श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशित। गीत कलश (छंद गीत) और निर्विकार पथ (मत्तसवैया) प्रकाशाधीन। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 350 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… बलात्कार घृणित कृत्य ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

बलात्कार होता घृणित, कृत्य करें जो लोग।

हृदय वेदना नित्य ही, आहत करता भोग।।

*

बलात्कार पीड़ा घनी, छलनी कर हृद भाव।

अंतस लूटे चैन को, देते मन पर घाव।।

*

हीन भावना का जनम, महिला भोगे नित्य।

मानव की हिंसक प्रवृति, हवस कराती कृत्य।।

*

जीवन कुकर्म से घृणित, तन-मन देता चोट।

कैसा यह संबंध यह, हृदय भाव दे घोट।।

*

बना देश कानून भी, रोके कहाँ समाज।

संस्कृति अरु संस्कार को, मिटा दिया है आज।।

*

शिक्षा बचपन की गलत, जीवन कर बर्बाद।

बेटे बेटी भेद ही, दिया हवस को साद।।

*

नारी सहमति बिन सदा, जो बनता संभोग।

उत्पीड़न दें यातना, पले मानसिक रोग।।

*

भारतीय कानून में, नियम काल का खंड।

यौन क्रिया दुष्कर्म को, मिले बड़ा ही दंड।।

*

करे योगिता प्रार्थना, रक्षक बनना आप।

कृष्ण कहा दे चीर अब, बढ़े द्रौपदी शाप।।

*

दुर्गा काली रूप ले, दानव वध कर रोज।

शक्ति दिखा अंतस छुपी, हृदय जगाना ओज।।

*

नहीं द्रोपदी अब बनों, कैसी सहना पीर।

बनों कृष्ण भी आज तुम, तुम्हें बचाना चीर।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश मो –8435157848

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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