हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #171 ☆ “एक बुंदेली पूर्णिका – बड़ो  कठिन है  जो समईया…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष” (आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है - “एक बुंदेली पूर्णिका - बड़ो  कठिन है  जो समईया…”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।) ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 171 ☆  ☆ “एक बुंदेली पूर्णिका - बड़ो  कठिन है  जो समईया…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆ ☆ भैया सोच समझ  खें  बोलो तुरत न मन की  बातें खोलो ☆ बड़ो  कठिन है  जो समईया तन्नक  मिसरी  मुंह में  घोलो ☆ सबकी  करो   खूब  चिन्हारी अपनों  खों  कबहुँ  ने  तोलो ☆ जो  हांकत   थे   ढींगे   भारी वो भी  भीतर  निकरो  पोलो ☆ अबे   बखत  है   जागो  भैया नाहिन  लुटिया   खुदै  डुबोलो ☆ पीर   ...
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