हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #272 ☆ भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 272 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – पवनपुत्र हनुमान ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

पवन वेग से उड़ रहे, उड़ते हैं हनुमान।

वर्षा पुष्प की कर रहे, देव करे सम्मान।।

*

करते सीता खोज वह, उड़ते सागर पार

पर्वत से सागर कहे, बड़ा करो आकार।।

*

हाथ जोड़ मैनाक है, पवनपुत्र हनुमान।

आड़े आया आपके, कर लो कुछ आराम।।

*

निकले सीता खोज में, वंदन है हनुमान।

मेरे मन में आपका, बहुत बड़ा सम्मान।।

*

लंका की इस राह में, बाधा करें प्रहार।

करना सीता खोज है, पवन न माने हार।।

*

रामदूत हनुमान हूं, बीच करो ना घात।

रूप धरोना सिंहिका, करता हूं आघात।।

*

किया प्रवेश लंका में, भव्य भवन भंडार।

भेंट लंकिनी से हुई, करते पवन प्रहार।।

*

कहा लंकिनी ने बहुत, हे वीर हनुमान।

मेरा जीवन धन्य हुआ, वानर तुझे प्रणाम।।

*

अंत समय अब आ गया, हुए लंका में पाप।

ब्रह्म सत्य अब हो गया, मिला बड़ा ही शाप।।

*

 सीता की इस खोज में, हम है तेरे साथ।

मिलजुल कर हम खोजते, रघु का सिर पर हाथ।।

*

सूक्ष्म रूप से आपने, किया लंका प्रवेश।

सोते देख रावण को, आया है आवेश।।

*

चकित हुए यह देख कर, सुना राम का नाम।

रावण के इस राज्य में, कौन कहेगा राम ।।

*

परिचय पाकर आपका, हर्षित हुए हनुमान।

भाई छोटा लंकपति, है विभीषण नाम।।

*

भक्त राम के आप हैं, मैं भी भक्त श्री राम ।

देखा सीता माता को, पता कहां श्रीमान।।

*

सीता मैया सुरक्षित, वाटिका है विशाल।

घेरे रहती राक्षसी, करते नयन सवाल।।

 *

कहे विभीषण पवन से, प्रभु से कहो प्रणाम।

चरणों में माथा झुके, विनती है श्री राम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 155 ☆ मुक्तक – ।। यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 155 ☆

☆ मुक्तक – ।। यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

यही  सच कि  सत्य का कोई जवाब नहीं है।

एक सच ही जिसके चेहरे पर नकाब नहीं है।।

सच  सा  नायाब  कोई  और नहीं है दूसरा।

इक सच ही तो  झूठा  और  खराब नहीं है।।

=2=

सच  मौन   हो  तो  भी  सुनाई  देता है।

सात परदों के पीछे से भी दिखाई देता  है।।

फूस में चिंगारी सा छुप कर आता है बाहर।

सच ही हर मसले की सही सुनवाई देता है।।

=3=

चरित्र  के  बिना  ज्ञान एक झूठी  सी ही बात है।

त्याग बिन  पूजन  तो  जैसे दिन  में  रात  है।।

सिद्धांतों बिन राजनीति भी विवेकशील होती नहीं।

मानवता  बिन  विज्ञान  भी  गलत  सौगात  है।।

=4=

सत्य स्पष्ट सरल इसमें   नहीं  कोई  दाँव  होता है।

जैसे  धूप  में  लगती  शीतल  सी  छाँव  होता है।।

गहन  अंधकार  को  भी सच का सूरज है चीर देता।

सच के सामने नहीं टिकता झूठ का पाँव नहीं होताहै।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #220 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – परीक्षाओं से डर मत मन… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – परीक्षाओं से डर मत मन…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 220

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – परीक्षाओं से डर मत मन…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

धरा को जब तपा दिनभर प्रखर रवि झुलस देता है

तभी चंदा की शीतल चाँदनी की रात होती है।

क्षितिज तब जब कभी नभ को सघन घन घेर लेते

हैं कड़कती बिजलियाँ, तब ही सुखद बरसात होती है।

*

डुबा चुकता है जब बस्ती उतरता बाढ़ का पानी

हमेशा धैर्य से ही सब दुखों की मात होती है।

निराशा के अँधेरों में कोई जब डूब जाता है

अचानक द्वार पै कोई खुशी बात होती है ॥

*

परीक्षाओं से डर मत मन ये तो हिम्मत बढ़ाती है

सही जीवन की इनके बाद ही शुरुआत होती है।

नहीं होता किसी के साथ जब कोई अँधेरे में तो

तब हरदम अंजाने उसके हिम्मत साथ होती है॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हनुमान जयंती विशेष – जय-जय हे! बजरंगबली ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ हनुमान जयंती विशेष – जय-जय हे! बजरंगबली ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

सदा सहायक देव प्रबलतम, परमवीर हनुमाना।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय जय दयानिधाना।।

मातु अंजनालाल शौर्यमय, असुरों को संहारें।

रामकाज करने को आतुर, पाप जगत के मारें।।

*

सूर्य निगलकर बने अनूठे, वायुपुत्र देवंता।

महावीर सुग्रीव सहायक, करें दुःखों का अंता।।

*

भयसंहारक, मंगलकारी, पूजन बहुत सुहाना।।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

 *

दहन करी लंका हे ! देवा, तुम हो प्रलयंकारी।

परम शक्तियाँ तुम में रहतीं, बनकर के साकारी।।

*

हे हनुमंता, हे भगवंता, तेरा रूप निराला।

हर दिन है उजला हो जाता, हो कितना भी काला।।

*

जीवन सुमन खिलाते हरदम, जग ने तुमको माना।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय जय दयानिधाना।।

रामदूत, अतुलित बलधामा, जीवन देने वाले।

सब कुछ तुम गतिमय कर देते, काट व्यथा के जाले।।

*

सीता की कर खोज बन गए, तुम तो एक कहानी।

लक्ष्मण के प्राणों के रक्षक, परम शक्तिमय, ज्ञानी

*

शरण गया जो देव आपकी, दया मिली भगवाना।

संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – त्रिकालदर्शी ? ?

भविष्य से

सुनता है

अपनी कहानी,

जैसे कभी

अतीत को

सुनाई थी

उसकी कहानी,

वर्तमान में जीता है

पर भूत, भविष्य को

पढ़ सकता है,

प्रज्ञाचक्षु खुल जाएँ तो

हर मनुज

त्रिकालदर्शी हो सकता है!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 9.31 बजे, 9.4.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #44 – गीत –  प्रेम रंग डालें कान्हा… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतप्रेम रंग डालें कान्हा

? रचना संसार # 44 – गीत – प्रेम रंग डालें कान्हा…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

नटखट कान्हा बीच डगर,

करता बरजोरी।

डूब रही है श्याम रंग,

ब्रज की भी छोरी।।

 

 शोर मचाती निकली है,

 मस्तों की टोली।

 कान्हा मारे पिचकारी,

 भीग गयी चोली।

 रंग की फुहारें चलतीं,

 जैसे हो गोली।।

 तन मन भी भीगा राधे,

 कैसी ये होरी।

 

 प्रेम रंग डालें कान्हा,

 छाईं है लाली।

 राधे मदहोश रंग में,

 मीरा मतवाली।।

 चुपके से आती ललिता,

 है भोली भाली।

 हँसी ठिठोली करतीं सब

 ब्रज की तो गोरी।।

 

मनहर मूरत मोहन की,

जादू है डाला।

चंचल चितवन कान्हा के

गले मणिक माला।।

छैल छबीला रसिया है,

गोकुल का ग्वाला।

मोहित ब्रज की हैं बाला,

पकड़ गई चोरी।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #271 ☆ भावना के मुक्तक – नारी ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के मुक्तक – नारी )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 271 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के मुक्तक – नारी ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

चांदनी जैसी प्यारी है उसकी हंसी । ।।

सांस महके गुलाबों की गुल में बसी।

छू गई जो हवा बन के पागल कहीं,

धड़कनें बजती है रागिनी सी फंसी।

*

चाहे चलती हैं जोरो से भी आंधियां ।

मुश्किलों में भी रुकती नहीं नारियां ।

उसके हिम्मत के चर्चे बहुत है मगर ,

ऊंचा इतिहास रचती है  ये नारियां।।

*

जो धरा की तरह सब सहती रही

जो जल की तरह सिर्फ बहती रही

जो समझता है कमजोर दुनिया में,

लौह बनकर मजबूत होती रही।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #253 ☆ संतोष के दोहे… मोह-माया ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  – संतोष के दोहे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 253 ☆

☆ संतोष के दोहे… मोह-माया ☆ श्री संतोष नेमा ☆

दो रोटी दो जून की,खाकर शांति होय

पर माया में लिपट के,मन का आपा खोय

*

मन का आपा खोय,लालसा पड़ती भारी

धन दौलत का मोह,अज़ब है दुनियादारी

*

कहते कवि “संतोष”,लालची होता है जो

वक्त सिखाता सीख,माया बन्धन तोड़ दो

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दुनिया ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – दुनिया ? ?

उसे दुनिया चाहिए थी,

वह दुनियावी न था,

दोनों ने बसा ली

अपनी-अपनी दुनिया,

सुनते हैं, अब उसे

दुनिया से वितृष्णा है,

वह अपनी दुनिया में

भरपूर खोया हुआ है,

एक बार फिर अलग-अलग हैं,

दोनों की अपनी-अपनी दुनिया…!

?

© संजय भारद्वाज  

7 अप्रैल 2025, दोपहर 3:39 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है 💥  

🕉️ प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ महावीर जयंती विशेष – महावीर स्वामी के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

महावीर जयंती विशेष – महावीर स्वामी के दोहे ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

वर्धमान महावीर को, सौ-सौ बार प्रणाम।

जैन धर्म का कर सृजन, रचे नवल आयाम।।

*

तीर्थंकर भगवान ने, फैलाया आलोक।

परे कर दिया विश्व से, पल में सारा शोक।।

*

महावीर ने जीतकर, मन के सारे भाव।

जीत इंद्रियाँ पा लिया, संयम का नव ताव।।

*

कुंडग्राम का वह युवा, बना धर्म दिनमान।

रीति-नीति को दे गया, वह इक चोखी आन।।

*

वर्धमान साधक बने, और जगत का मान।

जैनधर्म के ज्ञान से, किया मनुज-कल्याण।।

*

पंच महाव्रत धारकर, दिया जगत को सार।

करुणा, शुचिता भेंटकर, हमको सौंपा प्यार।।

*

जैन धर्म तो दिव्य है, सिखा रहा सत्कर्म।

धार अहिंसा हम रखें, कोमलता का मर्म।।

*

तीर्थंकर चोखे सदा, धर्म प्रवर्तक संत।

अपने युग से कर गए, अधम काम का अंत।।

*

मातु त्रिशला धन्य हैं, दिया अनोखा लाल।

जो करके ही गया, सच में बहुत कमाल।।

*

आओ ! हम सत् मार्ग के, बनें पथिक अति ख़ूब।

मानवता की खोज में, जाएँ हम सब डूब।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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