श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ज़रा सोचो ? ?

सोचने लगा तो

यों ही सोचा;

चाहे तो जला देना

मेरे साथ

मेरे पसंदीदा कुर्ता, पायजामा,

जींस, हाफ कुर्ता, मेरा चश्मा

और…..

पसंदीदा की शायद

इससे लंबी फेहरिस्त नहीं है मेरी,

ख़ैर जो-जो तुम चाहो

कर देना आग के हवाले;

पर सुनो,

हाथ मत लगाना

मेरे प्रसूत शब्दों को..,

फिर आगे सोचा तो

यों सोचा;

आखिर क्यों मानोगे

तुम मेरी बात?

तो चलो

जला भी दिये मेरे शब्द,

तो बताओ;

कागज़ ही जलेगा न!

तुम्हारे ज़ेहन में तो

चाहे-अनचाहे

बसे ही रहेंगे मेरे शब्द,

भला उनको

कैसे जलाओगे..?

फिर आगे सोचा तो

यों ही सोचा;

मान लो

ब्रेन वॉश का

कोई तरीका

सिखा दिया जाए तुम्हें

जैसे आतंकियों को

सिखाया जाता है,

फिर तुम्हारे ज़ेहन में

नहीं बसे रहेंगे मेरे शब्द,

पर फिर भी

नष्ट नहीं होंगे मेरे शब्द..!

चलो तुम्हारी झुंझलाहट

सुलझा दूँ

इस पहेली का

हल बता दूँ,

अब मैंने जो सोचा तो

यह सोचा;

जो मैंने लिखा

वह पहला नहीं था

और सच यह है कि

वह आख़िरी भी नहीं होगा,

मेरे पहले

हज़ारों-लाखों ने

यही सोचा-लिखा होगा,

मेरे बाद भी

हज़ारों-लाखों

यही सोचेंगे, लिखेंगे,

सो मेरे मित्रो!

मेरे शत्रुओ!

मिट जाता है शरीर;

मिट जाते हैं कपड़े;

जूते, चश्मा,

परफ्यूम, बेंत आदि-आदि

पर अमरपट्टा लिए

बैठे रहते हैं शब्द;

जच्चा वॉर्ड से श्मशान तक,

अतीत हो जाते हैं व्यक्ति,

व्यतीत नहीं होते विचार!

विश्वास न हो तो

तुम सोच कर देखो

एक बार,

सोचोगे तो

तुम भी यही लिखोगे-

सोचने लगा तो

यों ही सोचा;

फिर आगे सोचा तो

यों ही सोचा;

फिर वही सोचा

जो तुमने था सोचा,

जो उसने था सोचा,

जो वो सोचेंगे,

ज़रा सोचो;

सोचो तो सही ज़रा !

© संजय भारद्वाज  

(रात्रि 10:30, दि. 31 दिसंबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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