श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “घोड़े की नाल।)

?अभी अभी # 270 ⇒ चांदी जैसे बाल… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

Horse Shoe

मुझे नहीं पता, जंगल के राजा शेर का महल और सिंहासन कैसा होता है और उसकी पोशाक और जूते कैसे होते हैं, लेकिन पवन वेग से उड़ने वाले महाराणा प्रताप के महान चेतक की शक्ति, बहादुरी और स्वामिभक्ति से दुनिया परिचित थी। महारानी लक्ष्मीबाई, शिवाजी महाराज और रामदेवरा के बाबा रामदेव की आप उनके घोड़े के बिना कल्पना ही नहीं कर सकते।

सदियों से घोड़ा इंसान का एक वफादार साथी रहा है। अश्वारोही कहें, अथवा घुड़सवार, वीर बहादुरों और जांबाज़ की जान होते हैं उनके घोड़े, जिनकी टाप उनके आगमन की सूचना देती है। हमारे सभी आधुनिक इंजन से चलने वाले वाहनों की तुलना अश्व शक्ति अथवा हॉर्स पॉवर से ही की जाती है।

सदियों से इंसान का सच्चा साथी और उपयोगी वाहन रहा है एक घोड़ा।।

इसके चार पांव किसी तेज गति से चलने वाले वाहन के पहियों से कम नहीं। जिस तरह एक फौजी के, चलते वक्त उसके जूतों की आवाज आती है, ठीक उसी प्रकार जब एक घोड़ा दौड़ता है, तो उसके टापों की आवाज आसानी से सुनी जा सकती है। यह घोड़े के पांव में लगी लोहे की नाल का कमाल है, जिसे अंग्रेजी में horse shoe कहते हैं। क्या होता है यह हॉर्स शू अथवा घोड़े की नाल ;

A horseshoe is a piece of metal shaped like a U which is fixed to a horse’s hoof.

इसे और अच्छी तरह से यूं भी समझा जा सकता है ;

पशु के पैरों के तलवे में लोहे का एक यू आकार का सोल लगाया जाता है, जिससे घोड़े को चलने और दौड़ने में दिक्कत नहीं होती है। अंग्रेजी के यू के आकर के इस सोल में जहां-जहां कील ठोकी जाती है, वहां-वहां छेद होते हैं। लोहे के इस सोल को नाल कहते हैं। आमतौर पर घोड़े की एक नाल हफ़्ता-10 दिन तक चलती है और इस दौरान घोड़ा सौ से 200 किलोमीटर तक चल लेता है।।

घोड़ा एक समझदार, लेकिन बेजुबां जानवर है। केवल युद्ध में ही नहीं इंसान उसको सवारी के रूप में भी उपयोग करता है। महाभारत के युद्ध में द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण जिस अर्जुन के रथ के सारथी बने थे, उसमें भी ये ही अश्व मौजूद थे।

कभी तांगा, टमटम और बग्घी हमारे प्रिय यातायात के साधन हुआ करते थे।

सेना में भी कैवेलरी रेजिमेंट होती है ;

The 61st Cavalry Regiment is a horse-mounted cavalry regiment of the Indian Army. It is notable for being one of the largest, and also one of the last, operational non mechanised horse-mounted cavalry units in the world.

एक घोड़े की नाल उसके लिए आवश्यक ही नहीं, वरदान भी है। वैसे तो जानवरों के खुर ही उनके जूते होते हैं, लेकिन उनका दर्द एक इंसान महसूस नहीं कर सकता। हम तो अगर नंगे पांव चलें तो पांव में छाले पड़ जाएं। सुना नहीं आपने फिल्म पाकीजा का वह राजकुमार का डायलॉग ;

आपके पांव बड़े नाजुक हैं, इन्हें जमीन पर मत रखिए, मैले हो जाएंगे।।

जब आदमी ही मशीन बनता चला जा रहा है तो फिर असली हॉर्स पॉवर की भी कद्र कौन करेगा। बेचारे घोड़े की सभी शक्ति आजकल मशीनों के इंजन में बदलती जा रही है।

लेकिन याद रहे, हजारों मशीनें एक चेतक पैदा नहीं कर सकती। शुक्र है, जब तक महालक्ष्मी की हॉर्स रेस है, हमारी सेना की ६१वीं अश्वारोही बटालियन मौजूद है, यह प्राणी किसी ना किसी बहाने से, हमारे बीच मौजूद रहेगा।

घोड़ी चढ़ना कोई घुड़सवारी नहीं। असली घुड़सवारी करें, फिर घोड़े की टाप का आनंद लें।

घोड़ा कहां आपसे अपना दर्द बयां करने वाला है। वह भले ही घास से यारी ना करे, लेकिन नाल उसके पांव का सुरक्षा कवच है।

नाल ठोंकने के लिए, पहले घोड़े के पांव बांधने पड़ते हैं, और बाकायदा पांवों में कीलें ठोंकी जाती है, क्योंकि घोड़े का जन्म, सिर्फ चलने के लिए हुआ है। स्वस्थ घोड़ा कभी नहीं बैठता। अगर एक बार बैठा, तो फिर कभी खड़ा नहीं होता।।

घोड़े की नाल के साथ कई टोटके जुड़े हैं और कुछ अंध विश्वास भी। कुछ लोग घर के मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल लगाते हैं।

हम ऐसे टोटकों को तूल नहीं देते। वैसे जो घोड़े की नाल है, उसे भाग्यशाली तो होना ही चाहिए, वह एक घोड़े की हमसफर जो है ..horse ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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