श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गमले में गिलहरी…।)

?अभी अभी # 358 ⇒ गमले में गिलहरी? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ शीर्षक बड़े विचित्र लेकिन असाधारण होते हैं। धर्मवीर भारती ने एक बर्फ वाले को ठेले पर बर्फ की सिल्लियां ले जाते देखा, और अनायास ही उन्हें अपनी कहानी का शीर्षक सूझ गया, ठेले पर हिमालय। मैने जब एक गिलहरी को भरी दुपहरी में, एक गमले के पौधे में आराम फरमाते देखा तो आश्चर्यचकित रह गया, गमले में गिलहरी !

इंसान के अलावा कुछ ऐसे मूक पशु पक्षी भी होते हैं, जिनसे हमें अनायास ही लगाव हो जाता है। बिना संवाद के भी भावनाओं का आदान प्रदान संभव है, अगर एक दूसरे के लिए आकर्षण है। गाय, भैंस के अलावा पालतू कुत्ते बिल्ली और कुछ पक्षी भी इसी श्रेणी में आते हैं। लेकिन आसमान में स्वच्छंद उड़ने वाला पक्षी और पेड़ पौधों पर निवास करने वाले कुछ प्राणी इतनी आसानी से हमारे करीब नहीं आते।

शायद उनमें यह अज्ञात भय व्याप्त हो, यह इंसान हमें मार डालेगा, पिंजरे में बंद कर देगा, अथवा खा जाएगा।।

कुछ लोग पक्षियों को नियमित दाना डालते हैं तो कुछ गर्मी में उनके लिए पीने के लिए पानी का इंतजाम करते हैं। अगर इस दुनिया में नेकी ना हो, तो क्या कोई पक्षी इतना निर्भीक हो, आसमान से उड़कर आपके आंगन में उतर पाएगा। एक दूरी बनाते हुए, वह मूक पक्षी आपको करीबी का अहसास देता है।

मैने ना तो कभी चिड़ियों को दाना डाला और ना ही किसी उड़ती चिड़िया को मैने पिंजरे में बंद करने की कोशिश ही की। मुझे देखते ही चिड़िया फुर्र से उड़ जाती है, मानो मैं उसे खा जाऊंगा, मुझे बहुत बुरा लगता है।।

घर के बाहर की ओपन गैलरी मैने कुछ गमलों में पौधे लगा रखे थे, नीचे आंगन और हरा भरा बगीचा था। कुछ पेड़ों पर गिलहरियों का नियमित निवास था। वे दिन में चोरी से मेरी गैलरी में आती, और बारह रखी खाने लायक चीजों पर हाथ साफ करती, लेकिन मुझे देख, जल्दी से छुप जाती।

धीरे धीरे उसे स्वादिष्ट पदार्थों का स्वाद लग गया, और लालच स्वरूप वह घर में भी प्रवेश करने लगी। लेकिन सब कुछ चोरी छुपे। मेरी निगाह पड़ते ही, यह जा, वह जा। गुस्सा भी आता और प्यार भी। लेकिन इतनी लाजवंती, कि आप उसे कभी छू भी ना पाओ।

इंसानों जैसे बैठकर, जब आगे के दोनों पंजों से मूंगफली छीलकर खाती है, तो बड़ा अचरज होता है।

मैने गिलहरी को अक्सर पेड़ पर चढ़ते उतरते और डाली डाली डोलते देखा है। पक्षियों के बीच रहने से, इसकी आवाज भी कुछ कुछ चिड़ियों जैसी ही हो गई है। जहां थोड़ा भी खतरा नजर आया, यह फुर्ती से पेड़ पर चढ़ जाती है।।

एक बार भरी दोपहर में मुझे बाहर गैलरी में रखे गमले में कोई जानवर बैठा नजर आया, पहले लगा, शायद कोई बिल्ली का बच्चा हो। पास जाकर देखा, तो गिलहरी महारानी गमले की ठंडी मिट्टी में आंखें मूंदे, निश्चिंत हो, आराम फरमा रही हैं, मैंने उसकी नींद में खलल डालना उचित नहीं समझा और चुपचाप अंदर चला आया। मेरी इस छूट का उसने भरपूर फायदा उठाया, और भविष्य में, जब मन करता, गर्मी से राहत पाने के लिए, निश्चिंत हो, गमले में आराम फरमाती।

आप इसे क्या कहेंगे, चोरी चोरी माल खाना, और बाद में निश्चिंत हो, गमले की ठंडी मिट्टी में घोड़े बेचकर सो जाना, लेकिन मुझे रत्ती भर घास नहीं डालना, क्या यह चोरी और सीना जोरी नहीं। कोई दिनदहाड़े हमें लूट रहा है, फिर भी हम उस पर फिदा हैं, और उस ज़ालिम को कुछ पता ही नहीं। क्या जीवन का यह सात्विक सुख, आध्यात्मिक सुख नहीं, क्या ईश्वर भी हमारे साथ कुछ ऐसी ही लीला नहीं कर रहा, हो सकता है, यह गिलहरी ही हरि हो ;

तेरे मेरे बीच में

कैसा है ये बंधन अनजाना

मैने नहीं जाना

तूने नहीं जाना।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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