श्री मनजीत सिंह
(ई-अभिव्यक्ति में प्रख्यात कवि, नाटककर, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता श्री मंजीत सिंह जी का हार्दिक स्वागत। आप ख़ान मंजीत भावड़िया “मजीद” के नाम से प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में वे पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला से भाषा विज्ञान में पी एच डी कर रहे हैं और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं और उर्दू भाषा के संरक्षण व प्रचार प्रसार के प्रति समर्पित हैं। उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों में “हरियाणवी झलक” (काव्य संग्रह) और “बिराणमाट्टी” (नाटक), रम्ज़ ए उर्दू, हकीकत, सच चुभै सै शामिल हैं, जो हरियाणा की संस्कृति और सामाजिक जीवन की झलक प्रस्तुत करती हैं। उनके साहित्यिक कार्यों को हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा उर्दू अकादमी, वैदिक प्रकाशन और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया है। साहित्य और शिक्षा के साथ-साथ, ख़ान मनजीत अपने पारिवारिक परंपरा से जुड़े हुए एक कुशल कुम्हार (पॉटर) भी हैं।)
आज प्रस्तुत है श्री कपिल भारद्वाज जी द्वारा लिखित पुस्तक “बौने प्रहसन और अन्य कविताएं (काव्य संग्रह)” पर चर्चा।
☆ “बौने प्रहसन और अन्य कविताएं (काव्य संग्रह)” – कवि- श्री कपिल भारद्वाज ☆ चर्चा – श्री मनजीत सिंह ☆
पुस्तक चर्चा
पुस्तक — बौने प्रहसन और अन्य कविताएं (काव्य संग्रह)
कवि- श्री कपिल भारद्वाज
पृष्ठ संख्या – 114
कीमत – 169 रुपए (पेपर-बैक)
प्रकाशक – न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन प्रा लि
☆ यह एक पुस्तक नहीं बल्कि गरीब, वैश्याओ, मजदूरों की आत्मा की आवाज़ है – श्री मनजीत सिंह ☆
मुझे आज एक पुस्तक मिली जो कि श्री कपिल भारद्वाज द्वारा रचित कविता संग्रह “बौने प्रहसन” जो एक उम्दा और दिमाग के तारों को हिला देने वाली है। इस काव्य संग्रह में वाकई जबरदस्त लेखनी का प्रयोग किया है। बेबाक बेखौफ आस-पास घट रही घटनाओं को कविताओं की लड़ी में पिरोया है। ऐसी लड़ी जो भगवान को भी उसी के घर के सामने खड़ा कर देती है। पहली कविता प्रेम जो महसूस करवाती है कि प्रेम ऐसा होना चाहिए जो स्याह काली रात को भी सौन्दर्य में बदल दें। प्रेम ऐसा हो जो जाति, धर्म से ऊपर उठकर रोटी का सवाल करे। काला रंग जो जीवन में रंग भर दे, जो एक श्यामपट का काम करती हो। कितनी जिन्दगी के बुलबुले को रंगने से जिन्दगी रंगीन बनती है। जिस तरह शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर किसी सवाल को बताना विद्यार्थी के अन्दर वह रोशनी भर देता है। ठीक उसी तरह यह कविता भी रंग भरने का काम कर रही है। ‘तानाशाह मुस्कुरा नहीं सकता’ बहुत ही आला दर्जे की कविता है, जो बता रही है कि समाजवाद की तरफ बढ़ो और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करो। यह बताता है कि तानाशाह हमेशा गुलाम बनाकर रखता है। इस कविता में वह हिटलर का जिक्र करता है, क्योंकि तानाशाह के अन्दर प्रेम नहीं होता है। वह प्रेम की परिभाषा नहीं जानता। हां वह लुटेरा है, मालिक है मजदूरों का, राजा है प्रजा का, मजदूर वर्ग का, सत्ता का, और सरकार ही किसानों और मजदूरों के अभी तक के शोषण, अन्याय, भेदभाव और गैर-बरावरी का हिसाब मांग रही है। कविता अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है। प्राचीन काल में काव्य में काव्य और प्रतीकात्मकता को बहुत महत्व दिया जाता था, लेकिन आधुनिक काल में कविता काव्य और प्रतीकात्मकता से स्वतंत्र हो गई है। कविताओं में प्रतीकात्मकता और अलंकरण की आवश्यकता समाप्त हो गई और नई कविता का युग शुरू हुआ। वस्तुतः कविता में अर्थ तत्व प्रधान होता है। रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। यह आज भी काव्य का सर्वोत्तम तत्व है। श्री कपिल भारद्वाज ने अपनी एक अलग लहर चलाई जो भविष्य में जाकर एक समुन्दर का काम करेगी । यह एक पुस्तक नहीं बल्कि गरीब, वैश्याओ, मजदूरों की आत्मा की आवाज़ है ।
आज मुक्त छंद कविता की नदियाँ बह रही हैं। मुक्त कविताओं में कविता का कोई प्रयास नहीं था; मेरे लिए भावना ही मुख्य तत्व है। आज की कविता में मन में उमड़ते भाव, मन में आए विचार और अनुभव प्रेरणादायी थे और कविताएं मनमोहक थीं। लेकिन इन कविताओं में एक लय है, भावना की एक लय है, जो पाठक को बांधे रखती है। अगर दिल में कोई तीखा कांटा चुभता है। उसका इलाज भी इसी किताब में दिया है।एक अज्ञात बुराई पूरे व्यक्तित्व पर छाई रहती है और हमारी भावनाओं को उत्पन्न करने के लिए कुछ करना पड़ता है। परिस्थिति के वातावरण ने, समय के लम्बे अंतराल ने, हमारी सृजनात्मक क्षमताओं को बढ़ाया, यहां तक कि जब अवसर आया, तो हमारे हृदय में जो एकमत भावनाएं, विचार और भावनाएं थीं, वे भी पूरी तरह अभिव्यक्त हुईं हैं। जलती हुई आग को बुझाने के लिए बस एक अवसर की आवश्यकता थी, और फिर जन्म की पीड़ा के बाद जो सामने आया वह सृजन और गहन अनुभूति का एक आनंदमय चरमोत्कर्ष था। यह कविता संग्रह प्रेम के बाद उत्पन्न होने वाले अनुभवों का संग्रह है।
उनकी कविताओं में जीवन के अनेक रंग हैं। आपकी कविता ‘कुंवारी लाईब्रेरी’ जीवन के संघर्ष का वर्णन करती है।
कौन सी भाषा में बिलखता है बच्चा
और
बिछड़ते वक्त उसने कहा
मैं तेनू फिर मिलांगी।
बदलते समय के साथ रिश्ते भी बदल रहे हैं। कवि ने इस रिश्ते को इस प्रकार प्रस्तुत किया है:
आदमी होने की संभावना कितनी कम बची है
से पता चलता है आज कल के रिश्ते का जोकर, निरापद, कविता -1, दिसंबर -1 आदि में। कविताओं में मौसम का रंग न हो तो क्या फायदा? कविताएँ केवल सुहावने मौसम में ही स्वीकार की जाती हैं। कवि फागुन के सुंदर रंगों को उकेरते हुए कहता है:
प्रेम कविताएं कितनी अच्छी है।
कवि का रक्त चाप, इंतजार, लोकतंत्र की वेज बिरयानी वाकई जबरदस्त हैं।
कवि समाज में व्याप्त बुराइयों पर भी प्रहार करता है। चाहे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध हों, प्रेमी -प्रेमिकाओ के बढ़ते अपराध हों, सांप्रदायिकता का जहर हो, भीड़ द्वारा घेर लिए जाने और क्रूर हत्याओं का भय हो, रूढ़िवादिता में फंसा जीवन हो या मानवीय भावनाओं को ठेस पहुंचाना हो, वे चीखते हैं। कवि को छोड़कर किस ने इस पर विचार किया है। इतना ही नहीं, कवि ने निराशा व्यक्त करके इस घने अंधकार में हमेशा आशा का एक छोटा सा दीपक जलाया है।
विरह की बरछी,सोशल मीडिया और हमारे जीवन का अंधेरा, दुःख आदि कविताएं भावनाओं से काव्य सृजन करने की दृष्टि से भी उत्कृष्ट हैं। कविता की भाषा में एक प्रवाह, एक लय होती है। कवि ने कुछ ही शब्दों में बहुत ही सुन्दरता और वाक्पटुता से कोई बात कह दी है। कविताओं में सौन्दर्य है। कवि अपनी भावनाओं को कुछ शब्दों में और कुछ छवियों के माध्यम से व्यक्त करना सबसे अच्छा जानता है, और यह चित्रात्मक नियम पाठक को स्थिरता प्रदान करता है। कविता विचारों और भावनाओं को सरल और सीधे ढंग से प्रस्तुत करती है, जिससे पाठक के लिए कविता का अर्थ समझना आसान हो जाता है। पुस्तक का आवरण, चित्र की शैली का है, जो दिलचस्प है। यह कविता प्रेमियों के लिए एक अच्छा कविता संग्रह है।
चर्चाकार… श्री मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक (उर्दू), कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र
manjeetbhawaria@gmail.com
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈