हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 77 ☆ दिन का आगमन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “दिन का आगमन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 77 ☆ दिन का आगमन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सात घोड़े वाले रथ पर

बैठकर निकला है सूरज

हुआ दिन का आगमन है।

**

आँजुरी भर धूप लेकर

हवा गरमाई

किरन उजियारा लिये हर

द्वार तक आई

*

काग बैठा मुँडेरों पर

बाँचता पल-पल सगुन है।

**

भोर वाले ले सँदेशे

आ गया दिनकर

रात बैठी सितारों में

ओढ़ तम छुपकर

*

दिन जली लकड़ी हवन की

साँझ शीतल आचमन है।

**

पंछियों का चहचहाना

मंदिरों के शंख

उड़ रहे आकाश में हैं

मुक्त होकर पंख

*

धार साधे बहे नदिया

लहर नावों पर मगन है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 81 ☆ तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 82 ☆

✍ तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

वक़्त का क्या है ये लम्हे नहीं आने वाले

मुड़के इक बार जरा देख तो जाने वाले

हम बने लोहे के कागज़ के न समझ लेना

खाक़ हो जाएगें खुद हमको जलाने वाले

 *

बच्चे तक सिर पे कफ़न बाँध के   घूमें इसके

जड़ से मिट जाए ये भारत को मिटाने वाले

 *

तुम वफ़ा का कभी अपनी भी तो मीज़ान करो

बेवफा होने का इल्ज़ाम लगाने वाले

 *

वोट को फिर से भिखारी से फिरोगे दर दर

सुन रिआया की लो सरकार चलाने वाले

 *

सामने कीजिये जाहिर या इशारों से बता

अपने जज़्बातों को दिल में ही दबाने वाले

 *

हम फरेबों में तेरे खूब पड़े हैं अब तक

बाज़ आ हमको महज़ ख़्वाब दिखाने वाले

 *

तेरी तक़रीर है झूठी तेरे वादे झूठे

शर्म खा अपने फ़क़त गाल बजाने वाले

 *

तेरे खाने के दिखाने के अलग दाँत रहे

ताड हमने लिया ओ हमको लड़ाने वाले

 *

पट्टिका में है अरुण नाम वज़ीरों का बस

याद आये न पसीने को बहाने वाले

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अलविदा दीपावली – अज्ञात ☆ संकलन – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे, संपादिका ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

कविता ☆ अलविदा दीपावली – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे, संपादिका ई-अभिव्यक्ति (मराठी)

ज़रा अदब से उठाना इन बुझे दियों को

बीती रात इन्होंने सबको  रोशनी दी थी

*

किसी को जला कर खुश होना अलग बात है

इन्होंने खुद को जला कर रोशनी की थी

*

कितनों ने खरीदा सोना

मैने एक ‘सुई’ खरीद ली

*

सपनों को बुन सकूं

उतनी ‘डोरी’ खरीद ली

*

सबने बदले नोट

मैंने अपनी ख्वाहिशे बदल ली

*

शौक- ए- जिन्दगी‘ कम करके

सुकून-ए-जिन्दगी‘ खरीद ली…

*

माँ लक्ष्मी से एक ही प्रार्थना है..

धन बरसे या न बरसे..

पर कोई गरीब..

दो रोटी के लिए न तरसे..

 *

🙏🏻अलविदा दीपावली 2024🙏🏻

 

 संकलन – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

९८२२८४६७६२

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 77 – व्यर्थ मोती न लुटाया कीजे… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – व्यर्थ मोती न लुटाया कीजे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 77 – व्यर्थ मोती न लुटाया कीजे… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

व्यर्थ मोती न लुटाया कीजे 

कौन है हंस, यह पता कीजे

 *

आप पूनम हैं, लोग कहते हैं 

मेरे दिल में भी उजाला कीजे

 *

तुम जो आते हो, फूल खिलते हैं 

इनको, हर रोज हँसाया कीजे

 *

याद के हैं, यहाँ पले जुगनू

रोशनी से, न डराया कीजे

 *

आपके बिन, अगर जिया तो क्या 

मेरे जीने की, मत दुआ कीजे

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 150 – दीपावली पर दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपके “दीपावली पर दोहे…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 150 – दीपावली पर दोहे…  ☆

ज्योतिपुंज दीपावली, खुशियों की सौगात।

रोशन करती जगत को, तम को देती मात।।

*

दीपक का संदेश यह, दिल में भरें उजास।

घोर तिमिर का नाश हो, रहे न विश्व उदास।।

*

रिद्धि-सिद्धी और संपदा, लक्ष्मी का वरदान ।

दीवाली में पूजते, हम सब करते ध्यान।।

*

सदियों से दीपक जला, फैलाया उजियार ।

अंधकार का नाश कर, मानव पर उपकार ।।

*

हर मुश्किल की राह में, चलता सीना तान ।

राह दिखाता है सदा,जो पथ से अनजान ।।

*

दीवाली में दीप का, होता बड़ा महत्त्व ।

हर पूजा औ पाठ में, शामिल है यह तत्व।।

*

लक्ष्मी और गणेश जी, धन-बुद्धि का साथ।

दोनों के ही योग से, जग का झुकता माथ।।

*

राम अयोध्या आगमन, खुशियों का यह पर्व।

मुक्ति-मिली दानव-दलन, जनता को था गर्व।।

*

मानवता की ज्योत से, नव प्रकाश की पूर्ति।

सबके अन्तर्मन जगे, मंगल-दीपक-मूर्ति।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आपबीती ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आपबीती ? ?

?

मैं डुबकी लगाना

चाहता था गहरी,

सो गहरे लोगों की

संगत करने की सूझी,

फिर समय ने बताया,

अनुभव ने दोहराया,

आपबीती से पता चला था,

मैं उथला ही भला था..!

?

© संजय भारद्वाज  

प्रात: 7:20, 23 दिसम्बर 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी💥 🕉️   

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 212 – युग – सत्य… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – युग – सत्य।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 212 – युग – सत्य… ✍

शब्दों की सजीवता की बात

सुनी थी,

आज देखता हूँ।

 

देखता हूँ: रक्तपात।

देखता हूँ : गर्भपात।

 

लगता है

इन शब्दों में

युग-सती संश्लिष्ट है।

 

शायद,

शब्दों का क्रिया बोध

इस युग का इष्ट है।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 212 – जीवन सार हीन दिखता“…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत जीवन सार हीन दिखता ...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 212 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “जीवन सार हीन दिखता ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

माँ, आँगनसे घिसट-घिसट

ओसारे थी आयी ।

तभी अन्तरा से अब बन

पायी है स्थायी ॥

 

नहीं सुना करती थीं बहुयें

याचन भोजन का ।

माँ को देहरी से चौका

तो था सौ योजन का ।

 

पार नहीं कर पाती थी

दुख भरी लखन-रेखा-

यह दूरी माँ को बन

उभरी थी गहरी खाई ॥

 

गठिया का प्रकोप घुटनों

में ऐसे था बढ़ता ।

ज्यों बरसाती नाला थोड़े

जल में  है चढ़ता ।

 

दर्द दबाती फिर भी

काँटा चुभता ही रहता-

भोजन के मिलने में

था जो अविश्वास भाई ॥

 

रोटी का न मिलना

जीवन सार हीन दिखता ।

माँ का, सुत, विश्वास खो

चुका जबसे मरे पिता ।

 

बेचारी माँ, वैसे मन ही

मन में थी  चिन्तित –

आखिर मेरे लिये कौन

घर में उत्तरदायी ?

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

30-07-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुनाव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चुनाव ? ?

?

कुछ नहीं देती भावुकता,

कुछ नहीं देती कविता,

जीने का

सामान करना सीखो,

जीवन में

सही चुनाव करना सीखो,

एक पलड़े पर

दुनियादारी रखी,

दूसरे पर

कविता धर दी,

सही चुनने की सलाह

सुन ली….और

मैंने अपने लिए

कविता चुन ली..!

?

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 9:24 बजे, 23 जून 2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 196 ☆ # “छोटा सा दीपक…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता छोटा सा दीपक…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 196 ☆

☆ # “छोटा सा दीपक…” # ☆

इस कुटिया का

छोटा सा दीपक

अखंड जल रहा है

स्याह तम को खल रहा है

उसके मध्यम रोशनी में

एक ख्वाब पल रहा है

जो निरंतर अंदर ही अंदर

धीरे धीरे चल रहा है

 

सुबह-शाम

दिन और रात

आंधी तूफान हो

या बरसात

कपकपाती ठंड हो

गर्मी प्रचंड हो

हवा में चुभती नमी हो

या बर्फ जमी हो

वह निर्बाध जल रहा है

अपनी गति से चल रहा है

 

वो तब तक जलेगा

जब तक

मशाल ना बन जायें

अंधकार का

काल ना बन जायें

 

उसका लक्ष्य है –

मशाल बनकर

वह जला देगा

अंधविश्वास

कुरितियां

जो है आसपास

अशिक्षा, भेदभाव

पाखंड, अभाव

जात-पात

शह और मात

अन्याय, अत्याचार

आडंबर, तिरस्कार

गरीबी अमीरी

दिलों के बीच की दूरी

 

मशाल बनकर

वह रोशन कर देगा

संसार को

पराजित कर देगा अंधकार को

 

और 

सर उठाकर

सीना तानकर

खड़ा होगा

सूरज के सामने

लगेगा प्रकाश के

वेग को नापने

वो काल के माथे पर

एक दस्तक होगा

तब सुर्य भी

उसके आगे नतमस्तक होगा /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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