श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पाठकनामा…“।)
अभी अभी # 701 ⇒ पाठकनामा
श्री प्रदीप शर्मा
हम सब पढ़े लिखे इंसान हैं। जो पढ़ता है, वह पाठक कहलाता है, और जो लिखता है, वह लेखक कहलाता है। हम पहले पढ़ना सीखते हैं और बाद में लिखना ! अक्षर ज्ञान में हम पहले अक्षर को पहचानते हैं फिर उसे लिखने की कोशिश करते हैं। एक अनार से हिंदी के पहले अक्षर की पहचान होती है और एक apple से अंग्रेजी के पहले word की। इस तरह शुरू होता है जिंदगी का पहला पाठ ! एक अनार सौ बीमार और An apple a day, keeps the doctor away.
हर पढ़ने वाला एक पाठक हो सकता है, लेकिन हर लिखने वाला लेखक नहीं हो सकता।
पढ़ने के लिए तो खैर पाठ होता है, लेकिन लिखने के लिए सिर्फ सुंदर लेखन होता है। जब देश में टाइपराइटर नहीं थे, तब सुंदर लिखने वाले अच्छे अर्जीनवीस बन जाते थे, जिन्हें दस्तावेज़ लेखक अथवा पिटीशन राइटर भी कहते थे। हनुमंत राव, मार्तण्ड राव भुसारी एक ऐसे ही पिटीशन राइटर थे, जिनके हाथ के लिखे दस्तावेज़ आज धरोहर बन गए हैं। ।
हर लेखक एक अच्छा पाठक होता है। पाठक का लेखक होना जरूरी नहीं ! सुरेंद्र मोहन पाठक एक अच्छे लेखक हैं इसलिए उनके करोड़ों पाठक हैं। प्रेमचंद, यशपाल और शरद बाबू के पाठकों की संख्या कोई नहीं गिनता। किसने उन्हें नहीं पढ़ा ? मैने अच्छे लेखकों को पढ़ा है, लेकिन सुरेंद्र मोहन पाठक को नहीं पढ़ा। मैं जानता हूं, मेरे नहीं पढ़ने से उनकी पाठक संख्या नहीं घटने वाली।
हर पाठक की अपनी पसंद होती है, और अपनी पसंद का लेखक ! आप अपनी पसंद किसी पर थौंप नहीं सकते। हर अच्छा लेखक, एक अच्छा पाठक ढूंढा करता है, और हर अच्छा पाठक, एक अच्छा लेखक। बस यहीं से पाठक, लेखक का रिश्ता कायम हो जाता है। लेखक अपनी कृतियों के कारण अमर हो जाते हैं, पाठकों की पीढ़ियां आती रहती हैं, जाती रहती हैं। कुछ तो है उनके लेखन में, यूं ही नहीं दिल लगाता कोई। ।
हर अच्छे पाठक में एक लेखक की संभावना होती है। कहीं इस संभावना को अवसर और प्रोत्साहन मिल जाता है तो कहीं इसकी भ्रूण हत्या हो जाती है। जो अपनी लेखनी को निरंतर मांजते रहते हैं, कुछ ना कुछ लिखते और छपते रहते हैं, उन्हें आखिरकार सफलता हाथ लगती ही है। अखबारों में पत्र संपादक के नाम लिखने वाले कई सुधी पाठक आगे चलकर अच्छे लेखक साबित हुए हैं। एक अच्छी शुरुआत अच्छे ही परिणाम देती है।
जिस तरह आप एक पाठक को पढ़ने से नहीं रोक सकते, एक लेखक अपने आपको लिखने से नहीं रोक सकता। विचारों का सृजन, उसकी अभिव्यक्ति और उसके कद्रदान जब तक मौजूद हैं, यह सिलसिला अनवरत चलता रहेगा, नदी के प्रवाह की तरह, क्योंकि सृजन का आकाश कभी सूना नहीं होता, और पाठक रूपी चातक, अपनी प्यास बुझा ही लेता है। सृजन की धारा ही अमृत धारा है। ।
लेखक की अपनी सीमाएं हैं और पाठक की अपनी ! लेखक वही लिखता है, जो पाठक चाहता है, और पाठक वही पढ़ता है, जो लेखक चाहता है। जब दोनों के बीच बाज़ार आ जाता है, तो दोनों मजबूर हो जाते हैं। जो बिकेगा वही लिखा जाएगा। पाठकों की रूचि के अनुसार जब लेखन होगा, तो वह स्वांत: सुखाय हो ही नहीं सकता। प्रेमचंद, रेणु, जैनेंद्र ने जो लिखा, पाठकों ने पसंद किया, उन्हें सर माथे बिठाया, क्योंकि उनके लेखन में सामाजिक चेतना थी, सच्चाई थी।
हर पीढ़ी कुछ नया चाहती है। अच्छे पाठक ही आगे चलकर अच्छे लेखक बनते हैं। काश मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव जैसी तिकड़ी फिर कथादेश में अवतरित हो, कोई आवारा मसीहा, कोई गुनाहों का देवता फिर से सुधी पाठकों पर मेहरबान हो, पुनः नीड़ का निर्माण हो, फिर कोई मनोहर श्याम कुरु कुरु स्वाहा करे, बहुत हुआ राग दरबारी और महाभोज, अब कुछ आपके बंटी के लिए भी हो जाए। पाठक की भी कुछ अपनी पसंद हो जाए, तो लेखन में भी नीर क्षीर विवेक पुनः स्थापित हो जाए। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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