श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “फुटपाथ और पार्किंग।)  

? अभी अभी # 106 ⇒ फुटपाथ और पार्किंग? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

बोलचाल के कुछ शब्दों के हम इतने अभ्यस्त हो चुके होते हैं कि उनकी भाषा हमें अपनी ही भाषा लगने लगती है। एक भाषा आम होती है जिसमें स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, स्टेशन और लाइब्रेरी भी शामिल है। वहां भाषा विवाद और भेद बुद्धि काम नहीं करती। जो आपसी संवाद कायम करे, वही भाषा कहलाती है।

कभी हमारा शहर भी एक आदर्श शहर था, यहां सड़कें थीं, फुटपाथ थे। आज जब यही महानगर, स्मार्ट सिटी बनता हुआ, स्वच्छता के सातवें आसमान पर कदम रख रहा है, तब यहां का आम नागरिक आज ट्रैफिक जाम और पार्किंग जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। ।

हमारे यहां पहले चौराहों का सौंदर्यीकरण होता है और उसके कुछ समय पश्चात् ही वहां ब्रिज निर्माण और मेट्रो का काम शुरू हो जाता है। कितनी बार इन सड़कों का मेक अप करना पड़ता है, शहर की सुंदरता और स्वच्छता को कायम रखने के लिए।

होते हैं कुछ लोग, जो बार बार घरों को रेनोवेट करते हैं, हर तीन साल में कार बदलते हैं।

आज के व्यस्ततम शहर में जब आम आदमी पैदल चल ही नहीं सकता तो फुटपाथ का क्या औचित्य ! लेकिन नगर विकास की कुछ मान्यताएं हैं, कुछ शर्तें हैं, यातायात की कुछ मजबूरियां हैं, जिनके कारण फुटपाथ का होना भी जरूरी है।

निकल पड़े हैं, खुली सड़क पे, अपना सीना ताने! भला ये कहां का ट्रैफिक सेंस। ।

हमारे शहर का प्रशासन और नगर निगम वाहनों की संख्या और यातायात की असुविधा भले ही कम नहीं कर सकता हो, लेकिन शहर के पूरे मोहल्लों और कॉलोनियों में उसने सुंदर फुटपाथ का जाल जरूर बिछा दिया है। शहर की प्रमुख कॉलोनियों में लोगों के घरों के बाहर सड़क के साथ आप एक फुटपाथ भी देख सकते हैं। लेकिन यह फुटपाथ भी चलने के लिए नहीं बना। यहां रहवासी अपनी कारें पार्क करने लगे हैं। अपने ही घर के सामने फुटपाथ पर अपनी कार। इसे ही तो कहते हैं अपनी सरकार।

बड़ा सपना होता था कभी अपना घर बनाने का। एक बंगला बने न्यारा। बंगले के साथ कार का भी सपना जुड़ा रहता था। कार के लिए बाकायदा गैरेज बनाया जाता था, ताकि हर मौसम में उनकी कार सुरक्षित रहे। तब शहर में इतनी खुली ज़मीन आसानी से उपलब्ध हो जाती थी। आज भी कुछ पुराने घरों में कार के दर्शन गैरेज में किए जा सकते हैं। ।

समय का फेर देखिए, जगह कम होती गई, मकान छोटे होते चले गए, दोपहिया और चौपहिया वाहनों की तादाद दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही चली गई और एक स्थिति ऐसी आ गई कि शहर में धड़ाधड़ ऑटो गैरेज खुलने लगे। जो कल के कार सेंटर थे, वे सर्विस सेंटर कहलाने लगे। आजकल कार भी सर्विस पर जाती है, जब वह घर में नहीं होती।

आज का फुटपाथ, चलने के लिए नहीं बना। कर्जा करके बड़ी मुश्किल से घर बनाया, फर्नीचर खरीदा, कर्जे पर ही कार खरीदी, कार हमें जान से प्यारी है, पूरे घर की सवारी है, लेकिन उसके लिए अलग से घर बनाने की हमारी हैसियत नहीं। टाउनशिप हो या कोई पॉश कॉलोनी, कार तो घर के बाहर फुटपाथ पर ही पार्क की हुई मिलेगी। अगर आज घर में गैरेज जितनी जगह अतिरिक्त होती तो क्या हम वह किराए से नहीं उठा देते। एटीएम वाले तो दो गज जमीन से ही काम चला लेते हैं। ।

आजकल हमने भी एक ऐसा चश्मा बना लिया है, जिससे हमें कहीं गरीबी नजर नहीं आती। हर घर के बाहर एक कार खड़ी है, फुटपाथ कहीं चलने लायक नहीं। बाजारों में तो आप फुटपाथ छोड़िए, सड़कों पर भी नहीं चल सकते। जो आदमी इतना व्यस्त है, क्या वह समस्याग्रस्त भी हो सकता है। उसे तो बस बहना है, विकास के बहाव में, विज्ञापनों का बाजारवाद आपको महंगाई से भी बचाए रखता है। एमेजॉन, फ्लिपकार्ट और बिग बास्केट चौबीस घण्टे आपकी सेवा में हाजिर है। ऑनलाइन पेमेंट में पैसा कहां जेब से जाता है। वैसे भी ईश्वर ने बहुत दिया है।

रहवासी एरिए में, घर के बाहर बने फुटपाथ अथवा सड़क पर कार रखना कोई अतिक्रमण नहीं, कानूनी जुर्म नहीं, आम नागरिक की मजबूरी है। रात दिन आपकी कार आपकी निगरानी में रहे, सुरक्षित रहे, हम तो यही प्रार्थना कर सकते हैं। बस अन्य लोगों की सुविधा का भी खयाल रखें, तो सोने में सुहागा।

पार्किंग की समस्या का कोई विकल्प हो या ना हो, दूसरी कार का संकल्प लोग फिर भी ले ही लेते हैं। ।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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