श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जश्न और त्रासदी “।)

?अभी अभी # 137 ⇒ जश्न और त्रासदी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

 

जहाँ बजती है शहनाई,

वहाॅं मातम भी होते हैं …

सुख और दुख हमारे जीवन में साथ साथ चलते हैं। हमारा जीवन दर्शन सुखांत है, दुख झेलने के लिए हमारे पास मजबूत कंधे हैं, आंसू के साथ, पुनः खड़ा होने का हमारा संकल्प भी है। हमारी गीता हमें शोकग्रस्त होने से बचाती है, विषाद योग के बावजूद हम अनासक्त कर्म करने में सक्षम होते हैं, और इसीलिए शायद हम जश्न और त्रासदी के पल एक साथ हंसते हंसते गुजार देते हैं।

होती है त्रासदी कभी युद्ध की, कभी अकाल तो कभी सूखे और बाढ़ की। विश्व युद्ध, महामारी, बंटवारे का दर्द और अभी हाल ही में कोरोना वायरस ने हमें तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन हम पुनः उठ खड़े हुए, दो दो वेक्सीन और बूस्टर डोज से लैस, चेहरे पर कोई शिकन नहीं।।

प्रकृति हमें चुनौती भी देती है, और हमारी परीक्षा भी लेती है। इधर हम लाल किले पर आजादी का जश्न मना रहे थे और उधर हिमाचल और उत्तराखंड में पहाड़ खसक रहे थे। इधर हमारा चंद्रयान -३ सफलतापूर्वक चांद पर तिरंगा लहरा रहा था और उधर पूरा हिमाचल दहल रहा था। सदी की इतनी बड़ी त्रासदी के बीच भी आखिर सफलता के इतिहास तो रचे ही जाते हैं।

महाभारत के युद्ध के बीच ही सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण धनुर्धर अर्जुन को गीता का संदेश देते हैं, हमारे सभी महाकाव्य सुखांत ही रचे गए हैं, दुखांत नहीं। हमारे घरों में महाभारत नहीं गीता रखी जाती है। घर घर रामचरितमानस और सुंदरकांड का पाठ होता है, वाल्मीकि रामायण का नहीं, क्योंकि हम अपने आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लंका पर विजय और रावण के वध के पश्चात् विजया दशमी और दीपावली का पर्व तो उत्साह से मनाते हैं, लेकिन सीता की अग्निपरीक्षा और उनका त्याग हमें विचलित कर देता है। हम जीवन के अप्रिय प्रसंगों को भूल जाना चाहते हैं, क्योंकि हमारे जीवन का मूल उद्देश्य सकारात्मकता है।।

हमारे लिए तो मृत्यु भी एक उत्सव ही है। बारात भी बैंड बाजे से और शवयात्रा भी गाजे बाजे के साथ। भोग कभी हमारा आदर्श नहीं रहा। यम कुबेर होंगे अहंकारी रावण के दास, बजरंग बली हनुमान तो वनवासी राम के ही दास थे। इसीलिए हम भी यम, कुबेर की नहीं, यम की बहन यमुना की स्तुति करते हैं, जो हमें जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त कर, स्वर्ग से भी श्रेष्ठ, अपने वैकुंठ धाम में शरण देती है।

आज भी हम दुनिया के लिए आदर्श बने हुए हैं। बस जरूरत, अपनी गलतियों से सबक सीखने की है। जनसंख्या का विस्फोट और पर्यावरण का बिगड़ता स्वरूप आज की ज्वलंत समस्या है। विकास के वर्तमान मानदंड और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ एक गंभीर खतरे का संकेत दे रहे हैं, अगर हम अब भी नहीं चेते, तो आगे पाट और पीछे सपाट वाली स्थिति से हमें कोई नहीं बचा सकता।।

देश हमारा है, किसी आने जाने वाली सरकार का नहीं। जनता को ही जागरूक होना पड़ेगा। अगर कल कोई जबरन नसबंदी लागू कर दे, अथवा फिर कोई बहुगुणा, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए, पेड़ों से जाकर चिपक जाए, तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जब जागे, तभी सवेरा ..!!

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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