श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( प्रभावसहित ज्ञान का विषय )

 

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ।

भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः ।।5।।

 

सब मुझमें हो अलग है यही ईश्वरी योग

सबका पोषक प्रकाशक मैं ही यह संयोग।।5।।

 

भावार्थ :  वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है।।5।।

 

Nor do beings exist in Me (in reality): behold My divine Yoga, supporting all beings, but not dwelling in them, is My Self, the efficient cause of beings.।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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