डाॅ. मीना श्रीवास्तव

महिला शक्ति को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (८ मार्च) ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

नमस्कार प्रिय पाठकगण!

 यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।”

(अर्थ- “जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता आनंदपूर्वक निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती, उनका सम्मान नही होता, वहाँ किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।) यह अर्थपूर्ण श्लोक कालजयी है, इसलिए आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

आप सबको ८ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएँ! यह बात सभी पर लागू होती है क्योंकि, आज की तारीख में जहाँ महिलाएँ प्रथा के अनुसार पुरुषों का लेबल पहने काम बेझिझक करती हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के पारंपरिक काम कभी-कभी पुरुष भी करते हैं। (इसके सबूत के तौर पर मास्टर शेफ के एपिसोड मौजूद हैं)|

अंतरराष्ट्रीय (जागतिक) महिला दिवस का इतिहास

प्रिय मित्रों, संक्षेप में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास बताती हूँ। अमरीका और यूरोप सहित लगभग सम्पूर्ण विश्व में महिलाओं को २० वीं सदी की शुरुआत तक वोट देने के अधिकार से वंचित रखा गया था। १९०७ में पहला अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन स्टटगार्ट में आयोजित किया गया था। ८ मार्च १९०८ के दिन न्यूयॉर्क में वस्त्रोद्योग की हजारों महिला मजदूरों की भारी भीड़ ने रुटगर्स चौक में इकठ्ठा होते हुए विशाल प्रदर्शन किये। इसमें एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता क्लारा जेटकिन ने ”सार्वभौमिक मताधिकार के लिए लड़ना समाजवादी महिलाओं का कर्तव्य है।” यह घोषणा की| इसमें दस घंटे का दिन और कार्यस्थल पर सुरक्षा ये मुख्य मांगें थीं। साथ ही लिंग, वर्ण, संपत्ति और शिक्षा की समानता और सभी वयस्क पुरुषों और महिलाओं के लिए वोट देने का अधिकार ये मुद्दे भी शामिल थे। १९१० में कोपेनहेगन में आयोजित दूसरे अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में, क्लारा ने ८ मार्च, १९०८ को अमेरिका में महिला श्रमिकों की ऐतिहासिक उपलब्धियों की स्मृति में ८ मार्च को “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” के रूप में अपनाने का प्रस्ताव रखा और वह विधिवत मंजूर हो गया|

बाद में यूरोप, अमरिका और अन्य देशों में सार्वभौमिक मताधिकार के लिए अभियान चलाए गए। परिणामस्वरूप, १९१८ में इंग्लैंड में और १९१९ में अमेरिका में ये मांगें सफल रहीं। भारत में पहला महिला दिवस ८ मार्च १९४३ को मुंबई में मनाया गया था। इसके पश्चात् वर्ष १९७५ को UNO द्वारा “अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष” घोषित किया गया। इस कारण महिलाओं की समस्याएँ प्रमुखता से समाज के सामने आतीं गईं। महिला संगठनों को मजबूत किया गया। बदलती पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुसार जैसे-जैसे कुछ प्रश्नों का स्वरूप बदलता गया, वैसे वैसे महिला संगठनों की माँगें भी बदलती गईं। आज की तारीख में हर जगह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है|

महिला सशक्तिकरण- मेरा अनुभव

इस अवसर पर मैं महिला सशक्तिकरण की एक स्मृति साझा कर रही हूँ। यात्रा करते समय मैं बड़ी ही जिज्ञासा से यह देखती रहती थी कि, वहाँ की महिलाएँ किस प्रकार आचरण करती हैं और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता कितनी विकसित है| यह २००३ के आसपास की बात है| (मित्रों, यह ध्यान रहे कि, यह वक्त बीस साल पुराना है) मैं केरल में घूमने निकली थी| मनभावन हरियाली के बीच देवभूमि का यह खूबसूरत सफर चल रहा था। नारियल के पेड़ों की लम्बी कतारें और नीलमसा चमकता समुद्र का जल! (कृपया यह न पूछें कि समुद्र कौनसा था)! ऐसा मनोरम दृश्य बस से दृश्यमान हो रहा था| बस कंडक्टर एक लड़की थी, मुझे लगा कि वह लगभग बीस साल की होगी। वह बेहद आत्मविश्वास के साथ अपना काम कर रही थी| बस में अग्रिम २-३ बेंचें केवल महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। उनपर वैसा निर्देश साफ़ साफ़ लिखा था| उन्हीं बेंचों पर कुछ युवक बैठे हुए थे। एक स्टॉप पर कुछ महिलाएँ बस में चढ़ीं। नियमानुसार युवाओं को उन आरक्षित सीटों को छोड़ देना चाहिए था| उन्होंने वैसा नहीं किया| औरतें तब खड़ी ही थीं| तभी वह कंडक्टर आई और युवाओं से मलयालम भाषा में सीटें खाली करने को कहने लगी| लेकिन युवक हंसते जा  रहे थे और वैसे ही बैठे रहे। अब मैंने देखा कि, वह दुबली पतली लड़की गुस्से से लाल हो गई है। उसने उनमें से एक का कॉलर पकड़ लिया और उसे खड़े होने के लिए मजबूर किया। बाकी नवयुवक अपने आप उठ खड़े हुए। उसने विनम्रता से महिलाओं को बेंच पर बिठाया और अपने काम में लग गई, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।

मित्रों, मुझे हमारे ‘जय महाराष्ट्र’ का स्मरण हुआ| ऐसे मौके पर यहाँ क्या होता? केरल की साक्षरता का दर १०० प्रतिशत है (तब भी और अब भी)! मैंने हाल ही में लेखों की एक श्रृंखला में अपनी मेघालय की यात्रा का वर्णन किया है, जहां मैंने बार-बार महिला शक्ति के उस अद्भुत रूप का उल्लेख किया है जो महिलाओं की पूर्ण साक्षरता और आर्थिक स्वतंत्रता के कारण ही संभव हो सका है|

पाठकों, इसमें कोई शक नहीं कि, वोट देने का अधिकार महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या हम मान लें कि, महिलाएं स्वतंत्र हो गई हैं? यह एक ऐसा अधिकार है जो हर पाँच साल में दिया जाता है। क्या एक महिला को घर में अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है? खैर, अगर वह व्यक्त भी करे तो क्या उस पर विचार किया जाता है? इस मुद्दे पर भी सोच विचार करना होगा न! छोटीसी बात, अगर वह साड़ी खरीदना चाहती है तो क्या उसे उतनी भी आर्थिक आजादी है? अगर है भी तो क्या वह अपनी मनपसंद साड़ी चुन सकती है? प्रश्न तो सरल हैं, पर क्या उनके उत्तर इतने ही सरल है? ‘स्त्री जन्मा ही तुझी कहाणी, हृदयी अमृत नयनी पाणी’ (हे ‘स्त्री के जन्म! तुम्हारी इतनी ही कहानी है, हृदय में अमृत और नैनों में पानी’|) ये शब्द आज भी क्यों जीवित हैं? वर्ष १९५० में रिलीज हुई फिल्म ‘बाळा जो जो रे’ की ‘ग दि माडगूळकरजी द्वारा लिखित यह रचना आज भी सच्चाई से क्यों जुड़ी होनी चाहिए? जहाँ एक स्त्री को देवी के रूप में पूजा जाता है, वहाँ उसकी ऐसी स्थिति क्यों होनी चाहिए?

८ मार्च २०२४ के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विषय है, “महिलाओं में निवेश: प्रगति में तेजी लाना”। इसमें कन्या भ्रूण की रक्षा, महिलाओं का स्वास्थ्य, महिलाओं की शैक्षिक, आर्थिक और व्यावसायिक प्रगति के आलेख में तेजी लाना शामिल है। लेकिन महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनके खिलाफ अन्याय और दुर्व्यवहार को रोकना और अपराधियों को कड़ी सजा देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। समाज में महिलाओं की स्थिति आज भी निचले दरजे पर क्यों है? इस पर सामाजिक विचारमंथन की जरूरत है| यद्यपि यह स्पष्ट है कि संविधान में उल्लिखित किसी भी स्तर पर लैंगिक भेदभाव नहीं होना चाहिए, परंतु इसे प्रत्यक्ष रूप में लागू करना समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।

इस दिन के बारे में मैं बस यहीं महसूस करती हूँ कि, एक महिला को न ही देवी के रूप में पूजा जाए और न ही उसे ‘पावों में पड़ी दासी’ बनाया जाए| उसे समाज में पुरुष के समान सम्मान मिलना चाहिए। जो महिला अपना पूरा जीवन ‘चूल्हा चौका और बच्चों’ की सेवा में बिता देती है, उसकी पारिवारिक और सामाजिक स्थिति सर्वमान्य होनी चाहिए। उसकी भावनाओं, बुद्धि और विचारों का सदैव सम्मान किया जाना चाहिए। वास्तव में, इस उद्दिष्ट को प्राप्त करने के लिए ८ मार्च का एक ‘प्राणप्रतिष्ठा का दिवस’ नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी महिलाओं को इसे साध्य करने के हेतु ‘हर एक दिन मेरा है’ यह मान लेना ​​चाहिए। इसके लिए पुरुषमंडली से ‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’ लेने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। ऐसा अच्छा और स्वस्थ दिन कब आएगा? प्रतीक्षा करें, जल्द ही यह स्वप्न साकार होगा!

“Human rights are women’s rights, and women’s rights are human rights.”

 – Hillary Clinton.

“मानवाधिकार महिलाओं के अधिकार हैं, और महिलाओं के अधिकार मानव अधिकार हैं।”

 – हिलेरी क्लिंटन

धन्यवाद!    

टिप्पणी- संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रसारित एक गीत साझा करती हूँ। 

“One Woman” song to celebrate International Women’s Day (March 8th-2013)

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

दिनांक ८ मार्च २०२४

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments