हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 154 ☆ बाल कविता – आर्यन और अनवी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 154 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और अनवी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

आर्यन जी नाना हैं कहते

       अनवी कहती हैं जी नानू।

दोनों ही नाना के प्यारे

      प्राण छिड़कते उन पर नानू।।

 

दोनों करते खेल निराले

         भागें – दौड़ें इधर – उधर को।

निश्छल, सरल, सहज है जीवन

        खुशियों से भर देते घर को।।

        

अनवी जी टीचर बन जातीं

   आर्यन जी हैं पढ़नेवाले।

ट्वन्टी तक गिनती वे बोलें

     ए,बी,सी,डी अ ,आ आले।।

 

कभी बनाते घर गत्ते के

        कभी बने वे स्वयं डॉक्टर।

कभी सफर करते हैं बस में

        कभी करें एरोप्लेन पर।।

 

बचपन के भी सपन सलोने

        बचपन तो लगता चिड़ियाघर।

अनवी भोली, आर्यन नटखट

      वे कभी झगड़ते खूब मगर।।

 © डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #176 – तन्मय के दोहे – हो यथार्थ पर ध्यान… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है तन्मय के दोहे – हो यथार्थ पर ध्यान… )

☆  तन्मय साहित्य  #176 ☆

☆ तन्मय के दोहे – हो यथार्थ पर ध्यान… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

यश-अपयश के बीच में, बहती जीवन धार।

निश्छल मन करता रहे,  जीव मात्र से प्यार।।

अति वर्जित हर क्षेत्र में, अति का नशा विचित्र।

अति से  दुर्गति ही  सदा,  छिटके सभी सुमित्र।।

कब बैठे सुख चैन से, नहीं  किसी को याद।

कल के सुख की चाह में, आज हुआ बर्बाद।।

फुर्सत मिलती है कहाँ, सबके मुख यह बोल।

बीते  समय  प्रमाद में,  कहाँ समय का मोल।।

फैल रही चारों तरफ, यश की मुदित बयार।

पेड़ सहेगा क्यों भला, म्लान पुष्प का भार।।

ज्यों-ज्यों खिलता पुष्प है, महके रस स्वच्छंद।

रसिक भ्रमर  मोहित  हुए,  पीने को  मकरंद।।

कागज के सँग कलम का, है अलिखित अनुबंध।

प्रीत  पगी   स्याही  मिले,  महके   शब्द   सुगंध।।

                    

आदर्शों की  बात अब,  करना है  बेकार।

छल-छद्मों से घिर गए, हैं आचार-विचार।।

सजा मिले सच बोलते, झूठों की जय कार।

हवा  भाँपकर  जो चले, उसका  बेड़ा  पार।।

जाति धर्म औ’ पंथ के, भेदभाव  को  त्याग।

समता भावों में छिपा, जीवन-सुख अनुराग।।

चिह्न  समय की  रेत पर, बनते मिटते मौन।

पल-पल परिवर्तन करे, वह अबूझ है कौन।।

कौन भरे रस नारियल, सरस संतरे, आम।

एक बीज हो सौ गुना, है ये किसका काम।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 02 ☆ समय है भारी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समय है भारी…।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 02 ☆ समय है भारी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

बहुत भीतर तक

समंदर हुआ दूषित

मछलियों पर समय है भारी।

 

किनारों पर बैठकर

रोती लहर है

ज्वार भाटे से डरा

सारा शहर है

 

हवाओं के नम

हुए चेहरे प्रकंपित

झलकती हर ओर लाचारी।

 

मनुजता की लाश पर

गिद्ध मँडराते

तटों पर की साजिशें

जलयान थर्राते

 

यात्रा के पाँव

ठहरे से अचंभित

मंजिलों के ठाँव सरकारी।

 

गुंबदों वाले महल

हैं नाम जिनके

नदी मुड़ती है वहीं

हर घाट जिनके

 

धार है मँझधार

जल सारा प्रदूषित

नाव ढोती व्यथाएँ सारी।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ महावीर जयंती विशेष – “हे ! महावीर” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ महावीर जयंती विशेष – “हे ! महावीर” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

( महावीर जयंती 4 अप्रैल)

महावीर कल्याणक तुमने दिया अहिंसा-गीत।

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

राजपाठ तुमने सब त्यागा,करने जग कल्याण।

हिंसा और को मारा, अधरम को नित वाण।। 

जितीन्द्रिय तुम नीति-प्रणेता,तुम करुणा की जीत।

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

कठिन साधना तुमने साधी, तुम पाया था ज्ञान। 

नवल चेतना,उजियारे से, किया पाप-अवसान।। 

तुमने चोखा साधक बनकर,दिया हमें नवनीत। 

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

नीति, रीति का मार्ग दिखाया, सत्य सार बतलाया।

मानवता के तु हो प्रहरी, रूप हमें है भाया।। 

त्यागी तुम-सा और न देखा,खोजा बहुत अतीत। 

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

 

भटक रहा था मनुज निरंतर, तुमने उसको साधा, 

महावीर तुम,इंद्रिय-विजेता, परे भोग की बाधा।। 

कर्म सिखाया,सदाचार भी,तुम हो भावातीत।

तुम हो मानवता के वाहक,सच्चाई के मीत।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – khare.sharadnarayan@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जल संरक्षण… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ जल संरक्षण… ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

जल की कीमत सब करें, जल ही जीवन आज ।

बूँद-बूँद संचित जहाँ, हुए पूर्ण सब काज ।।1!!

जल जीवनदायक सदा, औषधि है गुणखान ।

जल से ही तो कल सजे, पुलकित हृदय सुजान ।।2!!

एक बूँद अनमोल है, करिए इसका भान ।

जीवन शुभ मंगल बना, करते रोग निदान ।।3 !!

जीव तृप्ति साँसें अमर, बन संचित अभिज्ञान ।

जल से पृथ्वी पर रहे, हर जीवन सुखमान ।।4!!

बसुंधरा शृंगार कर, करती जग कल्याण ।

तृप्त सुधा मन का अमृत, जीव जंतु दे त्राण ।।5!!

चक्र पूर्ण कर जिंदगी, करता नीर निर्वाह ।

श्रम कण बन बरसे श्रमिक, पूरी हो हर चाह ।।6!!

जल विहीन जग जब रहे, त्राहि-त्राहि हो प्राण ।

बिन जल के होते विकल, क्रंदन छिदते वाण ।।7!!

जल संरक्षण सब करें, जल बिन हो मृतप्राय ।

इसको दूषित मत करो, खोजें नित्य उपाय ।।8!!

जल जीवन आधार है, यौवन दे संसार ।

मनुज अमृत बनकर प्रदा, कुंदन सुरभित धार ।।9!!

स्वच्छ नीर अनिवार्यता, जीव जगत वरदान ।

पाकर इसको संतुष्ट हो, करे रोग अवसान ।।10!!

☆ 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

(दोहा कलश (जिसमें विविध प्रकार के दोहा व विधान है) के लिए मो 8435157848 पर संपर्क कर सकते हैं ) 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना “दिखती कलियुग मार…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 72 – दिखती कलियुग मार… ☆

दिखती कलियुग मार, जींमते दोने में।

पड़े वृद्ध माँ-बाप, तिरस्कृत कोने में।।

 

सपन-सुनहरे देख, खपा दी उमर सभी,

निकल न पाया सार, व्यर्थ अब रोने में।

 

त्रेतायुग की याद, दिलों में है बसती ,

श्रवण हुए गुमराह, लगे अब सोने में।

 

आँखें खोलो जगो, समय की बलिहारी,

कृपा करो भगवान, पाप को धोने में ।  

 

संस्कृति है बदनाम, करें पुण्य-कमाई,

मत जग करो प्रलाप, स्वजन के होने में।

 

श्रम से होती सुखद,  निरोगी मन-काया,

सुखद मिलेगी फसल, बीज के बोने में।

 

सेवा-मेवा-श्रेष्ठ, समझना हम सबको,

पड़ती चाबुक मार, समय को खोने में।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रसव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – प्रसव ??

उपज रही हैं

रचनाएँ ही रचनाएँ;

किसी गर्भवती की कोख में

आश्चर्यजनक ढंग से

पनपती अनेक धड़कनों की तरह,

पुंसवन, अंकुरण, मंथन, सृजन,

गर्भ में पनपता आकार;

कागज़ पर उतरता शब्दों का संसार,

जन्म देने की भावना;

जन्म देने से दूर होती वेदना,

इस अनुभूति को

समानुभूति ही समझ सकती है,

विज्ञान झूठ कहता है कि,

केवल स्त्रियाँ ही माँ बन सकती हैं..!

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से।)

© संजय भारद्वाज 

21/8/2013, रात्रि 8:43 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी ।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 133 – प्रार्थना के स्वर… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी एक भावप्रवण रचना– प्रार्थना के स्वर…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 133 – प्रार्थना के स्वर …  ✍

भाव संपदा हो घनी, हो चरणों की चाह।

शब्द ब्रह्म आराधना, घटे नहीं उत्साह।

करुण, वीर ,वात्सल्य रस ,श्रंगारिक रसराज।

रस की हो परिपूर्णता, माने रसिक समाज।।

सत शिव -सुंदर काव्य ही,मौलिक रचे रचाव।

नयन प्रतीक्षा में निरत ,हार्दिक रहे प्रभाव।।

रस ही जीवन प्राण है, सृष्टि नहीं रसहीन ।

पृथ्वी का मतलब रसा, सृष्टि स्वयं रसलीन ।।

प्रथम वर्ण उपचार से, रचता रंग विधान।

प्रेम रंग में जो रंगी, उसको खोजे प्राण।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 132 – “सहन नही कर पायी ऑंसू…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  सहन नही कर पायी ऑंसू)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 132 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

सहन नही कर पायी ऑंसू… ☆

मरे जिस समय, संस्कार को

ढोते हुये पिता

पर मुखाग्नि न दे पाये बेटे,

थी सजी चिता

 

बेटी जो थी व्याही अपने

मैके के ही पास

रोती आई मन में ले अंतिम

दर्शन की आस

 

वही पिता को दे मुखाग्नि

पंचो ने नियत किया

पता चला कितनी क्या पुत्री

होती समर्पिता

 

और बाप के अस्थिकलश को

ले पहुंचीं गंगा

इस समाज के दीन धरम को

करके अधनंगा

 

जार जार रोती थी पुत्री

अपने बापू को

सहन नही कर पायी ऑंसू

सुरसरि की सिकता

 

जब त्रियोदशी भी करली

तब नालायक बेटे

पहुंचें गाँव स्वांग को भरते

किस्मत के हेटे

 

इधर एक हरकारा मरघट से

आकर बोला –

“उन लकड़ी के पैसे दे दो ,

जिन से जली चिता “

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

29-03-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वाचाल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – वाचाल ??

दोनों बनाते-बढ़ाते रहे

साउंडप्रूफ दीवारें अपने बीच,

नटखट बालक-सा वाचाल मौन;

कूदता-फांदता रहा;

शोर मचाता रहा,

दीवार के दोनों ओर;

उन दोनों के बीच..!

© संजय भारद्वाज 

11.28 बजे, 19.1.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी ।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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