डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ डॉ. वनीता की मूल पंजाबी सात कविताएँ  ☆  भावानुवाद – डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

डॉ. वनीता

(साहित्य शिरोमणि पुरस्कार विजेता डॉ. वनीता पंजाबी भाषा की सशक्त हस्ताक्षर  हैं। उनकी हृदय-स्पर्शी कविताएँ पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं और कुछ नया सोचने के लिए विवश करती हैं।

उनकी कविताओं में संवेदनशीलता और गहरी सोच की झलक, नारी सशक्तिकरण, प्रेम की अनुभूतियाँ और मानवीय मूल्यों का स्पष्ट प्रतिबिंब देखा जा सकता है।)

1. बर्फ़

पहले-पहल की दिवाली, क्रिसमस

नए वर्ष के कार्ड

लाता था डाकिया,

बर्फ़ों को रौंदता हुआ

गर्मी-सर्दी झेलता हुआ

धीरे-धीरे पिघल गईं बर्फ़

बह गईं बर्फ़े

किन्तु, आश्चर्य यह है कि

बर्फ़ के नीचे पहाड़ दबे

न बर्फ़

न पर्बत

न कार्ड

न डाकिया

फिर भला

कौन से कार्डों के बीच

शब्दों का करो इन्तज़ार ?

2.हस्तक्षेप

कहते हैं

किसी का किया हुआ व्यवहार

भुला नहीं देना चाहिए

*

हाँ,  मान्यवर

नहीं भूलूँगी

तेरा किया मेरे साथ

संदेह, वहिम, नफ़रतें

ला-परवाहियाँ, माथे की तिऊड़ियाँ,

यातनाएँ, ग़लत-फ़हमियाँ

*

तेरा हस्तक्षेप

मेरे जीवन में लगातार

एक कशमकश है।

3. मछली

मछली की सीमा पानी

पानी की सागर

मछली सागर में रहते हुए भी

आँख में कल्पना करती

ऊपर आती

आसमान को आँख में भरती

आँख में बने आसमान को

सागर में ले जाती है।

4.तेरा नाम

मैं हार रही होती हूँ

क्षण-क्षण टूट रही होती हूँ

अपवाद सह रही होती हूँ

तीर हृदय में चुभ रहे होते हैं

साज़िशें रची जा रही होती हैं

परन्तु, ख़ुशी-ख़ुशी

सभी आँधियों को पार कर आती हूँ

सिर्फ़ तेरी नज़र के सदक़े

हार में भी लज़्ज़त आने लगती

टूटना-जुड़ना लगने लगता

*

असत्य में से कहानियाँ गढ़ने लगती

हृदय में चुभे तीरों के साथ

ऐसा लगता

ख़ून स्याही बन गया

अपने विरुद्ध रची साजिशों को

दे कर क़लम का रूप

चुनौतियों को पार कर

फिर लिखने लगती हूँ

तेरा नाम।

5.सम्भाल

लुटाती हूँ

      आसमान

सँभालती हूँ

     एक झोंका

लुटाती हूँ

      धरती

सँभालती हूँ

      एक बीज

लुटाती हूँ

      समन्दर

सँभालती हूँ

      एक बूँद

लुटाती हूँ

       उम्र

सँभालती हूँ

     बस याद।

6.स्वंय

वह एक जुगनूँ  बनाता है

उसमें

जगमग जैसी रौशनी भरता है

पंख लगाता है

आसमाँ में उड़ाता है

*

स्वंय

ओझल होकर

देखने लगता है लीला

जुगनूँ की

रौशनी की

अन्धेरे की।

7.मुहब्बत

अपनी मुहब्बत का

दा’वा कोई नहीं

परन्तु,

नैनों में उमड़ती

लहरों के स्पर्श का

ज़रूर है अहसास

भिगोती हैं जो मेरे

अहसासों को

*

खड़ी रहती हूँ

सूखे किनारों पर

ले जाती हैं उठती लहरें

अपने साथ मेरा अस्तित्व

और वजूद

कोसता रहता

मेरा अस्तित्व

तेरे में विलीन होता।

कवयित्रीडॉ. वनीता

भावानुवाद –  डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं –  9646863733 ई मेल- [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments