श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “भाषा और व्याकरण।)

?अभी अभी # 306 ⇒ भाषा और व्याकरण? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जिस तरह तैरना सीखने के लिए पानी में उतरना जरूरी है, कार चलाना सीखने के लिए स्टीयरिंग पर बैठना जरूरी है, उसी तरह किसी भी भाषा को सीखने के लिए उस भाषा के व्याकरण का ज्ञान होना जरूरी है। केवल एक मातृभाषा ही ऐसी है, जो बिना व्याकरण के भी आसानी से बोली और समझी जा सकती है। लेकिन अक्षर ज्ञान के लिए तो उसका भी अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

हिंदी भाषी प्रदेशों में एक समय आठवीं कक्षा तक चार विषय अनिवार्य थे, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और गणित। गणित तो अक्षर ज्ञान से ही शुरू हो जाता था, गिनती पहाड़ा, गणित नहीं तो और क्या है। जोड़, बाकी, गुणा, भाग से वैसे भी जीवन में कौन बच पाया है। अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित। गणित से हमारा जबरन का प्रेम केवल आठवीं कक्षा तक ही कायम रह पाया। पतली गली से निकलने के लिए हमने गणित की जगह बायोलॉजी का दामन थाम लिया, लेकिन फिजिक्स और केमिस्ट्री से फिर भी पीछा नहीं छुड़ा सके।।

उधर संस्कृत भी हमारा ज्यादा साथ नहीं दे पाई। ले देकर अब केवल हिंदी और अंग्रेजी ही बची। हिंदी व्याकरण की किसी भी किताब का नाम आज हमें याद नहीं, लेकिन अंग्रेजी में wren की ग्रामर हमारे लिए किसी बाइबल से कम नहीं थी। Walk, talk और chalk के उच्चारण में एल साइलेंट रहता था। वही हालत should, would और could की थी। उधर जिस शब्द का पहला अक्षर a, e, io, अथवा u से शुरु होता था, वहां a की जगह an लग जाता था।

an ass, an enemy, an ink pot, an ox और an umbrella का विशेष ख़्याल रखना पड़ता था।

इतना ही नहीं बहुवचन के लिए कहीं क्रिया में S लग जाता था तो कहीं SS.

Chair अगर chairs होती थी तो dress, dresses हो जाती थी। निमोनिया, और सायकोलॉजी में silent P की प्राण प्रतिष्ठा पहले ही हो जाती थी।

अच्छे भले पड़ोसी को अंग्रेजी में neighbour कहते थे और मजदूर को labour. हमें अधिक परिश्रम तो नेबर लिखने में होता था बनिस्बत लेबर के।।

एक बार तो हद हो गई। अंग्रेजी में तब हाथ बहुत तंग था। एक रिश्तेदार शिक्षक हमें आगे साइकिल के डंडे पर बिठाकर ले जा रहे थे(तब हम इतने छोटे थे) और हमें कुछ समझा रहे थे। अचानक उन्होंने एक अंग्रेजी शब्द का प्रयोग कर दिया, understood ? हम कुछ समझ नहीं पाए। चलती गाड़ी में नीचे उतरने की बात हमारे गले नहीं उतरी, क्योंकि आसपास नीचे कोई खड़ा हुआ भी नहीं था। हमने स्पष्ट कह दिया, हम understood का मतलब ही नहीं समझे।

आज इच्छा होती है, कहीं से संस्कृत की अभिनवा पाठावली: और wren की ग्रामर मिल जाए, अंग्रेजी कविताओं की The Golden Treasury मिल जाए तो तब जो नहीं पढ़ पाए, आज वह फुरसत में पढ़ पाएं, क्योंकि आज गणित के अलावा किसी अन्य विषय से कोई डर नहीं लगता।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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