हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 147 ☆ कविता – शायद होता हो हल युद्ध भी कभी कभी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है  आपकी एक समसामयिक विषय पर आधारित कविता  शायद होता हो हल युद्ध भी कभी कभी

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 147 ☆

? कविता – शायद होता हो हल युद्ध भी कभी कभी ?

 

इतिहास है गवाह, होता है हल,

युद्ध भी कभी कभी.

क्योंकि जो बोलता नहीं,

सुनता ही रह जाता है

 

कुछ लोग जो,

मानवता से ज्यादा, मानते हैं धर्म

उन्हें दिखता हो शायद ईसा और मूसा के खून में फर्क

वे बनाना चाहते हैं

कट्टर धर्मांध दुनियां

बस एक ही धर्म की

 

मोहल्ले की सफेद दीवारों पर

रातों – रात उभर आये तल्ख नारे,

देख लगता है,

ये शख्स हमारे बीच भी हैं

 

मैं यह सब अनुभव कर,

हूं छटपटाता हुआ,

उसी पक्षी सा आक्रांत,

जिसे देवदत्त ने

मार गिराया था अपने

तीक्ष्ण बाणों से

 

सिद्धार्थ हो कहां

आओ बचाओ

इस तड़पते विश्व को

जो मिसाइलों

की नोक पर

लगे

परमाणु बमों से भयाक्रांत

है सहमी सी

 

मेरी यह लम्बी कविता,

युद्धोन्मादियों को समझा पाने को,

बहुत छोटी है

काश, होती मेरे पास

प्यार की ऐसी पैट्रियाड मिसाइल,

जो, ध्वस्त कर सकती,

नफरत की स्कड मिसाइलें,

लोगों के दिलों में बनने से पहले ही.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता – युद्ध के विरुद्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – कविता – युद्ध के विरुद्ध ??

कल्पना कीजिए,

आपकी निवासी इमारत

के सामने वाले मैदान में,

आसमान से एकाएक

टूटा और फिर फूटा हो

बम का कोई गोला,

भीषण आवाज़ से

फटने की हद तक

दहल गये हों

कान के परदे,

मैदान में खड़ा

बरगद का

विशाल पेड़

अकस्मात

लुप्त हो गया हो

डालियों पर बसे

घरौंदों के साथ,

नथुनों में हवा की जगह

घुस रही हो बारूदी गंध,

काली पड़ चुकी

मटियाली धरती

भय से समा रही हो

अपनी ही कोख में,

एकाध काले ठूँठ

दिख रहे हों अब भी

किसी योद्धा की

ख़ाक हो चुकी लाश की तरह,

अफरा-तफरी का माहौल हो,

घर, संपत्ति, ज़मीन के

सारे झगड़े भूलकर

बेतहाशा भाग रहा हो आदमी

अपने परिवार के साथ

किसी सुरक्षित

शरणस्थली की तलाश में,

आदमी की

फैल चुकी आँखों में

उतर आई हो

अपनी जान और

अपने घर की औरतों की

देह बचाने की चिंता,

बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष

सबके नाम की

एक-एक गोली लिये

अट्टाहस करता विनाश

सामने खड़ा हो,

भविष्य मर चुका हो,

वर्तमान बचाने का

संघर्ष चल रहा हो,

ऐसे समय में

चैनलों पर युद्ध के

विद्रूप दृश्य

देखना बंद कीजिए,

खुद को झिंझोड़िए,

संघर्ष के रक्तहीन

विकल्पों पर

अनुसंधान कीजिए,

स्वयं को पात्र बनाकर

युद्ध की विभीषिका को

समझने-समझाने  का यह

मनोवैज्ञानिक अभ्यास है,

मनुष्यता को बचाये

रखने का यह प्रयास है!

 

©  संजय भारद्वाज

अपराह्न 4:29 बजे, 7 मार्च 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆  ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 100 ☆ गीत – हँसता जीवन ही बचपन ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है आपका एक गीत  “हँसता जीवन ही बचपन”.

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 100 ☆

☆ गीत – हँसता जीवन ही बचपन ☆ 

भोला बचपन कोमल मन है

प्यार तुम्हारा सदा अमर है।

मुझको तो बस ऐसा लगता

तू पूरा ही गाँव  – नगर है।।

 

रहें असीमित आशाएँ भी

जो मुझको नवजीवन देतीं।

जीवन का भी अर्थ यही है

मुश्किल में नैया को खेतीं।

 

हँसता जीवन ही बचपन है

दूर सदा पर मन से डर है।

भोला बचपन कोमल मन है

प्यार तुम्हारा सदा अमर है।।

 

पल में रूठा , पल में मनता

घर – आँगन में करे उजारा।

राग, द्वेष, नफरत कब जागे

इससे तो यह तम भी हारा।

 

बचपन तू तो खिला सुमन है

पंछी – सा उड़ता फर – फर है।

भोला बचपन कोमल मन है

प्यार तुम्हारा सदा अमर है।।

 

बचपन का नाती है नाना

खेल करे यह खूब सुहाए।

सदा समर्पित प्यार तुम्हीं पर

तुम ही सबका मिलन कराए।

 

झरने, नदियाँ तुम ही सब हो

जो बहता निर्झर – निर्झर है।

भोला बचपन कोमल मन है

प्यार तुम्हारा सदा अमर है।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #109 – बाल कविता – चूसेगा पप्पू  ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर बाल कविता – “चूसेगा पप्पू।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 109 ☆

☆ बाल कविता – चूसेगा पप्पू ☆ 

कच्चे आम हरेभरे है.

पक्के हैं पीलेपीले।

दस भरे रसीले है

लगते जैसे गीलेगीले ।।

 

इस को मूनिया खाएगी

रस बना, पी आएगी।

चूसेगा पप्पू राजा

पिंकी पी इतराएगी ।।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (76-79)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (76 – 79) ॥ ☆

सर्गः-13

अनुज सहित श्रीराम फिर जब पुष्पक-आसीन।

लगे कि बुध गुरू साथ है चंद्र मेघ-आसीन।।76।।

 

की सीता पद वन्दना, कर जिनका उद्धार।

राम लाये वाराहवत् जल से धरा उबार।।77अ।।

 

अथवा जैसे चंद्रमा को वर्षो के बाद।

करता मेघों से शरद है बिलकुल आजाद।।77ब।।

 

सीता माँ के चरण छू भरत जटा निष्पाद।

हुये परस्पर और भी पावन अपने आप।।78।।

 

जन समूह संचरित था जिन आगे थे राम।

पहुँचे उपवन अयोध्या पट-प्रासाद ललाम।।79।।

 

तेरहवां सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#123 ☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – “दोहे ” ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ “दोहे ”)

☆  तन्मय साहित्य  #123 ☆

☆ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – “दोहे ” ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मात-पिता की लाड़ली, बच्चों का है प्यार।

संबल है पति की सखी, सुखी करे संसार।।

 

लक्ष्मी बन  घर में भरे, मंदिर जैसे  रंग।

होता है श्री हीन नर, बिन नारी के संग।।

 

इम्तिहान हर डगर पर, मातृशक्ति के नाम।

विनत भाव सेवा करे,  हो करके निष्काम।।

 

घर में गृहणी बन रहे,  बाहर है  तलवार।

जब जैसी बहती हवा, वैसी उसकी धार।।

 

नारी को समझें नहीं, कोई भी कमजोर।

नारी  के ही  हाथ में, पूरे  जग  की डोर।।

 

जीवन के  हर  क्षेत्र  में, है  विशिष्ट  अवदान।

मातृशक्ति नित गढ़ रही, नित नूतन प्रतिमान।।

 

करुणा  ममता  प्रेम का, मधुरिम सा  संचार।

निर्मल जल कल-कल बहे, बहता ऐसा प्यार।।

 

पर्वोत्सव व्रत-धर्म का,  पारम्परिक प्रवाह।

नारी के बल पर टिकी, ये सत्पथ की राह।।

 

सहनशक्ति धरती सदृश, ममतामय आकाश।

चंदा   सी   शीतलमना,   सूर्योदयी   प्रकाश।।

 

दीपक ने आश्रय दिया, खुश है बाती – तेल।

मेल-जोल  सद्भाव का,  उज्वलतम यह मेल।।

 

संस्कृति की संवाहिका, संस्कारों की खान।

प्रवहमान  गंगा  सदृश, फूलों  सी  मुस्कान।।

 

लछमी  जैसी  चंचला, शारद  सी  गंभीर।

दुर्गा सी तेजस्विनी, शीतल जल की झीर।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 16 ☆ गीत – चुनाव की छांव में ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक गीत  “चुनाव की छांव में”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 16 ✒️

?  गीत – चुनाव की छांव में —  डॉ. सलमा जमाल ?

झूठ फरेब का खेल रचें ,

चुनाव की छांव में ।

लुटेरे आए हैं ,आए हैं ,

मेरे गांव में ।।

 

जहां-जहां चुनाव है ,

वहां नहीं है करोना ,

घड़ियाली आंसू है ,

झूठ का ओढ़ना बिछौना ,

एक – एक रैली में हज़ार की,

भीड़ लगी है दांव में ।

लुटेरे ———————–।।

 

धरती पुत्रों के प्राण निछावर,

हुए अम्बर तले ,

टस से मस सरकार हुई ना ,

कितनों के घर जले ,

अभिव्यक्ति पर ताले वरना ,

जेल की छांव में ।

लुटेरे ———————–।।

 

संपत्ति बेचें जो देश की ,

कोई ना रोकने वाला ,

मंदिर – मस्जिद – गुरुद्वारा ,

लगा है चर्च पे ताला ,

राजनीति भवसागर जनता ,

काग़ज़ की छांव में ।

लुटेरे ———————–।।

 

ऊपरवाला कैसे करें ,

कलयुग में रखवाली ,

स्वयं की बगिया को उजाड़े ,

जब बाग़ का माली ,

कर्मों का फ़ल मिलेगा ,

“सलमा” फंसेंगे बलाओं में ।

लुटेरे ———————–।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (71 – 75) ॥ ☆

सर्गः-13

राम पुनः मिले सचिव से जो थे वृद्ध महान।

बढ़ी श्मश्रु से जोदिखे बट के वृक्ष समान।।71।।

 

ये सुग्रीव विपद सखा, ये विभीषण रणधीर।

ऐसा कहते राम के भरत हो उठे अधीर।।72अ।।

 

लक्ष्मण से पहले मिले उनसे सादर धाय।

विनत वंदना की पुनः उनको-गले लगाय।।72ब।।

 

फिर लक्ष्मण से यों मिले छाती से लपटाय।

इंद्रजीत की शक्ति कृत दाग न फिर दुख जाय।।73।।

 

पाकर आज्ञा राम की धर कर मनुज शरीर।

वानर-पति चढ़े गजों पै जो मद-वर्षी धीर।।74।।

 

हुये विभीषण भी अचर उन रथ पै आसीन।

रामाज्ञा पा जिनसे थे मायारथ भी हीन।।75।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 24 – सजल – जल बिन करते आचमन… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “जल बिन करते आचमन… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 24 – दोहाश्रित सजल – जल बिन करते आचमन… 

समांत- ऊल

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 24

 

मेघ कहीं दिखते नहीं, राह गए हैं भूल।

अंतर्मन में चुभ रहे, बेमौसम के शूल।।

 

उल्टी पुरवा बह रही, हरियाली वीरान।

प्यासी धरती है गगन, बिन जल है निर्मूल।।

 

मानसून को देखकर, मानव है बेचैन।

हरे-भरे सब वृक्ष भी, सूख गए जड़-मूल।।

 

कृषक देखता मेघ को, रोपें कैसे धान।

खेतों में सूखा पड़ा, है उड़ती बस धूल।।

 

अखबारों में है छपा, उत्तर दक्षिण बाढ़।

मध्य प्रांत सूखा पड़ा, मौसम है प्रतिकूल।।

 

जल बिन करते आचमन, अंदर श्रद्धा भक्ति,

भादों में जन्माष्टमी, रहे कृष्ण हैं झूल।।

    

सभी बाग उजड़े पड़े, देख सभी हैरान ।

पूजन अर्चन के लिए, नहीं मिलें अब फूल।।

 

वर्षा ऋतु का आगमन, जल की नहीं फुहार ।

पूजन शिव परिवार का, हो वर्षा अनुकूल।।

 

इन्द्र देव से प्रार्थना, भेजो काले मेघ।

कृपा दृष्टि चहुँ ओर हो, यही मंत्र है मूल।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

10 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 13 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (66 – 70) ॥ ☆

सर्गः-13

गुरू वशिष्ठ को अग्रकर मंत्रिसेन ले साथ।

वल्कल धारे चल भरत अर्ध्य लिये हैं हाथ।।66।।

 

पिता की दी हुई राज्य श्री का भी न कर उपभोग।

वर्षों रहते साथ में भरत ने साधा जोग।।67।।

 

ऐसा कहते राम की मनवांछा अनुसार।

नभ से उतरा यान सब विस्मित रहे निहार।।68।।

 

मार्ग विभीषण प्रदर्शित सुग्रीव का कर थाम।

स्फटिक सीढ़ी में चरण रख नीचे उतरे राम।।69।।

 

गुरू वश्रिष्ठ की वन्दना कर स्वागत स्वीकार।

सजल नयन भ्राता भरत को किया अंगीकार।।70।।

               

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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