हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 173 – पहलगाम में फिर दिया… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक विषय पर एक भावप्रवण कविता “पहलगाम में फिर दिया…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 173 – पहलगाम में फिर दिया… ☆

पहलगाम में फिर दिया, आतंकी ने घाव।

भारत को स्वीकार यह, नर्किस्तानी ताव।।

 *

इजराइल के दृश्य को, उनने दिया उभार।

निर्दोषों का खून कर, पंगा लिया अपार।।

 *

भारत की जयघोष से, मोदी का फरमान।

घर के भेदी क्यों बचें, पहुँचे कब्रिस्तान।।

 *

बुलडोजर अवतार यह, नंदी का ही रूप।

शिव का अनुपम भक्त है, लगता बड़ा अनूप।।

 *

आतंकी के सामने, लड़ता सीना तान।

काशमीर में मुड़ गया, टूटेगा अभिमान।।

 *

धौंस सुना परमाणु का, डरा रहा बेकार।

अलग हुआ पर क्या किया, जनता का उद्धार।।

 *

बच्चों की मुख चूसनी, कब तक देगी स्वाद।

स्वप्न बहत्तर हूर का, कब्रिस्तानी खाद।।

भारत को सुन व्यर्थ ही, दिलवाता है ताव।

फिर से यदि हम ठान लें, गिन न सकेगा घाव।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ एक साधारण गृहिणी… ☆ सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव ‘अंश’ ☆

सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव ‘अंश’

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाजसेवी सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव ‘अंश’ जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। कई सामाजिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा 2016 से सतत पुरस्कृत/अलंकृत/सम्मानित। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पाण्डुलिपि पुरस्कार से सम्मानित। काव्य संग्रह “आवरण शब्दों का”, दर्जनों साझा संग्रह और एक सृजन समीक्षा प्रकाशित। साहित्यिक प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका का निर्वहन। नाटक हम नही सुधरेंगे’ और ‘हाँ, नही आती शर्म’  में बेहतरीन अभिनय हेतु सम्मानित। दूरदर्शन व आकाशवाणी पर काव्य प्रस्तुति।  गिनीज वर्ल्ड विश्व रिकॉर्ड में “माँ”पर आधारित कविता (कुछ कहना है) चयनित। गृहशोभा – सरिता , मुक्ता, कादम्बिनी, मधुरिमा आदि सैकड़ों पत्रिकाओं व देश-प्रदेश के साथ ही विदेशी समाचार पत्रों में कविता का प्रकाशन। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण कविता – एक साधारण गृहिणी….।)

☆ कविता ☆ एक साधारण गृहिणी… सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव ‘अंश’

एक साधारण गृहिणी की

साधारण सी कहानी

जिस पर हमारी नजर कभी नहीं गई!

 इन साधारण गृहिणियों के

जीवन में कोई  कहानी नहीं थी 

थी तो ,बस दिनचर्या…!

ये उसी को जीती, खुश रहती !

 

घर को व्यवस्थित रखना और

व्यवस्थित भी ऐसा कि

कपड़े सुखाने के तार पर भी

व्यवस्था की थाप दिखाई पड़ जाती 

कपड़ो के तार से ध्यान आया,

जीवन के शुरूआती दौर में

बस वो अपनी और अपने उनके

बस दो लोग के ही कपड़े धोती/सुखाती

तार पर फैले उन कपड़ों को वो देर तक तकती

उसे लगता इन कपड़ों की भी

आपस में हँसी-ठिठोली हो रही!

 

बच्चें आए और कपड़े बढ़ गए

अब बाल्टी भर-भर के कपड़ें धुलते

बिना किसी शिकायत के

कि उसे, इसमें भी सुख मिलता

बेटी के रंग बिरंगे कपड़े, व बेटे के

मोटे-मोटे जिंस जब धोकर तार पर डालती

उन कपड़ों से टपकता पानी,

चांदी की बूंद से दिखते,

 उसे,यह सब, गुलजार के गीतों से भी

ज्यादा अर्थपूर्ण लगते

 

वो उन कपड़ों पर भी प्यार लुटाती रही

और  कहने वालों ने बेफिक्री से कहा-

क्या धोबी-घाट लगा रखा है…!

दिन तो इसी क्रम में बीतता गया

बीतता गया और एक दिन

बेटी ससुराल गई और बेटा नौकरी  को

और गुलजार के गीतों की तरह

गुलजार तार सूना/वीरान पड़ा..

तार खाली,अलमीरा खाली,

कमरें खाली,घर खाली-खाली

सब खाली-खाली…!

 

पर,वो अब भी घर को

व्यवस्थित करने में जुटी रहती

जबकि वो जानती है

घर तो व्यवस्थित ही है

पर वो, अपने व्यथित मन का क्या करें

किसी को भनक तक नहीं लगता

इस खालीपन का..

कि वो बिना शिकायत खालीपन को

दिनचर्या से भरने में जुटी है…!

 

कतई जरूरी नहीं, हर एक के जीवन में

कोई कहानी हो…

कुछ के जीवन में

बस दिनचर्या ही टिकी रहती …

तार पर लटकी हुई….!

©  सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव ‘अंश’

संपर्क – 213/ सेक्टर 2, ‘A’ साकेत नगर, भोपाल – 462024 – मो नं.-9977588010

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 232 – नदी काव्य… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – नदी काव्य…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 232 ☆

☆ नदी काव्य… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

स्वर्ण रेखा!

अब न हो निराश,

रही तट पर गूँज

आप आ गीता।

काश,

फिर मंगल

कर सके जंगल,

पा पुन: सीता।

अवध

और रजक

गँवा निष्ठा सत

मलिन कर सरयू

गँवा देते राम।

नदी मैया है

जमुन जल राधा,

काट भव बाधा

कान्ह को कर कृष्ण

युग बदलता है।

बीन कर कचरा

रोप पौधा एक

बना उसको वृक्ष

उगा फिर सूरज

हो न जो बीता।

सुन-सुना गीता।।

(स्वर्ण रेखा = एक नदी)

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – न्यूनतम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – न्यूनतम ? ?

अनुभूति भी समझ लेती है

लिखनेवाले की चादर,

सो, कम से कम शब्दों में

अभिव्यक्त हो लेती है !

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 157 ☆ गीत – ।। जो बोयोगे वैसा ही फिर तुम फल पाओगे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 157 ☆

☆ गीत – ।। जो बोयोगे वैसा ही फिर तुम फल पाओगे ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

जो बोयोगे वैसा ही फिर तुम पाओगे फल।

याद रखें हर दिन चलता नहीं किसी का छल।।

***

जब कर्मों का फल मिले तो तुम्हें दुआ ही मिले।

मत करो जीवन में कुछ   ऐसा कि बद्दुआ मिले।।

दिल को  बनाओ जैसे कि शीतल निर्मल जल।

जो बोयोगे वैसा ही फिर तुम पाओगे फल।।

****

भरोसा देने आशीर्वाद लेने में संकोच नहीं करें।

क्रोध में किसी लिए यूँ ही गलत सोच नहीं करें।।

अच्छा सोचने   करने से समस्या भी जाती टल।

जो बोयोगे वैसा ही फिर तुम पाओगे फल।।

****

जीवन का गणित तो  होता बहुत ही आसान है।

जो सीख गया   वही    जाकर बनता इंसान है।।

जो करना  आज करो कभी आता नहीं है कल।

जो बोयोगे वैसा ही फिर तुम पाओगे फल।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #222 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – बलिदानी वीरों की याद… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – बलिदानी वीरों की याद…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 222

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बलिदानी वीरों की याद…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

वतन पर मिटने वालों की लगन जब याद आती है

तो मन हो जाता भारी, साँस दुख में डूब जाती है।

*

मिटाकर अपनी हस्ती देश को जिनने दिया हमें जीवन

उन्हें सब याद करते, माँ सिसक आँसू बहाती है।

*

हमेशा आँधी-तूफानों से जो लड़ते रहे भरसक

उन्हें श्रद्धा सुमन की भेंट हर बस्ती चढ़ाती है।

*

लड़े बेखौफ आगे बढ़ सहे सौ वार दुश्मन के

समर की यही गाथाएँ अमर उनको बनाती हैं।

*

सुरक्षित स्वर्ण पृष्ठों पर उन्हें इतिहास रखता है

जिन्हें निस्वार्थ जीवन औ’ मरण की रीति आती है।

*

जिन्होंने जान दी अपनी विजय की भोर लाने को

सदा जनता उन्हीं की वीरता के गीत गाती है।

*

दिवस, मेले और प्रतिमाएँ सजायी जाती उनकी ही

जिन्हें आदर से मन मंदिर में जनता नित बिठाती है।

*

उन्हीं के त्याग ने हमको बनाया आज जो हम हैं

 ‘विदग्ध’ उनकी विमल स्मृति हमें जीना सिखाती है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ खोज ☆ श्रीमति जस्मिन शेख ☆

श्रीमति जस्मिन शेख

? कविता ?

 ☆ खोज ☆ श्रीमति जस्मिन शेख  

विघटित विचारों की अनुभूति से

घबराहट भरी अराजकता से

स्वप्नीश बना अध्यापक

खोज रहा है आज

कल का सभ्य नागरिक।

 

झूठे भविष्य की आस में

बच्चों पर सपने लांध कर

बिखरे हुए माता-पिता

खोज रहे हैं आज

अपने ही बच्चों के रक्षक

 

कागज़ के पहाड़ी बोझ उठाकर

गहरे आंतरिक दर्द से पीड़ित

कालसूत्र से बंधा बच्चा

खोज रहा है आज

उसके ही भविष्य का भक्षक

 

व्यर्थ संकल्प के साँप छोड़कर

समाज में भ्रम फैलाकर

गैरजिम्मेदार शासक

खोज रहा  आज

एक और मासूम शावक…

    ☆

साभार – सौ. उज्ज्वला केळकर, सम्पादिका ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

© श्रीमति जस्मिन शेख

मिरज जि. सांगली

9881584475

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनुभूति ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनुभूति ? ?

अनुभूति प्यासी है

अभिव्यक्ति की,

रचनात्मकता

बंधन कैसे पाले?

मेरी भावनाएँ तो हैं

अग्नि ज्वालामुखी की,

उफनते लावे पर

बाँध कैसे डालें..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #46 – नवगीत – सोने की चिड़िया… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतसोने की चिड़िया

? रचना संसार # 46 – गीत – सोने की चिड़िया…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

सोने की चिड़िया के घर में

डेरा डाले हैं फाँकें,

संकट की बेला में कैसे,

जीवन की गाड़ी हाँकें।

 

साथ नहीं कोई देता है,

बस ताने ही कसते हैं,

कच्चे धागों के ये रिश्ते,

नित नागिन सा डसते हैं,

पश्चिम की इस चकाचौंध में,

कैसे तन को अब ढाँकें।

 

मँहगाई सिर चढ़ कर बोली,

लोग ठहाके हैं मारे,

घोर गरीबी की क्रंदन से,

अधर मौन हैं बेचारे,

कौड़ी-कौड़ी को तरसे हैं,

किसकी अब कीमत आँकें।

 

तृष्णाओं की सरिता बहती,

छलिया करते हैं घातें।

विपदाओं की बाढें आतीं,

काल अमावश की रातें।।

चले कुल्हाड़ी वन -उपवन पर,

अंग-भंग सब क्या टाँकें।

 

आशाओं की बंद खिड़कियाँ,

आश्वासन भी बौराते।

चली हवाएँ हैं अभिमानी,

कुटिल कुहासे चौंकाते।।

सच्चाई की राह अकेली,

टूटा दर्पण क्या झाँकें।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #273 ☆ भावना के दोहे – आतंक ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – आतंक)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 273 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के मुक्तक – आतंक ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

साथ चले जो मार्ग में, उन पर किया प्रहार।

मानवता के वेश में, राक्षस छिपे हजार।।

*

पहलगाम की घाटियाँ,  क्यों मरते निर्दोष।

उत्तर उनसे पूछ लो, उनका क्या था दोष।।

*

आँसू बहे शहीद के, कौन सा था गुनाह।

नहीं तिरंगा अब झुके, सैनिक आए राह।।

*

घाटी पूछे गगन से, क्यों गूँजे आवाज।

क्यों चलती हैं गोलियाँ, सभी काँपते आज।।

*

पूछ रहे हैं धर्म वह, पूछ रहे पहचान।

ढूँढ-ढूँढकर हिन्द को, लेते उनकी जान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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