श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सत्यवादी हरिश्चंद्र।)  

? अभी अभी # 80 ⇒ सत्यवादी हरिश्चंद्र? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

एक तरफ कवि शैलेन्द्र कह गए हैं, सजन रे झूठ मत बोलो, ख़ुदा के पास जाना है, और दूसरी ओर सच बोलने वाले की ईश्वर इतनी परीक्षा लेता है कि, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का राजपाट छीन, उसे कंगाल बना देता है। शायद इसीलिए हमारे घरों में सत्यवादी हरिश्चन्द्र की नहीं, सत्यनारायण की कथा होती है। जिसमें सिर्फ़ सत्य नारायण की कथा के प्रसाद का जिक्र है, सत्य और नारायण की कथा का, कहीं पता नहीं।

सच्चे का हमारे यहाँ कितना बोलबाला है, आप नहीं जानते! संविधान हो, या सुप्रीम कोर्ट, सत्यमेव जयते! फ़िल्म कैसी भी हो, टाइटल, सत्यं शिवम सुंदरम!

और तो और, लोगों तो सच का स्वाद भी पता है, कड़वा होता है। इसीलिए शास्त्रों में मीठा बोलने का कहा गया है। ।

सदा सच बोलने वाले को हमारे यहाँ सत्यवादी हरिश्चंद्र कहते हैं। जब कहीं कोई ईमानदार व्यक्ति किसी बेईमानी के काम में टाँग अड़ाता है, तो बरबस मुँह से निकल जाता है, बड़ा हरिश्चंद्र बना फिरता है। इसको सेट करना पड़ेगा। कितने लोगों को अपसेट कर पाते हैं, ये कथित हरिश्चंद्र, हम देख ही रहे हैं।

मुझे मालूम है घर घर में सत्यनारायण की कथा ही होगी, सत्यवादी हरिश्चंद्र की नहीं, आखिर क्यों ? एक धर्मराज युधिष्ठिर हुए हैं, उन्हें भी अश्वत्थामा की मृत्यु पर झूठ का सहारा लेना ही पड़ा। नरो वा, कुंजरो वा! अरे भले आदमी, जब छल-कपट नहीं जानते, तो शकुनि के साथ जुआ खेलने क्यों बैठ गए। किसी ने सच कहा है, सच बोलने वालों की मति मारी जाती है। अगर भरोसा न हो तो हरिश्चंद्र की कथा सुन भले ही लीजिए, घर में कभी न कराइये। ।

वह रामराज्य नहीं, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का राज था। उनके सच के डंके की आवाज़ स्वर्ग तक सुनी जा सकती थी। स्वर्ग में अक्सर इस धरती की बात चला करती है। एक थे राजा राम के गुरु वशिष्ठ और दूसरे ऋषि विश्वामित्र जो किसी के मित्र नहीं थे। राजा हरिश्चंद्र को लेकर दोनों में शर्त लग गई। शर्त बुरी चीज है, किसी का सत्यानाश करके ही छोड़ती है।

गुरु विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने की सोची! श्रीमान सत्यवादी के सपने में आए, और सारा राजपाट दान में माँग लिया। राजा की नींद खुल गई और देखते क्या हैं, सपना सच हो गया। विश्वामित्र सामने खड़े हैं। बोले, लाओ जो तुमने सपने में दान दिया है! और हमारे सत्यवादी हरिश्चंद्र ने सारा राजपाट, गुरु विश्वामित्र को दे दिया। ओ भाई मेरे, यह तो हुआ दान, दक्षिणा कहाँ है ? राजा ने नौकरों को आदेश दिया। विश्वामित्र ने कहा, ओ मिस्टर!

जब तुम्हारा राजपाट ही नहीं तो काहे के नौकर-चाकर। दक्षिणा देओ, और चलते बनो। हमारे सत्यवादी ने पत्नी और बच्चे को दक्षिणा में दे दिया और सड़क पर आ गए। ।

सच और भी कड़वा होता है।

एक बार सत्ता हाथ से गई, तो काहे की गुडविल! किसी धन्ना सेठ मुकेश का भला किया होता तो श्मशान में डोम की नौकरी तो नहीं करनी पड़ती। सत्यानाश किसे कहते हैं, देखिये! बालक मरा, तो भूतपूर्व रानी के पास पैसा नहीं, साड़ी फाड़कर कफ़न बनाया, और ले चली श्मशान, जहाँ उनके स्वामी, भूतपूर्व राजा, अपनी पत्नी से, लाश के क्रिया कर्म के लिए पैसे माँग रहे थे।

रानी ने असहाय स्थिति में अपना पहना हुआ वस्त्र जब फाड़ा, तब जाकर, सच्चे का बोलबाला हुआ। दोनों ऋषि प्रकट हुए, प्रसन्न हुए। हमेशा की तरह देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की। धन्य है, राजा सत्यवादी हरिश्चंद्र। न भूतो, न भविष्यति।

कथा की सीख! सत्य की, ज्यादा गहराई में न जाएँ। बोलो सत्यनारायण भगवान, सॉरी, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जय।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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