हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#141 ☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…1 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध…1”)

☆  तन्मय साहित्य # 141 ☆

☆ तन्मय दोहे – गिरगिट जैसे सिद्ध… 1 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जब से मेरे गाँव में, पहुँचे शहरी भाव।

भाई-चारे  प्रेम के, बुझने लगे अलाव।।

 

भूखों  का  मेला  लगा,  तरह – तरह  की  भूख।

जर,जमीन,यश, जिस्म की, जैसा जिसका रूख।।

 

खादी तन पर डालकर, बगुले  बनते हंस।

रच प्रपंच मिल कर रहे, लोकतंत्र विध्वंस।।

 

धर्म-पंथ के नाम पर, अलग-अलग है सोच

लोकतंत्र  लँगड़ा रहा, पड़ी  पाँव में  मोच।

 

वेतन-भत्ते सदन में, सह -सम्मति से पास।

दाई – जच्चा  वे स्वयं, फिर क्यों रहें उदास।।

 

जिनके ज्यादा अंक है, अपराधों में खास।

है उनके ही   हाथ में,  प्रजातंत्र  की  रास।।

 

इक्के-दुक्के रह गए, खादी वाले लोग।

सूट-बूट के भाग्य में, राजनीति संयोग।।

 

हाकिम का आदेश है, नहीं मचाएं शोर।

मिट जाएगा तम स्वयं, हो जाएगी भोर।।

 

रोज खबर अखबार के, प्रथम पृष्ठ पर खास।

द्विगुणित गति से हो रहा, चारों ओर बिकास।।

 

रावण को यह ज्ञात था, निश्चित मृत्यु विधान।

किंतु  छोड़ पाया  नहीं, सत्ता  का  अभिमान।।

 

बारिश में अमरत्व का, गाते झींगुर गान।

है जीवन इक रात का, हो इससे अंजान।।

 

तू-तू ,मैं-मैं  की हवा, संसद क्रीड़ागार।

भूखे – नंगों का यहाँ, शब्दों से  शृंगार।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चित्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि –  चित्र ??

वर्णित शब्दों के आधार पर

चित्रकार उकेर देते हैं

अनदेखे चेहरों के चित्र..,

पढ़ता हूँ कविताएँ,

पढ़ता हूँ कहानियाँ,

अनगिनत रचनाकारों के

मूल चित्र संग्रहित हैं

मेरे मन के संग्रहालय में..!

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 5:57 बजे, 13.5.21)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 33 ☆ मत कहना अनाथ… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत  “मत कहना अनाथ… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 33 ✒️

? मत कहना अनाथ… — डॉ. सलमा जमाल ?

मैं हूँ 

‘अनाथ’

उठता है

प्रश्न??

क्या होता है अनाथ?

 

उसे कहते होंगे

शायद —

जिसके ना हो

कोई साथ  ।।

 

सबके हैं

माता-पिता

भाई-बहन

परिवार

“परंतु”

‘मेरे’?

सभी के हैं नाम

परंतु मेरा?

होटल में,

हरामी, कमीना

गैराज में

साला, कुत्ता, चोर

अनाथ और आवारा

बंगले में,

रामू, छोटू

कलमुंहा,

पेट्रोल पंप में

वीभत्स ताने

अबे गधे, नाकारा,

और

ना जाने क्या-क्या???

 

बाल मन की

समझ से परे

असंख्य

घृणित संबोधन,

जिन्हें याद कर

ज़ख्म हो जाते हैं हरे ।।

 

सभी कहते हैं

प्रत्येक औरत

मां है – बहन है

“परंतु “

उनके लिए मैं

एक अनाथ ।।

 

मां कहने पर

किसी ने उसे

बेटा नहीं कहा,

किसी

अबला को

जब कहा बहन

तो उसे

दुत्कार मिली ।।

 

इसके आगे

रिश्ते पनप नहीं पाए

गंदी – गंदी

गालियां व

फटकार मिली

फिर मैं

बन गया गुंडा

जैसे अनाम रिश्तों

इंसानों व

समाज द्वारा

निर्मित किया गया था ।।

 

दो जून की

रोटी की खातिर

जेल में पड़ा हूं,

पढ़ने की लालसा

सहेजे

उठाया था

किसी का बस्ता

और आज

यौवनावस्था में

मृत्यु शैया

पर पड़ा हूं ।।

 

अंतिम

इच्छा है मेरी

जब भी मिले

कोई अनाथ

तो उसे

मत दुत्कारना,

 मत मारना,

मत गाली देना

उसे अपना लेना

माता-पिता बनकर

भाई-बहन बनकर

उसे देना प्यार,

समाज के ठेकेदारों

मत कहना उसे

“अनाथ”

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 42 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 42 – मनोज के दोहे

कजरी

झूला सावन में लगें, गले मिलें मनमीत।

कजरी की धुन में सभी,गातीं महिला गीत।

देवी की आराधना, कजरी-सावन-गीत।

नारी करतीं प्रार्थना, जीवन-पथ में जीत।।

तीज

सावन-भादों माह में, पड़ें तीज-त्यौहार।

संसाधन कैसे जुटें, महँगाई की मार।।

भाद्र माह कृष्ण पक्ष को, आती तृतिया तीज ।

महिला निर्जल वृत करें, दीर्घ आयु ताबीज ।।

चूड़ी

लाड़ो चूड़ी पहन कर, भर माथे सिंदूर।

चली पराए देश में, मात-पिता मजबूर।।

शृंगारित परिधान में, चूड़ी ही अनमोल।

रंग बिरंगी चूड़ियाँ, खनकातीं कुछ बोल।।

मेहँदी

सपनों की डोली सजा, आई पति के पास।

हाथों में रच-मेहँदी, पिया मिलन की आस।।

लालरँग मेहँदी रची, आकर्षित सब लोग।

प्रियतम के मनभावनी, मिलते अनुपम भोग।।

झूला

सावन की प्यारी घटा, लुभा रही चितचोर।

झूला झूलें चल सखी, हरियाली चहुँ ओर।।

सावन में झूला सजें, कृष्ण रहे हैं झूल।

भारत में जन्माष्टमी, मना रहे अनुकूल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आर-पार ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि –  आर-पार ??

नदी का पाट चौड़ा है,

नदी में पानी गहरा है,

नदी में भंवर उठते हैं,

नदी में मगरमच्छ बसते हैं,

नदी में झंझावात है,

नदी में आघात है,

नदी सतत आशंका है,

नदी मृत्यु का घंटा है,

नदी से डरो..!

 

नदी में पानी है,

नदी की कहानी है,

नदी में सृष्टि है,

नदी एक दृष्टि है,

नदी में प्रवाह है,

नदी में उछाल है,

नदी अखंड संभावना है,

नदी का निमंत्रण स्वीकार करो,

नदी को पार करो…!

© संजय भारद्वाज

प्रातः 5:05 20 जून 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 97 – गीत – तुम्हीं बताओ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – तुम्हीं बताओ…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 97 – गीत – तुम्हीं बताओ✍

तुम्हीं बताओ जीवन घन

कैसे बीतेगा    जीवन।

 

तुम थीं कोई बात नहीं थी

 उजियारी थी, रात नहीं थी

तुम्हीं सम्हाँले थीं जीवन को

मेरी तो औकात नहीं थी।

अंधाधुंध चल पड़ी आँधियाँ

उजड़ गया साधों का उपवन

तुम ही बताओ जीवन धन

कैसे बीतेगा जीवन।

 

तुम थीं तो थी पूरनमासी

नहीं दुख था नहीं उदासी

चहल-पहल थी पूरे घर में

खुशियाँ दिन चौखट की दासी

उन्मन उन्मन रहता है मन

जाने कैसे लग गया गहन

तुम ही बताओ जीवन धन

कैसे बीतेगा जीवन।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 99 – “वे अव्यक्त हुये जाते हैं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “वे अव्यक्त हुये जाते हैं…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 99 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “वे अव्यक्त हुये जाते हैं”|| ☆

दिखते पिता इस तरह

बैठे आगे कमरे में

कभी किसीके लहजे

में तो घर के चेहरे में

 

टँगी गंध है रही खूँटियों

पर कुछ जिस्मानी

उनके कपड़ों से आती

है जानी पहचानी

 

वहीं हृदय के घाव रहे

बेशक बिन मरहम के

विवश पड़ा हो कोई

चौपाया ज्यों कचरे में

 

धुँधली हुई निगाह पाँव

में आ बैठा कम्पन

जिससे पता चला

करता बाकी है स्पंदन

 

कभी बोलते तो ऐसा

सब लोग सुना करते

कोई शख्स कुँये से

बोले काफी गहरे में

 

छडी पास में बुझी बुझी

सी दिखती कोने में

वे अव्यक्त हुये जाते

हैं जीवित होने में

 

पर कराहना उनका

जैसे बतला जाता है

कोई कंकड़ कहीं

गिरा हो पानी ठहरे में

 

रहते थे चुप चाप घरेलू इन

सम्बन्धो पर

चले गये बिन कहे चार

लोगों के कन्धों पर

 

समझ नपाये उन्हें  कभी

जाने अनजाने ही

उलझे रहे निदान खोजते

इसी ककहरे मे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-07-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैमाना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पैमाना ??

कुछ को वेदना नचाती है,

कुछ से वेदना रचाती है,

अब इतना रच चुके हो;

कितना और रचोगे,

तनिक

संकेत कर सको तो करो..,

मेरा मौन,

मेरी वेदना का पैमाना है,

किंचित

माप सको तो माप लो..!

© संजय भारद्वाज

9:53 बजे प्रात:, 30.11.21

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 90 ☆ # पल पल बदलती दुनिया में …  # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पल पल बदलती दुनिया में…  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 90 ☆

☆ # पल पल बदलती दुनिया में… # ☆ 

पल पल बदलती दुनिया में

ना जाने क्या कल होगा ?

फुलों से भरा  होगा दामन

या कांटों का कोई छल होगा ?

 

नभ में गरज रहे बादल

धरा फैलाये है आंचल

तपती देह की प्यास बुझाने

अंबर से टपकेगा वर्षा का जल

क्या खूब होगी बारिश या

तरसाता यह बादल होगा ?

 

काली काली घटाएं छाई है

वसुधा से मिलने आई है

तड़प देख कर अचला की

निर्मल जल लाई है

प्रणय में हिमखंड टूटेंगे या

अवरोध पवन का प्रबल होगा ?

 

बरसात में साथी छूट रहे हैं

रिश्ते नाते सब टूट रहे हैं

धोखे हैं कदम कदम पर

दोस्त बनकर लूट रहे हैं 

गले मिलों तो जरा संभलकर

ना जाने कौन कातिल होगा ?

 

पल पल बदलती दुनिया में

ना जाने क्या कल होगा ?

फूलों से भरा होगा दामन

या कांटों का कोई छल होगा ? /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 101 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 101 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 101) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 101 ?

? वो हूँ मैं… ?

गुज़ार दिये होंगे तुमने,

कई दिन, महीने और साल

काट ना सकोगे

जो एक रात, वो हूँ मैं…,

की होगी गुफ्तगू तुमने

कई दफा कई लोगों से,

दिल पर जो लगेगी

जो एक बात, वो हूँ मैं…,

भीड़ में जब तन्हा,

खुद को पाओगे तुम,

अपनेपन का एहसास कराये,

जो साथ, वो हूँ मैं…,

बिताये होंगे तुमने तमाम

हसीन पल सबके साथ,

भुला नहीं पाओगे,

जो एक याद, वो हूँ मैं…,

☆☆☆☆☆

? That is Me Only…! ?

Countless days, months

and the years,

You might have spent,

But the dreadful night

That you couldn’t pass

I am that sleepless night only…

Many a time, on

myriad occasions,

You may have conversed

with umpteen people

But that hurtful comment

you’ll always remember

That remark is me only…

When you find yourself

lonely in the crowd,

Surely you’ll find me

as someone

who makes you feel

loved again thoroughly,

That comforting companion is me only…

You may have spent

umpteen pleasurable

moments with many people

But the one, that can

never be erased

I’m that lasting memory only…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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