हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #201 ☆ अहं, क्रोध, काम व लोभ ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख अहं, क्रोध, काम व लोभ। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)  ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 201 ☆ ☆ अहं, क्रोध, काम व लोभ ☆ 'अहं त्याग देने से मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है; क्रोध छोड़ देने पर वह शोक रहित हो जाता है; काम का त्याग कर देने पर धनवान हो जाता है और लोभ छोड़ देने पर सुखी हो जाता है'– युधिष्ठिर की यह उक्ति विचारणीय है। अहं मानव का सबसे बड़ा शत्रु...
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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चिंतन तो बनता है ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) संजय दृष्टि – चिंतन तो बनता है  बात चार वर्ष पुरानी है। सोमवार 16 सितम्बर 2019 को हिंदी पखवाड़ा के संदर्भ में केंद्रीय जल और विद्युत अनुसंधान संस्थान, खडकवासला, पुणे में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित था। कार्यक्रम के बाद सैकड़ों एकड़ में फैले इस संस्थान के कुछ मॉडेल देखे। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के लिए अनेक बाँधों की...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 163 ⇒ दम मारो दम… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "दम मारो दम"।) अभी अभी # 163 ⇒ दम मारो दम… श्री प्रदीप शर्मा  सन् १९७१ में सदाबहार अभिनेता देवानंद ने एक फिल्म बनाई थी, हरे रामा हरे कृष्णा, जो युवा पीढ़ी में व्याप्त नशे की बुरी लत पर आधारित थी। पश्चिम के अंधानुकरण को लेकर उधर भारत कुमार मनोज कुमार भी उपकार फिल्म की सफलता के बाद पूरब और पश्चिम जैसी देशभक्ति से युक्त फिल्म लेकर पहले ही बाजार में उतर चुके थे। धर्म तो अपने आप में नशा है ही, लेकिन जब धर्म और नशा दोनों साथ साथ हों, तो यह गजब की कॉकटेल साबित होती है। अपनी खोई हुई बहन को ढूंढते ढूंढते नायक देवानंद काठमांडू पहुंच जाता है, जहां एक हिप्पियों के झुंड में उसे अपनी...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 162 ⇒ ये रोटीवालियाँ… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "ये रोटीवालियाँ "।) अभी अभी # 162 ⇒ ये रोटीवालियाँ… श्री प्रदीप शर्मा  काम वाली बाइयों की कथा व्यथा और किस्से कहानियाॅं आजकल महानगरों की घर घर की कहानी हो चुकी है। कई लेखकों ने इनके दुखड़ों को बड़े संजीदा ढंग से अपनी मार्मिक कहानियों में चित्रित किया है। ऐसे में भला व्यंग्य क्यों पीछे रहे। संक्षेप में बड़ी काम वाली है यह काम वाली बाई, इसने सबका काम संभालकर पूरी दुनिया को काम पर लगा रखा है। अब समय आ गया है, हम जरा आसपास भी नजर दौड़ाएँ ! काम वाली बाई की एक और श्रेणी होती है, जिसे बाई नहीं, सिर्फ रोटी वाली कहते हैं। इनका ओहदा और स्तर आम कामवालियों से बेहतर होता है, क्योंकि ये झाड़ू पोंछा...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #151 – आलेख – “बर्फ की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” (सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक शिक्षाप्रद आलेख - “बर्फ की आत्मकथा”) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 151 ☆  ☆ आलेख - “बर्फ की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆ मैं पानी का ठोस रूप हूं. द्रव्य रूप में पानी बन कर रहता हूं. जब वातावरण का ताप शून्य तक पहुंच जाता है तो मैं जम जाता हूं. मेरे इसी रूप को बर्फ कहते हैं. मेरा रासायनिक सूत्र (H2O) है. यही पानी का सूत्र भी है. यानी मेरे अंदर हाइरड्रोजन के दो अणु और आक्सीजन के एक अणु मिले होते हैं. जब पेड़ पौधे वातावरण से कार्बन गैस से कार्बन लेते हैं तब मेरे पानी से हाइड्रोजन ले कर शर्करा बनाते हैं. इसे ही पौधों की भोजन...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 161 ⇒ स्मृतिशेष काका हाथरसी… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "जश्न और त्रासदी "।) (18 सितंबर 1906 - 1995) अभी अभी # 161 ⇒ स्मृतिशेष काका हाथरसी… श्री प्रदीप शर्मा  जिस दिन पैदा हुए, उसी दिन इस संसार से विदा भी ले ली ! (18 सितंबर 1906 - 1995) हाथरस में पैदा हुए इसलिए प्रभुलाल गर्ग काका हाथरसी हो गए। इनके हाथ में हास्य रस की रेखाएं अवश्य होंगी, इसीलिए सदा सबको हंसाते रहे। इनकी आस थी कि इनके निधन पर कोई आंसू ना बहाए। शोक सभा की जगह एक हास्य कवि सम्मेलन रखा जाए। चूंकि जन्म और मरण का एक ही दिन है, इसलिए प्रस्तुत है उनकी एक हास्य कविता। हास्य कविता - सुरा समर्थन - काका हाथरसी भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान किया सोमरस...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 84 – प्रमोशन… भाग –2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव (श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की प्रथम कड़ी। )  ☆ आलेख # 84 – प्रमोशन… भाग –2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆ हमारे बैंक के सामने जो बैंक था उसके लिये "प्रतिद्वंद्वी" शब्द का प्रयोग जरूर किया है पर हकीकत यही थी कि कोई दुर्भावना नहीं थी और उनके और हमारे बीच भाईचारा था, एक सी इंडस्ट्री में काम करने के कारण. जब हम लोग आते थे उसी समय वो लोग भी अपने बैंक...
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हिंदी साहित्य – आलेख ☆ हिन्दी के उन्नयन में महिलाओं की भूमिका ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय ☆ हिन्दी के उन्नयन में महिलाओं की भूमिका ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆ भाषा, मानव ने ईजाद की, पशुओं ने नहीं। प्रकृति की ध्वनियों को आत्मसात कर उसने शब्द रचे। लिपि का अविष्कार कर विकास के कई सोपान पार किये। सभ्यता और संस्कृति का संवहन भाषा ने किया और करती रहेगी। हिन्दी की बात करें तो वह शताधिक भाषा बोलियों का समूह है। विश्व में इंग्लिश और मैंडारिन के बाद सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा। जो अद्यावधि राजभाषा और संपर्क भाषा का स्थान पा गई, पर राष्ट्रभाषा का दर्जा उससे दूर है। बेशक राष्ट्रभाषा का मुद्दा सरकार के अधीन है पर हिन्दी और तमाम बोलियों के सम्मान का मुद्दा तो हमारे वश में है। विशेषतः महिलाओं के। जाहिर सी बात है 2--3 वर्ष का बच्चा तेजी से सीखना चाहता है। पाँच वर्ष की उम्र तक वह माँ के संस्कार और परिवेश से जो भी सीखता है, आजीवन नहीं भूल पाता। कान्वेंट कल्चर के भीषण प्रसार के साथ, पिता ही नहीं मांएं भी...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 160 ⇒ चिल्ला चोट… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "चिल्ला चोट"।) अभी अभी # 160 ⇒ चिल्ला चोट… श्री प्रदीप शर्मा  भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। कुछ बोलचाल के शब्द शायद हमें शब्दकोश में नहीं मिलें, उपयोग में भी कम ही आते हों, लेकिन व्यवहार में यदा कदा उनसे पाला पड़ ही जाता है। केवल बादल ही नहीं बरसते, बचपन में पिताजी भी ऐसे ही बरसते थे, मानो बिजली कड़क रही हो, और हम, डर के मारे पसीना पसीना हो, अपनी मां के आंचल में छुप जाते थे। लेकिन जब पिताजी द्वारा लाड़ प्यार की बारिश होती थी, तो हम भी, निर्भय, निश्चिंत हो, भीगकर तरबतर हो जाते थे। । दफ्तर में कभी कभी बरसते तो बॉस भी थे, बदले में हम घर जाकर बच्चों को जब डांट पिलाते थे,...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 52 – देश-परदेश – फुटबॉल ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार (श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।) ☆ आलेख # 52 ☆ देश-परदेश – फुटबॉल ☆ श्री राकेश कुमार ☆ आज रात्रि एक पारिवारिक  विवाह में सम्मिलित होना है, इसलिए सुबह सुबह बुआ जी को जियो के मुफ्त वाले फोन से जानकारी ली की आदरणीय फूफा जी कितने बजे जायेंगे, हम भी उनके साथ चलेंगे ताकि खातिरदारी बढ़िया हो जायेगी, वरना फूफा जी तो फूल जाते हैं। बुआ लपक कर बोली तुम्हारे फूफा तो "फीफा" के दीवाने हो गए हैं, वो शादी में ना जायेंगे। हमने भी उनसे विनोद में कहा अब इस उम्र में फुटबॉल...
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