श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 223 चक्षो सूर्यो जायत ?

वैदिक दर्शन सूर्य को ईश्वर का चक्षु निरूपित करता है। हमारे ग्रंथों में सूर्यदेव को जगत की आत्मा भी कहा गया है। विश्व की प्राचीन सभ्यताओं द्वारा सूर्योपासना के प्रमाण हैं। ज्ञानदा भारतीय संस्कृति में तो सूर्यदेव को अनन्य महत्व है। एतदर्थ भारत में अनेक प्राचीन और अर्वाचीन सूर्य मंदिर हैं। 

भारतीय मीमांसा में प्रकाश, जाग्रत देवता है।प्रकाश आंतरिक हो या वाह्य, उसके बिना जीवन असंभव है। एक-दूसरे के सामने खड़ी गगनचुंबी अट्टालिकाओं के महानगरों में प्रकाश के अभाव में विटामिन डी की कमी विकराल समस्या हो चुकी है।  केवल मनुष्य ही नहीं, सम्पूर्ण सजीव सृष्टि और वनस्पतियों के लिए प्राण का पर्यायवाची है सूर्य। वनस्पतियों में प्रकाश संश्लेषण या फोटो सिंथेसिस के लिए प्रकाश आवश्यक घटक है। 

सूर्यचक्र के अनुसार ही हमारे पूर्वजों का जीवनचक्र भी चलता था। भोर को उठना, सूर्यास्त होते-होते भोजन कर सोने चले जाना। सूर्यकिरणें भोजन की पौष्टिकता बनाए रखने में उपयोगी होती हैं। 

वस्तुतः जीवन की धुरी है सूर्य। सूर्य से ही दिन है, सूर्य से ही रात है। सूर्य है तो मिनट है, सेकंड है। सूर्य है तो उदय है, सूर्य है तो अस्त है। सूर्य ही है कि अस्त की आशंका में पुनः उदय का विश्वास है। सूर्य कालगणना का आधार है, सूर्य ऊर्जा का अपरिमित  विस्तार है। सूर्यदेव तपते हैं ताकि जगत को प्रकाश मिल सके‌। तपना भी ऐसा प्रचंड कि लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर होकर भी पृथ्वीवासियों को पसीना ला दे। 

सूर्य सतत कर्मशीलता का अनन्य आयाम है, सूर्य नमस्कार अद्भुत व्यायाम है। शरीर को ऊर्जस्वित, जाग्रत और चैतन्य रखने का अनुष्ठान है सूर्य नमस्कार। ऊर्जा, जागृति और चैतन्य का अखंड समन्वय है सूर्य। 

‘सविता वा देवानां प्रसविता’…सविता अर्थात सूर्य से ही सभी देवों का जन्म हुआ है। शतपथ ब्राह्मण का यह उद्घोष अन्यान्य शास्त्रों की विवेचनाओं के भी निकट है। गायत्री महामंत्र के अधिष्ठाता भी सूर्यदेव ही हैं।

सूर्यदेव अर्थात सृष्टि में अद्भुत, अनन्य का आँखों से दिखता प्रमाणित सत्य। सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश अथवा मकर संक्रमण खगोलशास्त्र, भूगोल, अध्यात्म, दर्शन  सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।

इस दिव्य प्रकाश पुंज का उत्तर की ओर संचार करना उत्तरायण है। उत्तरायण अंधकार के आकुंचन और प्रकाश के प्रसरण का कालखंड है। स्वाभाविक है कि इस कालखंड में दिन बड़े और रातें छोटी होंगी।

दिन बड़े होने का अर्थ है प्रकाश के अधिक अवसर, अधिक चैतन्य, अधिक कर्मशीलता।

अधिक कर्मशीलता के संकल्प का प्रतिनिधि है तिल और गुड़ से बने पदार्थों का सेवन। 

निहितार्थ है कि तिल की ऊर्जा और गुड़ की मिठास हमारे मनन, वचन और आचरण तीनों में देदीप्यमान रहे। 

सभी पाठकों को मकर संक्रांति/ उत्तरायण/ भोगाली बिहू / माघी/ पोंगल/ खिचड़ी की अनंत शुभकामनाएँ।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments