श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना प्रेम डोर सी सहज सुहाई। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 179 ☆ प्रेम डोर सी सहज सुहाई…

भाव भक्ति के रंग में डूबे हुए आस्थावान लोग; सकारात्मक शक्ति के उपासक बन अपनी जीत का जश्न मना रहे हैं । लंबे संघर्ष के बाद जब न्याय मिलता है तो हर चेहरे पर खुशी की मुस्कान देखते ही बनती है । हर आँखों में श्रीराम लला के प्रति उमड़ता स्नेह व अपार श्रद्धा झलक रही है । वनवासी राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनने का क्रम सारे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है । सबको जोड़कर साथ रखना, वचन निभाना, सागर पर सेतु बनाकर लक्ष्य भेदना , मित्रता का धर्म निभाना इस सबके आदर्श प्रभु श्रीराम हैं ।

हम सब सौभाग्यशाली हैं जो इन पलों के साक्षी बन रहें हैं । हर घर में अक्षत के साथ राम मंदिर का आमंत्रण, घर- घर दीपोत्सव का आयोजन साथ ही अपने आसपास के परिवेश को स्वच्छ रखने का संदेश । सारे समाज को जोड़ने वाली कड़ी   साबित होगा राम मंदिर ।

बाल सूर्य जब सप्त घोड़े पर सवार होकर नित्य प्रातः बेला को भगवामय करते तो पूरी प्रकृति ऊर्जान्वित होकर अपने कार्यों में जुट जाती है, तो सोचिए जब पूरा विश्व भगवामय होगा तो कैसा सुंदर नजारा होगा । हर घर में लहराता हुआ ध्वज मानो  अभिनंदन गान गा रहा है । स्वागत में पलक पाँवड़े बिछाए हुए लोग समवेत स्वरों में मंगलकामना कर रहें हैं-

☆ कण कण व्यापे राम ☆

प्राण प्रतिष्ठित हो रहे, कण कण व्यापे राम  ।

भाव भक्ति अनुगूँजते, राम राम के नाम ।।

*

धूम अयोध्या में मची, दीप जले चहुँओर ।

भगवामय सब हो गया, सूर्यवंश पुरजोर ।।

*

उदित हुआ आकाश में, सप्तरथी के साथ ।

देव पुष्प वर्षा रहे, जगन्नाथ के नाथ ।।

*

धन्य धरा भारत जगत, प्रगटे जँह श्री राम ।

मर्यादा सिखला गए, चलो अयोध्या धाम ।।

*

गाते मंगल गीत मिल, ढोल नगाड़े साथ ।

झूम झूम झर झूमते , लिए आरती हाथ ।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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