प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ आतंक और विनाश ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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आतंक मिटाता ज़िन्दगी, करता सदा विनाश,
यह समझें हैवान यदि, तो बदलेगा मौसम।
ख़ूनखराबा कब तक होगा, बतलाओ तुम मुझको,
पहलगाम जैसी जगहों पर होगा कब तक मातम।।
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जिसने तुमको भड़काया है, समझो उनकी करनी,
मूर्ख बनाकर वे यूँ सबको, करें मौत का खेला।
नहीं जान लेने में हिचकें, चिंतन है शैतानी,
बरबादी भाती है जिनको, करते रोज़ झमेला।।
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लानत है आतंक कर्म पर, मौत का जो उत्सव है,
कब तक लाशें और गिरेगीं, कब तक सब रोएंगे।
असुर मनुज की बस्ती में हों, तो कैसे सुख-चैना,
कैसे हम सब शांत चित्त हो, फिर तो सो पाएंगे।।
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यही चेतना, संदेशा है, अविलम्ब जागना होगा,
अब तो इस आतंक को हमको, अभी रोकना होगा।
यही जागरण, वक़्त कह रहा, आतंक की अब इतिश्री हो,
नगर-गांव में हर्ष पले अब, शौर्य रोपना होगा।।
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आतंक मानसिकता हैवानी, मिटे ज़िन्दगी जिससे,
होता सदा विनाश खुशी का, केवल बचता है ग़म।
धर्म कराता न बर्बादी, इसको तो तुम जानो,
फिर क्यों ख़ून बहाते हो तुम, चला गोलियाँ औ’ बम।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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