हेमन्त बावनकर

 

आप निश्चित ही चौंक गए होंगे कि यह व्यंग्य तो आप पढ़ चुके हैं फिर पुनरावृत्ति क्यों?

आज यह व्यंग्य प्रासंगिक भी है  एवं सामयिक भी है.

प्रासंगिक इसलिए क्योंकि आज ही  आदरणीय गृह मंत्री जी ने जिस बहु उद्देश्यीय कार्ड (एक कार्ड जिसमें आधार कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस और बैंक खातों जैसी जानकारी समाहित हो)  की चर्चा की है, उस प्रकार के कार्ड की कल्पना मैंने अपने जिस व्यंग्य के माध्यम से गत वर्ष 4 नवम्बर 2018  को किया था  वह सामयिक हो गई है. 

इसे आप निम्न लिंक पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं :-

 

कृपया यहाँ क्लिक करें – >>>>>>>>>>  व्यंग्य – लोकतन्त्र का महाभारत

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे

 

 

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