श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्वामी और स्वामिभक्त”।)

?अभी अभी # 178 ⇒ स्वामी और स्वामिभक्त? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अपने स्वामी के हर आदेश का जो पालन करता है, उसे स्वामिभक्त कहते हैं। यह संबंध एक भक्त और स्वामी का भी हो सकता है, दास और स्वामी का भी हो सकता है और एक मालिक और नौकर का भी हो सकता है। भक्त तो कई प्रकार के होते हैं, लेकिन जो केवल अपने स्वामी अर्थात् मालिक के प्रति ही वफादार हो, उसे स्वामिभक्त कहते हैं। क्या हुक्म है मेरे आका !

बुरा तो लगता है, लेकिन अंग्रेजी गुलामों की भाषा है, yours faithfully का हिंदी अनुवाद आपका आज्ञाकारी ही तो होता है।

मैनर्स कह लें, तमीज, तहजीब कह लें, अथवा संस्कार कह लें, जहां भक्ति है, वहां शरणागति है। सारा जगत राम का दास है, कोई मोहनदास तो कोई हरि ओम शरण।।

गुरु और शिष्य का संबंध भी भक्त और भगवान की तरह ही है और अगर घर में एक ईमानदार और आज्ञाकारी नौकर मिल जाए, तो हर गृह स्वामी धन्य हो जाए।

जब एक आदमी का ही दूसरे आदमी पर से विश्वास

टूट जाता है, तब बारी आती है एक मूक प्राणी की, जिसे आप चाहें तो जानवर भी कह सकते हैं। पुराने जमाने में गुलामों को खरीदा जाता था, आजकल कुत्तों को खरीदा जाता है।

वैसे यह अनमोल प्राणी तो बिन मोल ही बिकने को तैयार है, इसकी कीमत तो आजकल बाजार लगाने लगा है। मुफ्त में बिकने वाले प्राणी को हम बोलचाल की भाषा में एक वफादार कुत्ता कहते हैं।।

कुत्ता आपका नमक खाए ना खाए, कभी वफादारी नहीं छोड़ता। कुत्ता अपने स्वामी को पहचानता है, वह चोर को भी पहचानता है और साहूकार को भी। अगर कोई चोर ही कुत्ता पाल ले, तो कुत्ता इतना भी इंसाफपसंद, नमक हराम, स्वार्थी और खुदगर्ज नहीं कि अपने मालिक को ही पुलिस के हवाले कर दे। सबकी स्वामिभक्ति की अपनी अपनी परिभाषा है। जानवर सिर्फ प्रेम की भाषा समझता है, उसके शब्दकोश में केवल एक ही शब्द है, वफादारी और स्वामिभक्ति।

पहले हम गाय पालते थे, आजकल कुत्ता पालते हैं। गाय तो हमारी माता है, कहीं माता को भी पाला जाता है। इसलिए हमने गाय के लिए गौशाला बना दी और कुत्ते को पाल लिया। हम रोजाना गौसेवा करते हैं और कुत्ता हमारी

रखवाली करता है।।

रोज सुबह मैं कई स्वामियों को स्वामिभक्त, वफादार प्राणियों को, जिनको उन्होंने बच्चों की तरह नाम दिया है, टहलाते हुए देखता हूं। गले में पट्टे और जंजीर से बंधा कुत्ता आगे आगे, और मालिक पीछे पीछे। स्वच्छ भारत में सुबह का यह दृश्य आम है। सब्जी मार्केट में जिस तरह सूंघ सूंघ कर सब्जी खरीदी जाती है, ये पालतू श्वान महाशय सूंघ सूंघकर, नित्य कर्म हेतु, अपनी साइट पसंद करते हैं, जिसे हम कभी दिशा मैदान कहते थे। हर प्राणी का अपना अपना निवृत्ति मार्ग होता है।

आज की तारीख में अगर वफादारी और स्वामिभक्ति की बात करें, तो शायद घर का पालतू कुत्ता ही बाजी मार जाए। गृह स्वामी ही नहीं, घर के सभी सदस्यों का प्यारा, जिसे घर में बच्चे जैसा ही प्यार और देखभाल मिले। विशेष भोजन और दवा दारू भी। कभी कभी तो यह भी पता नहीं चलता, सेवक कौन है और स्वामी कौन।

अगर घर से बाहर गांव जाएंगे, तो उसकी भी व्यवस्था करेंगे। बच्चे को कौन अकेला घर में छोड़कर जाता है।।

कहीं यह स्वामी और एक स्वामिभक्त और वफादार कुत्ते का प्रेम और आसक्ति का रिश्ता हमें जड़ भरत तो नहीं बना देगा। लेकिन इसमें एक बेचारे बेजुबान प्राणी का क्या दोष। उसका तो जन्म ही वफादारी के लिए हुआ है।

कुत्ते की योनि में अगर उसे अपने स्वामी का संरक्षण और प्यार मिलता है, तो उसका तो जीवन धन्य हो गया।

परिवारों का टूटना, बिखरना, रिश्तों में प्रेम की जगह स्वार्थ का प्रवेश, इंसान का दूसरे इंसान से भरोसा उठ जाना, घर में बड़े बुजुर्गों का अभाव, दौड़भाग की जिंदगी का तनाव और टूटते रिश्ते, हमें अनजाने ही इस प्राणी की ओर खींच ले जाते हैं। घर के एकांत को दूर करने का एक वफादार कुत्ते के अलावा कोई विकल्प नहीं। जड़ भरत ही सही, आखिर कोई इंसान हैं, फरिश्ता तो नहीं हम।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

 

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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