श्री अखिलेश श्रीवास्तव 

(विज्ञान, विधि एवं पत्रकारिता में स्नातक श्री अखिलेश श्रीवास्तव जी 1978 से वकालत एवं स्थानीय समाचार पत्रों में सम्पादन कार्य में सलग्न । स्वांतः सुखाय समसामयिक विषयों पर लेख एवं कविताएं रचित/प्रकाशित। प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता कहां खो गई प्यारी मां।)

☆ मातृ दिवस विशेष  – कहां खो गई प्यारी मां ☆ श्री अखिलेश श्रीवास्तव ☆

कहां खो गई प्यारी मां

नज़र नहीं क्यों आती मां

छवि आंखों में है तेरी मां

क्यो?नहीं दिख पाती मां।।

 

सुबह हो गई उठ जा बेटा

कहकर नहीं उठाती मां

फिर गिलास में दूध लेकर

मुझको नहीं पिलाती मां।।

कहां खो गई प्यारी मां……..

 

बचपन में गलती करने पर

मुझको डांट लगाती थी मां

गलती करने पर अब मुझको

क्यूं नहीं डांट लगाती मां।।

कहां खो गई प्यारी मां………

 

जब भी मैं भूखा होता हूं

तेरी याद सताती है मां

एक निवाला मुझे खिलाने

क्यों?नहीं आ जाती मां।

कहां खो गई प्यारी मां………

 

बेचैनी में जब रातों में

मुझे नींद नहीं आती है

इस बेटे को लोरी सुनाने

तू क्यों नहीं आ जाती मां

कहां खो गई प्यारी मां……..

 

परेशानी में जब होता हूं

समझ नहीं कुछ आता मां

मुझे प्यार से समझाने को

क्यूं ? नहीं आ पाती मां

कहां खो गई प्यारी मां…….

 

बिना तुम्हारे त्यौहारों पर

रौनक नहीं आ पाती मां

त्यौहारों की खुशी बढ़ाने

तू क्यूं नहीं आ जाती मां

कहां खो गई प्यारी मां……

 

ममता और प्यार‌ की बगिया

मां मुरझाईं रहती है

ममता की इस फुलवारी में

फूल खिलाने आ जा मां

कहां खो गई प्यारी मां……

 

अब तेरे आंचल की छांव

मुझे नहीं मिल पाती है

नैनों में बसी तेरी मूरत

नज़र नहीं क्यूं आती मां ।।

 

कहां खो गई प्यारी मां

नज़र नहीं क्यूं आती मां…….

 

© श्री अखिलेश श्रीवास्तव

जबलपुर, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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