ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ प्रिय भाई और मित्र अभिमन्यु शितोले जी  – अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

☆ जब तक चाहें आपका ☆

🙏💐 प्रिय भाई और मित्र अभिमन्यु शितोले जी  – अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏

उफ़…! भाई अभिमन्यु, यह कोई उम्र थी जाने की। अभिमन्यु शितोले का असमय जाना, नवभारत टाइम्स के राजनीतिक विषयों के सम्पादक का जाना, एक सच्चे और निर्भीक पत्रकार का जाना, मेरे एक बहुत अच्छे मित्र का जाना है। हम जब मिलते, अधिक से अधिक देर तक साथ रहने का प्रयास करते। दोनों सिद्धांतप्रिय, अधिकांश मसलों पर दोनों एकमत। महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी में हमने साथ काम किया। मित्रता का जन्म भी यहीं हुआ और परवान भी यहीं चढ़ी। अकादमी की बैठक के लिए मुंबई जाते और लौटते समय प्राय: मैं कोई आलेख या कविता लिखता। अभिमन्यु न केवल उसके पहले पाठकों में होते बल्कि सदा अपनी प्रतिक्रिया भी देते। अकादमी के लिए मैंने अटल जी की कविताओं पर आधारित एक कार्यक्रम रवींद्र नाट्य मंदिर में किया था। उसका धन्यवाद प्रस्ताव अभिमन्यु ने किया। उन्होंने कहा कि आज तक संजय को लेखक के रूप में जानता था, आज पहली बार निर्देशक, सूत्रधार संजय से मिला और बस उसका ही हो गया। यह पहला मौका था जब अभिमन्यु ने मेरे नाम के साथ ‘जी’ लगाने की औपचारिकता उतार फेंकी थी। वह दिल से गले मिले। तब से कभी संजय कहते, कभी संजय भैया।

बाद में जब कभी मैं मुंबई होता, हम यथासंभव मिलते। गत वर्ष 10 और 11 जनवरी को एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ स्टडीज़ की बैठक थी। 10 जनवरी की रात मिलना तय हुआ। उन्होंने कहा कि रात का भोजन साथ करेंगे। किसी कारणवश उस दिन हम नहीं मिल पाए। अगले दिन शाम 5 की ट्रेन से मैं लौटने वाला था। वे डोंबिवली से जल्दी निकले। प्रेस क्लब में बैठकर हमने लम्बी चर्चा की। गत वर्ष किसी विवाह में बेटे के साथ पुणे आए थे। तय हुआ कि विवाह में भोजन करने के बजाय हम शहर के एक रेस्टोरेंट में साथ में भोजन करेंगे, पर इस बार भी साथ में भोजन नहीं हो पाया। हम रेल्वे स्टेशन पर मिले। लगभग डेढ़-दो घंटे साथ थे। बहुत सारी बातें कीं। घर-परिवार, नौकरी-कारोबार, बाल-बच्चे, चढ़ाव-उतार और भी जाने क्या-क्या! उनकी चिंताओं को पहली बार उन्होंने अभिव्यक्त किया। स्टेशन के सामने एक चालू किस्म की होटल में हमने चाय पी। संभवत: उनसे वह अंतिम प्रत्यक्ष संवाद था।

अपनी-अपनी रोटी सेंकने के इस दौर में अभिमन्यु ने लेखनी से सच के पक्ष में सदैव  आवाज़ उठाई। एक विषय पर तो नामोल्लेख के साथ मेरे पक्ष का उन्होंने समर्थन किया। बात मेरे या आपके पक्ष की नहीं, बात सच के समर्थन की थी।

भाई अभिमन्यु! कल ही किसी संदर्भ में याद किया था। यह भी कोई आयु थी जाने की? अपनी बीमारी के बारे में बताया होता तो कभी मिल ही लेते।

श्री संजय भारद्वाज

अकादमी के लिए मुंबई अप-डाउन करते हुए एक कविता लिखी थी। इसमें पौराणिक अभिमन्यु का संदर्भ था। इसे आज अभिमन्यु को ही श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित कर रहा हूँ।

मेरे इर्द-गिर्द

कुटिलता का चक्रव्यूह

आजीवन खड़ा रहा,

सच और हौसले

की तलवार लिए

मैं द्वार बेधता रहा,

कितने द्वार बाकी,

कितने खोल चुका,

क्या पता….,

जीतूँगा या

खेत रहूँगा

क्या पता….,

पर इतना

निश्चित है-

जब तक

मेरा श्वास रहेगा,

अभिमन्यु मेरे भीतर

वास करेगा..!

अंतिम बात, तुम्हारी डीपी की बायो थी, जब तक चाहें आपका… हम मित्रों की चाहत में तुम हमेशा थे, हमेशा रहोगे। हम तुम्हें हमेशा चाहेंगे यार!

ईश्वर, पुण्यात्मा को मोक्ष में स्थान दीजिएगा।

 

संजय भारद्वाज

अतिथि संपादक (ई-अभिव्यक्ति)

08 मार्च 2025 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ स्मृतिशेष डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ विशेष ☆ हेमन्त बावनकर ☆

💐 ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ स्मृतिशेष डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ विशेष ☆ हेमन्त बावनकर 💐

हेमन्त बावनकर

प्रिय मित्रों,

एक वर्ष के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि सुमित्र जी नहीं रहे। ऐसा लगता है कि उनसे कल ही तो बात हुई थी। किन्तु, मृत्यु तो अटल सत्य है जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। वे अपने स्वजनों को शारीरिक रूप से अवश्य छोड़ कर चले गए किन्तु, उनकी स्मृतियाँ सदैव उनकी पीढ़ी एवं वर्तमान पीढ़ी के मस्तिष्क में आजीवन रहेंगी।

सुमित्र जी से पहली मुलाक़ात मेरे स्व. पिताश्री टी डी बावनकर जी (सुमित्र जी के मित्र) के साथ 1982 की एक शाम को उनके निवास पर हुई। उसके बाद एक ऐसा संबंध बना जो आजीवन चलता रहेगा। उनके द्वारा प्रकाशित मेरी प्रथम कहानी “चुभता हुआ सत्य’ नवीन दुनिया के पाक्षिक तरंग के प्रवेशांक में प्रकाशित हुई थी। उनके पत्र एवं तरंग की प्रति मेरे पास अभी तक सुरक्षित है।

मेरी उपरोक्त स्मृति तो मात्र एक प्रतीकात्मक उदाहरण है, उनसे जुडने वाले अनेकों मित्रों का जिन्हें उन्होने आजीवन अपना आत्मीय स्नेह और मार्गदर्शन दिया है। ऐसी अनेक कहानियाँ और संस्मरण आपको संस्कारधानी के साहित्य जगत में ही नहीं अपितु सारे विश्व के कई मित्रों में मिलेगी।

ई-अभिव्यक्ति के प्रथम अंक के लिए उनके आशीष स्वरूप प्राप्त कविता उद्धृत कर रहा हूँ जो मुझे ई-अभिव्यक्ति के सम्पादन में सदैव सकारात्मक मार्गदर्शन देती रहती है।

संकेतों के सेतु पर

साधे काम तुरंत |

दीर्घवयी हो जयी हो

कर्मठ प्रिय हेमंत

काम तुम्हारा कठिन है

बहुत कठिन अभिव्यक्ति

बंद तिजोरी सा यहां

दिखता है हर व्यक्ति

मनोवृति हो निर्मला

प्रकटें निर्मल भाव

यदि शब्दों का असंयम

हो विपरीत प्रभाव ||

सजग नागरिक की तरह

जाहिर हो अभिव्यक्ति

सर्वोपरि है देशहित

बड़ा न कोई व्यक्ति|

स्थान – दिल्ली 15 /10/18

मित्र श्री संतोष नेमा जी ने हाल ही में ‘सुमित्र संस्मरण’ प्रकाशित किया है। जिसमें 60 से अधिक लोगों के संस्मरण प्रकाशित किए गए हैं। श्री नेमा जी के शब्दों में ही “साहित्य के गंभीर अध्येता, अद्भुत रचनात्मकता, माधुर्य व्यवहार के चलते उनके हजारों चाहने वाले हैं जिनके दिलों में राजकुमार की तरह राज करते हैं. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी श्रद्धांजलि सभा में भीड़ में उपस्थित हर एक आदमी अपनी भावांजलि देने के लिए आतुर था. जब मैंने यह देखा तब उसी क्षण मेरे मन में यह विचार आया की क्यों ना एक सुमित्र संस्मरण का प्रकाशन किया जाए जिसमें उनके प्रति सभी साहित्यकारों के संस्मरण एवं भाव समाहित किए जा सकें.”

सुमित्र जी के अनेकों स्वजनो के अनेकों संस्मरण हैं जो आजीवन उनकी याद दिलाते रहेंगे। उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर यह विशेष संस्करण भी मात्र एक प्रतीक ही है।

इस प्रयास में हम आपके संस्मरणों/विचारों को श्रद्धासुमन स्वरूप स्मृतिशेष डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी को समर्पित करते है।  

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर, पुणे 

वर्तमान में बेंगलुरु से 

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ गए वे लोग ? ☆ हेमन्त बावनकर ☆

💐 स्व. जयप्रकाश पाण्डेय 💐

☆ ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – कहाँ गए वे लोग ? ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

प्रिय मित्रों,

 वैसे तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्टता लेकर आता है और चुपचाप चला जाता है। फिर छोड़ जाता है वे स्मृतियाँ जो जीवन भर हमारे साथ चलती हैं। लगता है कि काश कुछ दिन और साथ चल सकता । किन्तु विधि का विधान तो है ही सबके लिए सामान, कोई कुछ पहले जायेगा कोई कुछ समय बाद। किन्तु, जय प्रकाश भाई आपसे यह उम्मीद नहीं थी कि इतने जल्दी साथ छोड़ देंगे। अभी कुछ ही दिन पूर्व नागपूर जाते समय आपसे लम्बी बात हुई थी जिसे मैं अब भी टेप की तरह रिवाइंड कर सुन सकता हूँ। और आज दुखद समाचार मिला कि आप हमें छोड़ कर चले गए। इस बीच न जाने कितने अपुष्ट समाचार मिलते रहे और हम सभी मित्र परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे कि कुछ चमत्कार हो जाये और हम सब को आपका पुनः साथ मिल जाए। 

कहाँ गए वे लोग ?

इस वर्ष (२०२४) के प्रारम्भ से ही जय प्रकाश जी के मन में चल रहा था कि एक ऐतिहासिक साप्ताहिक स्तम्भ “कहाँ गए वे लोग?” प्रारम्भ किया जाये जिसमें हम अपने आसपास की ऐसी महान हस्तियों की जानकारी प्रकाशित करें जो आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु, उन्होने देश के स्वतंत्रता संग्राम, साहित्यिक, सामाजिक या अन्य किसी क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किया है।  और २८ फरवरी २०२४ को इस श्रृंखला की पहली कड़ी में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की स्मृति में एक आलेख प्रकाशित कर इस श्रृंखला को प्रारम्भ किया। भाई जय प्रकाश जी की रुग्णावस्था में इस कड़ी को भाई प्रतुल श्रीवास्तव जी ने सतत जारी रखा। हमें यह कल्पना भी नहीं थी कि जिस श्रृंखला को उन्होने प्रारम्भ किया हमें उस श्रृंखला में उनकी स्मृतियों को भी जोड़ना पड़ेगा। इससे अधिक कष्टप्रद और दुखद क्षण हमारे लिए हो ही नहीं सकते। 

हम भाई जय प्रकाश जी और श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के साथ मिलकर सदैव नूतन और अभिनव प्रयोग की कल्पना कर उन्हें साकार करने का प्रयास करते रहते थे। इसके परिणाम स्वरूप हमने महात्मा गांधी जी के150वीं जयंती पर गांधी स्मृति विशेषांक, हरिशंकर परसाई जन्मशती विशेषांक, दीपावली विशेषांक जैसे विशेषांकों को प्रकाशित किया। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी के 85 वे जन्मदिवस पर “85 पर – साहित्य के कुंदन” का प्रकाशन उनके ही मस्तिष्क की उपज थी। ऐसे कई अभिनव प्रयोग अभी भी अधूरे हैं और कई अभिनव प्रयोग उनके मन में थे जो उनके साथ ही चले गए। 

व्यंग्यम और व्यंग्य पत्रिकाओं से उनका जुड़ाव 

व्यंग्यम संस्था तो जैसे उनके श्वास के साथ ही जुड़ी थी। ऐसी कोई चर्चा नहीं होती थी जिसमें व्यंग्यम, अट्टहास और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं की चर्चा न होती हो। व्यंग्यम के वरिष्ठ सदस्यों और व्यंग्यकार मित्रो के दुख का सहभागी हूँ।

व्यंग्य लोक द्वारा – “व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पाण्डेय स्मृति व्यंग्य सम्मान” की घोषणा 

श्री रामस्वरूप दीक्षित जी द्वारा प्राप्त सूचनानुसार व्यंग्य लोक द्वारा – “व्यंग्य लोक स्व. जयप्रकाश पाण्डेय स्मृति व्यंग्य सम्मान” की घोषणा की गई है। इस सम्मान में रु 5000 राशि प्रदान करने की घोषणा की गई है। साथ ही पहला सम्मान स्व. जयप्रकाश जी के गृहनगर जबलपुर में प्रदान किया जाएगा। यह एक प्रशंसनीय कदम है। 

डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी के अनुसार उन्होने सोशल मीडिया में 700 से अधिक मित्रों द्वारा अर्पित श्रद्धांजलियां और शोक संदेश देखे हैं जो उनके सौम्य व्यवहार और लोकप्रियता के प्रतीक हैं।  व्यंग्यम, अट्टहास, व्यंग्य लोक और अन्य पत्रिकाओं से जुड़े सभी वरिष्ठ साहित्यकारों और व्यंग्यकार मित्रो ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर इस विशेष अंक में भाई जय प्रकाश जी से जुड़ी हुई अपनी स्मृतियाँ और संक्षिप्त विचार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी, श्री प्रतुल श्रीवास्तव जी और श्री रमाकांत ताम्रकार जी के माध्यम से  प्रेषित किए।

इस प्रयास में हम आपके संस्मरणों/विचारों को श्रद्धासुमन स्वरूप भाई जय प्रकाश जी को समर्पित करते है।  

बस इतना ही।

हेमन्त बावनक, पुणे 

वर्तमान में बेंगलुरु से 

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ ई-अभिव्यक्ति के एक स्तम्भ भाई जय प्रकाश पाण्डेय जी अब स्मृतिशेष – अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि  ☆☆ हेमन्त बावनकर

प्रिय भाई और मित्र जय प्रकाश पाण्डेय जी 

💐🙏 अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏

प्रिय मित्रों,

 वैसे तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्टता लेकर आता है और चुपचाप चला जाता है। फिर छोड़ जाता है वे स्मृतियाँ जो जीवन भर हमारे साथ चलती हैं। लगता है कि काश कुछ दिन और साथ चल सकता । किन्तु विधि का विधान तो है ही सबके लिए सामान, कोई कुछ पहले जायेगा कोई कुछ समय बाद। किन्तु, जय प्रकाश भाई आपसे यह उम्मीद नहीं थी कि इतने जल्दी साथ छोड़ देंगे। अभी कुछ ही दिन पूर्व नागपूर जाते समय आपसे लम्बी बात हुई थी जिसे मैं अब भी टेप की तरह रिवाइंड कर सुन सकता हूँ। और आज दुखद समाचार मिला कि आप हमें छोड़ कर चले गए। इस बीच न जाने कितने अपुष्ट समाचार मिलते रहे और हम सभी मित्र परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे कि कुछ चमत्कार हो जाये और हम सब को आपका पुनः साथ मिल जाए। 

कहाँ गए वे लोग ?

इस वर्ष (२०२४) के प्रारम्भ से ही जय प्रकाश जी के मन में चल रहा था कि एक ऐतिहासिक साप्ताहिक स्तम्भ “कहाँ गए वे लोग?” प्रारम्भ किया जाये जिसमें हम अपने आसपास की ऐसी महान हस्तियों की जानकारी प्रकाशित करें जो आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु, उन्होने देश के स्वतंत्रता संग्राम, साहित्यिक, सामाजिक या अन्य किसी क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किया है।  और २८ फरवरी २०२४ को इस श्रृंखला की पहली कड़ी में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की स्मृति में एक आलेख प्रकाशित कर इस श्रृंखला को प्रारम्भ किया। भाई जय प्रकाश जी की रुग्णावस्था में इस कड़ी को भाई प्रतुल श्रीवास्तव जी ने सतत जारी रखा। हमें यह कल्पना भी नहीं थी कि जिस श्रृंखला को उन्होने प्रारम्भ किया हमें उस श्रृंखला में उनकी स्मृतियों को भी जोड़ना पड़ेगा। इससे अधिक कष्टप्रद और दुखद क्षण हमारे लिए हो ही नहीं सकते। 

हम भाई जय प्रकाश जी और श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के साथ मिलकर सदैव नूतन और अभिनव प्रयोग की कल्पना कर उन्हें साकार करने का प्रयास करते रहते थे। इसके परिणाम स्वरूप हमने महात्मा गांधी जी के150वीं जयंती पर गांधी स्मृति विशेषांक, हरिशंकर परसाई जन्मशती विशेषांक, दीपावली विशेषांक जैसे विशेषांकों को प्रकाशित किया। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी के 85 वे जन्मदिवस पर85 पर – साहित्य के कुंदन” का प्रकाशन उनके ही मस्तिष्क की उपज थी। ऐसे कई अभिनव प्रयोग अभी भी अधूरे हैं और कई अभिनव प्रयोग उनके मन में थे जो उनके साथ ही चले गए। 

व्यंग्यम और व्यंग्य पत्रिकाओं से उनका जुड़ाव 

व्यंग्यम संस्था तो जैसे उनके श्वास के साथ ही जुड़ी थी। ऐसी कोई चर्चा नहीं होती थी जिसमें व्यंग्यम, अट्टहास और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं की चर्चा न होती हो। व्यंग्यम के वरिष्ठ सदस्यों और व्यंग्यकार मित्रो के दुख का सहभागी हूँ।

व्यंग्यम, अट्टहास और अन्य पत्रिकाओं से जुड़े सभी वरिष्ठ साहित्यकारों और व्यंग्यकार मित्रो से मेरा विनम्र अनुरोध है कि कृपया आप भाई जय प्रकाश जी से जुड़ी हुई अपनी स्मृतियाँ और संक्षिप्त विचार adm.eabhivyakti@gmail.com या apniabhivyakti@gmail.com पर शीघ्रतिशीघ्र प्रेषित करने का कष्ट कीजिए। ई-अभिव्यक्ति का सोमवार ३० दिसंबर का अंक श्रद्धासुमन स्वरूप उन्हें समर्पित है।  

बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

२७ दिसंबर २०२४ 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ ई-अभिव्यक्ति के छह सफल वर्ष – उपलब्धियां और आपका स्नेह-प्रतिसाद ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆ ई-अभिव्यक्ति के छह सफल वर्ष – उपलब्धियां और आपका स्नेह-प्रतिसाद ☆ हेमन्त बावनकर ☆

प्रिय मित्रो,

समय पंख लगाकर कितनी तेजी से उड़ जाता है न। गणपति बाप्पा अपने साथ उत्सवों कि सौगात लेकर आए और हमारे जीवन में ज्ञान का दीपक प्रज्ज्वलित कर गए, जिसे हमें अगले वर्ष तक और आगे भी प्रज्वलित रखना है। हमने उनसे प्रार्थना जो की है “गणपती बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या”। दो माह होने जा रहे हैं और अभी भी हमें दीपावली विशेषांकों (हिन्दी और मराठी) से संबन्धित आपके उत्साहजनक और प्रेरणास्पद संदेश मिल रहे हैं। हमें कल्पना भी नहीं थी कि आप सभी का इतना स्नेह और प्रतिसाद मिलेगा। इस सफलता के लिए हम आपके इस आत्मीय स्नेह के लिए हृदय से आभारी हैं, कृतज्ञ हैं।

हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी भाषा में प्राप्त साहित्य को संकलित करते समय हमसे हमारे कुछ अतिप्रिय प्रबुद्ध लेखकों की रचनाएँ समय पूर्व प्राप्त होने के पश्चात भी त्रुटिवश प्रकाशित न हो सकीं इसके लिए हमें अत्यंत खेद है। इस मानवीय त्रुटि के लिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं।

इस पूरी प्रक्रिया में हमें पता भी नहीं चला कि हमने भारत में 2022, 2023 और 2024 में लगातार फ्लिप बुक फॉर्मेट में दीपावली विशेषांक प्रकाशित करने का इतिहास रच  दिया है। ई-अभिव्यक्ति एकमात्र समूह है जो भारत में फ्लिपबुक फॉर्मेट में 2022 से लगातार हिन्दी और मराठी भाषाओं में दीपावली विशेषांक प्रकाशित कर रहा है।

मुझे आप सभी से कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। गत माह 15 अक्तूबर 2024 को ई-अभिव्यक्ति ने अपने 6 सफल वर्ष पूर्ण किए और 15 अगस्त 2024 को ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ने अपने सफल 4 वर्ष पूर्ण किए। इसके साथ ही हमारी वेबसाइट पर विजिटर्स की संख्या 6,13,700+ हो गई है। इन पंक्तियों के लिखे जाते तक ई-अभिव्यक्ति में हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं में 25,250+ रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।

इसके अतिरिक्त हमने भारत की निम्नलिखित ब्लॉग डायरेक्ट्री में सम्माननीय स्थान पाया है:-

IndiaTopBlogs 2024, INIBLOGHUB और   मराठी ब्लॉग लिस्ट

सर्वोत्कृष्ट स्तरीय सकारात्मक साहित्य, उपरोक्त उपलब्धियां,आपका स्नेह और प्रतिसाद हमें सदैव नए साहित्यिक एवं तकनीकी प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। हमारे संपादक मण्डल के सभी सदस्य अपनी-अपनी सेवाओं से सेवानिवृत्त होकर माँ सरस्वती की सेवा में निःस्वार्थ और स्वांतः सुखाय सेवाभाव से सेवारत हैं। आपका आत्मीय स्नेह ही हमारा संबल है। 

इन सभी उपलब्धियों से ई-अभिव्यक्ति परिवार गौरवान्वित अनुभव करता है। हम आशा करते हैं कि- आप सभी का यह अपूर्व आत्मीय स्नेह एवं प्रतिसाद इसी प्रकार हमें मिलता रहेगा। 

आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ई-अभिव्यक्ति में प्रकाशित साहित्य को आत्मसात करें एवं अपने स्वजनों / मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें। 

एक बार पुनः आप सभी का हृदय से आभार।

सस्नेह

हेमन्त बावनकर

24 नवंबर 2024  

टीप – दिसंबर माह से ई-अभिव्यक्ति पाक्षिक अवकाश लेना चाहता है। अतः दिसंबर माह से प्रत्येक 14 एवं 28 तारीख को प्रकाशन को विराम देना चाहेंगे। कुछ अपरिहार्य कारणों से  28 नवंबर से 1 दिसंबर 2024 तक चार दिनों के लिए ई-अभिव्यक्ति के प्रकाशन में विराम दे रहे हैं। 2 दिसंबर से पुनः प्रकाशन प्रारम्भ होगा। आशा है आप सभी का सहयोग और स्नेह मिलेगा।  

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ संपादकीय ⇒ “पद्मविभूषण” – कै. रतन टाटा जी” – विनम्र आदरंजली ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर 

? – संपादकीय – ?

🙏🌹💐 “पद्मविभूषण” – कै. रतन टाटा जी” – विनम्र आदरंजली 💐🌹🙏

भारताच्या सर्वांगीण विकासामध्ये सातत्याने अत्यंत महत्वाचे आणि मोलाचे योगदान देणारे भारताचे सुपुत्र “पद्मविभूषण” माननीय कै. रतन टाटा यांचे काल दु:खद निधन झाले हे आपण सर्वजण जाणताच. राष्ट्रीयत्वावर खऱ्या अर्थाने श्रद्धा असणारे कै. रतन टाटा हे भारतीय उद्यम विश्वातले, कमालीची दूरदृष्टी असणारे अग्रणी होते. भारतातील कितीतरी महत्वाच्या उद्योगांचे ते जनक होते हे तर निर्विवाद सत्य आहे. त्यांनी देशाला औद्योगिक प्रगतीची फक्त दिशाच दाखवली असे नाही, तर त्या क्षेत्रात अधिकाधिक प्राविण्य मिळावे, देशाने विविध उद्योगांच्या क्षेत्रात बाकीच्या जगाबरोबर राहण्याच्या उद्दिष्टाने आधुनिकीकरणाचा ध्यास घ्यावा यासाठी ते सदैव प्रयत्नशील होते. भारतीय उद्योग क्षेत्राला  जागतिक पातळीवर एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त व्हावे हे त्यांचे स्वप्न होते आणि ते पूर्ण व्हावे यासाठी ते स्वतः सातत्याने  .. अगदी अखेरपर्यंत प्रयत्नशील होते. मिठासारख्या जीवनावश्यक गोष्टीच्या उत्पादनापासून ते देशाच्या व जनतेच्या महत्वाच्या गरजेच्या असलेल्या अनेक वस्तूंच्या उत्पादनापर्यंत आणि इतकेच नाही तर आंतरराष्ट्रीय हवाई प्रवास सेवेपर्यंत त्यांचे कार्यक्षेत्र विस्तारलेले आहे. उत्तम प्रतीच्या दर्जेदार अशा अनेक उत्पादनांचे उत्पादक अशी त्यांच्या ‘ टाटा उद्योग समूहा ‘ ची ख्याती जगभर पसरलेली आहे हे तर आपण जाणतोच.   

कै. रतन टाटा हे फक्त उद्योजकच नव्हते, तर समाजातील इतरांची दु:खे दूर करण्यासाठी सातत्याने झटणारे एक खरे समाजसेवक होते यात दुमत नक्कीच नसणार, आणि त्यांचे  वेगवेगळ्या स्वरूपातले व्यापक समाजकार्य हे त्याचेच द्योतक आहे. 

“HE WAS A MAN WITH A HEART OF GOLD” असे त्यांच्याविषयी सार्थपणे म्हटले जाते. 

आज ते ऐहिक दृष्ट्या हे जग सोडून गेले हे जरी सत्य असले,  तरी ते फक्त भारतातील अखिल उद्योग विश्वावरच …आपणा सर्व भारतीयांवरच नाही, तर संपूर्ण जगावर चिरकालासाठी आपला अमीट ठसा उमटवून गेले आहेत हेही तितकेच सत्य आहे. 

आज प्रत्येक भारतीय मन त्यांच्या निधनामुळे हळहळत आहे याची खात्री आहे. 

पद्मविभूषण कै. रतन नवल टाटा  या सर्वार्थाने महान आणि वंदनीय असणाऱ्या भारतीय उद्योजकांना आपल्या ई-अभिव्यक्ती समूहातर्फे मनःपूर्वक आदरांजली. 💐🌹🙏

आजचा हा अंक त्यांच्या पवित्र स्मृतींना अर्पण करत आहोत. 

 – हेमन्त बावनकर

संपादक मंडळ – ई–अभिव्यक्ती (मराठी विभाग)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा-कहानी # 119 –पुरखे, असहमत और चौबे जी ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरणात्मक कथा पुरखे, असहमत और चौबे जी

☆ कथा-कहानी # 119 –  पुरखे, असहमत और चौबे जी ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

बहुत दिनों के बाद असहमत की मुलाकात बाज़ार में चौबे जी से हुई, चौबे जी के चेहरे की चमक कह रही थी कि यजमानों के निमंत्रणों की बहार है और चौबे जी को रोजाना चांदी की चम्मच से रबड़ी चटाई जा रही है. वैसे अनुप्रास अलंकार तो चटनी की अनुशंसा करता है पर चौबे जी से सिर्फ अलंकार ज्वेलर्स ही कुछ अनुशंसा कर सकता है.असहमत के मन में भी श्रद्धा, 😊कपूर की भांति जाग गई. मौका और दस्तूर दोनों को बड़कुल होटल की तरफ ले गये और बैठकर असहमत ने ही ओपनिंग शाट से शुरुआत कर दी.

चौबे जी इस बार तो बढिया चल रहा है, कोरोना का डर यजमानों के दिलों से निकल चुका है तो अब आप उनको अच्छे से डरा सकते हो, कोई कांपटीशन नहीं है.

चौबे जी का मलाई से गुलाबी मुखारविंद हल्के गुस्से से लाल हो गया. धर्म की ध्वजा के वाहक व्यवहारकुशल थे तो बॉल वहीँ तक फेंक सकते थे जंहां से उठा सकें. तो असहमत को डपटते हुये बोले : अरे मूर्ख पापी, पहले ब्राह्मण को अपमानित करने के पाप का प्रायश्चित कर और दो प्लेट रबड़ी और दो प्लेट खोबे की जलेबी का आर्डर कर.

असहमत : मेरा रबडी और जलेबी खाने का मूड नहीं है चौबे जी, मै तो फलाहारी चाट का आनंद लेने आया था.

चौबे जी : नासमझ प्राणी, रबड़ी और जलेबी मेरे लिये है, पिछले साल का भी तो पेंडिंग पड़ा है जो तुझसे वसूल करना है.

असहमत : चौबे जी तुम हर साल का ये संपत्ति कर मुझसे क्यों वसूलते हो, मेरे पास तो संपत्ति भी नहीं है.

चौबे जी : ये संपत्ति टेक्स नहीं, पूर्वज टेक्स है क्योंकि पुरखे तो सबके होते हैं और जब तक ये होते रहेंगे, खानपान का पक्ष हमारे पक्ष के हिसाब से ही चलेगा.

असहमत : पर मेरे तो पिताजी, दादाजी सब अभी इसी लोक में हैं और मैं तो घर से उनके झन्नाटेदार झापड़ खाकर ही आ रहा हूं, मेरे गाल देखिये, आपसे कम लाल नहीं है वजह भले ही अलग अलग है.

चौबेजी : नादान बालक, पुरखों की चेन बड़ी लंबी होती है जो हमारे चैन का स्त्रोत बनी है. परदादा परदादी, परम परदादा आदि आदि लगाते जाओ और समय की सुइयों को पीछे ले जाते जाओ. धन की चिंता मत कर असहमत, धन तो यहीं रह जायेगा पर ब्राह्मण का मिष्ठान्न भक्षण के बाद निकला आशीर्वाद तुझे पापों से मुक्त करेगा. ये आशीर्वाद तेरे पूर्वज तुझे दक्षिणा से संतुष्ट दक्षिणमुखी ब्राह्मण के माध्यम से ही दे पायेंगे.

असहमत बहुत सोच में पड़ गया कि पिताजी और दादाजी को तो उसकी पिटाई करने या पीठ ठोंकने में किसी ब्राह्मण रूपी माध्यम की जरूरत नहीं पड़ती.

उसने आखिर चौबे जी से पूछ ही लिया : चौबे जी, हम तो पुनर्जन्म को मानते हैं, शरीर तो पंचतत्व में मिल गया और आत्मा को अगर मोक्ष नहीं मिला तो फिर से नये शरीर को प्राप्त कर उसके अनुसार कर्म करने लगती है तो फिर आपके माध्यम से जो आवक जावक होती है वो किस cloud में स्टोर होती है. सिस्टम संस्पेंस का बेलेंस तो बढता ही जा रहा होगा और चित्रगुप्तजी परेशान होंगे आउटस्टैंडिंग एंट्रीज़ से.

चौबे जी का पाला सामान्यतः नॉन आई.टी.यजमानों से पड़ता था तो असहमत की आधी बात तो सर के ऊपर से चली गई पर यजमानों के लक्षण से दक्षिणा का अनुमान लगाने की उनकी प्रतिभा ने अनुमान लगा लिया कि असहमत के तिलों में तेल नहीं बल्कि तर्कशक्ति रुपी चुडैल ने कब्जा जमा लिया है. तो उन्होंने रबड़ी ओर जलेबी खाने के बाद भी अपने उसी मुखारविंद से असहमत को श्राप भी दिया कि ऐ नास्तिक मनुष्य तू तो नरक ही जायेगा.

असहमत : तथास्तु चौबे जी, अगर वहां भी मेरे जैसे लोग हुये तो परमानंद तो वहीं मिलेगा और कम से कम चौबेजी जैसे चंदू के चाचा को नरक के चांदनी चौक में चांदी की चम्मच से रबड़ी तो नहीं चटानी पड़ेगी.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ स्वतन्त्रता दिवस 🇮🇳 एवं ई-अभिव्यक्ति (मराठी) के चौथे जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆ स्वतन्त्रता दिवस 🇮🇳 एवं ई-अभिव्यक्ति (मराठी) के चौथे जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ☆ हेमन्त बावनकर ☆

प्रिय मित्रो,

ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध लेखकगण तथा पाठकगण के आत्मीय स्नेह के लिए हृदय से आभार।

इस वर्ष अक्तूबर २०२४ में आपकी प्रिय वैबसाइट के सफल ६ वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं एवं आज १५ अगस्त २०२४ को ई-अभिव्यक्ति (मराठी) अपने सफल ४ वर्ष पूर्ण करने जा रही है।   

यह हमारे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि हमारे प्रबुद्ध लेखकगण विभिन्न प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो रही हैं एवं पुरस्कृत भी हो रही हैं।  

ई-अभिव्यक्ति (मराठी) आज मराठी साहित्य में अपना विशेष स्थान बना चुका है। इस विशिष्ट उपलब्धि के लिए हम वरिष्ठ मराठी साहित्यकार एवं ई-अभिव्यक्ति मराठी की मुख्य संपादिका सौ.उज्ज्वला केळकर जी के मार्गदर्शन एवं उनके संपादक मण्डल के सदस्यों श्री सुहास रघुनाथ पंडित, सौ. मंजुषा मुळे एवं सौ. गौरी गाडेकर  जी के हृदय से आभारी हैं। 

आज मैं मराठी साहित्य की यात्रा को प्रारम्भ करने में योगदान के लिए मराठी के कई सशक्त हस्ताक्षरों को नहीं भूल सकता। स्व दीपक करंदीकर जी, महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे ने इस यात्रा में पहला कदम बढ़ाने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई जिसके कारण कविराज विजय यशवंत सातपुते , सुश्री प्रभा सोनावणे, सुजीत कदम, सुश्री ज्योति हसबनीस एवं कई सुप्रसिद्ध वरिष्ठ लेखकों को जोड़ने में अपना सहयोग प्रदान किया। इस क्रम में आप ई-अभिव्यक्ति में  4 जुलाई 2019 को प्रकाशित कविराज विजय यशवंत सातपुते जी का पहला अतिथि संपादकीय इस लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं 👉 ई-अभिव्यक्ति: संवाद-35 – कविराज विजय यशवंत सातपुते (सोशल मिडिया चा यशस्वी वापर …. अभिव्यक्ती ठरली अग्रेसर!)

हम यह जानकारी आपसे साझा करने में अत्यंत गर्व का अनुभव कर रहे हैं कि हमारे संपादक मण्डल के सदस्य भी राष्ट्रीय एवं अंतर राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। इसमें प्रमुख हैं – 

  • माध्यम साहित्यिक संस्थान, लखनऊ एवं युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी को वाग्धारा सम्मान उनके गृह जनपद में जाकर देने की घोषणा की गई।
  • विश्व वाणी संस्थान की ओर से श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव को उनके नाटक जलनाद पर राष्ट्रीय अलंकरण घोषित किया गया है। उन्हें 20 अगस्त को यह सम्मान जबलपुर में प्रदान किया जाएगा।
  • ई-अभिव्यक्ति (अँग्रेजी) के संपादक एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को प्रतिष्ठित ग्लोबल राइटर्स एकेडमी द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय  सम्मान से सम्मानित किया गया है। साथ ही उनके द्वारा विश्वप्रसिद्ध कवि बायरन की कविता का हिन्दी अनुवाद का पाठ कवि बायरन के जन्म स्थल पर आयोजित २००वीं जयंती पर किया गया।  

इन पंक्तियों के लिखे जाते तक 23,710 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 5,91,900 से अधिक विजिटर्स आपकी प्रिय वैबसाइट www.e-abhivyakti.com पर विजिट कर चुके हैं।

इन सभी उपलब्धियों से ई-अभिव्यक्ति परिवार गौरवान्वित अनुभव करता है। आप सभी का यह अपूर्व आत्मीय स्नेह एवं प्रतिसाद इसी प्रकार हमें मिलता रहेगा। 

आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ई-अभिव्यक्ति में प्रकाशित साहित्य को आत्मसात करें एवं अपने मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें। 

आपके ही अनुरोध पर हम शीघ्र ही आपकी प्रतिक्रियाएँ “पाठक की कलम से…” के अंतर्गत प्रकाशित करना प्रारम्भ कर रहे हैं। आप अपनी प्रतिक्रियाएँ adm.eabhivyakti@gmail.com पर प्रेषित कर सकते हैं। आपके विचारों एवं सुझावों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।   

एक बार पुनः आप सभी का हृदय से आभार।

आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकमनाएं 🇮🇳

सस्नेह

हेमन्त बावनकर

बाम्बेर्ग (जर्मनी)   

15 अगस्त 2024  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ “ई-अभिव्यक्ति ऑनलाइन साहित्य-मंचाचा चौथा वर्धापन दिन – शुभेच्छा”☆ संपादक मंडळ- ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? – संपादकीय – ?

💐 आज दि. १५ ऑगस्ट .. आपल्या ई-अभिव्यक्ति ऑनलाइन साहित्य-मंचाचा चौथा वर्धापन दिन 💐

दि. १५ ऑगस्ट २०२० रोजी निव्वळ ‘ साहित्य-सेवा ‘ करण्याच्या उद्देशाने हा मंच कार्यरत झाला. अनेकजण आपल्या विविध विषयांवरील लिखाणामधून, कवितांमधून चांगल्या प्रकारे व्यक्त होत असतात आणि त्यांच्या हातून नकळत साहित्यनिर्मिती होत असते. असे साहित्य अनेक वाचकांपर्यंत सहजपणे आणि थेटपणे पोहोचावे यासाठी एक उत्तम मंच उपलब्ध व्हावा, हे या मंचाचे उद्दिष्ट होते आणि आहे. 

आज हे सांगतांना आम्हाला अतिशय आनंद होतो आहे की या चारच वर्षात दोनशेहूनही अधिक लेखक / कवी त्यांचे साहित्य या मंचाच्या माध्यमातून असंख्य वाचकांपर्यंत पोहोचवू शकत आहेत. आणि आपल्या या ब्लॉगला अंदाजे सव्वापाच लाखांहूनही जास्त वाचक नियमित भेट देत असतात. आजच्या या वर्धापनदिनी आपण सर्व लेखक-लेखिका, व कवी-कवयित्री यांचे आम्ही मनःपूर्वक अभिनंदन करतो, आणि त्यांचे साहित्य असेच सदैव बहरत राहो अशा हार्दिक शुभेच्छा देतो. या मंचाला यापुढेही आपणा सर्वांचे असेच उत्स्फूर्त सहकार्य राहील याची खात्री आहे. 

💐 ई-अभिव्यक्ति ऑनलाइन साहित्य-मंचाच्या चौथ्या वर्धापन दिनानिमित्त सर्वांना हार्दिक शुभेच्छा.💐

सौ.  उज्ज्वला केळकर

श्री सुहास रघुनाथ पंडित, सौ. मंजुषा मुळे, सौ. गौरी गाडेकर

संपादक मंडळ – ई–अभिव्यक्ती (मराठी विभाग)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ संपादक की कलम से …. शुक्रिया 2023 ☆ श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆

ई-अभिव्यक्ति -संवाद

प्रिय मित्रो,

यह ई-अभिव्यक्ति परिवार ( ई- अभिव्यक्ति – हिन्दी/मराठी/अंग्रेजी) के परिश्रम  एवं आपके भरपूर प्रतिसाद तथा स्नेह का फल है जो इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आपकी अपनी वेबसाइट पर 5,43,755+ विजिटर्स अब तक विजिट कर चुके हैं।

? संपादक की कलम से …. शुक्रिया 2023  ? श्री जयप्रकाश पाण्डेय  ?

शुक्रिया उन लोगों का,

जो हमसे प्यार करते है..

क्योंकि

उन लोगों ने हमारा दिल,

बड़ा कर दिया..

 

शुक्रिया उन लोगों का,

जो हमारे लिए परेशान हुए..

क्योंकि

वो हमारा बहुत ख्याल रखते है..

    

शुक्रिया उन लोगों का,

जो हमारी जिंदगी में शामिल हुए,

और हमें ऐसा बना दिया,

जैसा हमने सोचा भी नही था..

जय प्रकाश पाण्डेय (संपादक – ई-अभिव्यक्ति – हिन्दी)

pandeyjaiprakash221@gmail.com

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…

दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ हमें हमारे जीवन और कर्म को नई दिशा प्रदान करती है।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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