श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उगते सूरज को प्रणाम।)

?अभी अभी # 271 ⇒ उगते सूरज को प्रणाम… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

उगते सूरज को प्रणाम करना तो हमारी सनातन परंपरा है, इसमें ऐसा नया क्या है, जो आप हमें बताने जा रहे हो। नया तो कुछ नहीं, बस हमारा सूरज भी राजनीति का शिकार हो चला है, वो क्या है, हां, मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं, यूं जा रहे हैं, जैसे हमें जानते नहीं।

जब प्रणाम का स्थान दुआ सलाम ले ले, तो लोग उगते सूरज को भी सलाम करने लगते हैं। खुदगर्जी और स्वार्थ तो खैर, इंसान में कूट कूटकर भरा ही है, लेकिन जो इंसान भगवान के सामने भी मत्था बिना स्वार्थ और मतलब के नहीं टेकता, वही इंसान, जब जेठ की दुपहरी में सूरज सर पर चढ़ जाता है, तो छाता तान लेता है और जब ठंड आती है तो उसी सूरज के आगे ठिठुरता हुआ गिड़गिड़ाने लगता है।।

वैसे हमारा विज्ञान तो यह भी कहता है कि सूरज कभी डूबता ही नहीं है, लेकिन हम कुएं के मेंढक उसी को सूरज मानते हैं, जो रोज सुबह खिड़की से हमें नजर आए। हमारे दिमाग की खिड़की जब तक बंद रहेगी, हमारा सूरज कभी खिड़की से हमारे असली घर अर्थात् अंतर्मन में ना तो प्रवेश कर पाएगा और ना ही हमारे जीवन को आलोकित कर पाएगा।

हमारी संस्कृति तो सूर्य और चंद्र में भी भेद नहीं करती। जो ऊष्मा सूरज की रश्मियों में है, वही ठंडक चंद्रमा की कलाओं में है। पूर्ण चंद्र अगर हमारे लिए पूर्णिमा का पावन दिन है तो अर्ध चंद्र तो हमारे आशुतोष भगवान शंकर के मस्तक पर विराजमान है।।

सूरज से अगर हमारा अस्तित्व है, तो चंद्रमा तो हमारे मन में विराजमान है। हमारे मन की चंचलता ही बाहर भी किसी चंद्रमुखी को ही तलाशती रहती है और अगर कोई सूर्यमुखी, ज्वालामुखी निकल गई, तो दूर से ही सलाम बेहतर है।

राजनीति के आकाश में सबके अपने अपने सूरज हैं। यानी उनका सूरज, वह असली शाश्वत सूरज नहीं, राजनीति के आकाश में पतंग की तरह उड़ता हुआ सूरज हुआ। किसी का सूरज पतंग की तरह उड़ रहा है, तो किसी का कट रहा है। अब आप चाहें तो उसे उगता हुआ सूरज कहें, अथवा उड़ता हुआ सूरज। किसी दूसरे सूरज की डोर अगर मजबूत हुई, तो समझो अपना सूरज समंदर में डूबा।।

एक समझदार नेता वही जो अपनी बागडोर उगते हुए और आसमान में उड़ते हुए सूरज के हाथों सौंप दे। मत भूलिए, अगर आप ज्योतिरादित्य हैं तो वह आदित्य है। एक समझदार नेता भी समझ गए, हार से उपहार भला।

जब समोसे में आलू नहीं बचे, तो पकौड़ों की दुकान खोलना ही बेहतर है। वैसे भी एक समझदार नेता डूबते इंडिया के सूरज को भी अर्ध्य देना नहीं भूलते। स्टार्ट अप प्रोग्राम फ्रॉम … । उगते सूरज को सलाम कीजिए, और राजनीति के आकाश में शान से अपनी पतंग उड़ाइए।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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