हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 90 ☆ मुक्तक ☆ ।। हर रात के बाद सूरज डूब कर फिर निकलता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 90 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। हर रात के बाद सूरज डूब कर फिर निकलता है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हार में भी जीत में भी मजा  लीजिए।

नफरत मे खुद को मत सजा दिजिए।।

एक हार नहीं जीवन का  आदि अंत।

हर स्तिथि से खुद की रजा   कीजिए।।

[2]

क्षमताऔर ज्ञान का मत करना गरुर।

नहीं तो नशे सा चढ़ जाता   है सरूर।।

खूबी और खामी होती हर   इंसान मे।

अच्छी बातें तुम देखना पहले   जरूर।।

[3]

शुरू होकर कहानी खत्म हो  जाती है।

अच्छे क़िरदार की याद रंग  लाती   है।।

वो हारा नहीं जो गिर कर भी संभलता।

हर रात के हर सुबह भी रोशनी पाती है।।

[4]

मंहगी घड़ी मुश्किल घड़ी  दोनों निभाएं।

करके कुछ काम अलग ही आप दिखाएं।।

बड़े भाग्य से मिलता आदमी का लिबास।

सफलता को रोज नया सीखें नया बताएं।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 154 ☆ “राम का नित ध्यान है” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “राम का नित ध्यान है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ “राम का नित ध्यान है” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुण्य सलिला सरयू तट पर बसी शांति प्रदायानी

जन्म नगरी राम की है अयोध्या अति पावनी

स्वप्न पावन तीर्थ पुरियों में प्रथम जो मान्य है

सकल भारतवर्ष की है प्रिय सतत सन्मानिनी

सहन की जिसने उपेक्षा विधर्मी प्रतिकार की

सहेजे चुप रही मन में भावना उद्धार की

न्याय सदियों बाद पा रही नूतन सृजन

मन में आकाँक्षा सजाए राम के दरबार की

एक लंबी प्रतीक्षा के बाद आई है अब वह घड़ी

राम भक्तों के मन में भी मची है दर्शनों को हड़बड़ी

चाहते सब पूर्ण हो अब राम मंदिर का सृजन

जहां कर दर्शन प्रभु का पाए मन शांति बड़ी

राम हैं आदर्श जग के अपने सद व्यवहार से

सबके प्रिय औ’ पूज्य भी हैं सहज पावन प्यार से

विश्व को अनुराग उन पर उनके नित आदर्श पर

सभी मानव जाति को उनका सतत आधार है

सभी को सुख शांति दाई राम जी भगवान हैं

जिनको हर धर्मावलंबी व्यक्ति एक समान है

भेद छोटे बड़े का कोई दृष्टि में उनकी नहीं

हर एक की जीवन दशा पर सदा उनका ध्यान है

सदा सबका हो भला कोई ना कहीं विकार हो

दीन दुखियों का सदा कल्याण हो उद्धार हो

जगत में सुख शांति सद्भावना विश्वास से

प्राणियों के मनों में शुभकामना हो प्यार हो

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ब्लैक होल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – ब्लैक होल ? ?

तुम फिर खींच दोगे

हमारे बीच के धागे को,

तुम फिर लौट जाओगे

पिछली या उससे पिछली

या उससे पिछली

या उससे भी पिछली,

अनगिनत पिछली बार की तरह..,

तुम्हारे लौट आने पर

मैं फिर मिलूँगा तुमसे

वैसे ही जैसे

कभी कुछ हुआ ही ना हो,

कभी सोचा,

हर बार का तुम्हारा पलायन

मेरे भीतर के ब्रह्मांड में

पैदा कर देता है एक शून्य,

अब,

ये सारे शून्य मिलाकर

भयावह ब्लैक होल बन चुका है,

जानते हो ना,

ब्लैक होल गड़प जाता है

ब्रह्मांड सारा का सारा,

सुनो,

हाँफ रहा हूँ, थक गया हूँ,

बार-बार गड़पे जाने से

कैसे उबरूँ मैं..?

तुम्हीं बताओ

और कितने ब्रह्मांड सिरजूँ मैं..?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से आपको शीघ्र ही अवगत कराएंगे। 💥 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #207 ☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे … चाँद)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 207 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे …  डॉ भावना शुक्ल ☆

☆ झील ☆

आँखें नीली झील हैं, दिखता इनमें प्यार।

नैन तरसते रात-दिन, अपना लो तुम यार।।

☆ माली ☆

उजड़ी बगिया देखकर, माली हुआ उदास।

मन भावों की खाद से, बगिया हुई उजास।।

☆ माया ☆

माया जिसके पास है, डाले प्यारा जाल।

फंसा जो इस चाल में, उधड़ी उसकी खाल।।

☆ संयम ☆

संयम जिसने रख लिया, पाई मंजिल पास।

डिगा नहीं कर्तव्य से, जीवन बना उजास।।

☆ प्रसाद ☆

प्रभु के दर्शन कर लिए, मिलता नयन प्रसाद।

मोहन मन को मोहते, मिले नेह का स्वाद।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #190 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहेआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 190 ☆

☆ संतोष के दोहे – धर्म ☆ श्री संतोष नेमा ☆

☆ तितली ☆

तितली की फितरत अलग, निखरें रंग हज़ार

जब भी थामा प्यार से, करे रंग बौछार

☆ जंगल ☆

अपराधी निशिदिन बढ़ें, उन पर नहीं लगाम

लगता जंगल राज सा, सरकारी अब काम

☆ बारूद ☆

हथियारों की होड़ में, बारूदों के ढेर

दुनिया में सब कह रहे, मैं दुनिया का शेर

☆ श्राप ☆

अजब परीक्षण चीन का, आज बना है श्राप

कोरोना सिर चढ़ गया, देकर सबको थाप

☆ धूप ☆

पूस माह में धूप की, सबको होती चाह

तन कांपे मन डोलता, मुँह से निकले आह

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – मुस्कानों का गीत – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – मुस्कानों का गीत – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

मुस्कानों को जब बाँटोगे,तब जीने का मान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर,

जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी,

दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

धन-दौलत मत करो इकट्ठा,

कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा,

तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर,पा लेनी पहचान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

शानोशौकत नहीं काम की,

चमक-दमक में क्या रक्खा

वहीं जानता सेवा का फल,

जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ,यही आज अरमान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

ख़ुद तक रहता है जो सीमित,

वह बिरथा इंसान है

अवसादों को अपनाता जो,

वह पाता अवसान है

अंतर्मन में नेह पालना,करुणा-दया-विधान है।

मानवता जीवन की शोभा,मिलता नित यशगान है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता! ? ?

उन्होंने कविता और

कवित्व की हँसी उड़ाई,

मैंने कलम उनके हाथ थमाई

और कहा, अब तुम लिखो कविता!

 

उनकी हँसी अचकचाई,

दृष्टि सकुचाई,

मैंने कलम ली उनके हाथ से

लिखी पक्तियाँ उसी

अचकचाने-सकुचाने पर

और उन्हें ही प्रति थमाई।

 

सृजन यों ही नहीं जन्मता,

देखना, दृष्टि में यों ही नहीं बदलता,

कविताओं के छत्ते से

तुम भरपूर शहद

भले ही जुटा पाओगे,

स्मरण रहे,

मधुमक्खी तो तब भी नहीं हो पाओगे!

 

बाहरी जगत के विस्तार का

माइक्रोचिप बनाएगी कविता,

जब कभी भीतर देखना होगा

उन्हें रास्ता दिखायेगी कविता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से आपको शीघ्र ही अवगत कराएंगे। 💥 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #22 ☆ कविता – “रावण तो अभी जिंदा हैं…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 22 ☆

☆ कविता ☆ “रावण तो अभी जिंदा हैं…☆ श्री आशिष मुळे ☆

पुतलों में तो वैसे ही जान नहीं

पुतला-कारों में बारूद भरा पड़ा है

आज राम है या नहीं पता नहीं

राक्षस तो अखबारों के पन्नों पर है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

जान इस रावण की

नाभि में नहीं है

इसकी जान, जिसमें नहीं

ऐसा आज कोई चिन्ह  ही नहीं है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

कहानियों और चिन्हों से

लबालब आज लंकाए हैं 

जहां खौफ से लथपथ

हृदय और मन है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

कौन दे रहा है जान

ये रावण क्या खाता है

क्या ग़लतफहमी यही

हमारे खेत का अनाज है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

तुम्हारा राम चौखट के अंदर है

चौखट के बाहर तो घना अंधेरा है

गर कभी चौखट लांघनी पड़े

समझ लो हरण तुम्हारा तय है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

गर रावण को मिटाना है

तीर हमें ही चलाने हैं 

कहानियों की चौखट लांघकर

जान चिन्हों की निकालनी है

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

 

मानवता के दंडकारण्य में अज्ञान अंधेरा है

जिसमें अंधविश्वास यही मूल शिकारी है

इक दिन सूरज निकलेगा, मुझे ये विश्वास है

मगर आज का राम तुम्हे ही बनना है…

क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 182 ☆ बालगीत – तुम बढ़े चलो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 182 ☆

☆ बालगीत – तुम बढ़े चलो ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

शुभ कर्म करो जीवन पथ पर

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

बनकर जन – जन के विश्वासी

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

 

तुम फूल सरीखा महको जी।

तुम बुलबुल जैसा चहको जी।

तुम आसमान के तारे हो,

तुम मन से कभी न बहको जी।

 

तुम पुण्य धरा के हो वासी।

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

 

तुम साथ चलो हर प्राणी के।

तुम शिखर बनो मधु वाणी के।

तुम उड़ो गगन  में पंछी बन।

तुम बन जाओ प्यारा सावन।

 

भू रहे नहीं अपनी  प्यासी।

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

 

 

तुम को हर  बाधा से लड़ना।

हर शैल शिखर पर है  चढ़ना।

इस उर  में नई उमंग लिए

स्व: दोष नहीं तुम को मढ़ना।

 

तुम ही मथुरा तुम ही काशी

तुम बढ़े चलो।

तुम बढ़े चलो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #205 – कविता – ☆ सही-सही मतदान करें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके सही-सही मतदान करें”।)

☆ तन्मय साहित्य  #205 ☆

☆ सही-सही मतदान करें… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चलो! आज कुछ बातें कर लें

जागरूक हो ज्ञान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।

 

मंदिर बना हुआ है लोकतंत्र का,

सबके वोटों से

बचकर रहना, लोभी लम्पट

नकली धूर्त मुखौटों से,

नहीं प्रलोभन, धमकी से बहकें

सौगन्ध विधान की। …

 

जाती धर्म, रिश्ते-नातों को भूल,

सत्य को अपनाएँ

सेवाभावी, निःस्वार्थी को

वोट सिर्फ अपना जाए,

मन में रहे भावना केवल

देश प्रेम सम्मान की। …

 

जिस दिन हो मतदान

भूल जाएँ

सब काम अन्य सारे

मत पेटी के वोटों से ही

होंगे देश में उजियारे,

महा यज्ञ राष्ट्रीय पर्व पर

आहुति नव निर्माण की। …

 

मतदाता सूचियों में पात्र नाम

सब अंकित हो जाये

है अधिकार वोट का सब को

वंचित कोई न रह पाए,

बजे बाँसुरी सत्य-प्रेम की

जन गण मंगल गान की

क्या महत्व है मतदाता का

क्या कीमत मतदान की।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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