श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किताब और कैलेण्डर”।)  

?अभी अभी  – कुआं और बावड़ी ००० Well & Step Well… ? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

जिन्होंने दिल्ली देखी है,उन्होंने धौला कुआं और खारी बावली का नाम भी सुना होगा । मेरे शहर में भी एक ढक्कन वाला कुआं है,जहां आज न तो कोई ढक्कन है और न ही कोई कुआं,बस एक प्राइवेट बस अड्डा है,जहां से बसें आती जाती रहती हैं ।

कभी कुएं बावड़ी बनवाना और तालाब खुदवाना परमार्थ का कार्य माना जाता था। सेठ साहूकार अपने नाम से राहगीरों के लिए धर्मशालाएं,औषधालय और प्याऊ का निर्माण करते थे । आदमी पहले कुआं खुदवाता था और उसके बाद ही घर बनवाता था । गांव के किसान के खेत में भी कुआं उसकी पहली जरूरत थी । जहां नदी तालाब नहीं होते थे,वहां बावड़ियां  बनवाई जाती थी ।।

हमारी देवी अहिल्या की नगरी तो पुण्य और परमार्थ की नगरी है । एक समय यहां कितने धर्मार्थ औषधालय,धर्मशालाएं, चिकित्सालय, स्कूल कॉलेज,शीतल जल की प्याऊ और सार्वजनिक वाचनालय थे ।

आज जिसे सराफा चौराहा कहते हैं,वहां कोने पर कभी वैद्य ख्यालीराम जी द्विवेदी का पारमार्थिक औषधालय तो था ही,उसी से लगी हुई एक शीतल जल की प्याऊ भी थी ।

हर चार कदम पर जहां प्यासे को पानी मिल जाए उस नगर में कभी पिपल्या पाला,सिरपुर,बिलावली और यशवंत सागर जैसे तालाब थे । आज तो बस नर्मदे हर ।।

कुएं और बावड़ी में अंतर है । कुएं में से पानी रस्सी  बाल्टी से निकाला जाता था ,जब कि बावड़ी में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां होती थीं । शायद इसीलिए कुएं को अंग्रेजी में well और बावड़ी को step well कहते थे ।  जब इंसान ने सीढ़ियां चढ़ना उतरना ही बंद कर दिया तो बेचारी बावड़ी भी क्या करे ।

आम आदमी के लिए अगर कुआं था,तो महलों में बावड़ियां होती थीं । एक मंजिल नहीं,कई मंजिल गहरी ,सीढ़ियों वाली बावड़ियां । इंसान का बस चलता तो वह पाताल तक सीढियां बनाकर पानी ले आता ।।

जब उसका बस नहीं चला तो उसने कुएं और बावड़ियों में मोटर लगवा ली । बढ़ती जनसंख्या और घटते जल स्तर के कारण जब कुएं सूखने लगे,तब इंसान आसमान में सूराख करने से तो रहा,उसने धरती में ही सूराख करना शुरू कर दिया । पहली स्टेप,well और step well की जगह पहले हैंड पंप और बाद में ,

घर घर धड़ल्ले से ट्यूबवेल खुदने लगे ।

जो इंसान पहले सीढ़ियों से

चढ़ता उतरता था,उसने अपने चढ़ने के लिए तो लिफ्ट लगा ली और जमीन के अंदर से पानी ऊपर लाने के लिए सबमर्सिबल पंप । हमारी धरती माता के प्रति सब mercy एक तरफ,पहले bore well तत्पश्चात् सबमर्सिबल ।।

होगा कभी किसी कुएं का पानी मीठा,आज का ट्यूबवेल का पानी तो बर्तन भी खराब करता है और पीने लायक नहीं रहता ।

कहीं pure it तो कहीं प्यूरीफायर,कहीं एक्वागार्ड तो कहीं हेमा मालिनी का

KENT. शुद्ध पानी,सेंट परसेंट ।

आज शहरों के अधिकांश पुराने कुएं और बावड़ियां जमींदोज़ हो चुकी हैं । हमारे रामबाग के एक घर के कुएं को मिट्टी में मिलाने का पाप हमारे भी सर है ।

कितनी बावड़ियों पर हमने बाद में मकान और भवन बनते देखे हैं । गोराकुंड पहले क्या था,सब जानते हैं ।।

हमारे शहर में, ऐन रामनवमी के पर्व पर जो हृदय विदारक हादसा हुआ है,वहां भी दुर्भाग्य से एक जीती जागती,पानी से भरी बावड़ी ही थी ।

इंसान अपने सोर्स ऑफ़ इनकम को बढ़ाने के लिए लालच के अंधे कुएं में भी जाने को तैयार है । वह परमार्थ की सीढ़ियां तो नहीं चढ़ना चाहता लेकिन पाप की सीढ़ियां अगर पाताल तक जा रही हों,तो वहां तक भी उतरने को आमादा है ।।

कुएं,बावड़ी,तालाब हमारी प्राकृतिक धरोहर हैं,नगर महानगर बनते की होड़ में आसपास के गांवों में भी अतिक्रमण करने लगे हैं ।

हमारे भू माफिया गांव के नियम कायदों का गलत फायदा उठाकर प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर वहां भी आधुनिक आलीशान महल तैयार करते चले जा रहे हैं । लोकतंत्र में राजसी जीवन तो संभव है,लेकिन कहीं परमार्थ का अता पता नहीं । इसे ही शायद हमारी मालवी भाषा में कुएं में भांग और हरियाणवी में बावली बूच कहते हों ।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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