श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पैसा और पुण्य।)  

? अभी अभी # 109 ⇒ पैसा और पुण्य? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

पैसा तो सभी कमाते हैं, लेकिन जिस पैसे से दान किया जाता है, पुण्य तो उसी से कमाया जा सकता है। पुण्य कमाना है, तो दान कीजिए, दान पुण्य से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पैसा तो यहीं छूट जाता है, सिर्फ दान पुण्य ही साथ जाता है।

हमारे पूर्वजों ने बहुत दान पुण्य किया होगा, नेक काम किए होंगे, और आज उनकी वही पुण्याई, शायद आशीर्वाद के रूप में, हमारे काम आ रही है। हमारी विरासत ही हमारा व्यक्तित्व बनाती है। संस्कार, आदर्श, निष्ठा और नैतिकता कुछ लोगों को विरासत में मिलती है, और कुछ को इनके लिए संघर्ष करना पड़ता है। जैसा बाप वैसा बेटा ही कहा जाता है, जैसा बेटा वैसा बाप नहीं। ।

कलयुग में नाम से अधिक दान की महिमा बताई जा रही है, क्योंकि दान से ही तो नाम होता है। दान धर्म को अलग नहीं कर सकते, जो दानदाता वही धर्मात्मा। पुरुषार्थ अगर कर्म की सीढ़ी है तो दान धर्म की। दान सेवा भी है और परमार्थ भी। जो किसी कारणवश असहाय, आश्रित, दिव्यांग और जरूरतमंदों की स्थूल रूप से सेवा नहीं कर सकते, वे यथोचित दान से यह कमी तो पूरी कर ही सकते हैं।

दान स्वार्थ के लिए भी किया जाता है और परमार्थ के लिए भी। सुख शांति और परिवार के कल्याण के लिए भी यज्ञ, दान, हवन, पूजन,

इत्यादि करना ही पड़ता है और बिना पैसे के यह सब संभव नहीं है, इसलिए पहले पैसा कमाएं, उसके बाद ही दान, धर्म और पुण्य कर्म करने की सोचें। ।

हमारी गृहस्थी की गाड़ी दो पहियों पर ही चलती है।

आजकल सुखी गृहस्थी उसी की है जिसके घर में चार पहिये की भी गाड़ी हो। धर्मपत्नी भी हमेशा एक ही बात कहती है, धंधे की कुछ बात करो, पैसे जोड़ो, और यही सुशील गृहिणी पूरे परिवार को धर्म कर्म और दान पुण्य से भी जोड़े रहती है। वह अपने स्वामी से साफ साफ कहती है, दान धर्म और पूजा पाठ आप मुझ पर छोड़ दो, आप तो बस अपने काम धंधे पर ध्यान दो।

आप पैसा कमाओ मैं परिवार के लिए पुण्य कमाती हूं। बाद में बांट लेंगे हम आधा आधा।

किसी भी कथा, प्रवचन, सत्संग में चले जाइए, आपको महिलाएं ही महिलाएं नजर आएंगी। कुछ पुरुष कार्यकर्ता जरूर सेवा कार्य करते नजर आ जाएंगे, लेकिन बहुमत सास, बहुओं, बेटियों का ही होगा। रामकथा, शिव कथा, भागवत पुराण और नानी बाई को मायरो से अब ये कथाएं और कई किलोमीटर आगे निकल गई हैं। बीमारी, पितृ दोष और प्रेत बाधा तक का त्वरित इलाज़ आजकल यहां होने लग गया है। ।

यज्ञ कीजिए, दान कीजिए, संकल्प लीजिए। अगर पर्स में पैसा नहीं है तो चिंता मत कीजिए, गौशाला के लिए चंदा दीजिए, रसीद कटाइए, हमारी बैंक का नाम और आईएफसी कोड है, खाता नंबर है उसमें राशि ट्रांसफर कीजिए। पारदर्शी पुण्य कमाइए।

आपके दान से ही मंदिर बनते हैं, धर्मशालाएं बनती हैं, गेस्ट हाउस बनते हैं, गौशालाओं का निर्माण और गौसेवा होती है, मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होती है। धर्म की रक्षा ही तो सनातन की रक्षा है।।

आपका पैसा एक नंबर अथवा दो नंबर का हो सकता है, लेकिन पुण्य में एक नंबर दो नंबर नहीं होता। दान दाता से कभी नहीं पूछा जाता यह कमाई काली है या गोरी। दान पुण्य में इतनी शक्ति होती है, वह सभी पापों का नाश कर देता है। पुण्य का पलड़ा सदा भारी ही रहा है।

पुरुष कर्म प्रधान है और धर्मपत्नी धर्म प्रधान। धन्य है ऐसा सद् गृहस्थ जिसे धर्म परायण पत्नी मिली हो, उस परिवार का तो समझिए इहलोक और परलोक दोनों सुधर गए। आज का परमार्थ यही है, पहले पैसा संचित करें, उसके बाद ही पुण्य संचित करें।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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