श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नये साल का कैलेंडर।)

?अभी अभी # 248 ⇒ नये साल का कैलेंडर… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जिस तरह हर रोज तारीख बदलती है, हर वर्ष कैलेंडर भी बदलता है। कैलेंडर वही जो तारीख भी बताए और तिथि भी ! जब घरों में टीवी, और लोगों के हाथ में मोबाइल नहीं था, तब हर घर में, दीवार पर, कम से कम एक अदद कैलेंडर जरूर टंगा रहता था। समय की पहचान तो घड़ी से हो जाती है, कैलेंडर तो तिथि, तारीख, वार और महीना सबकी जानकारी रखता है।

घर गृहस्थी के बहुत काम आता था कैलेंडर। दूध वाला कितना भी चालाक हो, एक कुशल गृहिणी दूध का पूरा हिसाब कैलेंडर पर लिखकर रखती थी। जिस तारीख को दूध वाला नहीं आया, उस तारीख के आसपास एक घेरा नजर आता था जिसे किसी अदालत में चैलेंज नहीं किया जा सकता था।।

सभी बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान, सरकारी, अर्ध सरकारी विभाग और राष्ट्रीयकृत बैंकें अपने सम्मानित ग्राहकों को आज भी कैलेंडर और डायरियां भेंट करते हैं।

तब घरों में कीलें ठोंकी जाती थी और कपड़े हैंगर पर नहीं, खूंटी पर टांगे जाते थे। नया साल शुरू होते ही, महिलाएं, सौदे के साथ कैलेंडर की मांग भी करती थी। साड़ी की दुकान, किराने वाले की दुकान, दवाई वाला हो अथवा खानदानी ज्वेलर, एक कैलेंडर तो बनता ही था।।

अक्सर कैलेंडरों पर देवी देवताओं के ही चित्र होते थे। बड़े बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान अधिकतर प्रकृति प्रेमी होते थे। शासकीय कैलेंडर पर सरकारी योजनाओं की तस्वीरें होती थी। अगर कीलें कम पड़ जाती तो और ठोंक दी जाती। वैसे भी घर और दीवारों की शोभा कैलेंडर से ही तो होती है।

हमारे देश में शिवकाशी, तमिल नाडु में केवल फटाके ही नहीं बनते, सस्ते, सुंदर और टिकाऊ कैलेंडर भी थोक में छापे जाते हैं। पूरा कैलेंडर वही रहता है, बस छापने वाले का नाम जोड़ दिया जाता है, ठीक छपे छपाए विवाह के निमंत्रण पत्र के फॉर्मेट की तरह।।

ऊंचे लोग, ऊंची पसंद ! कैलेंडर शराब की कंपनियां भी छापती थी। उनके कैलेंडर शरीफ घरों में नहीं टांगे जाते थे। फिर भी कैलेंडर अगर शौक है तो जरूरत भी। जो अधिक शरीफ और शालीन लोग होते थे, वे तो हर साल अस्पताल से ही कैलेंडर ले आते थे।

आपको तिथि और तारीख ही तो देखनी है, वार त्योहार, व्रत उपवास देखना है, तो घर में एक लाला रामस्वरूप का पंचांग वाला कैलेंडर ही काफी है। वैसे आपकी मर्जी, आपका घर है, जितना जी चाहें कैलेंडर टांगें, लेकिन अस्पताल वाले कैलेंडर तो बस, हम दो हमारे दो। क्योंकि वे कैलेंडर नहीं, आपके दिल के टुकड़े हैं।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  3

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