हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 168 ☆ खिसका धूप – छाँव का आँचल… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆
श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “खिसका धूप - छाँव का आँचल...”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 168 ☆
☆ खिसका धूप - छाँव का आँचल... ☆
अगर परिवर्तन की इच्छा है, तो जीवन में आने वाले उतार - चढ़ावों से विचलित नहीं होना चाहिए, जो आज है, वो कल नहीं रहेगा ये सर्वमान्य सत्य है, इसलिए आपको जो भी दायित्व मिले उसे ऐसे निर्वाह करें जैसे ये आपका पहला व अन्तिम प्रोजेक्ट है। इसमें पूरी ताकत लगा दें क्योंकि...