श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “तमीज और तहजीब”।)  

? अभी अभी # 119 ⇒ तमीज और तहजीब? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

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विद्या ददाति विनयम् !

जहां शिक्षा है, वहां संस्कार है। हमने साक्षरता पर अधिक जोर दिया है, डिग्रियों पर दिया है, लेकिन बुद्धि, ज्ञान और विवेक पर नहीं दिया। मानवीय गुणों के अभाव के कारण अभी तक हमारी शिक्षा अधूरी ही साबित हुई है ;

दया, धर्म का मूल है

पाप मूल अभिमान।

तुलसी दया न छोड़िए

जब तक तन में प्राण। ।

हम मूक प्राणियों पर तो दया का ढोंग करते हैं, कहीं कबूतरों को दाना चुगाते हैं, तो कहीं चींटियों तक को आटा डालते हैं, लेकिन आपस में इंसान से नफरत और दुश्मनी पालते हैं। कहीं पैसे के लिए, तो कहीं पानी के लिए, एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं।

नीति का तो पता नहीं, और राजनीति करते नजर आते हैं। और शायद यही कारण है कि हमारी कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। हमारे पांव तो जमीन पर नहीं, लेकिन हम आसमान छूना चाहते हैं।

तमीज को हम मैनर्स कहते हैं, मैनर्स यानी इंसानों वाली हरकतें। लोक व्यवहार हमारी तहजीब का एक हिस्सा है। एक सभ्य समाज की नींव माता पिता के संस्कार, स्कूल में शिक्षक की शिक्षा दीक्षा और जीवन में सदगुरु के शुभ संकल्प पर ही मजबूत होती है। ।

सभ्यता की अपनी अलग परिभाषा है। एक गांव का अनपढ़ किसान अथवा आदिवासी भी सभ्य हो सकता है और शहर का कथित पढ़ा लिखा इंसान भी असभ्य। लेकिन हमने सभ्यता को शिक्षा, पद, पैसा और कपड़े लत्ते से जोड़ लिया है, और इसीलिए आज की आधुनिक पीढ़ी पढ़ लिखकर भी असभ्य और अनैतिक होती जा रही है, जिसका असर उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन्हें अच्छी शिक्षा और संस्कार नहीं मिले हैं। गुड़ गोबर एक होना इसी को कहते हैं।

एक समय था, जब हर छोटी बड़ी सरकारी अथवा गैर सरकारी नौकरी के लिए चरित्र प्रमाण पत्र मांगा जाता था, तब भी भले ही यह एक महज औपचारिकता मात्र ही हो, लेकिन नौकरी का चरित्र से क्या संबंध। आपकी निजी जिंदगी आपकी है। ढंग से काम करो, और ऐश करो। ।

छोटी मोटी नौकरियों के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट, फिटनेस सर्टिफिकेट और ड्राइविंग लाइसेंस ही काफी है। एक पेशेवर ड्राइवर के लिए शराब पीकर वाहन चलाना अपराध है, बाकी उसके चाल चलन की जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है। चोरी, डकैती, स्मगलिंग जैसे अपराध तो पकड़े जाने पर ही सामने आते हैं। पुलिस और प्रशासन कोई भगवान नहीं, जो हर आती जाती गाड़ी पर निगरानी रखता फिरे।

आज के युग में सभी अपराधों की जड़ है, easy money ! पैसा कमाना आर्थिक अपराध नहीं। रिश्वत अगर अपराध होती, तो लोगों के घर ही नहीं बनते, गाड़ी बंगले कार जहां, वहीं तो है भ्रष्टाचार।

फिर भी आप easy money को काला पैसा, यानी ब्लैक मनी नहीं कह सकते। पैसा दिमाग और सूझ बूझ से कमाया जाता है। हर ईमानदार गरीब नहीं होता और हर बईमान अमीर भी नहीं हो सकता। सबका नसीब अपना अपना। ।

जहां तमीज नहीं, तहजीब नहीं, वहां बदतमीजी और बदमिजाजी है। आप किसी को तमीज नहीं सिखला सकते। किसी का अच्छा व्यवहार किसे नहीं सुहाता, लेकिन किसी का दुर्व्यवहार आपको मानसिक चोट पहुंचा सकता है। पुरुष हो या महिला, दुर्व्यवहार आजकल आम बात है।

जिनके अपने वाहन नहीं होते, उन्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ही सहारा लेना पड़ता है। पहले आप डिजिटल अपडेट हों, अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार ओला, जुगनू अथवा उबेर बुक करें। कभी कभी जल्दी में, चलते रिक्शा को भी रोक लेना पड़ता है। बुक किए वाहन का तो हमारे पास ऑटो नंबर सहित पूरी जानकारी होती है, लेकिन तत्काल उपलब्ध वाहन और चालक की हमारे पास कोई जानकारी नहीं होती। ।

पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती। अच्छे बुरे सभी तरह के लोग हर पेशे में होते हैं, आपसे कौन टकराता है, यह तो आप भी नहीं जानते। मेरा अब तक का अनुभव इतना बुरा भी नहीं रहा। लेकिन पिछले दिनों एक ऑटो चालक की बदतमीजी और बदमिजाजी ने तो सभी हदें पार कर दी।

जब हम दूध से जलते हैं तो छाछ भी फूंक फूंककर पीने लगते हैं। इतनी बेपरवाही भी अच्छी नहीं। अपनी सुरक्षा के लिए पहले ऑटो का नंबर नोट करें, उसके बाद ही यात्रा सुख का आनंद लें। आजकल तो मोबाइल ने यह काम भी आसान कर दिया है। ।

फिर भी कहने वाले तो कहते ही रहते हैं ;

हर शाख पे उल्लू बैठा है

अंजामे गुलिस्तां क्या होगा

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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