सूचना/Information ☆ निवेदन ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर- सम्पादिका – ई-अभिव्यक्ति (मराठी)  ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

☆ निवेदन ☆

ई- अभिव्यक्ति साईटवरील साहित्य आता वेगळ्या स्वरूपात दिले जाणार आहे. मराठी, हिंदी,  इंग्रजी साहित्य आता स्वतंत्रपणे लावलं जाईल. त्यानुसार आराखड्यातही थोडा बदल केला जाणार आहे.

१. कवितेचा उत्सव

२. जीवनरंग – यात लघुतम कथा येतील.

३. विविधा – यात स्फुट/ललित/वैचारिक/प्रासंगिक/व्यक्तिचित्रणपर /विडंबनपर लेखन

४. मनमंजुषेतून अविस्मरणीय/वाचनीय आठवण – अनुभव

५. क्षण सृजनाचे – एखादी कथा, कविता कशी सुचली . कवितेबद्दल असेल, तर कविताही द्यावी. कथा, लेख असेल, तर सूत्र द्यावे.

६. इंद्रधनुष्य – काही संग्राह्य वाचनीय माहिती..

वरील मराठी विभागांसाठी गद्य लेखनाचे स्वागत आहे. लेखन उत्तम, दर्जेदार असावे. लेखन ३५०-४०० शब्दांपर्यंत केलेले असावे.

 

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

सम्पादिका – ई- अभिव्यक्ति (मराठी)

Email: [email protected]

 

विशेष 

e -abhivykti आता मराठी विभाग स्वतंत्रपणे घेऊन येत आहे. याच्या या नव्या स्वरूपाविषयी वाचकांनी आपली मतं , विचार प्रतिक्रिया कळवाव्या. स्वरूप व लेखन यावरील प्रतिक्रिया शाब्दिक स्वरूपात स्वागतार्ह. इमोजीस नकोत.

स्नेहांकित ,

उज्वला केळकर , सुहास पंडित

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ “मन्थन” की ऑनलाइन अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी आयोजित ☆ – प्रस्तुति श्री संतोष नेमा “संतोष”

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ मन्थन की ऑनलाइन अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी आयोजित  ☆

24 मई 2020 को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मन्थन” की अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी जो कि कोरोना योद्धाओं के सम्मान में ज़ूम एप्प पर सायं 3 बजे से श्री विजय नेमा अनुज की अध्यक्षता श्री सूरज राय सूरज जी के मुख्य आथित्य में सोल्लास सम्प्पन हुई। गोष्ठी में डॉ सलमा जमाल, बंगलोर से श्रीमती मधु सक्सेना, इंदौर से स्मिता माथुर, बरेली से अदीबा रहमान, मनोज शुक्ल, श्री राजेन्द्र जैन रतन, सतीष जैन नवल, सिवनी से कविता नेमा, श्री सलिल तिवारी और श्री संतोष नेमा “संतोष”ने एक से बढ़कर एक रचनाएँ सुनाई कार्यक्रम का प्रारम्भ श्रीमती स्मिता माथुर द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ. गोष्ठी का बखूबी संचालन श्री सतीष जैन नवल एवं आभार प्रदर्शन सन्तोष नेमा “संतोष द्वारा किया गया.

ये पंक्तियां खूब सराही गई

भूख पेट में दबा कर,चलता नँगे पांव

राजनीति की तपन में,कहाँ मिलेगी छाँव

श्री मनोज शुक्ल जी की

प्रियवर मुझे न दो आमंत्रण।

कोरोना का हुआ आक्रमण।

तेरा हो या मेरा जीवन

हो विषाणु पर पूर्ण नियंत्रण

श्री सतीष नवल जी  

हार बांहों का जैसे कैद खाना हो गया

चोरनी सा दिल जैसे थाना हो गया

 

प्रस्तुति –  श्री संतोष नेमा “संतोष, अध्यक्ष , मंथन, जबालपुर म प्र

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ विश्ववाणी हिंदी संस्थान –  २०  वां  दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान लघुकथा पर्व आयोजित  ☆

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ विश्ववाणी हिंदी संस्थान –  २०  वां  दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान लघुकथा पर्व आयोजित  ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

 

जबलपुर, २३-५-२०२०। विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के  २० वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान लघुकथा पर्व में देश के विविध राज्यों के २५ लघुकथाकारों ने सहभागिता की। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान की मुखिया समर्पित समाजसेवी, से. नि. प्राध्यापक आशा रिछारिया तथा पाहुना लघुकथा आंदोलन की शिखर हस्ताक्षर कांता रॉय भोपाल के स्वागतोपरान्त इंजी. उदयभानु तिवारी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।  कोकिलकंठी गायिका मीनाक्षी शर्मा ‘तारिका’ ने आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ द्वारा रचित हिंदी महिमा के दोहों की प्रभावी प्रस्तुति की। विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने मनुष्य के जन्म के पूर्व ही कथा के उद्भव का संकेत देते हुए महाभारत के अभिमन्यु प्रसंग को उठाया। उन्होंने शिशु कथा, बाल कथा, किशोर कथा, पर्व कथा, बोध कथा, लोक कथा, आदि को लघु कथा के विविध प्रकार निरूपित करते हुए मानकों के पिंजरे में रचनाधर्मिता को कैद कर कृत्रिम साहित्य सृजन को दिशाहीन बताया।

वरिष्ठ लघुकथाकार लक्ष्मी शर्मा ने ‘स्टोर रूम’ शीर्षक लघुकथा में वृद्धों को घरों से बाहर किये जाने की समस्या को उठाया। अर्चना मलैया की लघुकथा ‘बोलते पौधे’ में हरीतिमा के प्रति संवेदशीलता प्रदर्शित हुई। छाया त्रिवेदी की लघुकथा ‘पत्तल दोना और कोरोना’ में परिस्थितिजनित व्यवहारिकता को प्रस्तुत किया। संस्कृत, हिंदी और बुंदेली की विदुषी लेखिका डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने ‘कचौट’ लघुकथा में सामाजिक मर्यादा के नाम पर असंवेदनशील व्यवहार से जीवन भर टीसती कचौट को सामने लाती है और बदलती सामाजिक परिस्थितियों को स्वीकारने का संदेश देती है। ‘प्रश्नचिन्ह’ शीर्षक लघुकथा में डॉ. भावना मिश्र ने व्यक्तिगत हित को वरीयता देने और सामाजिक संबंधों की उपेक्षा से उपजी त्रासदी को शब्दित किया। प्रीती मिश्र  की लघुकथा ‘स्वच्छता’ शीर्षकानुरूप सन्देशवाही लघुकथा है। टीकमगढ़ के लघुकथाकार राजीव् नामदेव ‘राना लिघौरी’ ने ‘बिजनेस’ शीर्षक लघुकथा में भिखारी द्वारा चल करने और उसे उचित ठहरने की मानसिकता को उद्घाटित किया।

डॉ. मुकुल तिवारी ने ‘प्यासे पशु’ शीर्षक लघुकथा में व्यावहारिक बुद्धि के अभावऔर मीना भट्ट की लघुकथा ने जेबकतरी से  उत्पन्न त्रासदी को शब्द दिए। दतिया के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव ‘असीम’ ने लघुकथा ‘सोच’ में माँ के प्रति लापरवाह बेटे और बेटे के प्रति मोहान्ध माँ को चित्रित किया। इंजी. सुरेंद्र सिंह पवार की लघुकथा ‘नर्मदा मैया की जय विकास कार्यों के प्रति ग्रामीणों के अंध विरोध तथा उनसे लाभ मिलने पर स्वीकारने की मानसिकता को सामने लाती है। विश्वासघाती पति को दो पत्नियों द्वारा दंडित करने पर केंद्रित लघुकथा प्रस्तुत की भारती  नरेश पाराशर ने। ‘स्पेसवासी’ लघुकथा में छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ने लघुकथा ‘स्पेसवासी’ में पारिस्थितिक जटिलता को परिहास में लेकर जिंदादिली से जीने  एक संदेश देती है। इंजी अरुण भटनागर ने कोरोना त्रासदी की नीरसता को पौधों की प्रेम वार्ता के माध्यम से तोड़ते हुए जीवन को पूर्णता से जीन एक संदेश दिया। सपना सराफ की लघुकथा ‘प्रेमकथा’ चित्रपटीय नाटकीयता पूर्ण है। पानीपत से सम्मिलित हुई मंजरी शुक्ल ने ‘सोच’ शीर्षक लघुकथा  में औरों की खुशी में सम्मिलित होकर खुश होने का सुन्दर संदेश दिया। भिंड से आई लघुकथाकार मनोरमा जैन ‘पाखी’ ने छद्म शौक के पाखंड पर प्रहार करती लघुकथा प्रस्तुत की। नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर से  सुपरिचित लघुकथाकार रजनी शर्मा ने आदिवासी बोली हल्बी मिश्रित हिंदी में जीवन परिदृश्य प्रस्तुत करते हुए अणुदा लघुकथा  आदिवासियों और वनों के संबंध में बाधक बनते शासन-प्रशासन और विकास कार्यों से उपजी त्रासदी को उद्घाटित करती है। मीनाक्षी शर्मा ‘तारिका’ ने प्रथम लघुकथा प्रस्तुत करते हुए कल की चिंता छोड़कर आज का स्वागत करने का संदेश दिया। सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ने ‘सहोदर’ शीर्षक लघुकथा में घटनाओं के तानेबाने में छिपे संबंधों के कुहासे में सच को तलाशते किशोर की मानसिक समस्या, सवालों को उठाती है। कार्यक्रम की मुखिया से. नि. प्राध्यापिका आशा रिछारिया की लघुकथा ‘असल धर्म’ में कोरोना त्रासदी से भूखे मजदूरों मजदूरों की मदद देने का प्रेरक संदेश देती है। विश्ववाणी हिंदी संसथान के संयोजक-संचालक आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ने लघुकथा मोहन भोग में रोजगार गंवा चुके मजदूरों के पलायन और भुखमरी की समस्या को उठाते हुए उन्हें भोजन करने को भगवन को चढ़ाये मोहन भोग की तरह बताया। दमोह की लघुकथाकार बबीता चौबे ‘शक्ति’ ने अपनी लघुकथा ‘तुम्हारी साथी’लघुकथा में पंचेन्द्रियों से संवाद के माध्यम से नारी विश्वास का संकेतन किया गया। दिल्ली की सफल लघुकथाकार सुषमा शैली की लघुकथा ‘बाल मन’ में आर्थिक अभाव के बावजूद एक बच्चे के मन में दूसरे बच्चे के प्रति उपजी संवेदना उभर कर सामने आई।

अध्यक्षीय संबोधन में  श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता आशा रिछारिया जी  ने विविध भाषा-बोलिओं के समन्वय को श्रेयस्कर बताते हुए लघुकथा में विविध प्रांतों के लघुकथाकारों के सम्मिलित होने पर हर्ष व्यक्त करते हुए कार्यक्रम को सफल निरूपित किया। मुख्य अतिथि कांता राय ने विषय प्रवर्तन में प्रस्तुत किये गए लघुकथा के विकास को सराहते हुए प्रत्येक लघुकथा पर अपनी राय व्यक्त की। अंत में इंजी अरुण भटनागर ने आभार प्रदर्शन किया।

 

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

Please share your Post !

Shares

एक महाभियान ☆ Campaign against Spitting ☆ थूकने और थूक लगाने की बुरी आदत छोड़ो अभियान ☆ श्री राकेश कुमार पालीवाल ☆

अभियान /Campaign

श्री राकेश कुमार पालीवाल

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  वर्तमान में महानिदेशक (आयकर), हैदराबाद के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें  ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं।)

(श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  के इस महाभियान में  ई- अभिव्यक्ति अपने सामाजिक दायित्व से विमुख नहीं हो सकता।  हम आपके ऐसे सभी मानवीय महाभियानों के सहभागी हैं।  )

 

☆ Campaign against Spitting ☆

☆ थूकने और थूक लगाने की बुरी आदत छोड़ो अभियान ☆

थूकने और थूक लगाने की बुरी आदत छोड़ो अभियान :

आपको याद होगा हम कई साल से घर, दफ्तर, बसों, बैंकों, बाजारों आदि में लोगों को समझाने का यह अभियान चला रहे हैं कि कहीं भी थूकने और कागजों और नोटों पर थूक लगाने से कई बीमारियां फैलती हैं।

आजकल कोरोना की महामारी भी थूक से फ़ैल रही है। कृपया इस संदेश को अपने घर, दफ्तर बैंको, बाजारों और जहां तक संभव हो वहां तक फैलाइए और बिना खर्च किए जनसेवा का आनन्द उठाइए।

  1. कहीं भी थूकने की आदत तुरंत छोड़ें।
  2. किताबों और फाइलों के पन्नों को पलटते हुए थूक मत लगाएं।
  3. नोटों को गिनते हुए थूक का प्रयोग मत करें।

जब आप नोटों या कागजों पर थूक लगाते हैं ध्यान रहे उसमें पहले भी किसी का थूक लगा होगा। आप उससे बीमारी ले भी रहे हैं और थूक लगाकर किसी को दे भी रहे हैं।

कृपया यह बुरी आदत खुद भी छोड़ें और आराम से समझाकर दूसरों से भी छुड़वाए।

☆ कृपया कार्यालयों/सार्वजनिक स्थलों के डस्टबिन को पीकदान न बनायें ☆

(आप सब से करबद्ध प्रार्थना है इस महाअभियान पर सबके साथ चलिए और  प्रण लीजिये – हम चलेंगे दो कदम)

 (मानवता के हित में  श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  एवं  डॉ निशा पचौरी जी के फेसबुक से पेज साभार)

 

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ प्रत्येक बच्चों के लिए ऑन लाइन  चित्रकला प्रतियोगिता (16 से 18 अप्रैल 2020) ☆ डॉ मिली भाटिया

सूचनाएँ/Information 

प्रेप कक्षा से 12 वीं कक्षा तक के बच्चों के लिए  ऑन लाइन  चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित 16 अप्रैल से 18 अप्रैल 2020 तक 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

पालक गण अपने बच्चों की रचनाएँ / कृतियां व्हाट्सप्प पर 9414940513 पर प्रेषित कर सकते हैं । 

संपर्क – डॉ मिली भाटिया, कोटा

9414940513

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/ Information ☆ आपकी अब तक की रिश्तों / संबंधों पर आधारित सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ आमंत्रित ☆

सूचनाएँ/ Information

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

आपकी अब तक की  रिश्तों / संबंधों पर आधारित सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ आमंत्रित

 

 यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। हम आपकी  मनोभावनाओं को  प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने के  लिए एक एक मंच प्रदान कर रहे हैं।

 सम्माननीय लेखक गण / प्रबुद्ध पाठक गण,

ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, जो हमें पृथ्वी के किसी भी कोने में बसे जाने अनजाने लोगों से आपस में अदृश्य सूत्रों से जोड़ देते हैं। अब मेरा और आपका ही रिश्ता ले लीजिये। आप में से कई लोगों से न तो मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूँ और न ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले हैं किन्तु, स्नेह का एक बंधन है जो हमें बांधे रखता है। आप में से कई मेरे अनुज/अनुजा, अग्रज/अग्रजा, मित्र, परम आदरणीय /आदरणीया, गुरुवर और मातृ पितृ  सदृश्य तक बन गए हैं। ये अदृश्य सम्बन्ध मुझमें ऊर्जा का संचार करते हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है और ईश्वर से कामना करता हूँ  कि मैं अपने इन सम्बन्धों को आजीवन निभाऊं। और आपसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि मेरे प्रति यह स्नेह ऐसा ही बना रहेगा।

मेरा और आपका सम्बन्ध मात्र रचनाओं के आदान प्रदान तक ही सीमित नहीं है, इस सम्बन्ध में हमारी संवेदनाएं भी जुडी हुई हैं। संभवतः संवेदनहीन सम्बन्ध कभी सार्थक नहीं होते।

मैंने ऊपर जिन संबंधों की चर्चा की है उनमें रक्त संबंधों के अतिरिक्त भी ऐसे कई सम्बन्ध हैं जिन पर अति सुन्दर साहित्य रचा गया है। मेरा मानना है कि कोई भी साहित्य जो आज तक रचा गया है उसका आधार कोई सम्बन्ध या रिश्ता न हो ऐसा शायद ही संभव हो । कई सम्बन्ध ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम भावनात्मक रूप से लिख देते हैं किन्तु, वे सम्बन्ध परिपेक्ष्य में रहते हैं ।

ई-अभिव्यक्ति साहित्य में सकारात्मक नए प्रयोग करने के लिए कटिबद्ध है। मेरे उपरोक्त विचारों से आप निश्चित रूप से सहमत होंगे। इस पूरी प्रक्रिया में मन में एक विचार आया कि क्यों न आपसे रिश्तों या संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित की जाएँ और अपने प्रबुद्ध पाठकों से एक नवीन रूप से साझा की जाएँ।

वैसे तो पारिवारिक रिश्तों की एक लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रपौत्र-प्रपौत्री से लेकर परनाना-परनानी, परदादा-परदादी तक जिनसे हम प्रतिदिन रूबरू होते रहते हैं । वैसे ही सामाजिक संबंधों की भी असीमित लम्बी फेहरिश्त है।  कुछ सम्बन्ध और रिश्ते जो इस समय मेरे मस्तिष्क में आ रहे हैं आपसे उदाहरणार्थ साझा करने का प्रयास करता हूँ। इससे परे भी आपके मस्तिष्क में कई सम्बन्धो होंगे जो हम साझा करना चाहेंगे ।

पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, मित्र, पड़ौसी तो सामान्य हैं ही। आज जब इंसानियत तार तार हो रही है ऐसे में मानवीय सम्बन्ध, हमारा राष्ट्र से सम्बन्ध, प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्ध, पालतू एवं अन्य जानवरों से सम्बन्ध,  थर्ड जेंडर जो कभी कभार हमसे रूबरू होते हैं उनसे सम्बन्ध,  समाज में बमुश्किल स्वीकार्य रिश्ते (लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक) और ऐसे बहुत सारे सम्बन्ध और रिश्ते जो आपके विचारों में आ रहे हैं और मेरे विचारों में नहीं आ पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि कोई भी और कैसा भी सम्बन्ध या रिश्ता न छूटने पाये।

तो फिर देर किस बात की कलम / कम्प्यूटर कीबोर्ड पर शुरू हो जाइये और भेज दीजिये किसी भी संबंध / रिश्ते पर आधारित अपनी अब तक की सर्वोत्कृष्ट हिंदी/मराठी /अंग्रेजी  भाषा में अधिकतम दो रचनाएँ  (कविता /लघुकथा /आलेख / संस्मरण  / लघुनाटिका / कलात्मक चित्र / आपके द्वारा खिंचा गया फोटोग्राफ ) अधिकतम 750-1000 शब्दों में निम्न ईमेल आई डी पर

[email protected]

समय सीमा – जितनी जल्दी हम आपके कार्य को सर्वोत्कृष्ट आकार दे सकें।

आयु सीमा –  मनोभावनाओं की कोई आयु सीमा नहीं होती। 

 आपकी अनुमति / रचनाओं की मौलिकता – ई-अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में प्रकाशित करने की स्वतंत्रता की आपकी अनुमति के साथ रचना पर कॉपीराइट आपका। रचनाएँ / कलाकृतियां  मौलिक एवं आपकी स्वरचित /स्वयं की होनी चाहिए।

हाँ रचना प्रेषित करते समय ई-अभिव्यक्ति के मूलमंत्र जो डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  के आशीर्वचन में व्याप्त है का अवश्य ध्यान रखें।

 

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति

 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।

दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

 

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।

बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

 

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।

यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

 

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।

सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

 

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

 

हमारे आमंत्रण पर रिश्तों से सम्बंधित अतिसुन्दर संवेदनशील रचनाएँ हमारे पास आई हैं  और सतत आ रही हैं, जिनका संकलन का कार्य भी चल रहा है।  उन रचनाओं को अतिसुन्दर स्वरुप में प्रस्तुत करने का प्रयास जारी  है।

हाँ, अपने मित्र लेखकों / प्रबुद्ध पाठकों से इस जानकारी को अवश्य साझा कर इस अनुष्ठान में सहयोग करें।

आपकी अब तक की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं की प्रतीक्षा में।

 

हेमन्त बावनकर, पुणे 

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ कनिष्ठ महाविद्यालयीन मराठी विषयाच्या शिक्षकांसाठी राज्यस्तरीय लॉकडाउन कथा स्पर्धा 2020 आयोजित – समाजभूषण बाबूराव गोखले ग्रंथालयाच्या आयोजन ☆ साभार – योगिता पाखले ( पुणे) ☆

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆  समाजभूषण बाबूराव गोखले ग्रंथालयाच्या वतीने ☆

☆ कनिष्ठ महाविद्यालयीन मराठी विषयाच्या शिक्षकांसाठी राज्यस्तरीय लॉकडाउन कथा स्पर्धा 2020 ☆

? चला उचला पेन लिहा सुंदर कथा ?

महाराष्ट्र राज्यातील कनिष्ठ महाविद्यालयातील मराठी विषयाच्या माझ्या सर्व शिक्षक मित्र-मैत्रिणी व बंधु-भगिनींनो आपल्या देशावर ‘कोरोना’ चे प्रचंड मोठे संकट आले आहे. अशावेळी मा.पंतप्रधान, मा.मुख्यमंत्री, मा.शिक्षणमंत्री,  मा.आरोग्यमंत्री यांनी आपल्या सर्वांना स्वतःची काळजी घेण्यासाठी घरातून बाहेर न पडण्याची कळकळीची विनंती केली आहे. आपण त्या आवाहानाचे पालन करण्यासाठी, देशहितासाठी हातभार लावू या.

साधारण एक महिन्याचा हा कालखंड आपल्या सर्वांची परीक्षा बघणारा असला तरी वाचन,लेखन करणारांना ही संधी आहे. आपला हा वेळ सत्कारणी लागावा तसेच आपला लेखनाचा छंद जोपासता यावा यासाठी आमच्या ग्रंथालयाच्यावतीने ही स्पर्धा आयोजित केली आहे.

सहभागासाठी हे लक्षात घ्या…..

  • या स्पर्धेसाठी कोणतेही शुल्क नाही.
  • स्पर्धा फक्त कनिष्ठ महाविद्यालयातील मराठी विषय शिकवणाऱ्या शिक्षकांसाठी आहे.
  • कथा मराठी भाषेत असावी. पूर्वप्रकाशित असू नये.
  • कथा शब्दमर्यादा १५०० इतकी असावी.
  • कथा स्वतःची आहे याचे स्वतःच्या सहीचे प्रमाणपत्र जोडावे.
  • सोबत आपण कार्यरत असलेल्या कनिष्ठ महाविद्यालयाचे ओळखपत्र झेरॉक्स जोडावी.
  • आपले सध्याचे दोन आयडेंटिटी फोटो पाठवावे.
  • कथा कोणत्याही विषयावर असावी परंतु बीभत्स, अश्लील लेखन नसावे.
  • कथा कागदाच्या एकाच बाजूला स्वच्छ सुंदर अक्षरात लिहिलेली अथवा टाईप केलेली असावी. ईमेल पाठवू नये.पोस्टाने पाठवावी.
  • परिक्षकांनी नाकारलेल्या कथा संदर्भात कोणीही संपर्क साधू नये.
  • निवड झालेल्या कथा लेखकांना फोन अथवा पत्राद्वारे कळविले जाईल.
  • आपली कथा खालील पत्त्यावर दि.२५ एप्रिल ते १० मे २०२० पर्यंत पाठवावी. त्यानंतर आलेल्या कथांचा विचार केला जाणार नाही.
  • पहिल्या पाच कथांना ग्रंथ, सुंदर स्मृतीचिन्ह व रोख रक्कम देऊन गौरविण्यात येईल.
  • कथा पाठवताना त्याची मूळ प्रत पाठवून झेरॉक्स आपल्याकडे ठेवावी.
  • कथा स्वतःच्या जबाबदारीवर पाठवावी गहाळ झाल्यास आम्ही जबाबदार नाही.
  • कथा पोहचली की नाही यासाठी खालील फोनवर फोन करावा.
  • परीक्षकांचा निर्णय अंतिम राहिल.सगळ्याच कथा चांगल्या असतात. वादविवाद टाळा.
  • पहिले बक्षीस-स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु.२०००/
  • दुसरे बक्षीस- स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु १५००/
  • सरे बक्षीस- स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु.१०००/
  • चौथे व पाचवे बक्षीस – स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र व रु.५००/प्रत्येकी.
  • इतर निवडक पंचवीस कथांना स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र देऊन गौरविण्यात येईल.
  • भविष्यात निवडक तीस कथांचा कथासंग्रह प्रकाशित करण्याचा मनोदय आहे.
  • बक्षीस समारंभास येण्यासाठी अथवा जाण्यासाठी कोणताही खर्च दिला जाणार नाही.

 

आपला नम्र

प्रा.दादाराम साळुंखे

अध्यक्ष- महाराष्ट्र राज्य कनिष्ठ महाविद्यालयीन मराठी विषय संघटना, शाखा सातारा.

कथा या पत्त्यावर पाठवावी.

समाजभूषण बाबूराव गोखले सार्वजनिक ग्रंथालय विद्यानगर सैदापूर ता.कराड जि.सातारा. पिन-४१५१२४

फोन नंबर –  9423816782, 9405848764

? चला उचला पेन लिहा सुंदर कथा ?

साभार – योगिता पाखले ( पुणे)

Please share your Post !

Shares

☆ राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा – मानवता के हित में सकारात्मक सन्देश ☆ डॉ आर के पालीवाल, डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’, डॉ राजेश पाठक ‘प्रवीण’, सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा  – मानवता के हित में सकारात्मक सन्देश

(ई- अभिव्यक्ति सम्पूर्ण विश्व में विश्वयुद्ध से भी भयावह इस दौर में ईश्वर से मानवीय संवेदनाओं एवं मानवता की रक्षा की कामना करता है। बस पहल आपको करनी है। )

 

यह साहस और रौशनी दिखाने का समय है

लेखक का काम रोशनी दिखाना होता है न कि डर बढ़ाना या निराशा फैलाना। यह दहशत फैलाने का समय नहीं है बल्कि, साहस, संयम और धैर्य के साथ मजबूती से खड़े होकर एहतियात बरतने का समय है।

ऐसे समय में लेखन और पत्रकारिता की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है।

 

कोरोना से बचाव के पांच सुझाव :

(यह एक बायालोजिस्ट के नाते दे रहा हूं)

सोशल डिस्टेंसिंग तो सबसे कारगर उपाय है ही, इसके साथ निम्न उपाय भी बहुत महत्वपूर्ण हैं ….

  1. डर, क्रोध, नकारात्मक सोच और स्ट्रैस हमारे शरीर की इम्यूनिटी कमजोर करते हैं और सकारात्मकता एवं हल्का फुल्का हास्य एवम मन पसन्द काम (पढ़ना, लिखना, बागवानी आदि) हमारी इम्यूनिटी बढ़ाते हैं और स्वस्थ एवं सुरक्षित रखते हैं।
  2. थोड़ी देर धूप में रहना, कपड़ों को धूप देना बहुत लाभकारी है
  3. स्वास्थ्यवर्धक ताजा पका सात्विक भोजन बीमारी को दूर रखता है।
  4. अच्छी नींद और दोपहर भोजन के बाद आराम जरूर कीजिए
  5. कुछ दिन के लिए कोरोना के डरावने टी वी समाचारों, व्हाटसएप मेसेज और नकारात्मक फेसबुक पोस्ट से दूर रहें।

यह पांच सूत्रीय फार्मूला लाक डाउन में स्वस्थ और प्रसन्न रहने का आजमाया हुआ नुस्खा है। इसमें आयुर्वेद एवम बायलॉजी का ज्ञान और ख़ाकसार का अनुभव शामिल है

इसका कोई कापी राइट नहीं है। जो चाहे कापी पेस्ट कर सकता है।

 डॉ आर  के पालीवाल 

 

अभावों व कठिनाईयों का दृढ़ इच्छाशक्ति से सामना करना होगा

मैं हिन्दी साहित्य संगम, विसुधा सेवा समिति एवं पाथेय संस्था की ओर से आप सभी को कोविड-19 अर्थात कोरोना वायरस बीमारी-2019 के संदर्भ में अवगत कराना चाहता हूँ कि इस विश्वव्यापी महामारी के प्रकोपकाल में जब इस बीमारी का निरोधक टीका अभी तक नहीं बना है, न ही इसका समुचित इलाज सुगम हुआ है, तब इन विषम परिस्थितियों में इससे बचाव के दृष्टिगत हमारा सबसे सामाजिक दूरी बनाए रखना ही श्रेष्ठ एवं सुरक्षित उपाय है। हमें थोड़े या बड़े अभावों व कठिनाईयों का दृढ़ इच्छाशक्ति से सामना करना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं शासन-प्रशासन के निर्देशों का पालन करना हमारा नैतिक दायित्व है। हमारे सहयोगी रवैये के चलते निश्चित रूप से हम कोरोना वायरस की बीमारी पर नियंत्रण पा सकेंगे। उम्मीद है, हम स्वस्फूर्त भाव से इन बातों पर अमल करेंगे।

सबके स्वस्थ रहने की कामना सहित।

  – डॉ विजय तिवारी किसलय‘, जबलपुर 

 

राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा

मानव सभ्यता के इतिहास में आज वक़्त के इस पड़ाव पर हम ‘विजय’ और ‘पराजय’ के बीच मे खड़े हैं. हमारी थोड़ी सी कोताही ‘दुर्भाग्य’ में बदल सकती है. इतने विशाल राष्ट्र को ‘लॉक-डाउन’ करना प्रधानमंत्री जी का बहुत बड़ा निर्णय है. प्रधानमंत्री जी ने हाथ जोड़कर निवेदन किया है, इसे मान लेना ही देशहित में है. यह सच है कि राष्ट्रीय धैर्य की परीक्षा की इस कठिन घड़ी में वक़्त एक तरह से ठहर सा गया है. इस विकसित सभ्यता के इतिहास में इसके पहले आदमी इस कदर लाचार कब हुआ था, पता नहीं. शायद प्रकृति आज हम इंसानों की परीक्षा ले रही है और कह रही है कि- “सुनो, मेरे ख़िलाफ़ हर साजिश का हिसाब, हर इंसान को करना होगा.”

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जब दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ बन गयी है, इसमें हम सबके सुख ही नहीं बल्कि हम सबके दुःख भी एक हो गए हैं. बेशक हम सबके लिए ये दिन कठिन परीक्षा के दिन हैं. वैश्विक संकट संसार की सभ्यताओं के परीक्षण का एक प्रयोजन भी होता है. मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत और हम भारत के लोग इस आपदा पर ऐतिहासिक जीत हासिल करेंगें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आज जो कहा है वह सब उन्होंने देश और दुनिया के Epidemiologists, Virologists, Scientists के द्वारा सुझाए गए सुझावों के आधार पर कहा है. इसलिए हमें उनके दिशा-निर्देशों को बस मानते जाना है.

यह संघर्ष प्रकृति की दो सफ़ल species का संघर्ष है और हम सर्वाधिक सफ़ल species थे और रहेंगे. अकाल और महामारी इस देश की सामूहिक-स्मृति के लिए कोई नई बात नहीं है, हालाँकि यह जरूर है कि इस बार चुनौती बहुत बड़ी है. हमने ‘Small pox’ जैसे जानलेवा वायरस को हराया है जिसमें भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. ‘पोलियो’ और ‘प्लेग’ को हराया है, ‘स्वाइन फ्लू’ को भी नियंत्रित किया है. हमारी यह पावन भारत भूमि युद्धों से भले ही परेशान रही हो, मानवीय उत्पातों ने भले ही इसे रक्त रंजित किया हो, लेकिन प्रकृति की सर्वाधिक चहेती भूमि भी यही रही है, जहाँ समुद्र है तो रेगिस्तान भी है, जहाँ जंगल हैं तो हिमाच्छादित विशाल पर्वत भी हैं. तभी हर रंग, रूप, संस्कृति और भौगोलिक क्षेत्र के करोड़ों लोग हज़ारों वर्षों से यहाँ रहकर इसे सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व का देश बनाते हैं. भारत की गौरवशाली संस्कृति में रचे-बसे हम लोग अपने भोजन में कुछ ऐसी औषधियों का उपयोग करते आए हैं, जो हमारी इम्युनिटी को बढ़ाती हैं. हम लोग हज़ारों सालों से हाथ मिलाने के बजाय ‘नमस्ते’ कर रहे हैं, पशुओं की पूजा कर रहे हैं, शाकाहारी भोजन कर रहे हैं और घर में प्रवेश करने के बाद नियमित हाथ-पैर धोते हैं. भारत की रक्षा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कर रही है और इसका मूल हमारी जीवन-शैली में है और यह वही जीवन-शैली है, जिसे अस्वच्छ मानकर पश्चिम एक लम्बे अर्से से हमारा उपहास उड़ाता रहा है. हम भोजन में भरपूर हल्दी लेने वाले लोग हैं इसलिए हम इतनी जल्दी बीमार नहीं पड़ते. हम भारत के लोग अक्सर बिना किसी ग्लानि और लज्जा के कहते हैं कि यह देश तो भगवान भरोसे चल रहा है- “जेहि विधि राखे राम…”. इस भाव के पीछे हमारा आशय यह होता है कि प्रकृति की स्वयं की जो चैतन्य-मेधा है, भारत की गति-मति उसके अनुरूप है. इस सच से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि भोजन और भजन का जीवन में बड़ा महात्म्य है. जो तामसी और विषाक्त भोजन नहीं करेगा, आहार में औषध के तत्वों का सम्यक निर्वाह करेगा और जीवन के उपादानों, देवताओं और मातृभूमि के प्रति परम्परा से ही धन्यभाव रखेगा, वह प्राकृत-चेतना के प्रकोप का भाजन नहीं बनेगा. और फिर अगर सर्वनाश में सच्चरित्र का भी अवसान होना ही विधि के विधान में लिखा है तो कम से कम वह अपने साथ प्रारब्ध की गठरी लेकर नहीं जाएगा. मुझे भरोसा है कि हम इस वैश्विक त्रासदी पर जल्द ही विजय प्राप्त करेंगें. इस आश्वस्ति के मूल में परम्परा से संचित कर्म और संस्कार का चिंतन समाया हुआ है.

“जो जहाँ हैं वहीं ठहर जाइए,

वक़्त माकूल नहीं है सफर के लिए.”

  – डॉ राजेश पाठक प्रवीण ‘, सनाढ्य संगम, जबलपुर

 

जान है तो जहां है

चीन मध्ये निर्माण झालेल्या कोरोना नावाच्या विषाणू ची सगळ्या जगात दहशत निर्माण झाली आहे. या विषाणू ची बाधा म्हणजे “महामारी” असे दृश्य दिसतेय, पूर्वी “करोना” नावाची एक शूज कंपनी होती, या कंपनीची चप्पल वापरल्याचेही मला स्मरते आहे..आज एक मजेशीर विचार मनात आला, हा “क्राऊन” च्या  आकाराचा विषाणू विधात्या च्या पायताणाखाली चिरडला जावा.हीच प्रार्थना!

या आपत्तीमुळे संपूर्ण मानवजात हादरली आहे.योग्य काळजी तर आपण घेतच आहोत, घरात रहातोय, घरातली सर्व कामं स्वतः करतोय, कौटुंबिक सलोखा राखतोय, प्रत्येकाला ही जाणीव आहेच, “जान है तो जहां है।”

 सुश्री प्रभा सोनवणे, पुणे  

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ जनता कर्फ्यू : एक वैज्ञानिक और नायाब कदम : हम चलेंगे दो कदम – श्री राकेश कुमार पालीवाल ☆

सूचना/Information 

(मानवता के हित में  श्री राकेश कुमार पालीवाल जी के फेसबुक से पेज साभार)

श्री राकेश कुमार पालीवाल

☆ जनता कर्फ्यू : एक वैज्ञानिक और नायाब कदम : हम चलेंगे दो कदम ☆

(ई- अभिव्यक्ति सम्पूर्ण विश्व में विश्वयुद्ध से भी भयावह इस दौर में ईश्वर से मानवीय संवेदनाओं एवं मानवता की रक्षा की कामना करता है। बस पहल आपको करनी है। )

प्रधान मंत्री जी ने टी वी पर आने से पहले अपनी टीम से काफी विचार विमर्श किया होगा। उसी के बाद उन्होंने रविवार की छुट्टी के दिन जनता कर्फ्यू का नायाब तरीका चुना है।

इसे आप वैज्ञानिक दृष्टि से देखिए। रविवार की छुट्टी के दिन 14 घंटे का बन्द वायरस के फैलने की चेन की काफी हद तक कमर तोड़ सकता है और हम इटली और स्पेन बनने से बच सकते हैं जिन्होंने रविवार की छुट्टी में सार्वजनिक स्थलों पर मटर गस्ती करके इसे पूरे देश में फैला दिया था।

इसका दूसरा लाभ यह मिलेगा कि हम एक देश के रूप में किसी भी आपदा का सामना करने के लिए तैयार दिखेंगे और जरूरत पड़ी तो ऐसे कर्फ्यू कुछ और दिन ज्यादा देर के लिए लागू कर कोरोना को पूरी तरह अलविदा कह देंगे।

जनता कर्फ्यू से कोई नुकसान नहीं है। फिर भी यदि सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना करना ही यदि हमारा धर्म है तो हमारी नकारात्मकता को कोई कम नहीं कर सकता।

हमने तो एक कदम आगे बढ़कर शनिवार की छुट्टी को भी जनता कर्फ्यू में शामिल कर दो दिन घर में रहने का मन बना लिया है। अपने आफिस के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों से भी यही अपील की है कि जब तक बहुत जरूरी नहीं हो घर से बाहर नहीं निकलें।

जैसे बूंद बूंद से समुद्र बनता है वैसे ही एक एक व्यक्ति के घर में रुकने से सड़क, बाज़ार और शहर की भीड़ कम होगी। आज यही हमारे और देश के हित में है।

आमीन।

 (मानवता के हित में  श्री राकेश कुमार पालीवाल जी के फेसबुक से पेज साभार)

(आप सब से करबद्ध प्रार्थना है इस  वैज्ञानिक और नायाब कदम पर सबके साथ चलिए और  प्रण लीजिये – हम चलेंगे दो कदम)

 

 

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ विश्ववाणी हिंदी संस्थान एवं लघुकथा शोध केंद्र जबलपुर का संयुक्त आयोजन ☆

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ विश्ववाणी हिंदी संस्थान एवं लघुकथा शोध केंद्र जबलपुर का संयुक्त आयोजन ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

जबलपुर संभाग आरंभ से लघुकथा का गढ़ रहा है। कुँवर प्रेमिल और मैंने बहुत सी सामग्री उपलब्ध करा दी है। दिवंगत लघुकथाकारों और जिनके संकलन नहीं हैं, ऐसे लघुकथाकारों की लघुकथाएँ तुरंत  संरक्षित की जाना आवश्यक है। मैं “जबलपुर में लघुकथा” शीर्षक से संकलन तैयार कर रहा हूँ। सभी से अनुरोध है कि अपने परिचित लघुकथाकारों के नाम, पते, चलभाष क्रमांक, चित्र व लघुकथाएँ मुझे वाट्सएप क्रमांक ९४२५१८३२४४ या ईमेल [email protected] पर अविलंब भेजें। पूर्व प्रकाशित लघुकथाओं के साथ पत्रिका का नाम, वर्ष, माह तथा संपादक का संपर्क भेजें। सभी सहयोगियों का नामोल्लेख संकलन में किया जाएगा।

अन्य स्थानों से लघुकथाएँ और जानकारी भेजें। ऐसे संग्रह हर स्थान के लिए तैयार किये जा रहे हैं।

आमंत्रण

लघुकथाकार अपना परिचय (नाम, जन्म तिथि, माता-पिता-जीवनसाथी, शिक्षा, प्रकाशित एकल पुस्तकें, स्थायी पता, दूरभाष/चलभाष, ईमेल आदि) तथा ५ मौलिक लघुकथाएँ, मौलिकता प्रमाणपत्र सहित [email protected] पर ईमेल करें।

जिलेवार/विषयवार लघुकथाकारों की जानकारी सूचीबद्ध की जाना है। अन्य दिवंगत तथा समकालिक लघुकथाकारों की जानकारी एकत्र कर भेजें।

 

आचार्य संजीव वर्मा “सलिल”

संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान

संरक्षक लघुकथा शोध केंद्र जबलपुर

(ईकाई लघुकथा शोधकेंद्र भोपाल)

Please share your Post !

Shares
image_print