श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

सप्तम अध्याय

ज्ञान विज्ञान योग

( भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा )

 

अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।

परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्‌।।24।।

 

मुझ अविनाशी श्रेष्ठ का जिन्हें नहीं कुछ ज्ञान

उन्हीं मूढ की समझ में मेरी नहिं पहचान।।24।।

भावार्थ :  बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं।।24।।

 

The foolish think of me, the unmanifest, as having manifestation, knowing not My higher, immutable and most excellent nature.।।24।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

 

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments