श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  नौवीं  कड़ी में उनकी  एक अद्भुत कविता   “मोर के आँसू ”। आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 9 ☆

 

☆ मोर के आँसू ☆ 

 

जंगल में मोर नाचा …..

किसने देखा?

इसने देखा? उसने देखा?

 

पर अब पता चला कि-

किसी ने भी नहीं देखा।

 

काले-काले  मेघ देखकर,

मोरनी नाचती रहती है,

और

नाम मोर का लगता है।

 

मोरनी जब थक जाती है,

अपने पैर देखकर रोती है।

तब मोर को दया आती है,

और

वह भी आँसू बहा देता है।

 

सारा खेल यहीं हो जाता है,

फिर मोरनी आँसू पी लेती है,

एक जीवन की शुरुआत होती है।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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