयकोश’ में यों भी लिखना और जीना पर्यायवाची हैं। फलत: इस पत्र की निष्पत्तिस्वरूप ठीक एक वर्ष पहले अर्थात 25 जुलाई 2019 से सोमवार से शनिवार ‘संजय दृष्टि’ के अंतर्गत ‘ई-अभिव्यक्ति’ ने इस अकिंचन के ललित साहित्य को दैनिक रूप से प्रकाशित करना आरम्भ किया। रविवार को ‘संजय उवाच’ प्रकाशित होता रहा।

आज पीछे मुड़कर देखने पर पाता हूँ कि इस एक वर्ष ने बहुत कुछ दिया। ‘नियमित-सा’ को नियमित होना पड़ा। अलबत्ता नियमित लेखन की अपनी चुनौतियाँ और संभावनाएँ भी होती हैं। नियमित होना अविराम होता है। हर दिन शिल्प और विधा की नई संभावना बनती है तो पाठक को प्रतिदिन कुछ नया देने की चुनौती भी मुँह बाए खड़ी रहती है। अनेक बार पारिवारिक, दैहिक, भावनात्मक कठिनाइयाँ भी होती हैं जो शब्दों के उद्गम पर कुंडली मारकर बैठ जाती हैं। विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि यह कुंडली, भीतर की कुंडलिनी को कभी प्रभावित नहीं कर पाई। माँ शारदा की अनुकंपा ऐसी रही कि लेखनी हाथ में आते ही पथ दिखने लगा और शब्द पथिक बन गए।

अनेक बार यात्रा के बीच पोस्ट लिखी और भेजी। कभी किसी आयोजन में मंच पर बैठे-बैठे रचना भीतर किल्लोल करने लगी, तभी लिखी और भेजी। ड्राइविंग में कुछ रचनाओं ने जन्म पाया तो कुछ ट्रैफिक के चलते प्रसूत ही नहीं हो पाईं।

तब भी जो कुछ जन्मा, पाठकों ने उसे अनन्य नेह और अगाध ममत्व प्रदान किया। कुछ टिप्पणियाँ तो ऐसी मिलीं कि लेखक नतमस्तक हो गया।

नतमस्तक भाव से ही कहना चाहूँगा कि लेखन का प्रभाव रचनाकार मित्रों पर भी देखने को मिला। अपनी रचना के अंत में दिनांक और समय लिखने का आरम्भ से स्वभाव रहा। आज प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जुड़े 90 प्रतिशत से अधिक रचनाकारों ने अपनी रचना का समय और दिनांक लिखना आरम्भ कर दिया है। अनेक मित्रों ने इसका श्रेय दिया तो अनेक कंजूसी भी बरत गए। लेकिन ‘ नो हार्ड फीलिंग्स।’ जाकी रही भावना जैसी..! हाँ इतना अवश्य है कि रेकॉर्डकीपिंग की यह आदत भविष्य में मित्रों को अपनी रचनाधर्मिता की यात्रा के पड़ाव खंगालने में सहायक सिद्ध होगी।

विनम्रता से एक और आयाम की चर्चा करना चाहूँगा। लेखन की इस नियमितता से प्रेरणा लेकर अनेक मित्र नियमित रूप से लिखने लगे। किसी लेखक के लिए यह अनन्य और अद्भुत पारितोषिक है।

आदरणीय हेमंत जी इस नियमितता का कारण और कारक बने। उन्हें हृदय की गहराइयों से अनेकानेक धन्यवाद। नियमित रूप से अपनी प्रतिक्रिया देनेवाले पाठकों के प्रति आभार। ‘आप हैं सो मैं हूँ।’ मेरा अस्तित्व आपका ऋणी है।

दो हाथोंवाला
साधारण मनुष्य था मैं मित्रो!
तुम्हारी आशा और
विश्वास ने
मुझे सहस्त्रबाहु कर दिया!

आप सबके ऋण से उऋण होना भी नहीं चाहता। घोर स्वार्थी हूँ। चाहता हूँ कि समय के अंत तक लिखता रहूँ। चाहता हूँ कि समय के अंत तक हज़ार हाथों से रचता रहूँ।

 

संजय भारद्वाज

(लिखता हूँ सो जीता हूँ।)

[email protected]

24 जुलाई 2020, रात्रि 1:31 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 50 ☆ ई- अभिव्यक्ति का आज का अंक अनुजवत मित्र स्वर्गीय आनंद लोचन दुबे जी को समर्पित ☆☆ हेमन्त बावनकर

प्रिय आनंद 

?  ?अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि  ?  ?

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 50 ☆ ई- अभिव्यक्ति का आज का अंक अनुजवत मित्र स्वर्गीय आनंद लोचन दुबे जी को समर्पित

प्रिय मित्रों,

 वैसे तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्टता लेकर आता है और चुपचाप चला जाता है। फिर छोड़ जाता है वे स्मृतियाँ जो जीवन भर हमारे साथ चलती हैं। लगता है कि काश कुछ दिन और साथ चल सकता । किन्तु विधि का विधान तो है ही सबके लिए सामान, कोई कुछ पहले जायेगा कोई कुछ समय बाद। किन्तु, आनंद तुमसे यह उम्मीद नहीं थी कि इतने जल्दी साथ छोड़ दोगे। अभी 19 मई को ही तो तुमसे लम्बी बात हुई थी जिसे मैं अब भी टेप की तरह रिवाइंड कर सुन सकता हूँ। और आज दुखद समाचार मिला कि 20 मई 2020 की रात हृदयाघात से तुम चल बसे।

प्रिय मित्रों, आप जानना नहीं चाहेंगे यह शख्सियत कौन है ? आपके लिए मित्र आनंद, भारतीय स्टेट बैंक, सिमरिया, कटनी शाखा का शाखा प्रबंधक था। किन्तु, मेरे लिए मेरा अभिन्न अनुजवत मित्र था।  हमारे 1984 में  मित्रवत सम्बन्ध बनायें कब अनुजवत बन गए हम समझ ही नहीं  पाए और मैं सारी जिंदगी अग्रज का सम्बन्ध निभाता चला गया। उसने भी ताउम्र वह अनुजवत सम्बन्ध  बड़ी संजीदगी से निभाया रक्त संबंधों से भी अधिक संजीदगी से। पुत्र पुत्री के विवाह के समय से लेकर प्रत्येक सुख दुःख में एक रिश्तेदार से भी अधिक संजीदगी से निभाया रिश्ता कैसे भूल सकता हूँ।? जब भी सुख के क्षण थे तो दूर रहकर भी ह्रदय के पास साथ ही रहकर हमनें खुशियां बांटी और तुम सदैव दुःख के क्षणों में मेरा सम्बल बने। हर समय मुस्कराते रहे, खुशियां बाँटते रहे और अपना दुःख बिना किसी से साझा किये अपने ह्रदय में जोड़ते रहे और शायद यह इसी की परिणीति हो, पता नहीं ऐसा क्यों मेरा ह्रदय कहता है ? मैं कहता था वीआरएस ले लो तो तुम कहते बस गुड़िया की शादी हो जाए फिर वीआरएस लेकर मिलेंगे बैठेंगे, गपशप करेंगे, घूमेंगे फिरेंगे और आराम से जिंदगी गुजारेंगे। आखिर वे क्षण कल्पना में ही रहे और तुम्हारे साथ ही चले गए. ऐसे में मुझे वह अंग्रेजी कहावत याद आती है “man proposes and god disposes”.

प्रिय आनंद, तुमसे ही सीखा था रिश्ते और दोस्ती के मायने फिर तुम्हारे लिए एक कविता लिखी, किन्तु, साहस जुटा कर बता न पाया कि वह कविता तुम्हारे लिए ही थी। एक दिन फेसबुक पर पोस्ट किया और तुमने दो शब्दों में प्रत्युत्तर दिया “सुन्दर विचार”।  इन दो शब्दों को संजो कर रखा है,  जिसका अर्थ मेरे और तुम्हारे सिवाय कोई नहीं जान सकता। आप सब से साझा कर रहा हूँ वह रचना

 ?   रिश्ते और दोस्ती  ?  

सारे रिश्तों के मुफ्त मुखौटे मिलते हैं जिंदगी के बाजार में

बस अच्छी दोस्ती के रिश्ते का कोई मुखौटा ही नहीं होता

 

कई रिश्ते निभाने में लोगों की तो आवाज ही बदल जाती है

बस अच्छी दोस्ती में कोई आवाज और लहजा ही नहीं होता

 

रिश्ते निभाने के लिए लोग ताउम्र लिबास बदलते रहते हैं

बस अच्छी दोस्ती निभाने में लिबास बदलना ही नहीं होता

 

बहुत फूँक फूँक कर कदम रखना पड़ता है रिश्ते निभाने में

बस अच्छी दोस्ती में कोई कदम कहीं रखना ही नहीं होता

 

जिंदगी के बाज़ार में हर रिश्ते की अपनी ही अहमियत है

बस अच्छी दोस्ती को किसी रिश्ते में रखना ही नहीं होता

 

किन्तु, मैं आप सबसे यह सब क्यों कह रहा हूँ ? संभवतः इसलिए कि यदि पहचान सकें तो पहचानने का प्रयास करें अपने आस पास अपने ऐसे ही किसी प्रिय मित्र को। आपको हर तरह के सम्बन्ध बहुत मिलेंगे किन्तु ऐसे अनुज अथवा अग्रज मित्रवत सम्बन्ध शायद न मिल सके। और यदि वास्तव में आपके ऐसे मित्र हैं तो उन्हें धर्म, जाति या समुदाय से परे संजो कर रखें। उन्हें खोइयेगा मत मेरे ये शब्द नहीं मेरे अनुभव हैं।

संयोगवश डॉ मुक्ता जी का आज प्रकाशित आलेख आज ज़िंदगी : कल उम्मीद पठनीय है।

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

22 मई  2020

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 48 ☆ ई- अभिव्यक्ति को अपार स्नेह एवं प्रतिसाद के लिए आप सबका ह्रदय से आभार ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 49 ☆ ई- अभिव्यक्ति को अपार स्नेह एवं प्रतिसाद के लिए आप सबका ह्रदय से आभार

प्रिय मित्रों,

इन दो महीनों में प्राप्त आप सबके स्नेह एवं प्रतिसाद से मैं पुनः अभिभूत हूँ और इन पंक्तियों को पुनः लिखना मेरे जीवन के अत्यंत भावुक क्षणों में से एक हैं। अप्रैल माह में हमने दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां आपसे साझा की थीं।  इन उपलब्धियों ने मुझे असीमित ऊर्जा प्रदान की एवं एक जिम्मेदारी का अहसास भी कि आपको और अधिक स्तरीय सकारात्मक साहित्य दे सकूं। ईश्वर ने ई-अभिव्यक्ति संवाद के माध्यम से मुझे आप सबसे जुड़ने के ऐसे कई अवसर प्रदान किये हैं ।

आपकी अपनी वेबसाइट को  2 वर्ष से भी कम समय में 2,00,500+ विजिटर्स मिल सकेंगे इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यह हमारे सम्माननीय लेखक गण का सतत प्रयास है जो हमारे प्रबुद्ध पाठकों को जोड़ने में सफल रहे हैं और सतत रहेंगे ऐसी ईश्वर से कामना है। मैं आप दोनों के मध्य एक निमित्त मात्र हूँ, जिसके जिम्मेवारी संभवतः ईश्वर ने मुझे दी है ऐसी मेरी कल्पना है। यह प्रयास यह भी सिद्ध करता है कि सकारात्मक और स्तरीय साहित्य की अभी भी आवश्यकता बनी हुई है।

इन सद्प्रयासों के पीछे स्वर्गीय पिताश्री टी डी बावनकर, गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘ सुमित्र’ जी  एवं मेरे प्रथम प्राचार्य प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव  जी का वरद हस्त सदैव रहेगा ऐसी मनोभावना है।

इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में नाम दर्ज होना और ई – अभिव्यक्ति को बेस्ट इंडियन ब्लॉग साइट्स की डाइरेक्टरी में स्थान पाना एक अविस्मरणीय क्षण था।

मेरी प्रसन्नता यहीं समाप्त नहीं होती।  आज एक और व्यक्तिगत प्रसन्नता के क्षण आपसे साझा करना चाहूंगा।  आज ही मेरा एक काव्य संग्रह “तो कुछ कहूँ ……..” का ई बुक संस्करण अमेज़न किंडल लाइव हुआ है, जिसे आप अमेजन की साईट से अपने मोबाईल/ डेस्कटॉप / एप्पल आईफोन में सीधे डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं । इसके पूर्व आपको Google Playstore से Amazon Kindle App फ्री डाउन लोड करना पड़ेगा।

अमेज़न लिंक  >>>> तो कुछ कहूँ ……..

मेरी अन्य ई बुक्स आप इस अमेजन लिंक पर पढ़ सकते हैं >>>>> हेमन्त बावनकर की अन्य पुस्तकें

आशा है आपका स्नेह एवं आशीर्वाद ऐसा ही बना रहेगा एवं आप सब के सहयोग से हम सब मिलकर डिजिटल माध्यम में साहित्य सेवा के क्षेत्र में नए आयाम गढ़ सकेंगे।

हम ई-अभिव्यक्ति में नवीन सकारात्मक तकनीकी एवं साहित्यिक प्रयोगों के लिए कटिबद्ध हैं।

इन उपलब्धियों के लिए आपका ह्रदय तल से आभार ।  

 ?  ?  ?

☆ मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना ☆ 

आज विश्व में मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  विश्व के समस्त मानव जिनमें साहित्यकार / कलाकार / रंगकर्मी भी संवेदनशील मानवता के अभिन्न अंग हैं और  अत्यंत विचलित हैं ‘ कोरोना’ जैसी विश्वमारी य महामारी जैसे प्रकोप /त्रासदी से । इतनी सुन्दर सुरम्य प्रकृति, हरे भरे वन-उपवन, नदी झरने,  घाटियां, पर्वत श्रृंखलाएं और कहीं कहीं तो  शांत बर्फ की सफ़ेद चादर और भी न जाने क्या क्या हमें  प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है ।

हम सदैव मानवीय आधारों पर सकारात्मक साहित्य देने हेतु कटिबद्ध हैं।

ई – अभिव्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार की किसी भी पुष्ट अथवा अपुष्ट वैज्ञानिक जानकारी एवं अफवाहों पर कदापि कोई विमर्श नहीं करता।  इस वैश्विक एवं राष्ट्रीय आपदा में आप सबसे निवेदन है कि सरकार द्वारा तय नियमों का कठोरता से पालन करें। इसी में हम सबकी भलाई है, मानवता की भलाई है।

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

8 मई  2020

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 48 ☆ ई- अभिव्यक्ति India Book of Records और  Directory of Most Popular Blogs in India में दर्ज ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 48 ☆ ई- अभिव्यक्ति India Book of Records और  Directory of Most Popular Blogs in India में दर्ज 

प्रिय मित्रों,

मैं अभिभूत हूँ और इन पंक्तियों को लिखना मेरे जीवन के अत्यंत भावुक क्षणों में एक हैं। 1 ½ वर्ष  पूर्व जब गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘ सुमित्र’ जी के निम्न आशीर्वचन से ई-अभिव्यक्ति का शुभारम्भ किया था जिसे मैंने गुरुमंत्र की तरह लिया और प्रयास करता हूँ कि उसका सतत पालन करूँ –

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

यह वेबसाइट मैंने स्वान्तः सुखाय बिना किसी अपेक्षा के प्रारम्भ की जिसका साक्षी आपका अपार  स्नेह तथा प्रतिसाद है, जिसे मैं सदैव अपने ह्रदय में संजो कर रखूंगा । यह आपका स्नेह ही है जिसने इस सप्ताह ई- अभिव्यक्ति परिवार को दो सर्वोच्च उपलब्धियां प्रदान की हैं। मैं इन उपलब्धियों को अक्षरशः उद्धृत करने का प्रयास कर रहा हूँ।

India Book of Records

Congratulations, your claim has been finalized as a record titled, ‘ Oldest man to develop a website ’ under India Book of Records 2021. We appreciate the effort and patience shown by you. Your skills have been acknowledged and as per the verification done by the Editorial Board of ‘India Book of Records’, only the best has been selected and approved by us.

The title and content has been created as per our verification and is given below.

RECORD TITLE & DESCRIPTION

Oldest man to develop a website
The record for being the oldest to design and develop a website was set by a 62 year old Hemant Bawankar (born on June 2, 1957) of Pune, Maharashtra. He developed a unique website named e-abhivyakti.com that publishes daily blogs/articles in Hindi, Marathi, and English, as confirmed on April 13, 2020.

दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि है Directory of Most Popular Blogs in India  में स्थान पाना एक गौरवपूर्ण क्षण है जिसके लिए निम्न चिन्ह एवं लिंक हमारी वेबसाइट के होम पेज पर प्रदान किया गया है  –

Indian Blog Directory – Directory of Most Popular Blogs in India

IndiBlogHub Connecting Top Indian Bloggers with Brands

Hello Hemant Bawankar,

Congratulations! Your blog has been approved! (e-abhivyakti) on IndiBlogHub.

हम ई-अभिव्यक्ति में नवीन सकारात्मक तकनीकी एवं साहित्यिक प्रयोगों के लिए कटिबद्ध हैं।

इन उपलब्धियों के लिए आपका ह्रदय तल से आभार ।  

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☆ मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना ☆ 

आज विश्व में मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  विश्व के समस्त मानव जिनमें साहित्यकार / कलाकार / रंगकर्मी भी संवेदनशील मानवता के अभिन्न अंग हैं और  अत्यंत विचलित हैं ‘ कोरोना’ जैसी विश्वमारी य महामारी जैसे प्रकोप /त्रासदी से । इतनी सुन्दर सुरम्य प्रकृति, हरे भरे वन-उपवन, नदी झरने,  घाटियां, पर्वत श्रृंखलाएं और कहीं कहीं तो  शांत बर्फ की सफ़ेद चादर और भी न जाने क्या क्या हमें  प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है ।

हम सदैव मानवीय आधारों पर सकारात्मक साहित्य देने हेतु कटिबद्ध हैं।

ई – अभिव्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार की किसी भी पुष्ट अथवा अपुष्ट वैज्ञानिक जानकारी एवं अफवाहों पर कदापि कोई विमर्श नहीं करता।  इस वैश्विक एवं राष्ट्रीय आपदा में आप सबसे निवेदन है कि सरकार द्वारा तय नियमों का कठोरता से पालन करें। इसी में हम सबकी भलाई है, मानवता की भलाई है।

 

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

26 अप्रैल 2020

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 47 ☆ रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 47 ☆ रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित

 प्रिय मित्रों,

ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, जो हमें पृथ्वी के किसी भी कोने में  बसे जाने अनजाने लोगों से आपस में अदृश्य सूत्रों से जोड़ देते हैं। अब मेरा और आपका ही रिश्ता ले लीजिये। आप में से कई लोगों से न तो मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूँ और न ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले हैं किन्तु, स्नेह का एक बंधन है जो हमें बांधे रखता है। आप में से कई मेरे अनुज/अनुजा, अग्रज/अग्रजा, मित्र, परम आदरणीय /आदरणीया, गुरुवर और मातृ पितृ  सदृश्य तक बन गए हैं। ये अदृश्य सम्बन्ध मुझमें ऊर्जा का संचार करते हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है और ईश्वर से कामना करता हूँ  कि मैं अपने इस सम्बन्ध को आजीवन निभाऊं। और आपसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि मेरे प्रति यह स्नेह ऐसा ही बना रहेगा।

मेरा और आपका सम्बन्ध मात्र रचनाओं के आदान प्रदान तक ही सीमित नहीं है, इस सम्बन्ध में हमारी संवेदनाएं भी जुडी हुई हैं। संभवतः संवेदनहीन सम्बन्ध कभी सार्थक नहीं होते।

मैंने ऊपर जिन संबंधों की चर्चा की है उनमें रक्त संबंधों के अतिरिक्त भी ऐसे कई सम्बन्ध हैं जिन पर अति सुन्दर साहित्य रचा गया है। मेरा मानना है कि कोई भी साहित्य जो आज तक रचा गया है उसका आधार कोई सम्बन्ध या रिश्ता न हो ऐसा शायद ही संभव हो । कई सम्बन्ध ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम भावनात्मक रूप से लिख देते हैं किन्तु वे सम्बन्ध परिपेक्ष्य में रहते हैं ।

ई-अभिव्यक्ति साहित्य में सकारात्मक नए प्रयोग करने के लिए कटिबद्ध है। मेरे उपरोक्त विचारों से आप निश्चित रूप से सहमत होंगे। इस पूरी प्रक्रिया में मन में एक विचार आया कि क्यों न आपसे रिश्तों या संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित की जाएँ और अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा की जाएँ ।

वैसे तो पारिवारिक रिश्तों की एक लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रपौत्र- प्रपौत्री  से लेकर परनाना-परनानी, परदादा-परदादी तक जिनसे हम प्रतिदिन रूबरू होते रहते हैं । वैसे तो संबंधों की असीमित लम्बी फेहरिश्त है।  कुछ सम्बन्ध और रिश्ते जो इस समय मेरे मस्तिष्क में आ रहे हैं आपसे उदाहरणार्थ साझा करने का प्रयास करता हूँ। इससे परे भी आपके मस्तिष्क में कई सम्बन्धो होंगे जो हम साझा करना चाहेंगे ।

पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, मित्र, पड़ौसी  तो सामान्य हैं ही। आज जब इंसानियत तार तार हो रही है ऐसे में  मानवीय सम्बन्ध, हमारा राष्ट्र से सम्बन्ध, प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्ध, पालतू एवं अन्य जानवरों से सम्बन्ध,  थर्ड जेंडर जो कभी कभार हमसे रूबरू होते हैं उनसे सम्बन्ध,  समाज में बमुश्किल स्वीकार्य रिश्ते (लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक) और ऐसे बहुत सारे सम्बन्ध और रिश्ते जो आपके विचारों में आ रहे हैं और मेरे विचारों में नहीं आ पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि कोई भी और कैसा भी सम्बन्ध या रिश्ता।

तो फिर देर किस बात की कलम / कम्प्यूटर कीबोर्ड पर शुरू हो जाइये और भेज दीजिये किसी भी संबंध / रिश्ते पर आधारित अपनी  अब तक की सर्वोत्कृष्ट हिंदी/मराठी /अंग्रेजी में  भाषा में अधिकतम दो रचनाएँ  (कविता /लघुकथा /आलेख / संस्मरण  / लघुनाटिका / कलात्मक चित्र / आपके द्वारा खिंचा गया फोटोग्राफ ) अधिकतम 750-1000 शब्दों में निम्न ईमेल आई डी पर

[email protected]

  ई-अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में प्रकाशित करने की स्वतंत्रता की आपकी अनुमति के साथ रचना पर कॉपीराइट आपका। रचनाएँ / कलाकृतियां  मौलिक एवं आपकी स्वरचित /स्वयं की होनी चाहिए।

यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। हम आपकी  मनोभावनाओं को  प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने के  लिए एक एक मंच प्रदान कर रहे हैं।

हाँ रचना प्रेषित करते समय ई-अभिव्यक्ति के मूलमंत्र जो डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  के आशीर्वचन में व्याप्त है का अवश्य ध्यान रखें। 

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

हमारे आमंत्रण पर रिश्तों से सम्बंधित संवेदनशील रचनाएँ हमारे पास आई हैं जो हम शीघ्र ही आपसे साझा करना प्रारम्भ कर रहे हैं। साथ ही उनके संकलन का कार्य भी चल रहा है जिसे अतिसुन्दर स्वरुप में प्रस्तुत करने का प्रयास है। आपकी अब तक की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं की प्रतीक्षा में।

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☆ मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना ☆ 

आज विश्व में मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  विश्व के समस्त मानव जिनमें साहित्यकार / कलाकार / रंगकर्मी भी संवेदनशील मानवता के अभिन्न अंग हैं और  अत्यंत विचलित हैं ‘ कोरोना’ जैसी विश्वमारी य महामारी जैसे प्रकोप /त्रासदी से । इतनी सुन्दर सुरम्य प्रकृति, हरे भरे वन-उपवन, नदी झरने,  घाटियां, पर्वत श्रृंखलाएं और कहीं कहीं तो  शांत बर्फ की सफ़ेद चादर और भी न जाने क्या क्या हमें  प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है ।

हम सदैव मानवीय आधारों पर सकारात्मक साहित्य देने हेतु कटिबद्ध हैं।

ई – अभिव्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार की किसी भी पुष्ट अथवा अपुष्ट वैज्ञानिक जानकारी एवं अफवाहों पर कदापि कोई विमर्श नहीं करता।  इस वैश्विक एवं राष्ट्रीय आपदा में आप सबसे निवेदन है कि सरकार द्वारा तय नियमों का कठोरता से पालन करें। इसी में हम सबकी भलाई है, मानवता की भलाई है।

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बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

7 मार्च 2020

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 46 ☆ (1) मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना (2) सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकारों के नाम ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–46

☆ (1) मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना (2) सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकारों के नाम 

 प्रिय मित्रों,

आज के संवाद के माध्यम से मुझे पुनः आपसे विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ है।

मानवता का अदृश्य शत्रु कोरोना 

आज विश्व में मानवता अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है।  विश्व के समस्त मानव जिनमें साहित्यकार / कलाकार / रंगकर्मी भी संवेदनशील मानवता के अभिन्न अंग हैं और  अत्यंत विचलित हैं ‘ कोरोना’ जैसी विश्वमारी य महामारी जैसे प्रकोप /त्रासदी से । इतनी सुन्दर सुरम्य प्रकृति, हरे भरे वन-उपवन, नदी झरने,  घाटियां, पर्वत श्रृंखलाएं और कहीं कहीं तो  शांत बर्फ की सफ़ेद चादर और भी न जाने क्या क्या हमें  प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है ।

आज हम मानवता के अदृश्य शत्रु  “कोरोना” को बढ़ती विकराल श्रंखला को तोड़ने के लिए अपने-अपने घरों में कैद हैं ।

आज हम स्वयं को एक भयावह वैज्ञानिक उपन्यास के पात्र की तरह पाते है और दुःस्वन जैसी निर्मित परिस्थितियों का एक अत्यंत सुखांत अंत होगा ऐसी हम ईश्वर से कामना करते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हम सब मिलकर मानवता के विरुद्ध इस युद्ध से  वैज्ञानिक रूप से ढृढ़ता पूर्वक सतत लड़ते हुए निश्चित ही विजयी होंगे। हम सब  इस वैश्विक आपदा से उबर कर पाएंगे एक नवजीवन एवं दे सकेंगे आने वाली पीढ़ियों को हमारे वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांतों पर आधारित एक नवीन वैश्विक ग्राम । साथ ही आकलन करेंगे कि हमने क्या खोया और क्या पाया ?

ई-अभिव्यक्ति की पहल –  एक साप्ताहिक स्तम्भ सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकारों के नाम 

 ☆ Anonymous litterateur of social media / सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / योर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है। वे इस अनुष्ठान का श्रेय अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना कप्तान प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। जो स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

इस सद्कार्य  के लिए कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी साधुवाद के पात्र हैं ।  हम आज से  ही इस साप्ताहिक स्तम्भ को प्रारम्भ कर रहे हैं । 

प्रतिदिन की भांति आज की रचनाएँ भी घर की चारदीवारी में आपको एवं आपके हृदय को निश्चित ही सकारात्मकता के साध बाँध कर रख सकेंगी ।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ई-अभिव्यक्ति वेबसाइट को कितने विजिटर्स (सम्माननीय एवं प्रबुद्ध लेखकगण/पाठकगण) का प्रतिसाद’ मिला, उसे अंकों में गणना  करने से हमारा उत्साह अवश्य बढ़ता है ।  किन्तु, इस अकल्पनीय प्रतिसाद एवं इन क्षणों के आप ही भागीदार हैं। यदि आप सब का सहयोग नहीं मिलता तो मैं इस मंच पर इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ देने में  स्वयं को असमर्थ पाता। मैं नतमस्तक हूँ ,आपके अपार स्नेह के लिए। 

आइये हम सब मिलकर मानवता के अदृश्य शत्रु  कोरोना से लड़ें एवं विजयी बनें।   

आप सबका हृदयतल से आभार।

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आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बावनकर

28 मार्च 2020

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 45 ☆ ई-अभिव्यक्ति को अपार स्नेह / प्रतिसाद के लिए आभार  ☆ रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित ☆ हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

☆ ई-अभिव्यक्ति को अपार स्नेह / प्रतिसाद के लिए आभार  रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित

 प्रिय मित्रों,

आज के संवाद के माध्यम से मुझे पुनः आपसे विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ है।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ई-अभिव्यक्ति  वेबसाइट को मिला 1,51,900+ विजिटर्स (सम्माननीय एवं प्रबुद्ध लेखकगण/पाठकगण) का प्रतिसाद’। पुनः आपके साथ संवाद करना निश्चित ही मेरे लिए गौरव के क्षण हैं।  इस अकल्पनीय प्रतिसाद एवं इन क्षणों के आप ही भागीदार हैं। यदि आप सब का सहयोग नहीं मिलता तो मैं इस मंच पर इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ देने में  स्वयं को असमर्थ पाता। मैं नतमस्तक हूँ ,आपके अपार स्नेह के लिए।  आप सबका हृदयतल से आभार। 

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ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, जो हमें पृथ्वी के किसी भी कोने में  बसे जाने अनजाने लोगों से आपस में अदृश्य सूत्रों से जोड़ देते हैं। अब मेरा और आपका ही रिश्ता ले लीजिये। आप में से कई लोगों से न तो मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूँ और न ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले हैं किन्तु, स्नेह का एक बंधन है जो हमें बांधे रखता है। आप में से कई मेरे अनुज/अनुजा, अग्रज/अग्रजा, मित्र, परम आदरणीय /आदरणीया, गुरुवर और मातृ पितृ  सदृश्य तक बन गए हैं। ये अदृश्य सम्बन्ध मुझमें ऊर्जा का संचार करते हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है और ईश्वर से कामना करता हूँ  कि मैं अपनी इस सम्बन्ध को आजीवन निभाऊं। और आपसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि मेरे प्रति यह स्नेह ऐसा ही बना रहेगा।

मेरा और आपका सम्बन्ध मात्र रचनाओं के आदान प्रदान तक ही सीमित नहीं है, इस सम्बन्ध में हमारी संवेदनाएं भी जुडी हुई हैं। संभवतः संवेदनहीन सम्बन्ध कभी सार्थक नहीं होते। हाल ही में मैंने कर्नल अखिल साह जी एवं डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘ गुणशेखर’ जी द्वारा रचित दो रचनाएँ ‘माँ’ शीर्षक से प्रकाशित की थी, जो अत्यंत संवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी हैं और उन्हें पाठकों का भरपूर स्नेह / प्रतिसाद मिला। मेरे पास ऐसे ही “पिता” से सम्बंधित रचनाएँ भी प्राप्त हुई हैं जो शीघ्र प्रकाश्य हैं। इन रचनाओं ने ह्रदय को झकझोर दिया। इसके बाद संबंधों पर इतनी सुन्दर रचनाएँ आने लगीं जिसकी मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी। श्री विवेक चतुर्वेदी जी की नवीन पुस्तक “स्त्रियां घर लौटती हैं’  पर विभिन्न लेखक लेखिकाओं की समीक्षाएं और टिप्पणियां सम्पादित करते समय पढ़ कर विस्मित हूँ । यह पुस्तक हिंदी साहित्य के क्षितिज पर नए आयाम गढ़ रही है। आज प्रकाशित श्री संजय भारद्वाज जी की मानवीय संबंधों पर आधारित समसामयिक रचना “आमरण” हमें विचार करने हेतु प्रेरित करती है।

मैंने ऊपर जिन संबंधों की चर्चा की है उनमें रक्त संबंधों के अतिरिक्त भी ऐसे कई सम्बन्ध हैं जिन पर अति सुन्दर साहित्य रचा गया है। मेरा मानना है कि कोई भी साहित्य जो आज तक रचा गया है उसका आधार कोई सम्बन्ध या रिश्ता न हो ऐसा शायद ही संभव हो । कई सम्बन्ध ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम भावनात्मक रूप से लिख देते हैं किन्तु वे सम्बन्ध परिपेक्ष्य में रहते हैं ।

रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित

ई-अभिव्यक्ति साहित्य में सकारात्मक नए प्रयोग करने के लिए कटिबद्ध है। मेरे उपरोक्त विचारों से आप निश्चित रूप से सहमत होंगे। इस पूरी प्रक्रिया में मन में एक विचार आया कि क्यों न आपसे रिश्तों या संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित की जाएँ और अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा की जाएँ ।

वैसे तो पारिवारिक रिश्तों की एक लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रपौत्र- प्रपौत्री  से लेकर परनाना-परनानी, परदादा-परदादी तक जिनसे हम हर दिन रूबरू होते रहते हैं । वैसे तो संबंधों की लम्बी फेहरिश्त असीमित है।  कुछ सम्बन्ध और रिश्ते जो इस समय मेरे मस्तिष्क में आ रहे हैं आपसे उदाहरणार्थ साझा करने का प्रयास करता हूँ। इससे परे भी आपके मस्तिष्क में कई सम्बन्धो होंगे जो हम साझा करना चाहेंगे ।

पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, मित्र, पड़ौसी  तो सामान्य हैं ही। आज जब इंसानियत तार तार हो रही है ऐसे में  मानवीय सम्बन्ध, हमारा राष्ट्र से सम्बन्ध, प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्ध, पालतू एवं अन्य जानवरों से सम्बन्ध,  थर्ड जेंडर जो कभी कभार हमसे रूबरू होते हैं उनसे सम्बन्ध,  समाज में बमुश्किल स्वीकार्य रिश्ते (लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक) और ऐसे बहुत सारे सम्बन्ध और रिश्ते जो आपके विचारों में आ रहे हैं और मेरे विचारों में नहीं आ पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि कोई भी और कैसा भी सम्बन्ध या रिश्ता।

तो फिर देर किस बात की कलम / कम्प्यूटर कीबोर्ड पर शुरू हो जाइये और भेज दीजिये किसी भी संबंध / रिश्ते पर आधारित अपनी हिंदी/मराठी /अंग्रेजी में रचना  (कविता /लघुकथा /आलेख) अधिकतम 500-750 शब्दों में । ई-अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में प्रकाशित करने की स्वतंत्रता  की आपकी अनुमति के साथ रचना पर कॉपीराइट आपका। हाँ रचना प्रेषित करते समय इस मंच के मूलमंत्र जो डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  के आशीर्वचन में व्याप्त है का अवश्य ध्यान रखें। 

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

आपसे अनुरोध है कि हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को यदि हम अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी से साझा करें तो उन्हें निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। इस प्रयास में हमने कई वरिष्ठतम  साहित्यिक विभूतियों से चर्चा की है एवं व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर  ससम्मान आलेख समय समय पर  प्रकाशित कर रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम  पीढ़ी के मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के कार्यों को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें। 

आज बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

7 मार्च 2020

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