श्री रामनारायण सोनी

?कविता गीत गाता हूँ मैं ? श्री रामनारायण सोनी ?

अक्षरों से शब्द तक का यह सफर

चेतना फिर हो चले जिस में प्रखर

भाव की उत्प्रेरणा जब जागती है

तब कहीं इक गीत होता है मुखर

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

वेदना, संवेदना, प्रतिवेदना मिल

हो गलित इक धार में बहने लगे

खुद बहे पहले, सभी उसमें बहें

तो समझ लो गीत हैं उठने लगे

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत का उत्थान भी इक ज्वार है

गीत काली रात का अभिसार है

गीत भावों की विकल अभिव्यंजना

गीत अधरों का मधुर श्रृंगार है

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

प्रियतमा के नैन से जब नीर बहता

श्वाँस में प्रश्वाँस में है गीत चलता

जब प्रणय की रागिनी में हो घुला

छ्न्द बन्दों में स्वयं ही गीत ढलता

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत करुणा की मृदुल सी धार है

गीत घुंघरू की मुखर झंकार है

गीत दिल के बादलों से झर रही

झिरमिराती सी मधुर मनुहार है

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत हैं उत्सव, हैं गीत भी कलरव

स्वर्ग भी हैं ये, हैं और ये रौरव

सुख के और दुःख के अधिमान भी

हैं पुरातन के पुरोधा और अभिनव

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत हैं आलाप उठता कण्ठ से

गीत भीगा है कहीं मकरन्द से

गीत उठता नाद है मिरदंग से

झर रहा अनुराग हो हर छ्न्द से

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत लय है गीत सुर है ताल भी

गीत गति है गीत मद्धिम चाल भी

शौर्य का आह्वान करते गीत हैं

गीत मारक शक्ति भी है ढाल भी

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत गाथागीत बन जग में रमा

लोकरंजक गीत ने बाँधा समा

लोकमंगल गीत बिन कैसे शुरू

गीत ही हर उत्स की है मधुरिमा

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

प्रीत की पावन धरा में बीज सा

भावना के सिन्धु में है मीन सा

पुष्प के हर अंग में अभ्यंग में

महमहाता गीत है मधुमास सा

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

गीत जीवन जीवनी के गा रहा

प्रेम की पगडण्डियों पे ला रहा

एक बन्जारा समझलो आज मैं

कारवाँ के गीत अपने गा रहा

    गीत गाता हूँ, मैं गीत गाता हूँ

 

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री रामनारायण सोनी

२५.०१.२४

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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