हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा-कहानी # 119 –पुरखे, असहमत और चौबे जी ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरणात्मक कथा पुरखे, असहमत और चौबे जी

☆ कथा-कहानी # 119 –  पुरखे, असहमत और चौबे जी ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

बहुत दिनों के बाद असहमत की मुलाकात बाज़ार में चौबे जी से हुई, चौबे जी के चेहरे की चमक कह रही थी कि यजमानों के निमंत्रणों की बहार है और चौबे जी को रोजाना चांदी की चम्मच से रबड़ी चटाई जा रही है. वैसे अनुप्रास अलंकार तो चटनी की अनुशंसा करता है पर चौबे जी से सिर्फ अलंकार ज्वेलर्स ही कुछ अनुशंसा कर सकता है.असहमत के मन में भी श्रद्धा, 😊कपूर की भांति जाग गई. मौका और दस्तूर दोनों को बड़कुल होटल की तरफ ले गये और बैठकर असहमत ने ही ओपनिंग शाट से शुरुआत कर दी.

चौबे जी इस बार तो बढिया चल रहा है, कोरोना का डर यजमानों के दिलों से निकल चुका है तो अब आप उनको अच्छे से डरा सकते हो, कोई कांपटीशन नहीं है.

चौबे जी का मलाई से गुलाबी मुखारविंद हल्के गुस्से से लाल हो गया. धर्म की ध्वजा के वाहक व्यवहारकुशल थे तो बॉल वहीँ तक फेंक सकते थे जंहां से उठा सकें. तो असहमत को डपटते हुये बोले : अरे मूर्ख पापी, पहले ब्राह्मण को अपमानित करने के पाप का प्रायश्चित कर और दो प्लेट रबड़ी और दो प्लेट खोबे की जलेबी का आर्डर कर.

असहमत : मेरा रबडी और जलेबी खाने का मूड नहीं है चौबे जी, मै तो फलाहारी चाट का आनंद लेने आया था.

चौबे जी : नासमझ प्राणी, रबड़ी और जलेबी मेरे लिये है, पिछले साल का भी तो पेंडिंग पड़ा है जो तुझसे वसूल करना है.

असहमत : चौबे जी तुम हर साल का ये संपत्ति कर मुझसे क्यों वसूलते हो, मेरे पास तो संपत्ति भी नहीं है.

चौबे जी : ये संपत्ति टेक्स नहीं, पूर्वज टेक्स है क्योंकि पुरखे तो सबके होते हैं और जब तक ये होते रहेंगे, खानपान का पक्ष हमारे पक्ष के हिसाब से ही चलेगा.

असहमत : पर मेरे तो पिताजी, दादाजी सब अभी इसी लोक में हैं और मैं तो घर से उनके झन्नाटेदार झापड़ खाकर ही आ रहा हूं, मेरे गाल देखिये, आपसे कम लाल नहीं है वजह भले ही अलग अलग है.

चौबेजी : नादान बालक, पुरखों की चेन बड़ी लंबी होती है जो हमारे चैन का स्त्रोत बनी है. परदादा परदादी, परम परदादा आदि आदि लगाते जाओ और समय की सुइयों को पीछे ले जाते जाओ. धन की चिंता मत कर असहमत, धन तो यहीं रह जायेगा पर ब्राह्मण का मिष्ठान्न भक्षण के बाद निकला आशीर्वाद तुझे पापों से मुक्त करेगा. ये आशीर्वाद तेरे पूर्वज तुझे दक्षिणा से संतुष्ट दक्षिणमुखी ब्राह्मण के माध्यम से ही दे पायेंगे.

असहमत बहुत सोच में पड़ गया कि पिताजी और दादाजी को तो उसकी पिटाई करने या पीठ ठोंकने में किसी ब्राह्मण रूपी माध्यम की जरूरत नहीं पड़ती.

उसने आखिर चौबे जी से पूछ ही लिया : चौबे जी, हम तो पुनर्जन्म को मानते हैं, शरीर तो पंचतत्व में मिल गया और आत्मा को अगर मोक्ष नहीं मिला तो फिर से नये शरीर को प्राप्त कर उसके अनुसार कर्म करने लगती है तो फिर आपके माध्यम से जो आवक जावक होती है वो किस cloud में स्टोर होती है. सिस्टम संस्पेंस का बेलेंस तो बढता ही जा रहा होगा और चित्रगुप्तजी परेशान होंगे आउटस्टैंडिंग एंट्रीज़ से.

चौबे जी का पाला सामान्यतः नॉन आई.टी.यजमानों से पड़ता था तो असहमत की आधी बात तो सर के ऊपर से चली गई पर यजमानों के लक्षण से दक्षिणा का अनुमान लगाने की उनकी प्रतिभा ने अनुमान लगा लिया कि असहमत के तिलों में तेल नहीं बल्कि तर्कशक्ति रुपी चुडैल ने कब्जा जमा लिया है. तो उन्होंने रबड़ी ओर जलेबी खाने के बाद भी अपने उसी मुखारविंद से असहमत को श्राप भी दिया कि ऐ नास्तिक मनुष्य तू तो नरक ही जायेगा.

असहमत : तथास्तु चौबे जी, अगर वहां भी मेरे जैसे लोग हुये तो परमानंद तो वहीं मिलेगा और कम से कम चौबेजी जैसे चंदू के चाचा को नरक के चांदनी चौक में चांदी की चम्मच से रबड़ी तो नहीं चटानी पड़ेगी.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ स्वतन्त्रता दिवस 🇮🇳 एवं ई-अभिव्यक्ति (मराठी) के चौथे जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆ स्वतन्त्रता दिवस 🇮🇳 एवं ई-अभिव्यक्ति (मराठी) के चौथे जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं ☆ हेमन्त बावनकर ☆

प्रिय मित्रो,

ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध लेखकगण तथा पाठकगण के आत्मीय स्नेह के लिए हृदय से आभार।

इस वर्ष अक्तूबर २०२४ में आपकी प्रिय वैबसाइट के सफल ६ वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं एवं आज १५ अगस्त २०२४ को ई-अभिव्यक्ति (मराठी) अपने सफल ४ वर्ष पूर्ण करने जा रही है।   

यह हमारे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि हमारे प्रबुद्ध लेखकगण विभिन्न प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो रही हैं एवं पुरस्कृत भी हो रही हैं।  

ई-अभिव्यक्ति (मराठी) आज मराठी साहित्य में अपना विशेष स्थान बना चुका है। इस विशिष्ट उपलब्धि के लिए हम वरिष्ठ मराठी साहित्यकार एवं ई-अभिव्यक्ति मराठी की मुख्य संपादिका सौ.उज्ज्वला केळकर जी के मार्गदर्शन एवं उनके संपादक मण्डल के सदस्यों श्री सुहास रघुनाथ पंडित, सौ. मंजुषा मुळे एवं सौ. गौरी गाडेकर  जी के हृदय से आभारी हैं। 

आज मैं मराठी साहित्य की यात्रा को प्रारम्भ करने में योगदान के लिए मराठी के कई सशक्त हस्ताक्षरों को नहीं भूल सकता। स्व दीपक करंदीकर जी, महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे ने इस यात्रा में पहला कदम बढ़ाने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई जिसके कारण कविराज विजय यशवंत सातपुते , सुश्री प्रभा सोनावणे, सुजीत कदम, सुश्री ज्योति हसबनीस एवं कई सुप्रसिद्ध वरिष्ठ लेखकों को जोड़ने में अपना सहयोग प्रदान किया। इस क्रम में आप ई-अभिव्यक्ति में  4 जुलाई 2019 को प्रकाशित कविराज विजय यशवंत सातपुते जी का पहला अतिथि संपादकीय इस लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं 👉 ई-अभिव्यक्ति: संवाद-35 – कविराज विजय यशवंत सातपुते (सोशल मिडिया चा यशस्वी वापर …. अभिव्यक्ती ठरली अग्रेसर!)

हम यह जानकारी आपसे साझा करने में अत्यंत गर्व का अनुभव कर रहे हैं कि हमारे संपादक मण्डल के सदस्य भी राष्ट्रीय एवं अंतर राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। इसमें प्रमुख हैं – 

  • माध्यम साहित्यिक संस्थान, लखनऊ एवं युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी को वाग्धारा सम्मान उनके गृह जनपद में जाकर देने की घोषणा की गई।
  • विश्व वाणी संस्थान की ओर से श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव को उनके नाटक जलनाद पर राष्ट्रीय अलंकरण घोषित किया गया है। उन्हें 20 अगस्त को यह सम्मान जबलपुर में प्रदान किया जाएगा।
  • ई-अभिव्यक्ति (अँग्रेजी) के संपादक एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को प्रतिष्ठित ग्लोबल राइटर्स एकेडमी द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय  सम्मान से सम्मानित किया गया है। साथ ही उनके द्वारा विश्वप्रसिद्ध कवि बायरन की कविता का हिन्दी अनुवाद का पाठ कवि बायरन के जन्म स्थल पर आयोजित २००वीं जयंती पर किया गया।  

इन पंक्तियों के लिखे जाते तक 23,710 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 5,91,900 से अधिक विजिटर्स आपकी प्रिय वैबसाइट www.e-abhivyakti.com पर विजिट कर चुके हैं।

इन सभी उपलब्धियों से ई-अभिव्यक्ति परिवार गौरवान्वित अनुभव करता है। आप सभी का यह अपूर्व आत्मीय स्नेह एवं प्रतिसाद इसी प्रकार हमें मिलता रहेगा। 

आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ई-अभिव्यक्ति में प्रकाशित साहित्य को आत्मसात करें एवं अपने मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें। 

आपके ही अनुरोध पर हम शीघ्र ही आपकी प्रतिक्रियाएँ “पाठक की कलम से…” के अंतर्गत प्रकाशित करना प्रारम्भ कर रहे हैं। आप अपनी प्रतिक्रियाएँ [email protected] पर प्रेषित कर सकते हैं। आपके विचारों एवं सुझावों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।   

एक बार पुनः आप सभी का हृदय से आभार।

आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकमनाएं 🇮🇳

सस्नेह

हेमन्त बावनकर

बाम्बेर्ग (जर्मनी)   

15 अगस्त 2024  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ “ई-अभिव्यक्ति ऑनलाइन साहित्य-मंचाचा चौथा वर्धापन दिन – शुभेच्छा”☆ संपादक मंडळ- ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? – संपादकीय – ?

💐 आज दि. १५ ऑगस्ट .. आपल्या ई-अभिव्यक्ति ऑनलाइन साहित्य-मंचाचा चौथा वर्धापन दिन 💐

दि. १५ ऑगस्ट २०२० रोजी निव्वळ ‘ साहित्य-सेवा ‘ करण्याच्या उद्देशाने हा मंच कार्यरत झाला. अनेकजण आपल्या विविध विषयांवरील लिखाणामधून, कवितांमधून चांगल्या प्रकारे व्यक्त होत असतात आणि त्यांच्या हातून नकळत साहित्यनिर्मिती होत असते. असे साहित्य अनेक वाचकांपर्यंत सहजपणे आणि थेटपणे पोहोचावे यासाठी एक उत्तम मंच उपलब्ध व्हावा, हे या मंचाचे उद्दिष्ट होते आणि आहे. 

आज हे सांगतांना आम्हाला अतिशय आनंद होतो आहे की या चारच वर्षात दोनशेहूनही अधिक लेखक / कवी त्यांचे साहित्य या मंचाच्या माध्यमातून असंख्य वाचकांपर्यंत पोहोचवू शकत आहेत. आणि आपल्या या ब्लॉगला अंदाजे सव्वापाच लाखांहूनही जास्त वाचक नियमित भेट देत असतात. आजच्या या वर्धापनदिनी आपण सर्व लेखक-लेखिका, व कवी-कवयित्री यांचे आम्ही मनःपूर्वक अभिनंदन करतो, आणि त्यांचे साहित्य असेच सदैव बहरत राहो अशा हार्दिक शुभेच्छा देतो. या मंचाला यापुढेही आपणा सर्वांचे असेच उत्स्फूर्त सहकार्य राहील याची खात्री आहे. 

💐 ई-अभिव्यक्ति ऑनलाइन साहित्य-मंचाच्या चौथ्या वर्धापन दिनानिमित्त सर्वांना हार्दिक शुभेच्छा.💐

सौ.  उज्ज्वला केळकर

श्री सुहास रघुनाथ पंडित, सौ. मंजुषा मुळे, सौ. गौरी गाडेकर

संपादक मंडळ – ई–अभिव्यक्ती (मराठी विभाग)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ संपादक की कलम से …. शुक्रिया 2023 ☆ श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆

ई-अभिव्यक्ति -संवाद

प्रिय मित्रो,

यह ई-अभिव्यक्ति परिवार ( ई- अभिव्यक्ति – हिन्दी/मराठी/अंग्रेजी) के परिश्रम  एवं आपके भरपूर प्रतिसाद तथा स्नेह का फल है जो इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आपकी अपनी वेबसाइट पर 5,43,755+ विजिटर्स अब तक विजिट कर चुके हैं।

? संपादक की कलम से …. शुक्रिया 2023  ? श्री जयप्रकाश पाण्डेय  ?

शुक्रिया उन लोगों का,

जो हमसे प्यार करते है..

क्योंकि

उन लोगों ने हमारा दिल,

बड़ा कर दिया..

 

शुक्रिया उन लोगों का,

जो हमारे लिए परेशान हुए..

क्योंकि

वो हमारा बहुत ख्याल रखते है..

    

शुक्रिया उन लोगों का,

जो हमारी जिंदगी में शामिल हुए,

और हमें ऐसा बना दिया,

जैसा हमने सोचा भी नही था..

जय प्रकाश पाण्डेय (संपादक – ई-अभिव्यक्ति – हिन्दी)

[email protected]

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…

दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ हमें हमारे जीवन और कर्म को नई दिशा प्रदान करती है।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ युगांत – (हिन्दी भावानुवाद) – डॉ प्रतिभा मुदलियार (मूल मराठी लेखक – डॉ विनोद गायकवाड) ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

☆ युगांत – (हिन्दी भावानुवाद) – डॉ प्रतिभा मुदलियार (मूल मराठी लेखक – डॉ विनोद गायकवाड) ☆ हेमन्त बावनकर ☆

प्रिय मित्रो,

डॉ विनोद गायकवाड जी के शब्दों में  – “महाभारत यानी कभी भी खतम न होनेवाली अक्षय सुवर्ण की खान! कोई भी उसमें से कितना भी सोना निकाल कर ले जाए पर यह खान कभी खतम नहीं होती। महाभारत के दो सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व हैं ‘भीष्म पितामह’ और ‘श्रीकृष्ण’!!”

भीष्म पितामह के जीवन पर आधारित एवं डॉ विनोद गायकवाड़ जी द्वारा रचित ‘युगांत’एक अभूतपूर्व उपन्यास है। यह उपन्यास मराठी के अतिरिक्त तमिल में भी प्रकाशित हो चूका है। 

डॉ प्रतिभा मुदलियार जी ने ‘युगांत’ का अत्यंत सजीव हिन्दी भावानुवाद किया। भावानुवाद की  भाषा शैली पूर्णतः मौलिक एवं  कालखंड के अनुरूप है जो इस उपन्यास को विश्वस्तरीय श्रेणी में अपना स्थान बनाने में  पूर्णतः सफल है। आप इस उपन्यास की रोचकता का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि – जब मैंने इस 460 पृष्ठ के उपन्यास को एक बार पढ़ना प्रारम्भ किया तो पूरा उपन्यास पढ़ कर ही विराम ले सका। मेरा पूर्ण विश्वास है कि- जब आप भी इस उपन्यास को पढ़ना प्रारम्भ करेंगे तो  आपको मेरी बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं लगेगी। 

ई-अभिव्यक्ति में इस उपन्यास को 7 जुलाई 2020 से 7 ओक्टोबर 2020 तक धारावाहिक रूप इस 460 पृष्ठ के उपन्यास को 92 अंकों में सतत प्रकाशित किया था,  जिसका प्रबुद्ध पाठकों से अत्यंत स्नेह एवं प्रतिसाद मिला।

पुस्तक को आपने धारावाहिक रूप में तो पढ़ा किन्तु, उसे डिजिटल पुस्तक (फ्लिपबुक) के रूप में पढ़ने का अनुभव अद्भुत होगा। 

आपसे सस्नेह विनम्र अनुरोध है कि आप ‘युगांत’ पढ़ें और अपने मित्रों से सोशल मीडिया पर साझा करें। 

आपके विचारों एवं सुझावों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।

सस्नेह

हेमन्त बावनकर

पुणे (महाराष्ट्र)   

28 फ़रवरी 2023

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ३० सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ३० सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

गंगाधर देवराव खानोलकर

गंगाधर देवराव खानोलकर  (19 ऑगस्ट 1903 – 30 सप्टेंबर 1992) हे लेखक, चरित्रकार व पत्रकार होते.

त्यांचा जन्म रत्नागिरी जिल्ह्यातील खानोली गावात झाला.

खानोलकरांचे वडील ज्ञानपिपासू, ग्रंथप्रेमी व माणुसकी हा एकच धर्म मानणारे आणि आई स्वाभिमानी, स्वावलंबी व त्यागी होती. त्यांचे दृढ संस्कार खानोलकरांवर झाले.

त्यांचे प्राथमिक शिक्षण प्रथम घरीच, नंतर सावंतवाडी व मालवण येथे टोपीवाला हायस्कूलमध्ये झाले. असहकार चळवळीत सहभागी झाल्याने ते मॅट्रिकच्या परीक्षेला बसले नाहीत.

यानंतर खानोलकर रवींद्रनाथ टागोरांच्या शांतीनिकेतमध्ये  वाङ्मयाचा विद्यार्थी म्हणून दाखल झाले.तेथे त्यांना थोर विद्वानांचे व रवींद्रनाथांचेही मार्गदर्शन लाभले. भरपूर वाचन, चिंतन, मनन वगैरे शैक्षणिक संस्कार त्यांना आयुष्यभर साहित्यसेवेची प्रेरणा देत राहिले.

त्यानंतर अंमळनेर तत्त्वज्ञान मंदिरात शिष्यवृत्ती मिळवून त्यांनी दोन वर्षे तत्त्वज्ञानाचा सखोल अभ्यास केला.

काही काळ त्यांनी तळेगावच्या राष्ट्रीय विचाराच्या समर्थ विद्यालयात अध्यापन केले.

पुढे ते मुंबईत ‘लोकहित’, ‘विविधवृत्त’, ‘प्रगती’, ‘रणगर्जना साप्ताहिक’, ‘वैनतेय साप्ताहिक’ इत्यादी वृत्तपत्रांचे संपादक झाले.

खानोलकरांनी एकूण 22ग्रंथ लिहिले. अर्वाचीन वाङ्मय (खंड 1 ते 9), श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर चरित्र, वालचंद हिराचंद चरित्र, माधव ज्यूलियन चरित्र,के. बी.ढवळे चरित्र इत्यादी ग्रंथांचा त्यात समावेश होतो.

स्वामी विवेकानंद समग्र वाङ्मय (खंड 1-21), पुणे शहराचे वर्णन, कोल्हटकर लेखसंग्रह, डॉ. केतकरांचे वाङ्मयविषयक लेख, शेजवलकर लेखसंग्रह, धनंजय कीर :व्यक्ती आणि चरित्रकार, सोन्याचे दिवस :बा. ग. ढवळे स्मृतिग्रंथ इत्यादी ग्रंथांचे त्यांनी संपादन केले.

आज त्यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त त्यांना आदरांजली!🙏🏻

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, आपलं महानगर, विकीपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २७ सप्टेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ २७ सप्टेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

कविता महाजन

मराठी साहित्यात वैचारिक बंड करून स्वतःचे निशाण अल्पायुष्यात फडकवणा-या कविता महाजन यांनी काव्यलेखनाने प्रारंभ  करून  पुढे साहित्याच्या विविध प्रांतात लेखन केले. कविता, कादंबरी, कथा, बालसाहित्य व अनुवादित साहित्याची निर्मिती करून त्यांनी मराठी साहित्यात मोलाची भर घातली आहे. त्यांच्या बालसाहित्याचे वैशिष्ट्य असे की त्यांनी ते लेखन, चित्रे, फोटोग्राफी, कॅलिग्राफी अशा विविध माध्यमातून सादर केले आहे. तसेच ‘भारतीय लेखिका ‘या पुस्तकातून त्यांनी अनेक भारतीय भाषांतील लेखिकांचा परिचय करून दिला आहे. त्यामुळे मराठी साहित्यातील हे एक महत्त्वाचे पुस्तक म्हणावे लागेल. त्यांनी आदिवासी प्रदेशात काम करून तेथील समाजजीवनाचा अभ्यास केला होता. त्यातूनच पुढे वारली आणि आदिवासी लोकगीतांचे संकलन त्यांच्या कडून पूर्ण झाले. आणखी एक वेगळा पैलू म्हणजे त्यांनी पाकशास्त्रासंबंधीही लेखन केले व तेही अत्यंत गांभीर्याने लिहीलेले आहे. ‘समुद्रच आहे एक विशाल जाळं’ या दीर्घकवितेने त्यांचे काव्यलेखन उच्च पातळीवर जाऊन पोहोचलो आहे.

‘ब्र’ आणि ‘भिन्न’ या त्यांच्या दोन कादंब-यांनी   त्यांना कादंबरी विश्वात मानाचे स्थान मिळवून दिले आहे. ब्र ही कादंबरी महिला सरपंच व त्यांचे अनुभव विश्व या विषयावर आहे. भिन्न या कादंबरीतील त्यांनी एच्. आय. व्ही. बाधित व एडस् ग्रस्तांचे चित्रण केले आहे. अत्यंत वेगळ्या विषयावरील या दोन कादंब-यांमुळे एक बंडखोर लेखिका म्हणून त्या प्रकाशात आल्या.

या लेखना बरोबरच त्यांनी अन्य भाषांतील साहित्यही अनुवादित केले आहे. शिवाय संपादनाचे कामही केले आहे.

कविता महाजन यांची साहित्य संपदा याप्रमाणे :

काव्यसंग्रह:

तत्पुरुष, धुळीचा आवाज, मृगजळीचा मासा

कादंबरी:

ठकी आणि मर्यादित पुरूषोत्तम, ब्र, भिन्न.

बालसाहित्य:

कुहू(मल्टीमिडीया कादंबरी), जोयानाचे रंग, वाचा जाणा करा, बकरीचं पिलू(जंगल गोष्टी)

कथासंग्रह:(अनुवादित)

अनित्य, अन्या ते अनन्या, अंबई:तुटलेले पंख, आग अजून बाकी आहे, रजई, वैदेही यांच्या निवडक कथा  इ.

लेखसंग्रह:

ग्राफिटीवाॅल, तुटलेले पंख(संपादित)

चरित्र: तिमक्का, पौर्णिमादेवी बर्मन.

अन्य:

वारली लोकगीते

पाकशास्त्र:

समतोल खा, सडपातळ रहा

प्राप्त पुरस्कार:

न. चि. केळकर पुरस्कार

काकासाहेब गाडगीळ पुरस्कार

ना. ह. आपटे पुरस्कार

कवयित्री बहणाई पुरस्कार

यशवंतराव चव्हाण उत्कृष्ट वाड्मयनिर्मिती पुरस्कार,

साहित्य अकादमीचा अनुवाद पुरस्कार(रजई),

साहित्य अकादमी पुरस्कार. (ब्र या कादंबरीसाठी)

त्यांचे हेही अन्य भाषांत अनुवादीत झाले आहे.

“बायकांचे पाय भूतासारखे उलटे असतात, कुठेही जात असले तरी ते घराकडेच वळत असतात.”

‘ब्र’ या कादंबरीतील हे वाक्य त्यांच्या लेखनातील वेगळेपण दाखवून देते.

भिन्न वृत्तीच्या या लेखिकेचे वयाच्या अवघ्या एकवनाव्या वर्षी 2018मध्ये निधन झाले. आज त्यांचा स्मृतीदिन आहे. त्यांच्या स्मृतीस अभिवादन! 🙏

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ: विकिपीडिया, महाराष्ट्र टाईम्स.काॅम, कविता कोश

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २६ सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ २६ सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

विद्याधर गोखले

विद्याधर संभाजीराव गोखले (4 जानेवारी 1924 – 26 सप्टेंबर 1996) हे पत्रकार व संगीत नाटककार होते.

प्रथम गोखले शिक्षक म्हणून काम करत होते.नंतर ते पत्रकार म्हणून ‘नवभारत’मध्ये व पुढे ‘लोकसत्ता’त गेले.त्यांनी ‘साप्ताहिक लोकसत्ते’ची  पूर्ण जबाबदारी सांभाळली. पुढे  ते ‘दैनिक लोकसत्ता’चे संपादक झाले.

अमरावतीत त्यांना ‘सावधान’ या वृत्तपत्राच्या वीर वामनराव जोशी यांचा सहवास लाभला. त्याबरोबरच गोखलेंनी न. चिं. केळकर, अच्युत बळवंत कोल्हटकर, शि. म. परांजपे यांच्या लेखनाचा खास अभ्यास केला. संपादकीय लेखनाचे धडे त्यांनी ह. रा. महाजनी यांच्या मार्गदर्शनाखाली गिरवले. त्यांनी विपुल प्रमाणात संपादकीय लेखन केले.

त्यांची शैली गांभीर्यापेक्षा रंजकतेकडे झुकणारी होती. राजकीय लेखनही ते साहित्यिक शैलीने नटवत. संस्कृत व उर्दू साहित्याचा त्यांचा चांगला अभ्यास होता. त्यातील वचने व कल्पना ते आपल्या अग्रलेखात वापरत.संपादकाने प्रक्षोभक लिहिण्यापेक्षा मुद्यांकडे,भाषेच्या व शब्दांच्या नेटक्या वापराकडे लक्ष द्यायला हवे, असे त्यांचे मत होते. त्यांचे लेखन सरळ, सुबोध असून त्यात विनोदाचा शिडकावा असे.

‘सं.जय जय गौरीशंकर’, ‘सं. पंडितराज जगन्नाथ’, ‘सं. मदनाची मंजिरी’, ‘सं. मंदारमाला’, ‘सं. सुवर्णतुला’,  ‘सं.स्वरसम्राज्ञी’  वगैरे गोखलेंनी लिहिलेली नाटके रसिक प्रेक्षकांनी डोक्यावर घेतली. त्यांनी ‘झंझावात’ ही कादंबरीही लिहिली.

गोखलेंनी रंगशारदा प्रतिष्ठानची स्थापना केली.

ते 1989-1991 या काळात उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा मतदारसंघातून लोकसभा सदस्य म्हणून निवडून आले होते.

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई या संस्थेचे ते 1995-1996 दरम्यान अध्यक्ष होते.

1993मध्ये सातारा येथे भरलेल्या मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

पुण्यात विद्याधर गोखले यांच्या नावाचे, संगीताचे व अभिनयाचे कार्यक्रम करणारे संगीत- नाट्य प्रतिष्ठान आहे.

मुंबईतील दादर येथील बाळ गोविंददास मार्ग व सेनापती बापट मार्ग हे दोन रस्ते एकमेकांना मिळून तयार झालेल्या चौकास नाटककार विद्याधर गोखले यांचे नाव दिले आहे.

मुंबई पत्रकार संघातर्फे दरवर्षी चांगल्या लेखक -पत्रकाराला विद्याधर गोखले स्मृती पुरस्कार देण्यात येतो.

विद्याधर गोखले यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त त्यांना आदरांजली!🙏🏻

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकीपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २५ सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ २५ ऑगस्ट -संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

अरुण मार्तंडराव साधू (१७ जून १९४१- २५ सप्टेंबर१७ )

अरुण साधू यांचा जन्म अमरावती जिल्ह्यात परतवाडा इथे झाला. गणित व भौतिकशास्त्राचे ते पदवीधर होते पण त्यांनी कार्यक्षेत्र निवडले, ते मात्र पत्रकारिता आणि साहित्य लेखन. कादंबरी, कथासंग्रह, विज्ञान, सामाजिक, राजकीय इ. विषयांवर त्यांनी लेख लिहिले.

केसरी, इंडियन एक्स्प्रेस, टाईम्स ऑफ इंडिया इ. वर्तमानपत्रांसाठी त्यांनी वार्ताहर, विशेष प्रतिनिधी म्हणून काम केले. फ्री-प्रेस जर्नलचे संपादक म्हणूनही त्यांनी काही काळ काम केले. १९८९नंतर ते स्तंभलेखनाकडे वळले. त्यांचे स्तंभलेखनही गाजले.

त्यांनी विपुल साहित्य लेखन केले. कादंबरी, कथासंग्रह, विज्ञान, सामाजिक, राजकीय इ. विषयांवर त्यांनी लेख लिहिले. त्यांच्या प्रसिद्ध साहित्यकृती सांगायच्या झाल्या, तर फिडेल चे आणि क्रांती, ड्रॅगन जागा झाला, तिसरी क्रांती- लेनिन, स्टॅलीन ते गोर्बाचेव्ह, झिपर्याइ, मुंबई दिनांक, सिंहासन इ. पुस्तकांचा उल्लेख करावा लागेल.

डॉ. जयसिंग पवार यांच्या ‘छत्रपती राजर्षी शाहू महाराज’ या ग्रंथाचा त्यांनी इंग्रजीत अनुवाद केला. जब्बार पटेल दिग्दर्शित ‘डॉ. आंबेडकर’ या चित्रपटासाठी त्यांनी संहिता लेखन केले.

‘सिंहासन’ हा अरुण साधू यांच्या ‘सिंहासन’ या कादंबरीवरील चित्रपट अतिशया लोकप्रिय ठरला. त्यांनी लिहीलेल्या, कथा, कादंबर्याि, नाटके, एकांकिका आणि स्तंभलेखन समकालीन इतिहासाचा मागोवा घेणारे आहे.

पुरस्कार – अरुण साधू यांना अकादमी, न.चिं. केळकर, भैरूरमण दामाणी, फाय फाउंडेशन इ. महत्वाचे पुरस्कार लाभले आहेत.

८० व्या मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

शंकर नारायण नवरे उर्फ शन्ना  (२१ नोहेंबर १९२७- २५ सप्टेंबर २०१३)

शं. ना. नवरे कथाकार, नाटककार, पटकथाकार, म्हणून सुप्रसिद्ध होते. त्यांनी स्तंभलेखनही केले. मध्यमवर्गीय माणसाचे अनुभव आणि भावविश्व त्यांनी आपल्या साहित्यातून रेखाटले. शहाणी सकाळ, मेणाचे पुतळे, कोवळी वर्षे इ. त्यांचे २७ कथासंग्रह आहेत.

जयवंत दळवी यांच्या ‘महानंदा’ कादंबरीवरून त्यांनी ‘गुंतता हृदय हे’, हे नाटक लिहिले. ते अतिशय गाजले. याशिवाय गहिरे रंग, खेळीमेळी, धुक्यात हरवली वाट, देवदास, दोघांमधले नाते, नवरा म्हणू नये आपला, पसंत आहे मुलगी, मन पाखरू पाखरू हीही त्यांची उत्तम नाटके आहेत. जनावर आणि दोन यमांचा फार्स या त्यांच्या एकांकिका प्रसिद्ध आहेत. 

त्यांच्या पटकथा असलेले सारेच चित्रपट अतिशय गाजले. कळत नकळत, कैवारी, घरकुल, तू तिथे मी, निवडुंग, सवत माझी लाडकी, बाजीरावचा बेटा या चित्रपटांच्या पटकथा त्यांनी लिहिल्या.

आनंदाचे झाड, दिवसेंदिवस, दिनमान या त्यांच्या कादंबर्या  तर, झोपाळे आणि शन्नाडे ही त्यांच्या स्तंभलेखनावरची पुस्तके

नोहेंबर २००८मध्ये त्यांना ग.दी. माडगूळकर प्रतिष्ठानचा ग.दी.मा. पुरस्कार मिळाला, तर नोहेंबर २००९ मधे त्यांना डोंबिवली भूषण हा पुरस्कार मिळाला. शं. ना. नवरे यांच्यावर ‘गोष्टीवेल्हाळ शन्ना’ हा लघुपट निघाला आहे. काही जुन्या नाटकांचे दुर्मिळ चलत् चित्रण व जुन्या सहकाऱ्यांनी (डॉ. जब्बार पटेल, विक्रम गोखले, बाळ कुडतरकर, प्रदीप वेलणकर इ.) सांगितलेल्या शन्नांच्या रमणीय आठवणी या लघुपटात अनुभवायला मिळतात.

डोंबिवलीमधे २००३ साली झालेल्या नाट्यसंमेलनाचे त अध्यक्ष होते. त्यांना मिळणार्या् पैशाचा मोठा हिस्सा ते पडद्यामागील कलाकारांसाठी खर्च करत.

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अरुण बाळकृष्ण कोलटकर (१नोहेंबर १९३२- २५ सप्टेंबर २००४ ) 

अरुण बाळकृष्ण कोलटकर हे सुप्रसिद्ध कवी होते. कोलटकरांचा जन्म कोल्हापुरात झाला. त्यांचे शालेय शिक्षण तेथील राजाराम माध्यमिक विद्यालयात झाले. मुंबईच्या सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्‌सचे पदवीधारक असलेले कोलटकर एक उत्तम ग्राफिक्स डिझायनर व जाहिरात क्षेत्रातील अत्यंत यशस्वी कलादिग्दर्शक होते. १९५०–१९६० च्या दशकांत त्यानी लिहिलेल्या कविता या मुंबईतील विशिष्ठ बोली मराठीतल्या असून त्यात मुंबईत आलेल्या निर्वासितांच्या व गुन्हेगारांच्या जीवनाचे दर्शन घडते. उदाहरणार्थ, मै भाभीको बोला / क्या भाईसाबके ड्यूटीपे मै आ जाऊ? / भड़क गयी साली / रहमान बोला गोली चलाऊॅंगा / मै बोला एक रंडीके वास्ते? / चलाव गोली गांडू.

अरुण कोलटकर यांचे प्रकाशित काव्यसंग्रह

अरुण कोलटकरच्या कविता (१९७७), चिरीमिरी (२००४), द्रोण (२००४), भिजकी वही (२००४), अरुण कोलट्करच्या चार कविता

मराठीप्रमाणेच त्यांनी हिन्दी व इंग्रजीमधूनही कविता लिहिल्या.

अरुण कोलटकर यांना लाभलेले पुरस्कार

१.  २००५ चा साहित्य अकादमी पुरस्कार

२.  कुसुमाग्रज पुरस्कार

३.  २००५ चा बहिणाबाई पुरस्कार

४. १९७६ चा राष्ट्रकुल काव्य पुरस्कार

इ. पुरस्कार त्यांना मिळाले.

अरुण कोलटकर हे ’शब्द’ या लघु नियतकालिकाचे रमेश समर्थ व दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे यांच्याबरोबर सहसंपादक होते.

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कमलाकर सारंग (जून २९, इ.स. १९३४ – सप्टेंबर २५ इ.स. १९९८)

कमलाकर सारंग हे मराठी नाट्य-अभिनेते, दिग्दर्शक, निर्माते, लेखक होते. सखाराम बाइंडर व इतर अनेक नाटकांतील यांचा अभिनय विशेष नावाजला गेला. त्यांनी दिग्दर्शिलेली घरटे आमुचे छान, बेबी व जंगली कबूतर ही नाटकेही गाजली.

मराठी नाट्यअभिनेत्री लालन सारंग या यांच्या पत्नी होत.

प्रकाशित साहित्य

कमलाकर सारंगानी सखाराम बाइंडर नाटकाच्या वेळच्या आठवणींवर “बाइंडरचे दिवस” नावाचे पुस्तक लिहिले.

कमलाकर सारंग यांच्यावर नाट्यप्रेमी कमलाकर सारंग हे पुस्तक अनुराधा औरंगाबादकर यांनी लिहिले आहे.

आज साहित्यिक अरुण साधू, शं. ना. नवरे, अरुण कोलटकर आणि नाटककार कमलाकर सारंग यांचा स्मृतीदिन. त्यानिमित्त त्यांना आदरांजली.?  

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सौ. उज्ज्वला केळकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी , गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २४ सप्टेंबर – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ २४ सप्टेंबर – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे– ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

मराठी लेखक, शब्दकोशकार व अनुवादक म्हणून प्रसिद्ध असलेल्या श्री. श्रीपाद रघुनाथ जोशी यांचा आज स्मृतिदिन .  ( कोल्हापूर जिल्हा, इ.स. १९२० – २४ सप्टेंबर, इ.स. २००२ )

जोशी यांनी महात्मा गांधींच्या नेतृत्वाखाली झालेल्या भारतीय स्वातंत्र्य चळवळीत भाग घेतला. त्याबद्दल त्यांना ब्रिटिश सरकारने ठोठावलेल्या शिक्षेमुळे १९४२ ते १९४४ या काळात येरवडा तुरुंंगात कारावास भोगावा लागला. महात्मा गांधींशी त्यांचा व्यक्तिगत पत्रव्यवहार होता.

कै. कृ.पां. कुलकर्णी यांच्या मराठी व्युत्पत्तीकोश या मौल्यवान ग्रंथात अरबी, तुर्की, फारसी भाषांतून आलेल्या शब्दांची नीटशी दखल घेतली गेली नसल्याने, प्रकाशकाच्या विनंतीनुसार श्रीपाद जोशी यांनी ७५ पृष्ठांची पुरवणी तयार केली व ती त्या व्य़ुत्पत्ती कोशाला जोडण्यात आली, आणि हा व्युत्पत्तीकोश परिपूर्ण करण्याचे महत्वपूर्ण काम जोशींनी केले. ग्रंथाची तिसरी आवृत्ती इ.स. १९९३ मध्ये प्रकाशित झाली. श्री. जोशी यांनी हिंदी-मराठीत विविध विषयांवरील सुमारे १९४ पुस्तके लिहिली. त्यांपैकी किमान सात पुस्तके महात्मा गांधींच्या आयुष्याच्या विविध अंगांबद्दल होती, तर एक मुसलमानी संस्कृतीबद्दल होते. याशिवाय जोशींनी लिहिलेल्या प्रवासवर्णनाचे ७ खंड आहेत. त्यांनी काही उर्दू काव्याचे मराठी भाषांतरही केले.

श्रीपाद रघुनाथ जोशी यांनी जी बरीच पुस्तके लिहिली. त्यातील काही पुस्तके अशी —–

अखेरचं पर्व / अनंंता काय रे केलंस हे? / आनंदी गोपाळ / उलगाउलग (१९८३) : श्रीपाद जोशींना त्यांचे उर्दू-मराठी-हिंदी शब्दकोश तयार करताना संबंधितांनी जो मनस्ताप दिला त्याची हकीकत सांगणारे पुस्तक / ग. दि. माडगूळकर वाङ्मयदर्शन / गांधीजी : एक झलक / उर्दूची नवरत्नें / कस्तुरीचे कण / ग्रामीण विकासाची वाटचाल / जिब्रानच्या नीतिकथा / रवींद्रनाथ आणि महाराष्ट्र —- ही पुस्तके फक्त उदाहरणादाखल इथे नमूद केली आहेत.

श्रीपाद जोशी यांनी लिहिलेले शब्दकोश——

—–मराठी हिंदुस्तानी कोश (१९४०) : याचे मुख्य संपादक वामनराव चोरघडे यांनी खरंतर फक्त मराठी शब्द निवडले होते आणि त्यांना हिंदुस्तानी प्रतिशब्द देण्याचे काम श्रीपाद जोशी आणि माधवराव सावंत यांनी केले होते.

—–मराठी हिन्दुस्तानी कोश (सुधारित, १९५२) :तुरुंगात बसल्याबसल्या श्रीपाद जोशींनी पहिल्या कोशाचा हा नवा सुधारित कोश तयार केला. या कोशात मराठी आणि हिंदुस्तानी या दोनही भाषांतील शब्दांचे व्याकरण दिले होते. मात्र मूळ मराठी शब्द कोणत्या भाषेतून आला त्याची माहिती नव्हती. हिंदी भाषकांना मराठी उच्चार कळावेत म्हणून च, छ, ज आणि झ खाली जरूर तेव्हा नुक्ते दिले होते. या कोशात १४,००० शब्द होते. 

——विद्यार्थी हिंदी-मराठी कोश.

—– हिंदी-मराठी-गुजराती-इंग्रजी कोश : वोरा आणि कंपनीच्या नानूभाई व्होरा यांच्या आग्रहास्तव हाती घेतलेल्या या कोशाचे काम पूर्ण होऊ शकले नाही..

——अभिनव शब्दकोश : कोशाच्या पहिल्या भागात हिंदी शब्दांना मराठी व हिंदी प्रतिशब्द दिले होते, तर दुसऱ्या भागात मराठी शब्दांना हिंदी प्रतिशब्द दिले होते. या कोशात उर्दू (अरबी-फारसी) शब्दांचा चांगलाच भरणा होता. शिवाय हिंदी-मराठी वाक्‌प्रचार, म्हणी आणि इतर उपयुक्त माहिती कोशात दिली होती. या कोशाच्या १९९६ सालापर्यंत एकूण सहा आवृत्त्या निघाल्या.

——उर्दू-मराठी शब्दकोश 

——बृहत्‌ हिंदी-मराठी शब्दकोश, तसेच बृहत्‌ मराठी-हिंदी शब्दकोश :  या कोशावर संपादक म्हणून गो.प. नेने यांचे नाव आहे, पण प्रत्यक्षात त्यांनी या शब्दकोशातला एकही शब्द लिहिलेला नाही. सगळे काम  जोशी यांनीच केले होते. 

——उर्दू-मराठी-हिंदी त्रैभाषिक कोश : (१९६२) : खरंतर हा संपूर्ण कोश श्रीपाद जोशी यांनी एकट्याने केला होता.   पण अरबी-फारसीचे अर्धवट ज्ञान आणि मराठीबाबत पूर्ण अज्ञान असलेले तथाकथित विद्वान डॉ. निजामुद्दीन एस. गोरेकर या माणसाने कोशातल्या शब्दोच्चारांमध्ये, दुरुस्त करता टेंडर नाही इतकी ढवळाढवळ केली आणि कोशावर स्वतःचे नाव समीक्षक-संपादक म्हणून टाकले. श्रीपाद जोशींना हा कोश प्रकाशनानंतर सहा वर्षांनी पहायला मिळाला, तेव्हा त्यांना कोशातल्या या अक्षम्य चुका दिसल्या. मुद्रण प्रतीचे संपादन व प्रुफे तपासणाऱ्याचे नाव पुस्तकावर समीक्षक संपादक म्हणून छापल्याचे हे एकमेव उदाहरण असावे. असे का केले हे विचारले असता, ‘पुण्याचा हिंदु-ब्राह्मण असलेल्या माणसाला’ काय उर्दू येणार ? असा विचार करून महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृती महामंडळाने कोशावर एका मुसलमानाचे समीक्षक संपादक म्हणून नाव टाकल्याचा खुलासा महामंडळाने केला ! या कोशाची दुसरी आवृत्ती निघाली, त्यावेळी श्रीपाद जोशींनी  सुचवलेल्या दुरुस्त्या धुडकावून लावून महामंडळाने त्याच जुन्या कोशाचे पुनर्मुद्रण केले.—- हा तपशील इथे आवर्जून नमूद करावासा वाटतो. 

—-उर्दू-मराठी-हिंदी शब्दकोश : हा २०,००० शब्दांचा नवा शब्दकोश श्रीपाद जोशींनी बनवला होता.

इतकी पुस्तके आणि लेखकांसाठी अतिशय उपयुक्त आणि आवश्यक असणारे इतके सारे भाषा-कोश लिहिणाऱ्या श्री. श्रीपाद रघुनाथ जोशी यांना विनम्र आदरांजली .🙏

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सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे 

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

 

मंजुषा सुनीत मुळे ,

ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ ,

मराठी विभाग .

 

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