श्री यशवंत गोरे

(सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं लेखक श्री यशवंत गोरे जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। 37 वर्ष तक भारतीय स्टेट बैंक में सेवा देने के बाद अधिकारी पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन  शैक्षणिक समय से लेखन में रूचि सबसे पहला लेख योजना आयोग की पत्रिका ‘योजना’ हिंदी में 1979 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद विभिन्न समाचार पत्रों में नईदुनिया, दैनिक भास्कर, जनसत्ता , फ्री प्रेस जर्नल, नवीन सोच अदि समाचार पत्रों में समसामयिक विषयों एवं समस्याओं पर टिप्पणियां प्रकाशित हुई है। सेवानिवृति पश्चात् व्यंग्य लेखन। देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं यथा सुबह-सवेरे , नईदुनिया , जनसंदेश टाइम्स , जनसत्ता , जनवाणी , अमृत-दर्शन , इंदौर समाचार एवं न्यूयार्क से प्रकाशित साप्ताहिक ” हम हिंदुस्तानी। आज प्रस्तुत है स्व शरद जोशी जी के जन्मदिवस पर आपका विशेष आलेख “व्यंग्य लेखन में अपनी अलग पहचान बनाने वाले व्यंग्यकार थे शरद जोशी “।)

? जन्मदिवस विशेष – व्यंग्य लेखन में अपनी अलग पहचान बनाने वाले व्यंग्यकार थे शरद जोशी ? श्री यशवंत गोरे ?

(21 मई को जन्मदिन पर विशेष ) 

हिन्दी साहित्य जगत में अपने व्यंग्य लेखों के कारण प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि ‘ शरद जोशी का आज – दिनांक 21 मई को जन्मदिन है , आपका जन्म मध्य प्रदेश के ही उज्जैन जिले में सन 1931 में हुआ था जोशी जी का परिवार एक कर्मठ एवं कर्मकांडी ब्राह्मण परिवार था। बचपन में शरद जी को ‘ बच्चू ‘ नाम से पुकारा जाता था। शरद जोशी जी का परिवार मूल रूप से गुजरात का रहने वाला था जो मालवा क्षेत्र के उज्जैन में में आकर बस गया था। आपके पिताजी श्रीनिवास जोशी, माताजी शांति जोशी जो बहुत ही धार्मिक संस्कारों वाली महिला थी। शरद जी के पिता मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में एक छोटी सी नौकरी डिपो मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। निगम की तबादला नीति के कारण उनका तबादला प्रदेश के विभिन्न शहरों में होता रहता था। इस कारण शरद जी का बचपन – महु, उज्जैन, नीमच, देवास, गुना जैसे शहरों में बीता। शरद जी का अपनी मां से बहुत लगाव था उनका तपेदिक से अल्पायु में ही निधन हो गया, तपेदिक उस समय एक असाध्य रोग था। माताजी के निधन से शरद जी बहुत निराश और उदास रहने लगे। इस संकट की घड़ी में उनके कुछ मित्रों ने उन्हें संभाला।

शरद जी की प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई बाद में आपने इंदौर के होलकर महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शरद जी को स्कूली जीवन से ही लिखने का शौक लग गया था। उनके लेख पत्र -पत्रिकाओं में छपना शुरू हो गए थे ,इससे उन्हें कुछ आमदनी भी होने लगी थी। अपनी उच्च शिक्षा का खर्च उन्होंने अपने लेखों से प्राप्त पैसों से ही पूरा किया।

वर्ष 1955 में दौरान शरद जी ने आकाशवाणी इंदौर में पांडुलिपि लेखक के रूप में काम शुरू किया। इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार के सूचना विभाग में ‘ जनसम्पर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे , लेकिन एक ही स्थान पर – एक ही जैसा काम करना उनके स्वभाव में नहीं था सो उन्होंने ये नौकरी छोड़ दी , और स्वतंत्र पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने लगे।

सामान्य शारीरिक कद काठी वाले शरद जी को उनकी विशिष्ट दार्शनिकता, बौद्धिकता, व्यंगात्मक सोच , उन्हें एक अलग विलक्षण , अद्भुत व्यक्तित्व प्रदान करती है , जो एक साधारण होते हुए भी असाधारण व्यक्तित्व थे, वे अपने मित्रों के मित्र, साहित्यकारों में साहित्यकार बन जाते थे।

एक कट्टर ब्राह्मण- धार्मिक परिवार के होने के बावजूद उन्होंने एक मुस्लिम लड़की ‘ इरफाना ‘ से प्रेम विवाह किया था, ये विवाह उनके प्रगतिशील विचारवान व्यक्तित्व की एक बड़ी पहचान है, उनकी पत्नी ने भी उनका हमेशा साथ दिया, अपने वैवाहिक जीवन में वो संतुष्ट और खुश रही। इस दम्पति की दो बेटियां है । नेहा शरद एक भारतीय टेलीविजन अभिनेत्री और कवयित्री हैं। उन्होंने टीवी शो में काम किया है, जिनमें तारा, वक्त की रफ्तार, ममता  गुमराह, ये दुनिया गजब की और फरमान शामिल हैं।

सन 1951 से अगले कई दशकों तक शरद जी की रचनाएं देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही, इंदौर के सुप्रसिद्ध समाचार पत्र ‘ नई दुनिया ‘ में सन 1951 से ‘ परिक्रमा ‘ नाम के स्तंभ में नियमित रूप से लिखना शुरू किया जबकि उस समय उनकी आयु थी 20 वर्ष थी। धीरे-धीरे उनकी पहचान पुरे देश में एक व्यंग्य लेखक के रूप में कायम हो गयी। 

आपकी कुछ व्यंग्य रचनाओं के प्रमुख संग्रह है – “परिक्रमा”, “जीप पर सवार इल्लियाँ”, “मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ”, “यथा संभव”, “हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे”, “जादू की सरकार”, “राग भोपाली”।  आपने ‘एक था गधा उर्फ अलादाद’ तथा ‘अंधो का हाथी’ व्यंग्य नाटक भी लिखे है। आपने फिल्मों के लिये भी लेखन कार्य किया है ये फिल्में है क्षितिज, छोटी सी बात, सांच को आंच नहीं, गोधूलि, दिल है के मानता नहीं, उत्सव आदि। 

टेलीविजन धारावाहिक- ये जो है जिन्दगी, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, देवी जी, प्याले में तूफान, ये दुनिया गजब की, ये सब उनकी लेखनी का ही कमाल है।

उनके स्वर्गवास के बाद उनकी लिखी रचनाओं पर आधारित टेलीविजन धारावाहिक ‘ लापतागंज ‘ बहुत लोकप्रिय रहा है।

शरद जोशी जी ने भोपाल के समाचार पत्र ” दैनिक मध्य देश ‘ , मासिक पत्रिका ‘ नवल लेखन ‘ तथा मुम्बई के दैनिक ‘ हिन्दी एक्सप्रेस ‘ के संपादक का काम भी संभाला। अन्तिम कॉलम ‘प्रतिदिन’ नवभारत टाइम्स में लगातार 7 वर्षों तक छपा।आपको भारत सरकार द्वारा सन 1990 में ‘ पद्मश्री ‘ से अलंकृत किया गया है। वे सरकारी पुरस्कारों से बचते रहे। शरद जी पीएचडी. के घोर विरोधी रहे पर आज शरद के साहित्य पर कई पीएच.डी. हो गए है। निराला सृजन पीठ की निदेशक डा. साधना बलवटे जी ने शरद जी पर ही पीएचडी की है। शरद जोशी जी लगभग 25 वर्षों तक देश के बड़े कवि सम्मेलनों के स्टार कवि रहे है। जब उन्हें स्टेज पर बुलाया जाता था तब तक रात के दो बज चुके होते थे फिर भी उनको सुनने के लिए हजारों की संख्या में उपस्थित रहते थे।

5 सितम्बर 1991 को शरद जोशी जी उनकी साँस और कलम दोनों थम गई।

आदरणीय शरद जी को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वे “अपने समय के कबीर थे। शरद जोशी को मैं एक अत्यन्त संवेदनशील रचनाकार मानता हूँ, अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को उन्होंने अत्यन्त पैनी निगाह से देखा और उसे अत्यंत सटीक शब्दों में व्यक्त किया। उनकी रचनाओं को मैं अपने समय की विसंगतियों पर की गई निर्भीक टिप्पणियाँ मानता हूँ, वे अत्यन्त साहसी तथा द्वन्द -रहित रचनाकार थे, उनके सामने जीवन के उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट थे। अपने इस गुण के कारण वे सबके प्रिय लेखक बन गए थे। उनकी व्यंग्य रचनाएँ टूटते हुए जीवन मूल्यों के प्रति उनकी चिन्ता तथा छीना-झपटी और आडम्बर युक्त संस्कृति के प्रति उनके आक्रोश को अभिव्यक्ति करती है। जब तक रचनाकार अपने जीवन में ईमानदार नहीं होना, तब तक उसकी व्यंग्य रचनाओं में वह तीखापन नहीं आ सकता, जैसा की शरद जोशी की रचनाओं में था। छोटे-छोटे विषयों को भी अपनी स्याही का स्पर्श देकर बड़ा कर देने की गजब की चमत्कारिक शक्ति उनके पास थी। मैं समझता हूँ जोशी जी में जो वह लेखकीय संवेदना थी, सामाजिक प्रतिबद्धता थी तथा व्यवहार और विचारों का जो सामंजस्य था, वह हमारे देश के रचनाकारों के लिए एक अनुकरणीय बात है।”

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री यशवंत गोरे

व्यंग्यकार एवं लेखक

संपर्क – 37 ,निखिल बंगलो , कुंजन नगर , फेस -2, नर्मदापुरम (होशंगाबाद) रोड़, भोपाल

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments