(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता संतुलन। इस विचारणीय विमर्श के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे ।
आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है षोडशोऽध्यायः।
स्नेही मित्रो सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा श्रीकृष्ण कृपा से दोहों में किया गया है। पुस्तक भी प्रकाशित हो गई है। आज आप पढ़िए सोलहवाँ अध्याय। आनन्द उठाइए।
– डॉ राकेश चक्र।।
☆ सोलहवाँ अध्याय – दैवीय और आसुरी स्वभाव ☆
श्रीकृष्ण भगवान ने इस अध्याय में अर्जुन को दैवीय व आसुरी स्वभाव के बारे में ज्ञान दिया। दो प्रकार के मनुष्य भगवान ने वर्णित किए हैं, एक दैव प्रकृति के तथा दूसरे आसुरी प्रवत्ति के। उनके गुण व अवगुण भगवान ने बताए हैं –
दैवीय मनुष्यों के गुण इस प्रकार हैं
दैव तुल्य हैं जो मनुज,दैव प्रकृति सम्पन्न।
भरतपुत्र! होते नहीं, वे ईश्वर से भिन्न ।। 1
आत्म-शुद्ध आध्यात्म से,हो परिपूरित ज्ञान।
संयम अनुशीलन करे,सदा सुपावन दान।। 2
यज्ञ, तपस्या भी करें, पढें शास्त्र व वेद।
सत्य, अहिंसा भाव से, करें क्रोध पर खेद।। 2
शान्ति, क्षमा,करुणा,रखें,हो न हृदय में भेद।
लोभ विहीना ही रहें, करें दया, रख तेज।। 3
लज्जा हो , संकल्प हो, मन से रहे पवित्र।
यश की करे न कामना, धैर्य , प्रेम हो मित्र।।3
दम्भ, दर्प, अभिमान सब,हैं आसुरी स्वभाव।
क्रोधाज्ञान, कठोरता, देते सबको घाव।। 4
दिव्य गुणी देते रहे, मानव तन को मोक्ष।
वृत्ति आसुरी दानवी, माया करे अबोध।। 5
दो प्रकार के हैं मनुज, असुर,दूसरे देव।
दैवीय गुण बतला चुका, सुनलो असुर कुटेव।। 6
भगवान ने असुर स्वभाव के मनुजों के बारे में बताया है—
वृत्ति आसुरी मूढ़ नर, रखते नहीं विवेक।
हो असत्य,अपवित्रता, नहीं आचरण नेक।। 7
मिथ्या जग को मानते, ना इसका आधार।
सृष्टा से होकर विमुख,करते भोगाचार।। 8
आत्म-ज्ञान खोएँ असुर, चाहें दुर्मद राज।
बुद्धिहीन बनकर सदा, करें न उत्तम काज।। 9
मद में डूबें गर्व से , झूठ प्रतिष्ठा चाह।
मोह-ग्रस्त संतोष बिन, सबको करें तबाह।। 10
इन्द्रिय के आश्रित रहें,जानें केवल भोग।
चिन्ता करते मरण तक, रहते नहीं निरोग।। 11
इच्छाओं की चाह में, करें पाप के काम।
मुफ्त माल चाहें सदा, क्रोध करें अतिकाम।। 12
असुरों के स्वभाव के बारे में भगवान ने बताया——–
व्यक्ति आसुरी सोचता, धन भी रहे अथाह।
वृद्धि उत्तरोत्तर करूँ, बस दौलत की चाह।। 13
मन में रखते शत्रुता, करें शत्रु पर वार।
सुख सुविधा चाहें सभी, सोचें मैं संसार।। 14
करें कल्पना मैं सुखी, मैं ही सशक्तिमान।
मुझसे बड़ा न कोय है, करें सभी सम्मान।। 15
चिन्ता कर, उद्विग्न रह, बँधे मोह के जाल।
चाहें इन्द्रिय भोग सब, बढ़ें नरक के काल।। 16
श्रेष्ठ मानते स्वयं को, करते सदा घमण्ड।
विधि-विधान माने नहीं, जकड़े मोह प्रचंड।। 17
अहंकार, बल, दर्प से, करते काम या क्रोध।।
प्रभु ईर्ष्या कर रहे , सत से रहें अबोध।।18
क्रूर , नराधम जो मनुज, और बड़े ईर्ष्यालु।
प्राप्त अधोगति को हुए , ईश न होयँ कृपालु।। 19
प्राप्त अधोगति को हुए, असुर प्रवृत्ति के लोग।
बार-बार वे जन्म लें, भोगें फल का भोग।। 20
तीन नरक के द्वार, काम, क्रोध सँग लोभ।
बुद्धिमान को चाहिए, कर लें इनसे क्षोभ।। 21
नरक द्वार से जो बचें, उनका हो कल्यान।
प्राप्त परमगति को करें, बढ़े सदा सम्मान।।22
जो जन शास्त्रादेश की,नहीं मानते बात।
उन्हें मिली सुख-सिद्धि कब, मिलती तम की रात।। 23
शास्त्र पढ़ें, उनको गुनें, जानें सुविधि- विधान।
उच्च शिखर पर पहुँचते, होता है कल्यान।। 24
इति श्रीमद्भगवतगीतारूपी उपनिषद एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद में ” दैवीय और आसुरी स्वभाव ब्रह्मयोग ” सोलहवाँ अध्याय समाप्त।
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार”महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता “आदमी सूरजमुखी सा….”। )
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “मीनारें ”। )
आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है एक अत्यंत मनोरम अभिनवगीत – “इक्ष्वाकु के वंशज !!”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 55 ☆।। अभिनव-गीत /संदर्भ/पुराण ।। ☆