श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चार चांद।)

?अभी अभी # 286 ⇒ चार चांद… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कवियों, शायरों और प्रेमियों को चांद से कुछ ज्यादा ही प्रेम होता है। सुंदरता की उपमा चांद से, और जब ठंड ज्यादा पड़े, तो सूरज रे, जलते रहना। वैसे प्रत्यक्ष को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी शायर कहने से नहीं चूकता ;

एक हो मेरे तुम इस जहां में

एक हो चंदा, जैसे गगन में

तुम ही तुम हो, मेरे जीवन में।

लेकिन अगले ही पल वह कह उठता है,

एक चांद आसमान में, एक मेरे पास है।

इतना ही नहीं, उसे एक रात में दो दो चांद नजर आने लगते हैं,

एक घूंघट में, एक बदली में।।

होता है, प्रेम में सब कुछ संभव है। मां की ममता तो और एक कदम आगे बढ़ जाती है, चंदा है तू, मेरा सूरज है तू। ओ मेरी आंखों का तारा है तू। सूरज को तो बस एक बार सुबह सुबह सूर्य नमस्कार कर लिया और छुट्टी लेकिन बेचारे चांद की तो रात भर खैर नहीं।

कौन कहता है, सूरज सी महबूबा हो मेरी, सबको चांद सी ही चाहिए। वैसे भी जो दिन भर आग उगलेगा, उसे कौन गले लगाएगा। सबको चांद सी ही महबूबा चाहिए। चांद सा मुखड़ा क्यूं शरमाया।

अजीब होते हैं ये कवि, रवि से ऊपर तक पहुंच जाते हैं, लेकिन तारीफ चांद की करते हैं।।

कहते हैं, किसी की तारीफ करने से उसमें चार चांद लग जाते हैं। ना कम ना ज्यादा। कृष्णचंद्र हों अथवा चन्द्रमौलिश्वर भगवान शिव, वहां भी शोभायमान तो एक ही अर्धचन्द्र है। चार चांद कौन लगाता है भाई।

अतिशयोक्ति तो है, फिर भी हमको कुबूल है। अतिशयोक्ति में तर्क का कोई स्थान नहीं। चार चांद ही क्यों, क्या तीन से काम नहीं चल सकता। अगर आपने अपनी प्रेयसी की तारीफ में गलती से पांच चांद लगा दिए तो क्या वह आपको छोड़कर चली जाएगी। तारीफ नहीं, बनिये की दूकान हो गई। अतिशयोक्ति का भी एक भाव होता है, न कम, न ज्यादा।।

अगर आपकी तारीफ में दो सूरज और दो चांद लगा दें, तो चलेगा। सूरज आपको खा थोड़े ही जाएगा। अच्छा चलिए, चारों सूरज चलेंगे। अलग ही चमकेंगे। कहां चार चांद और जहां चार सूरज। बस आफताब मियां से एक बार पूछना पड़ेगा।

आपके पास जो आएगा, वो जल जाएगा। मतलब एक भी सूरज नहीं चलेगा। अपने तो चंदामामा दूर के ही भले। चार मामा होंगे तो शायद मां भी खुश हो जाए। वैसे भी तीन का आंकड़ा शुभ नहीं माना जाता। बहुत सोच समझकर चार चांद लगाए जाते हैं किसी की तारीफ में।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

 

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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