श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “अंगीठी, चूल्हा और अलाव।)

?अभी अभी # 251 ⇒ अंगीठी, चूल्हा और अलाव… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भले ही आपको ठंड लगती रहे, फिर भी सबसे प्यारा मौसम ठंड का ही होता है। रात भर कंबल, रजाई में दुबके पड़े रहे, और सुबह होते ही आसपास गर्मी ही तलाशी जाती है। हर इंसान के पास गुलजार जैसा शब्द सामर्थ्य नहीं होता, कि उठते ही बीड़ी जला ले। फिर भी उसे चूल्हे की आग और गर्मागर्म चाय कॉफी से कोई परहेज नहीं होता। वैसे भी, जहां जिगर में बड़ी आग होती है, वहीं बीड़ी जलाई जाती है।

जब सूर्य देवता कोहरे और बादलों की ओट में छुपे रहते हैं, तब किसी जलती अंगीठी अथवा चूल्हे को तलाशा जाता है। चूल्हा लकड़ी मांगता है और अंगीठी कोयला। कुछ लोगों ने तो केवल कोयले का नाम ही सुना होगा। लकड़ी जली कोयला भयी, कितना आसान है न।

आजकल के बच्चों को कभी कोयले की टाल के भी दर्शन करवा दें, अगर संभव हो।।

वैसे उज्जवला गैस योजना ने घरों से सिगड़ी, चूल्हा और स्टोव्ह वैसे ही गायब कर रखा है। कहां से लाए गरीब आदमी घासलेट और सिगड़ी के लिए कोयले।

मेरे घर में आज भी केवल गैस का चूल्हा ही है, अंगीठी, सिगड़ी, और स्टोव्ह सब गए चूल्हे में। लेकिन गैस का चूल्हा हो, अथवा माइक्रोवेव, ये तापने के काम तो नहीं आ सकते ना। ऐसे में अंगीठी, चूल्हा अथवा अलाव ही काम आते हैं।

आजकल ठंड में भी रात की शादियां बड़े बड़े गार्डन और सुदूर रिसोर्ट में आयोजित की जाती है।

अब शादी में तो कम्बल ओढ़कर नहीं जा सकते।

ऐसी जगह तलाशी जाती है, जहां अलाव जल रहा हो। आग से चिपकने का मन करता है। आग, आगाह भी करती है, नेपथ्य में गीत भी बज रहा है, आपके पास जो आएगा, वो जल जाएगा। इतने में जलती आग से एक चिंगारी उछलती है, और आप छिटककर अलाव से थोड़ा दूर हो जाते हैं। फिर जब ठंडी हवा काटने लगती है, तो पुनः करीब आ जाते हैं।।

आजकल घरों में एयर कंडीशनर के अलावा रूम हीटर का उपयोग भी हो रहा है। नहाने के लिए तो गीजर है ही। कुछ ब्रिटिश काल के बंगलों में घरों के अंदर ही ड्रॉइंग रूम में एक फायर प्लेस भी होती थी, जो ठंड में पूरे कमरे को गर्म रखती थी। ऐसे मकानों में ऊपर बड़ी सी चिमनी की व्यवस्था भी करनी पड़ती थी, ताकि धुआं बाहर निकल सके।

हमारे किचन में से लालटेन, चिमनी, चूल्हा, और अंगीठी भले ही गायब हो गए हों, लेकिन चिमनी का प्रवेश फिर से ही गया है। भूल जाइए रौशनदान और रात को जलने वाली चिमनी, आज धुआं और प्रदूषण चिमनी द्वारा ही बाहर फेंका जाता है।

शायद विज्ञान जल्द ही अंगीठी, चूल्हा और अलाव का भी विकल्प ढूंढ ले।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  3

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments