श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अंतर्ज्ञान…“।)
अभी अभी # 674 ⇒ अंतर्ज्ञान
श्री प्रदीप शर्मा
= INTUITION =
जानने की प्रक्रिया को ज्ञान कहते हैं। इसके लिए ईश्वर ने हमें एक नहीं पांच पांच ज्ञानेंद्रियां प्रदान की हैं। पांच ही कर्मेंद्रियों से मिल जुलकर इस मनुष्य का यह विलक्षण व्यक्तित्व बना है।
चेतन शक्ति, आप जिसे चाहें तो प्राण भी कह सकते हैं, हमारे पंच तत्वों से निर्मित शरीर में सततप्रवाहित होती रहती है।
हमारा उठना, बैठना, सोना, जागना, ऊंघना, हंसना, रोना, देखना, सुनना, बोलना, चखना, छूना जैसी सभी नियमित क्रियाएं मन मस्तिष्क द्वारा संचालित होती है। हमें लगता है, हम ही सब कुछ कर रहे हैं। जब कि सब कुछ अपने आप ही ही रहा है।
अगर आप ही कर्ता हैं, सब कुछ कर रहे हैं, तो रोक दीजिए सब कुछ। आँखें खुली रखिए और कुछ मत देखिए, मत सुनिए कुछ भी इन दोनों कानों से, सांस तो आप ही ले रहे हैं न। मत लिजिए एक दो दिन सांस, क्या बिगड़ जाएगा।
भूख प्यास का क्या है, रह लेंगे कुछ दिन भूखे प्यासे।
आते जाते विचारों पर भी पहरा बिठा दीजिए। अगर विचार अतिक्रमण करते हैं, तो उन पर बुलडोजर चला दीजिए।।
मन, बुद्धि और अहंकार भी आपका नहीं है। इसलिए अब मान भी जाइए, आपका अपना कुछ भी नहीं है। आपको इस पावन धरा पर उतारा गया है और आप अपने आप में एक सर्वगुण संपन्न, एक मानव हैं। A perfect human being creation of God, The Almighty!
मनुष्य जब पैदा होता है तो एक अबोध बालक होता है। शारीरिक विकास के साथ साथ ही उसका मानसिक विकास भी होता चला जाता है। सीखने की प्रवृत्ति उसकी जन्मजात ही होती है। परिवार और परिवेश के अलावा स्कूल वह स्थान होता है, जहां से वह सीखता है, ज्ञान अर्जित करता है। अनुशासित ज्ञान को अध्ययन कहते हैं। ज्ञान के स्तर को डिग्री में विभाजित किया गया है।
आप पढ़ते रहें, डिग्रियां हासिल करते रहें।
अध्ययन के लिए हमें ट्यूशन भी लेनी पड़ती है जो आज की भाषा में कोचिंग कहलाती है। सीखना एक सतत प्रक्रिया है जो अनुशासित डिग्रियां हासिल करने के पश्चात भी कभी खत्म नहीं होती। बाहरी ज्ञान की कोई सीमा नहीं। नौकरी धंधे और कामकाज में लग जाने के बाद कौन इंसान बाल भारती भाग १ और फिजिक्स केमिस्ट्री और बायोलॉजी पढ़ता है। अब काहे की पढ़ाई, काहे की ट्यूशन और काहे की परीक्षा। अब तो गाड़ी चल निकली।।
ट्यूशन अगर बाहरी ज्ञान है, तो इन्ट्यूशन अंतर्ज्ञान ! एक ज्ञान का भंडार हमारे अंदर भी है जिसका बाहरी ज्ञान से कोई संबंध नहीं होता। हम सोचते, समझते ही नहीं, चिंतन मनन भी करते हैं। हमारी कुछ आंतरिक प्रतिभाएं समय और परिस्थिति के साथ उभरकर बाहर आती हैं।
साहित्य, संगीत और अन्य ललित कलाओं को बस एक बार अवसर मिला और टूटे बांध की तरह वह प्रवाहित होने लगती है।
धुन, ध्यान और अंतर्ज्ञान को आप अलग नहीं कर सकते। बाहरी प्रकृति और हमारे अंदर की सृजन की प्रवृत्ति का जब मेल होता है तो एक महाकाव्य की रचना होती है। संगीत की कोई धुन किसी किताब अथवा साज से नहीं निकाली जाती, वह धुन अंदर से प्रकट होती है बाहर तो सिर्फ उसका स्वरूप ही दिखाई देता है।
टैगोर की गीतांजलि किसी शब्दकोश अथवा थिसारस या इनसाइक्लोपीडिया की उपज नहीं, यह कवि का अंतर्ज्ञान है जो सरिता की तरह सतत प्रवाहित होता रहता है।।
विश्व के अधिकांश वैज्ञानिक प्रयोग, खोज हों या अविष्कार, धुन, ध्यान और अंतर्ज्ञान का ही परिणाम हैं। कितनी विचित्र विधा है यह अंतर्ज्ञान ! ज्ञान पहले अंदर गया और बाद में कोई सिद्धांत बनकर बाहर निकला। एक चेतन मन तो है ही, एक अवचेतन मन भी है, जिसकी स्मृति के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। चेतना के ऊपर पराचेतना का भी अस्तित्व है। अंतर्दृष्टि और अंतर्ज्ञान असीमित है।
एक गीत है, एक आवाज है, एक धुन है। हमें सिर्फ सुनाई देती है लेकिन उसका प्रभाव देखिए, आंख खोलकर नहीं, आंख बंद कर कर, कान खोलकर ;
मेरी आंखों में बस गया कोई रे, मैं क्या करूं …
क्या यह अतिक्रमण नहीं। रोक सकें तो रोकिए इसे। चलाइए बुलडोजर। यह धुन है, ध्यान है, अंतर्ज्ञान है। नमन उन अनंत विलक्षणप्रतिभाओं को जिनका प्रकाश सूर्य की तरह सदा, सर्वत्र दैदीप्यमान है।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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