(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’(धनराशि ढाई लाख सहित)। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।
आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 113 ☆
☆ विश्व पर्यावरण दिवस विशेष – मैं रोज ही पृथ्वी दिवस मनाता हूँ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆
मैं रोज ही पृथ्वी दिवस मनाता हूँ
मुझे मिलते हैं षटरस
नए पौधे रोपने से
सींचने से
उन्हें बढ़ता हुआ देखकर
हँसता हूँ, मुस्कराता हूँ
मैं घर की छत पर भी पौधे लगाता हूँ
और पार्कों आदि में भी
बाँटता हूँ उन्हें
जो पृथ्वी से करते हैं प्यार
मैं रोपता हूँ नन्हे बीज
बनाता हूँ पौध
पृथ्वी सजाने सँवारने के लिए
पर विज्ञापन नहीं देता अखबारों में
मैं कई तरह के बीजों को
डाल देता हूँ
रेल की पटरियों के किनारे
ताकि कोई बीज बनकर
हरियाली कर सके
मेरे घर के पास भी
साक्ष्य के लिए उगे हैं
बहुत सारे अरंडी के पौधे
जो हरियाली करते हैं
हर मौसम में
मेरे यहाँ आते हैं नित्य ही
सैकड़ों गौरैयाँ, बुलबुल, कौए, फाख्ता, कबूतर,
तोते, नन्ही चिड़िया, बन्दर और गिलहरियां आदि
पक्षियों के कई हैं घोंसले
मेरे घर में
गौरैयाँ तो देती रहती हैं
ऋतुनुसार बच्चे
चींचीं करते स्वर और माँ का चोंच से दाना खिलाना
देता है बहुत सुकून
मेरा घर रहता है पूरे दिन गुलजार
सोचता हूँ मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ
जो आते हैं मेरे घर नित्य मेहमान
आजकल तो कोयल भी आ जाती हैं कई एक
मैं सुनता हूँ सबके मधुर – मधुर गीत – संगीत
ऐसा लगता है मुझे कि
यही हैं मेरे आज और कल हैं
मिलती है अपार खुशी
भूल जाता हूँ सब गम, चिंताएँ
और तनाव
मैं बचाता हूँ नित्य ही पानी
हर तरह से
यहाँ तक कि आरओ का खराब पानी भी
जो आता है पोंछें के, शौचालय या कपड़े धोने के काम
मैं करता हूँ बिजली की बचत रोज ही
पंखे या कूलर से चलाता हूँ काम
नहीं लगवाया मैंने एसी
एक तो बिजली का खर्च ज्यादा
दूसरे उससे निकलीं गैसें कर रही हैं वायु में घोर प्रदूषण
नहीं ही ली कार
चला इसी तरह संस्कार
यही है मेरी प्रकृति और संस्कृति
मैं बिजली और पानी की बचत कराता हूँ अपने आसपास भी
समरसेबल के बहते पानी को
बंद कराकर
लोगों को याद नहीं रहता कि
अमूल्य पानी और बिजली की क्या कीमत है
मुझे नहीं लगती झिझक कि कोई क्या कहेगा
बहता हुआ पानी कहीं भी है दिखता
मैं तुरत बंद करता हूँ गली, रेलवे स्टेशन आदि की टोंटियां
(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त । 15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीयएवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।
आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।
आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “वृक्ष की पुकार…”।
साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 29
🌿 विश्व पर्यावरण दिवस विशेष 🦚 वृक्ष की पुकार… — डॉ. सलमा जमाल
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(श्री श्याम संकत जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। स्वान्त: सुखाय कविता, ललित निबंध, व्यंग एवं बाल साहित्य में लेखन। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं व आकाशवाणी पर प्रसारण/प्रकाशन। रेखांकन व फोटोग्राफी में रुचि। आज प्रस्तुत है पर्यावरण दिवस पर आपकी एक विचारणीय रचना ‘आगे से…’।)
☆ कविता ☆ पर्यावरण दिवस विशेष – आगे से… ☆ श्री श्याम संकत ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – एक लहर कह रही कूल से…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 91 – गीत – एक लहर कह रही कूल से…
एक लहर कह रही कूल से बँधे हुए हैं क्यों दुकूल से।
एक किरन आ मन के द्वारे अभिलाषा की अलग सँवारे
संभव कहां अपरिचित रह ना बार-बार जब नाम पुकारे।
सोच रहा हूं केवल इतना, क्या मन मिलता कभी भूल से।
इसी तरह के वचन तुम्हारे अर्थ खोजते खोजन हारे
मौन मुग्ध सा अवश हुआ मैं शब्दवेध की शक्ति बिसारे।
सोच रहा हूं केवल इतना, प्रश्न किया क्या कभी फूल से